Wildlife ShelterTV

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छोटे से गाँव में एक गाय थी — गुलाबू, जो सफेद चमड़ी पर भूरे धब्बों वाली बड़ी प्यारी दिखती थी। गुलाबू हर सुबह गाँव के मंदिर के सामने बैठती, जैसे वह खुद भगवान का आशीर्वाद बाँटने आई हो। सब बच्चे उसे रोटी और गुड़ खिलाते थे।

एक दिन गाँव में एक बुरा तूफान आया। बारिश और तेज़ हवा से सब कुछ बर्बाद हो गया। उसी समय मंदिर के सामने एक छोटा-सा भूखा पिल्ला भीगता हुआ बैठा था। गुलाबू ने उसे देखा और अपनी बड़ी गरम साँसों से उसे सहलाने लगी। वह उसे अपने पैरों के बीच बैठा लेती, ताकि वह ठंड से बच सके।

धीरे-धीरे वह पिल्ला, जिसे गाँव वालों ने प्यार से मोती नाम दिया, गुलाबू के साथ बड़ा होने लगा। जहाँ गुलाबू जाती, मोती उसके साथ दौड़ता। गुलाबू भी उसे अपनी संतान जैसा प्यार करती। गाँव वाले यह अद्भुत प्रेम देखकर हैरान रह जाते।

एक दिन मोती को एक साँप ने काट लिया। वह दर्द से चिल्लाने लगा। गुलाबू ने जोर से रंभाया, गाँव वालों को बुलाया। सब लोग दौड़े और समय रहते मोती को बचा लिया गया। उस दिन सबने देखा कि इंसानों से भी बढ़कर जानवरों में कितना गहरा प्यार होता है।

गुलाबू और मोती अब गाँव की पहचान बन गए। मंदिर के बाहर गुलाबू के पास बैठा मोती हर आने-जाने वाले का दिल जीत लेता था।

सीख: सच्चा प्रेम ना तो भाषा देखता है, ना जाति — बस दिल से दिल का रिश्ता होता है।

14 hours ago | [YT] | 321

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मोरिया एक सुंदर, हरे रंग का तोता था जो रोज़ सुबह गाँव के मंदिर के पास आकर अपनी मधुर आवाज में गाना गाता था। सभी गाँववाले उसे पहचानते थे और उसके आने का इंतजार करते थे। पर एक दिन जब वह आया नहीं, तो सभी को चिंता हुई।

कुछ बच्चों ने उसे दूर एक झाडी में गिरा पाया। उसके पंख घायल थे और वह उड़ने में असमर्थ था। बच्चों ने उसे प्यार से उठाया और गाँव के स्कूल में बने छोटे से पशु चिकित्सा केंद्र ले आये। वहां की मैडम ने उसके घावों की सफाई की और दवाइयाँ दीं। बच्चे रोज उसका हाल पूछते, कुछ उसे बीज खिलाते, कुछ पानी पिलाते।

मोरिया भी धीरे-धीरे ठीक होने लगा। उसकी आँखों में फिर से चमक लौट आयी थी। अब वह बच्चों के कंधों पर बैठता, उनसे बातें करता और चहचहाता। जब वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया, तो गाँववालों ने मंदिर में एक छोटी सी पूजा रखी और मोरिया को खुले आसमान में उड़ाया।

वह ऊँची उड़ान भरता हुआ आसमान में खो गया, लेकिन हर सुबह मंदिर की घंटी के साथ उसकी मीठी आवाज फिर से गूंजने लगी।

मोरिया ने सबको सिखाया कि सच्चा प्रेम बिना किसी उम्मीद के बस देना होता है।

2 days ago | [YT] | 1,212

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शेरू कभी एक खुशमिज़ाज और चंचल कुत्ता था जो अपने मालिक के साथ खेतों में दौड़ता था, तालाब में नहाता और बच्चों के साथ खेलता था। पर एक दुर्घटना में उसके मालिक की मौत हो गई और शेरू बेसहारा हो गया।

कई महीने बीत गए, शेरू ने किसी को पास नहीं आने दिया। वह उसी खेत के कोने में बैठा रहता, जहां उसके मालिक की आखिरी सांसें थीं। धीरे-धीरे उसके बाल झड़ने लगे, शरीर कमजोर हो गया, और उसके हावभाव से साफ था कि वह अंदर से टूट चुका था।

