अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

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अध्यात्म'यात्रा 🚩🚩
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प्रतिदिन दोपहर – 02:00 योगसूत्र आदि
प्रतिदिन सायं – 05:30 शॉर्ट्स आदि
प्रतिदिन रात्रि – 08:30 शंका समाधान, विषय आदि

बीच में कभी कभी समय अनुकूलता अनुसार वीडियो प्राप्त किया जाएगा..
कभी दिनचर्या बिगड़ भी सकती है, क्षमा प्रार्थी रहेंगे 🌹🙏🚩

🙏 : विशेष सूचना यह चैनल स्वामी जी नहीं चलाते,
उनको अपना गुरु मानने वाले शिष्य चलाते हैं, यदि आपकी कोई शंका या विशेष सूचना आदि हो तो स्वामी जी से उसका उत्तर अवश्य लिया जाएगा । 🙏

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पंडित कैलाश मोहन आर्य ( वैदिक संस्थान ओढ़व )


अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

29.4.2025
प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्य को लेकर चिंतित रहता है, कि *"मेरा भविष्य अच्छा होना चाहिए."*
बिल्कुल हो सकता है। इसमें कोई संशय नहीं है। कैसे होगा? उत्तम कर्मों का आचरण करने से। *"आपको प्रतिदिन उत्तम कर्मों की किस्त भरनी होगी। इससे आपके उत्तम भविष्य का बीमा हो जाएगा। यदि इस प्रकार की उत्तम कर्मों की किस्त आप भरते रहेंगे, तो एक सबसे बड़ी बीमा कंपनी है, जो आपके भविष्य की सुरक्षा कर देगी। इस किस्त के भरने से आपके इस जन्म का भविष्य भी अच्छा होगा और अगले जन्म का भी। ऐसी सबसे बड़ी बीमा कंपनी है ईश्वर। वह कंपनी सबका बीमा करती है, और सबके भविष्य की सुरक्षा करती है। शर्त केवल इतनी है कि आप को अपनी किस्त प्रतिदिन भरनी होगी, वह भी उत्तम कर्मों की।"*
*"यदि कोई व्यक्ति बुरे कर्म करेगा, तो उसका भविष्य भी संदिग्ध होगा अर्थात उसका भविष्य सुरक्षित नहीं होगा। बुरे कर्म करने से उसका वर्तमान जीवन भी बिगड़ जाएगा और भविष्य भी। वह इस जन्म में भी दुखी रहेगा, चिंतित और तनावग्रस्त जीवन जिएगा, तथा अगला जन्म भी उसे पशु पक्षी योनियों में काटना पड़ेगा।"*
इसलिए बुद्धिमत्ता इसी बात में है, कि *"प्रतिदिन उत्तम कर्मों का आचरण करें। यही आपके भविष्य की सुरक्षा की किस्त है। ईश्वर न्यायकारी है। उस पर विश्वास अवश्य रखना चाहिए। वह आपको कभी भी धोखा नहीं देगा।"*
---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*

