अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra

26.4.2025
प्रायः लोग स्वार्थी होते हैं। यह सामान्य बात है। *"कुछ लोग अति स्वार्थी होते हैं। वे अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए दूसरों को दुख देने में भी हिचकिचाते नहीं हैं। स्वयं कार्य न करना पड़े, कार्य से बचने के लिए अनेक प्रकार के बहाने बनाते हैं।"*
ऐसे ही लोगों में से कुछ लोग यह भी कहते हैं कि *"महर्षि दयानन्द सरस्वती जी को दोबारा इस संसार में आना चाहिए, और बचे हुए वेद प्रचार कार्य को पूरा करना चाहिए।"* ऐसे लोगों को अपने विषय में भी तो सोचना चाहिए, कि *"क्या वेद प्रचार का कार्य केवल महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की ही जिम्मेदारी है? ऐसा कहने वाले स्वार्थी आलसी प्रमादी कामचोर लोगों का कोई कर्तव्य नहीं है? वे अपने स्वार्थ के लिए महर्षि दयानन्द जी को वापस संसार में बुलाना चाहते हैं। वे स्वयं क्यों नहीं वेद प्रचार का कार्य करते? अपने कर्तव्य को क्यों भूल जाते हैं? अथवा इतनी कामचोरी क्यों करते हैं?"*
महर्षि दयानन्द जी वेद प्रचार में यह कहते थे, कि *"मनुष्य जीवन का लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है। मैं भी मोक्ष में जाऊंगा। आप सब लोग भी मोक्ष में जाओ।" "ऐसा कहते-कहते वेदों का प्रचार करते हुए परोपकार करते-करते समाधि लगाकर वे तो अपने लक्ष्य मोक्ष की ओर चले गए। क्योंकि यहां संसार में दुखों का कोई अंत नहीं है, और मोक्ष में आनंद ही आनंद है।" इसलिए वे ईश्वरीय वेदों का संदेश सबको सुनाते थे, कि "दुखों से छूटने के लिए और ईश्वर का आनंद प्राप्त करने के लिए संसार में रहना ठीक नहीं है. बल्कि मोक्ष में रहना ठीक है." "ऐसा ही उन्होंने उपदेश किया और ऐसा ही स्वयं आचरण भी किया। और ऐसा ही हम सबको भी करना चाहिए। तभी दुखों से छूट कर ईश्वर के आनन्द की प्राप्ति कर पाएंगे, अन्यथा नहीं।"*
कुछ लोगों का यह आरोप है कि *"मोक्ष में जाने वाले लोग स्वार्थी होते हैं. वे संसार का उपकार छोड़कर अपने लाभ या स्वार्थ पूर्ति के लिए मोक्ष में चले जाते हैं।"*
इसका उत्तर है कि *"वास्तव में मोक्ष में जाने वाले लोग स्वार्थी नहीं होते। वे बहुत बड़े परोपकारी होते हैं। वे अकेले मोक्ष में जाना नहीं चाहते, बल्कि और लोगों को भी मोक्ष में ले जाना चाहते हैं। इसीलिए वे वेदों का प्रचार करते हुए परोपकार करते हैं। मोक्ष में जाने वाले लोग निष्काम भाव से परोपकार करते हैं। उनके जितना परोपकारी तो कोई भी नहीं होता। क्योंकि बाकी लोग जो परोपकार करते हैं, वे सकाम कर्म करते हैं, और मोक्ष मार्गी लोग निष्काम कर्म करते हैं। निष्काम कर्म का मूल्य सकाम कर्म से अधिक है। इसलिए सच्चे परोपकारी वही लोग हैं, जो मोक्ष में जा रहे हैं। वे संसार का उपकार करने के बाद मोक्ष में जा रहे हैं। ऐसे ही लोगों को ईश्वर मोक्ष में प्रवेश देता है। सकाम कर्म करने वाले सांसारिक सुखों के पीछे भागने वाले लोगों को ईश्वर मोक्ष में प्रवेश नहीं देता। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी जैसे मोक्ष में जाने वाले लोगों का अभिप्राय यह होता है कि "मैं तो मोक्ष में जा ही रहा हूं, आप लोग भी वेदों का अध्ययन करें, निष्काम कर्म करें और आप भी मोक्ष प्राप्त करें। जिससे कि आपके सारे दुख छूट जाएं, और आप को भी ईश्वर का आनन्द मिले।" "इस प्रकार से महर्षि जी ने तो वेदों का प्रचार किया, परोपकार किया, और वे मोक्ष में चले गए। वे स्वार्थी नहीं थे, महान् परोपकारी थे।"*
अब बाकी संसार में विद्यमान लोगों का भी यह कर्तव्य है, कि *"वे महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के उपदेशों पर आचरण करें। वे भी परोपकारी बनकर वेद प्रचार करके मोक्ष में जावें। न कि अपने आलस्य प्रमाद आदि दोषों का पोषण करते हुए महर्षि दयानन्द सरस्वती जी को मोक्ष से वापस यहां संसार में बुलावें।"* यह तो कोई बुद्धिमत्ता नहीं है, बल्कि निरा स्वार्थ ही स्वार्थ है। *"ये स्वयं स्वार्थी आलसी प्रमादी कामचोर होते हुए, परोपकारी मोक्षमार्गी ईश्वर आज्ञा पालक निर्दोष लोगों पर दोषारोपण करते हैं। ऐसे लोग अच्छे नहीं हैं, निंदा के पात्र हैं।"*
*"क्या संसार में धन कमाने वाले और सांसारिक सुख भोगने वाले लोग स्वार्थी नहीं हैं, जो कि मोक्ष में जाने वालों पर स्वार्थ का आरोप लगा रहे हैं?" आश्चर्य की बात तो यह है कि "वे स्वयं स्वार्थी होते हुए कामचोर होते हुए पुरुषार्थहीन होते हुए भी, ईश्वर आज्ञा पालन करने वाले, निष्काम कर्म करने वाले, परोपकारी, महान पुरुषों को स्वार्थी कह रहे हैं। कितनी मूर्खता की बात है यह? विचार कीजिए।"*
आप लोगों से भी मेरा निवेदन है, कि *"आप सब लोग भी ऐसे मूर्ख स्वार्थी और दुष्ट लोगों से बचकर रहें। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के निर्देशों का पालन करें। पुरुषार्थी बनें, परोपकारी बनें, और मोक्ष को प्राप्त करें। इसी में बुद्धिमत्ता और जीवन का कल्याण है।"*
---- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक - दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात."*

3 days ago | [YT] | 162