गाँव वालों ने कई बार उसे अपनाने की कोशिश की, पर वह किसी को अपने पास नहीं आने देता। बच्चों ने रोटी फेंकी, किसी ने दूध रखा, पर शेरू हमेशा चुपचाप पीछे हट जाता।

एक दिन गाँव में एक बुज़ुर्ग दम्पती आए, जो पशु प्रेमी थे। उन्होंने शेरू की हालत देखी और बिना कोई जल्दीबाज़ी किए, हर रोज़ उसके पास जाकर बैठने लगे। उन्होंने धीरे-धीरे शेरू को उसकी दुनिया से बाहर निकालने की कोशिश की।

लगभग तीन हफ्तों के बाद शेरू ने पहली बार अपने कान हिलाए जब उन्होंने उसका नाम पुकारा। फिर एक दिन, वह खुद चलकर उनके पास आ गया और उनके पैरों के पास लेट गया।

उस दिन से शेरू की नई सुबह शुरू हुई। वह अब उस दंपति के साथ रहता है, उनका खेतों में साथ देता है, और बच्चों के साथ फिर से दौड़ता है।

उसने अपना अतीत नहीं भुलाया, लेकिन अब वह दर्द को पीछे छोड़ कर फिर से जीना सीख रहा है।

3 days ago | [YT] | 765

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समुद्र की लहरों के बीच, एक छोटी डॉल्फिन "नीली" अपने झुंड के साथ मस्ती करती थी। वह बाकी सब से अलग थी — ज्यादा चंचल, ज्यादा भावुक। मगर उसके शरीर में एक कमजोरी थी, उसकी पीठ पर चोट का एक पुराना निशान, जिससे वह बहुत तेज़ नहीं तैर पाती थी।

एक दिन समुद्र में एक तूफान आया। लहरें उफान पर थीं और नीली का झुंड तितर-बितर हो गया। इंसानों की एक बोट भी पास ही फँसी हुई थी, जिसमें एक बच्चा था जो डर के मारे रो रहा था। नीली को खतरे का आभास हुआ। वह दर्द में होने के बावजूद बोट की तरफ बढ़ी। अपनी चोंच से बोट को किनारे की ओर धकेलने लगी।

कई घंटों की जद्दोजहद के बाद, वह बोट को किनारे तक ले आई। लोगों ने नीली की बहादुरी देखी और मोबाइल से वीडियो बना डाली। मगर जब सब शांत हुआ, नीली वहीं किनारे पर बेसुध हो गई। उसकी साँसे धीमी थीं, पर चेहरा शांत।

अगले दिन लोगों ने समुद्र किनारे उसकी मूर्ति बनाई — "नीली: समुद्र की रक्षक"। अब वो हर साल नीली के सम्मान में एक दिन मनाते हैं।

सीख: असली ताक़त शरीर में नहीं, दिल और इरादे में होती है।

5 days ago | [YT] | 450

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कंचन एक स्कूल टीचर थी और उसे अकेलापन बहुत खलता था। एक दिन स्कूल से लौटते वक़्त उसे सड़क किनारे एक घायल तोता मिला। वह उसके पंख बुरी तरह घायल थे। कंचन उसे अपने घर ले आयी और धीरे-धीरे उसकी देखभाल करने लगी। उसने उसका नाम रखा – लुसी।

हर सुबह वह लुसी से बातें करती, उसे फल खिलाती और किताब पढ़ते वक्त उसे पास बिठाती। कुछ ही महीनों में लुसी पूरी तरह ठीक हो गई, लेकिन उसने उड़ना छोड़ दिया। वह अब कंचन के घर को ही अपना संसार मानने लगी थी।

एक दिन जब कंचन की तबियत खराब हो गई और वह बेहोश हो गई, तो लुसी ने अपने पंख फड़फड़ाए, खिड़की से उड़ गई और पास के मेडिकल स्टोर में जाकर लोगों का ध्यान खींचा। एक आदमी लुसी के पीछे-पीछे घर आया और कंचन को समय पर अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने कहा — थोड़ी और देर हो जाती, तो जान भी जा सकती थी।