6 hours ago | [YT] | 91

अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

28.4.2025
संसार में ऐसा देखा जाता है, कि अधिकतर लोग प्रदर्शनमय जीवन जीते हैं, अर्थात दिखावा बहुत करते हैं। *"उनके मन वाणी और शरीर के व्यवहारों में एकरूपता बहुत कम दिखती है।"*
प्रायः लोगों में गुण भी होते हैं, और दोष भी। *"इस प्रदर्शन या औपचारिकता के दौर में लोग अपनी स्वार्थ सिद्धि करने के लिए दूसरे व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा तो करते हैं, परंतु पूरी वास्तविकता नहीं बताते। अर्थात उनके दोष नहीं बताते। क्योंकि उन्हें यह आशंका होती है, कि "यदि हम सामने वाले व्यक्ति का दोष बताएंगे, तो यह हमसे रुष्ट (नाराज) हो जाएगा। यदि यह व्यक्ति हमसे नाराज हो गया, तो हमारी स्वार्थ सिद्धि में बाधा पड़ेगी। इसलिए वे प्रायः दोष नहीं बताते, और सच्ची झूठी प्रशंसा करके दूसरे व्यक्ति को प्रसन्न रखना चाहते हैं, तथा वैसा करते भी हैं।"*
परंतु यदि कोई व्यक्ति आपके दोष नहीं बताता और केवल आप की सच्ची झूठी प्रशंसा करता रहता है, तो इससे आपको अनेक हानियां भी होती हैं। इससे आपके दोष दूर नहीं हो पाते। क्योंकि आपको पता ही नहीं चलता, कि *"मुझमें क्या-क्या दोष हैं।"*
*"इसलिए जीवन में 2/4 व्यक्ति ऐसे ईमानदार सज्जन व्यक्तियों को अपना मित्र अवश्य बनाना चाहिए, जो आपसे डरें नहीं। निर्भय होकर वे आपका दोष आपको बता सकें। और आप उन अपने हितैषियों से अपने दोष जानकर उन्हें दूर कर सकें। जिससे कि होने वाली हानियों से आप बच पाएं।"*
इसके लिए आपको अपना व्यवहार ऐसा रखना होगा, कि *"जो 2/4 व्यक्ति आपके निकट हों, आपको गहराई से समझते हों, उनके द्वारा आपके दोष बताए जाने पर आप उनको डांट न लगाएं, उनको धमकाएं नहीं। तब वे निर्भय होकर आपको आपके दोष बताएंगे।"*
फिर आप उन दोषों पर निष्पक्ष भाव से चिंतन/विचार करें। *"यदि वे दोष आपमें हों, तो उन्हें दूर करें। दोष बताने वाले अपने उन मित्रों पर गुस्सा न करें। उनके साथ झगड़ा न करें।" "और यदि उनके द्वारा बताए गए दोष आपमें न हों, तो प्रेम से अपना स्पष्टीकरण उन मित्रों को सुना दें, कि "यह दोष मुझमें नहीं है। शायद आपको भ्रांति हुई हो।" "अथवा 20/ 30 प्रतिशत दोष हो, तो जितना भी हो उतना अवश्य ही स्वीकार करें, और उसे दूर भी करें। तभी दोषों से छूट कर आपके दुख दूर होंगे। और आप अच्छे गुणों को धारण करके सुखी जीवन जी पाएंगे।"*
----- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।"*

1 day ago | [YT] | 111

अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

27.4.2025
सब लोग अपना भविष्य अच्छा बनाना चाहते हैं। जी हां, यह अच्छी बात है।
यदि आप भी ऐसा ही करना चाहते हैं, तो इसका उपाय है, कि *"भूतकाल में जो दुखदायक घटनाएं बीत चुकी हैं, उन्हें एक या दो बार याद करें, और उनसे यह शिक्षा लेवें कि "अगली बार वैसी गलतियां नहीं करेंगे।"*
*"यदि आप पुरानी दुखदायक घटनाओं को बार-बार याद करेंगे, तो इससे लाभ नहीं होगा, बल्कि हानि होगी। आपका दुख बढ़ता जाएगा, और सुख कम हो जाएगा। तनाव या चिंता बढ़ जाएगी।" "और यदि यही क्रम लंबे समय तक चलता रहा, तो हो सकता है, कि आप डिप्रेशन में भी चले जाएं।"*
*"इसलिए ऐसा न करें। वर्तमान दिन को देखें। आज की क्या स्थिति है? उस सत्य को स्वीकार करें, और अपने भविष्य को उत्तम बनाने के लिए आने वाली समस्याओं का समाधान आज से ही करें। तो आपका वर्तमान जीवन भी अच्छा बीतेगा और भविष्य भी सुखदायक होगा, अन्यथा नहीं।"*
---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*

2 days ago | [YT] | 135

अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

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https://youtu.be/QMQlsNV6Fqk?si=-1L5k...

2 days ago | [YT] | 12

अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

26.4.2025
प्रायः लोग स्वार्थी होते हैं। यह सामान्य बात है। *"कुछ लोग अति स्वार्थी होते हैं। वे अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए दूसरों को दुख देने में भी हिचकिचाते नहीं हैं। स्वयं कार्य न करना पड़े, कार्य से बचने के लिए अनेक प्रकार के बहाने बनाते हैं।"*
ऐसे ही लोगों में से कुछ लोग यह भी कहते हैं कि *"महर्षि दयानन्द सरस्वती जी को दोबारा इस संसार में आना चाहिए, और बचे हुए वेद प्रचार कार्य को पूरा करना चाहिए।"* ऐसे लोगों को अपने विषय में भी तो सोचना चाहिए, कि *"क्या वेद प्रचार का कार्य केवल महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की ही जिम्मेदारी है? ऐसा कहने वाले स्वार्थी आलसी प्रमादी कामचोर लोगों का कोई कर्तव्य नहीं है? वे अपने स्वार्थ के लिए महर्षि दयानन्द जी को वापस संसार में बुलाना चाहते हैं। वे स्वयं क्यों नहीं वेद प्रचार का कार्य करते? अपने कर्तव्य को क्यों भूल जाते हैं? अथवा इतनी कामचोरी क्यों करते हैं?"*
महर्षि दयानन्द जी वेद प्रचार में यह कहते थे, कि *"मनुष्य जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है। मैं भी मोक्ष में जाऊंगा। आप सब लोग भी मोक्ष में जाओ।" "ऐसा कहते-कहते वेदों का प्रचार करते हुए परोपकार करते-करते समाधि लगाकर वे तो अपने लक्ष्य मोक्ष की ओर चले गए। क्योंकि यहां संसार में दुखों का कोई अंत नहीं है, और मोक्ष में आनंद ही आनंद है।" इसलिए वे ईश्वरीय वेदों का संदेश सबको सुनाते थे, कि "दुखों से छूटने के लिए और ईश्वर का आनंद प्राप्त करने के लिए संसार में रहना ठीक नहीं है. बल्कि मोक्ष में रहना ठीक है." "ऐसा ही उन्होंने उपदेश किया और ऐसा ही स्वयं आचरण भी किया। और ऐसा ही हम सबको भी करना चाहिए। तभी दुखों से छूट कर ईश्वर के आनन्द की प्राप्ति कर पाएंगे, अन्यथा नहीं।"*
कुछ लोगों का यह आरोप है कि *"मोक्ष में जाने वाले लोग स्वार्थी होते हैं. वे संसार का उपकार छोड़कर अपने लाभ या स्वार्थ पूर्ति के लिए मोक्ष में चले जाते हैं।"*
इसका उत्तर है कि *"वास्तव में मोक्ष में जाने वाले लोग स्वार्थी नहीं होते। वे बहुत बड़े परोपकारी होते हैं। वे अकेले मोक्ष में जाना नहीं चाहते, बल्कि और लोगों को भी मोक्ष में ले जाना चाहते हैं। इसीलिए वे वेदों का प्रचार करते हुए परोपकार करते हैं। मोक्ष में जाने वाले लोग निष्काम भाव से परोपकार करते हैं। उनके जितना परोपकारी तो कोई भी नहीं होता। क्योंकि बाकी लोग जो परोपकार करते हैं, वे सकाम कर्म करते हैं, और मोक्ष मार्गी लोग निष्काम कर्म करते हैं। निष्काम कर्म का मूल्य सकाम कर्म से अधिक है। इसलिए सच्चे परोपकारी वही लोग हैं, जो मोक्ष में जा रहे हैं। वे संसार का उपकार करने के बाद मोक्ष में जा रहे हैं। ऐसे ही लोगों को ईश्वर मोक्ष में प्रवेश देता है। सकाम कर्म करने वाले सांसारिक सुखों के पीछे भागने वाले लोगों को ईश्वर मोक्ष में प्रवेश नहीं देता। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी जैसे मोक्ष में जाने वाले लोगों का अभिप्राय यह होता है कि "मैं तो मोक्ष में जा ही रहा हूं, आप लोग भी वेदों का अध्ययन करें, निष्काम कर्म करें और आप भी मोक्ष प्राप्त करें। जिससे कि आपके सारे दुख छूट जाएं, और आप को भी ईश्वर का आनन्द मिले।" "इस प्रकार से महर्षि जी ने तो वेदों का प्रचार किया, परोपकार किया, और वे मोक्ष में चले गए। वे स्वार्थी नहीं थे, महान् परोपकारी थे।"*
अब बाकी संसार में विद्यमान लोगों का भी यह कर्तव्य है, कि *"वे महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के उपदेशों पर आचरण करें। वे भी परोपकारी बनकर वेद प्रचार करके मोक्ष में जावें। न कि अपने आलस्य प्रमाद आदि दोषों का पोषण करते हुए महर्षि दयानन्द सरस्वती जी को मोक्ष से वापस यहां संसार में बुलावें।"* यह तो कोई बुद्धिमत्ता नहीं है, बल्कि निरा स्वार्थ ही स्वार्थ है। *"ये स्वयं स्वार्थी आलसी प्रमादी कामचोर होते हुए, परोपकारी मोक्षमार्गी ईश्वर आज्ञा पालक निर्दोष लोगों पर दोषारोपण करते हैं। ऐसे लोग अच्छे नहीं हैं, निंदा के पात्र हैं।"*
*"क्या संसार में धन कमाने वाले और सांसारिक सुख भोगने वाले लोग स्वार्थी नहीं हैं, जो कि मोक्ष में जाने वालों पर स्वार्थ का आरोप लगा रहे हैं?" आश्चर्य की बात तो यह है कि "वे स्वयं स्वार्थी होते हुए कामचोर होते हुए पुरुषार्थहीन होते हुए भी, ईश्वर आज्ञा पालन करने वाले, निष्काम कर्म करने वाले, परोपकारी, महान पुरुषों को स्वार्थी कह रहे हैं। कितनी मूर्खता की बात है यह? विचार कीजिए।"*
आप लोगों से भी मेरा निवेदन है, कि *"आप सब लोग भी ऐसे मूर्ख स्वार्थी और दुष्ट लोगों से बचकर रहें। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के निर्देशों का पालन करें। पुरुषार्थी बनें, परोपकारी बनें, और मोक्ष को प्राप्त करें। इसी में बुद्धिमत्ता और जीवन का कल्याण है।"*
---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*