लुसी अब न सिर्फ कंचन की दोस्त है, बल्कि उसकी जीवनरक्षक भी।

6 days ago | [YT] | 990

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शहर की एक व्यस्त कॉलोनी में एक चुपचाप सी बिल्ली थी—झब्बू। न ज्यादा म्याऊ करती, न किसी से डरती। कॉलोनी के लोग उसे "चुप्पी रानी" कहते थे। वो बस एक बालकनी में चुपचाप बैठी रहती थी, जहाँ एक बूढ़ी अम्मा रहती थीं।

अम्मा की कोई संतान नहीं थी। उनका दिन झब्बू के साथ ही शुरू और खत्म होता। वो उसे दूध देतीं, उससे बातें करतीं, और झब्बू सब कुछ बस चुपचाप सुनती रहती। फिर एक दिन अम्मा बिस्तर से नहीं उठीं। कॉलोनी के लोगों को तब पता चला जब झब्बू तीन दिन तक अम्मा के कमरे के बाहर बैठी रही, बिना खाए-पिए।

जब अम्मा को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया गया, तो झब्बू पीछे-पीछे चली गई। वहाँ वो अर्थी के पास लेट गई, मानो आखिरी बार उनसे कुछ कहना चाहती हो। अम्मा की मौत के बाद झब्बू उस बालकनी में कभी नहीं बैठी।

सीख: जानवरों के पास शब्द नहीं होते, पर उनका प्रेम सबसे गहरा होता है।

1 week ago | [YT] | 662

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एक रेलवे स्टेशन पर एक कुत्ता रोज़ एक ही प्लेटफार्म पर बैठा दिखता था। कोई नहीं जानता था वो किसका है। पर रोज़ शाम को वो सामने वाले ट्रेन के आने का इंतज़ार करता।

एक बूढ़ा कुली उसे रोज़ रोटी दे देता। एक दिन उसने पूछा, “क्या किसी का इंतज़ार करता है तू?” और एक बूढ़े यात्री ने बताया — तीन साल पहले एक यात्री यहीं ट्रेन में बैठा था, और उसका कुत्ता वहीं छूट गया। तब से ये हर दिन उसी ट्रेन का इंतज़ार करता है।

वो दिन भी आया जब वही आदमी सालों बाद उसी स्टेशन पर लौटा। कुत्ते ने दूर से ही भौंकना शुरू किया, और दौड़ता हुआ उसके पास गया। सबकी आँखें नम थीं। स्टेशन की भीड़ के बीच, आज वहाँ सच्ची वफादारी का मंज़र था।

1 week ago | [YT] | 708

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आखिरी साथ

बृजमोहन एक बुज़ुर्ग किसान था, जो अपने गाँव के बाहर खेत में अकेले रहता था। उसके बेटे शहर में बस चुके थे और पत्नी कुछ साल पहले इस दुनिया से चली गई थी। उसका जीवन अब सिर्फ खेत और उसके सबसे पुराने साथी — एक सफेद रंग का बैल "मोती" — के साथ चलता था।

मोती कोई साधारण बैल नहीं था। बचपन से बृजमोहन के साथ पला था। जब खेतों में हल चलाना होता, मोती आगे-आगे चलता और जब दिन ढलता, तो दोनों एक पेड़ के नीचे बैठकर एक साथ खाना खाते। मोती उसकी बातों को शायद नहीं समझता था, पर उसकी आंखों में वो सब सुनने का सलीका था।

लेकिन एक साल गाँव में भयंकर सूखा पड़ा। फसलें सूख गईं, अनाज खत्म हो गया और पैसे भी चुक गए। बृजमोहन को अब मोती के चारे के लिए भी उधार लेना पड़ रहा था। जब हालात और बिगड़े, तो बहुत सोचकर वह मोती को बेचने का फैसला किया।

गाँव के मेले में जब वह मोती को ले गया, तो मोती बार-बार जमीन पर बैठने लगा। वह हिलने को भी तैयार नहीं था। बृजमोहन ने बहुत कोशिश की, लेकिन मोती की आंखों में कुछ था जो साफ कह रहा था — "मुझे मत बेचो।"

लोग तमाशा देख रहे थे, कोई हँस रहा था, कोई चुप था। लेकिन बृजमोहन की आँखों से आँसू बहने लगे। उसने मोती को गले लगाया और वहीं बैठ गया। "जो मेरे साथ हर सुख-दुख में रहा, उसे मैं कैसे छोड़ दूँ?" उसने खुद से कहा।

वह मोती को लेकर घर लौट आया। उस रात दोनों ने एक साथ वही सूखा रोटी का टुकड़ा खाया — आधा बृजमोहन ने, आधा मोती ने। उनके बीच कोई शब्द नहीं थे, फिर भी सब कुछ कहा जा चुका था।

1 week ago | [YT] | 1,492

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गांव की एक गरीब लड़की रोज़ की तरह जंगल के किनारे खेल रही थी, जब उसने एक घायल कछुआ देखा। उसका पिछला पैर जख्मी था और वह हिल भी नहीं पा रहा था। बच्ची ने झिझकते हुए उसे उठाया और अपने घर ले आई। घर में सुविधा नाम की कोई चीज़ नहीं थी, लेकिन ममता की कोई कमी नहीं थी।

उसने कछुए को गर्म पानी से साफ किया, हल्दी लगाई और उसे सूती कपड़े में लपेटकर एक गत्ते के डिब्बे में रख दिया। हर दिन वो गोभी के पत्ते, टमाटर और सेब के छोटे टुकड़े लाकर उसे खिलाती। जैसे-जैसे दिन बीते, कछुआ धीरे-धीरे चलने लगा। वो बच्ची उसका नाम नहीं जानती थी, लेकिन प्यार से उसे "छोटू" बुलाने लगी थी।

कई दिनों तक देखभाल के बाद छोटू पूरी तरह ठीक हो गया। अब जब लड़की टोकरी लेकर आती, तो छोटू खुद चलकर पास आता। एक दिन जब गांव के बच्चे खेल रहे थे, छोटू उनके बीच पहुंचा। सबने हैरान होकर देखा कि यह वही घायल कछुआ था, जो अब पूरी तरह स्वस्थ और खुश दिख रहा था।

लोगों ने बच्ची की तारीफ की। कुछ ने उसे “कछुओं की माँ” तक कह दिया। उस दिन उस बच्ची की आंखों में चमक थी, और छोटू उसकी गोद में चैन से सो गया। सच ही कहा गया है – प्यार और सेवा किसी अमीरी या गरीबी की मोहताज नहीं होती।

1 week ago | [YT] | 904

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शेरा एक गली का आवारा कुत्ता था, लेकिन उसमें एक खासियत थी — उसका दिल। वह रोज़ अपनी एक पुरानी टोकरी लेकर गाँव के मेन रोड पर जाता और सब्जीवालों से प्यार से सब्जी माँगता। लोग सोचते थे कि वह बस यूँ ही करता है, मगर शेरा की असली कहानी किसी को नहीं पता थी।

शेरा दरअसल एक बूढ़ी महिला, गौरी अम्मा के साथ रहता था। गौरी अम्मा अपने बेटे की मौत के बाद अकेली रह गई थी। कोई देखने वाला नहीं, कोई पूछने वाला नहीं। बस शेरा ही था जो उनके हर काम में मदद करता। सुबह दूध, दोपहर को सब्ज़ी, और शाम को दवा — सब शेरा ही लाता।

एक बार गाँव में बाढ़ आ गई। लोग अपने घर छोड़कर ऊँचे स्थानों पर जाने लगे। गौरी अम्मा वहीं फँस गईं। शेरा बहते पानी में से तैरता हुआ पास के मंदिर तक गया, जहाँ लोग छुपे थे। वह लगातार भौंकता रहा जब तक गाँव के युवक मदद के लिए तैयार न हो गए।

वो शेरा ही था जिसने गौरी अम्मा की जान बचाई।

बाढ़ के बाद गाँव में जब किसी ने पूछा कि सबसे बहादुर कौन है — तो सबकी नजरें शेरा पर जाकर रुक गईं। अब वह गाँव की पहचान बन चुका था।

गौरी अम्मा कहती थीं — "शेरा ने मुझे बेटे की कमी कभी महसूस नहीं होने दी।"

1 week ago | [YT] | 474