3 days ago | [YT] | 162

अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

25.4.2025
धन कमाना कठिन है। इसका मूल्य भी अधिक है। सबसे अधिक तो नहीं है। *"सबसे अधिक मूल्य तो चरित्र का है।"* ऐसे ही धन से अधिक मूल्य स्वास्थ्य का भी है। यदि इसे क्रम से देखें, तो *"धन का मूल्य अधिक है। स्वास्थ्य का मूल्य धन से अधिक है। और चरित्र का मूल्य सबसे अधिक है।"*
जिन-जिन वस्तुओं का मूल्य अधिक है, उनकी रक्षा भी पूरे प्रयत्न से करनी चाहिए। *"इन मूल्यवान वस्तुओं में से धन भी एक है। उसे कमाना कठिन है, और खो देना सरल।" "इसलिए उसकी रक्षा भी बड़े प्रयत्न से करनी चाहिए।"*
*"इसी प्रकार से लोगों के साथ मित्रता आदि संबंध बनाना और लंबे समय तक उन्हें बनाए रखना, उनकी सुरक्षा करना भी कठिन है। अतः धन की रक्षा भी करें, और संबंधों की भी।"*
*"बुद्धिमत्ता सभ्यता नम्रता अभिमान रहितता पक्षपात रहितता ईश्वर भक्ति परोपकार दान दया सेवा आदि गुणों की सहायता से धन और संबंधों की रक्षा की जा सकती है। अतः जीवन को सफल और सुखी बनाने के लिए धन और संबंधों की रक्षा अवश्य करें।" "क्योंकि इनको प्राप्त करना या कमाना कठिन है, और खो देना सरल। परन्तु उनके खो जाने पर बाद में बहुत अधिक कष्ट और पश्चाताप होता है। उससे बचने के लिए इनकी रक्षा पूरी शक्ति से करें।"*
---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*

4 days ago | [YT] | 145

अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

24.4.2025
जब आप फोटो खिंचवाते हैं, तो फोटो खींचने वाला कहता है, *"स्माइल प्लीज, कृपया मुस्कुराइए"*, और आप मुस्कुरा देते हैं। आपकी फोटो बहुत अच्छी आती है। *"क्या ऐसा नहीं हो सकता, कि आप यह अभ्यास दिन भर बनाए रखें?"*
*"जब भी किसी से मिलें, तो मुस्कुरा कर उसका स्वागत करें। जब आप किसी से बात करें, तो प्रसन्नतापूर्वक करें। आपके सामने जब कोई समस्या आवे, तो एकांत में जाकर शांति से उसके सभी पक्षों पर विचार करें, और प्रमाण तर्क से चिंतन करते हुए उस समस्या का समाधान ढूंढ लें। यदि कोई आपका अपमान कर दे, तो उसकी उपेक्षा कर दें, उस पर ध्यान न दें, तथा अपने मन की प्रसन्नता को बनाए रखें। ईश्वर को साक्षी मानकर सारे कार्य करें। इससे आपके सब बुरे काम छूट जाएंगे, और आप सब अच्छे काम करेंगे।"*
*"यदि आप इतना कर लेंगे, तो आप दिनभर प्रसन्न रह सकते हैं। इस प्रकार से आपका जीवन धन्य हो जाएगा, और आपको जीवन जीने का आनन्द आएगा।"*
----- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।"*

5 days ago | [YT] | 144

अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

23.4.2025
प्रायः लोगों को दूसरों से सुबह से रात तक पूरे दिन शिकायत रहती है, कि *"अमुक व्यक्ति में यह दोष है, अमुक व्यक्ति में यह कमी है।"* इस प्रकार से वे दिन भर दूसरों के प्रति नकारात्मक सोचते और बोलते भी रहते हैं। *"परंतु अपनी कमियों तथा दोषों की ओर प्रायः ध्यान नहीं देते।यह जीवन शैली अच्छी नहीं है।"*
*"इसके स्थान पर वे अपनी कमियों तथा दोषों की ओर यदि अधिक ध्यान देवें और उन्हें दूर करें। जो शिक्षा वे दूसरों को देते हैं, वही शिक्षा यदि स्वयं को देवें और अपनी कमियों तथा दोषों को दूर करते जाएं, तो इस धरती को स्वर्ग बनने में देर नहीं लगेगी।"*
*"अर्थात यदि दूसरों को सुझाव कम दें, और स्वयं को सुझाव अधिक दें। जो सुझाव दूसरों को देते हैं, उसी सुझाव पर पहले स्वयं आचरण करें, तो कुछ ही समय में सब समस्याएं हल हो जाएंगी। सब शिकायतें दूर हो जाएंगी, और प्रत्येक व्यक्ति सुखी हो जाएगा।"*
*"तब उनका दृष्टिकोण सकारात्मक होगा। वे दूसरों के दोष नहीं देखेंगे, न शिकायतें करेंगे। बल्कि उनके गुण देखेंगे, और दूसरों की प्रशंसा करेंगे। तभी सबका जीवन सुखमय बनेगा।"*
---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*

6 days ago | [YT] | 144

अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

22.4.2025
कल के प्रसंग में बताया था, कि *"शत्रु कौन है?"* आज के प्रसंग में इस बात को समझेंगे कि *"मित्र कौन है?"*
*"जो व्यक्ति चाहे आपके आसपास रहता है, चाहे दूर रहता है। चाहे आपके परिवार का सदस्य है, अथवा रिश्तेदार है, अथवा कोई मित्र है। चाहे पड़ोसी है, या कार्यालय का सहकर्मी है, अथवा अन्य भी कोई परिचित व्यक्ति है। यदि वह आपका हित चाहता है। समय-समय पर आपको सही सुझाव देता है। आपके गुण दोषों का निरीक्षण परीक्षण करता है। आपके सामने अथवा आपकी पीठ पीछे भी आपके गुणों की प्रशंसा करता है। आपके दोष आपके सामने बताता है, पीठ पीछे नहीं। आपके दोषों और बुराइयों को आपसे छुड़ाने का प्रयास करता है। आपातकाल में आपकी आर्थिक सहायता भी करता है। ऐसा व्यवहार करने वाला व्यक्ति आपका "परम मित्र" है।"*
*"ऐसे गुणों वाले व्यक्तियों को पहचानें। उन्हें कभी न छोड़ें। उनके साथ ही अपना जीवन बिताएं। तभी आप सुख पूर्वक जीवन जी सकेंगे।"*
---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*

1 week ago | [YT] | 148

अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

21.4.2025
*"मित्र और शत्रु आपके आसपास ही होते हैं उन्हें पहचानने की आवश्यकता है।"*
*"कोई व्यक्ति आपके परिवार का सदस्य भी हो सकता है, रिश्तेदार हो सकता है, मित्र हो सकता है, पड़ोसी हो सकता है, आपके कार्यालय में हो सकता है, दैनिक रेलयात्री हो सकता है, अथवा कोई अन्य व्यक्ति भी हो सकता है, जो आपके आस पास रहता है। आपसे अनेक प्रकार का लाभ लेता है। आपके ज्ञान का सहयोग लेता है, बल का सहयोग लेता है, आपके पद प्रतिष्ठा का भी लाभ लेता है, इत्यादि अनेक प्रकार से आपसे लाभ लेता है, और वह आपकी पीठ पीछे आपकी बुराई भी करता है। लोगों में आपके विरुद्ध भ्रांतियां फैलाता है, आप पर झूठे आरोप लगाता है, व्यर्थ की निंदा चुगली करता है, वह व्यक्ति आपका मित्र नहीं हो सकता, बल्कि शत्रु है।"*
*"इसके विपरीत जो व्यक्ति आपका हितैषी है, सब प्रकार से आपको सहयोग देता है, आपकी सब प्रकार से रक्षा करता है, वही आप का सच्चा मित्र है। अपने शत्रुओं और मित्रों को पहचानें। शत्रुओं से सावधान रहें, तथा मित्रों के साथ मिलकर आनन्द से जीवन जीएं।"*
---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*

1 week ago | [YT] | 150