Rathore

*꧁श्रीकृष्ण: शरणं ममः꧂*

*श्री राधे रानी चरण दर्शन*
*आंवला / अक्षय नवमी महत्त्व*

*🌿🌸राधे राधे🌸🌿*
*🌺आँवला नवमी🌺*

आज कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि है जिसे आंवला नवमी और अक्षय नवमी भी कहते है।आज के दिन ही किशोरीजी के खुले चरणों का दर्शन होता है जो वर्ष मैं आज आँवले नवमी को ही होता है

आज के दिन किये हुए दान का अक्षय फल मिलता है,मतलब की आज के किये हुए दान के पुण्य की समाप्ति नही होती,वह आप ने जो दान किया है उससे लाखो गुणा फल मिलता है इसलिए आज कि इस तिथि को अक्षय नवमी भी कहते है।

आज आँवला की विधि विधान से पूजा और आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने से लोक - परमलोक दोनों ही सुधर जाते है।

*आँवले में श्रीहरि और शिवजी दोनो देवो का वास होता है।*

इसलिए इसकी पूजा करलेने से दोनो देव की पूजा हो जाती है।आंवले का वृक्ष सकरात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।
*यह पूजा सब से पहले मा लक्ष्मी ने आरम्भ की थी।तब से ही युगों युगों से पृथ्वीपर आंवले की पूजा को मान्यता मिली है।

*आंवले की पूजा कैसे करनी है?*

सुबह सुबह नहाधोकर आँवले के पेड़ में थोड़ा कच्चा दूध,जल,रोली,अक्षत और आंवला चढ़ाया जाता है।फिर कच्चे सूत या मोली से कम से कम 7 फेरी पेड़ की लेनी होती है।उसके बाद कथा सुनकर आरती दीपक जलाया जाता है।तट पश्चात वहीं बैठकर ब्राह्मण, वैष्णव, प्रभु भक्त को प्रसादम् सेवा करवा के खुदभी प्रसाद करना चाहिए !

आज सभी को आंवले की पूजा जरूर करनी चाहिए।यदि पेड नही है तो पेड़ की डाली या आँवले की ही पूजा कर लें।इसका बहुत सकरात्मक प्रभाव जीवन मे आता है।
यह कार्तिक मास पूरा ही उत्सवों का मास है।इसकी एक एक तिथि का अपना अलग ही महत्व है।

*जय हो कार्तिक मास की !*
*जय आंवला नवमी की !*

*༺꧁*राधे* *राधे*꧂༻*

1 month ago | [YT] | 0

Rathore

*!! ॐ देवी महागौर्यै नमः !!*
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*अष्टम दिवस मां महागौरी स्वरुप*

नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से ही प्रकट है कि इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है।

पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी वजह से इनका शरीर काला पड़ गया लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए ये महागौरी कहलाईं।

आज अष्टमी के दिन कन्या पूजन किया जाता है। इस दिन घर पर नौ कन्याओं को आदरपूर्वक आमंत्रित करें और उनकी पूजा करें। फिर सभी को हलवा, खीर और पूड़ी का भोग और समर्थ्य अनुसार दक्षिणा देकर आदरपूर्वक घर से विदा करें। कन्या पूजन करने से मां भगवती अत्यधिक प्रसन्न होती हैँ !

देवी माँ महागौरी भोग : नारियल वा उससे बने मिष्ठान एवम हलवा, पूरी, खीर आदि भोग माँ को समर्पित किए जाते हैं !

* *༺꧁*राधे* *राधे*꧂༻*
*!🌷!🌷!🌷!🌷!🌷!🌷!*

2 months ago | [YT] | 0

Rathore

*|| ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः ||*

*मन में श्री राधे बसें,*
*हृदय बसें श्री श्याम।*
*जीवन में भक्ति बसे,*
*सबसे सुंदर काम।।*

*" हरिःशरणम् हरिःशरणम् "*

3 months ago | [YT] | 0

Rathore

*꧁श्रीकृष्णा:शरणं ममः꧂*

*भक्ति कितने प्रकार की होती है?*
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प्राचीन शास्त्रों में भक्ति के 9 प्रकार बताए गए हैं जिसे नवधा भक्ति कहते हैं।

*श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।*
*अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥*

श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन) और आत्मनिवेदन (बलि राजा) - इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं।

श्रवण: कृष्ण की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्त्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।

कीर्तन: कृष्ण के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम अर्थात हरे कृष्ण महामंत्र का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।

स्मरण: निरंतर अनन्य भाव से कृष्ण का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना।

पाद सेवन: कृष्ण के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्य समझना।

अर्चन: मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से कृष्ण के चरणों का पूजन करना।

वंदन: भगवान कृष्ण की मूर्ति को पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना।

दास्य: कृष्ण को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।

सख्य: कृष्ण को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पण कर देना तथा सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना।

आत्म निवेदन: अपने आपको भगवान कृष्ण के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपनी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं।
श्री राधारंगबिहारी लाल जी प्रिय हों

*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।*
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** *꧁*राधे* *राधे*꧂༻* *

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Rathore

*꧁ॐ नमः शिवाय꧂*

*अज्ञान का पर्दा*

आदिगुरु शंकराचार्य एक बार शाक्तमत का खंडन करने के लिए कश्मीर गए थे। लेकिन कश्मीर में उनकी तबीयत खराब हो गई । उनके शरीर में कोई ताकत नहीं थी । वे एक पेड़ के पास लेटे हुए थे ।

वहां एक ग्वालन सिर पर दही का बर्तन लेकर निकली । आचार्य का पेट जल रहा था और वे बहुत प्यासे थे। उन्हों ने ग्वालन से दही मांगने के लिए उनके पास आने को इशारा किया । ग्वालन ने थोड़ी दूर से कहा "आप यहाँ दही लेने आओ"

आचार्य ने धीरे से कहा, “मुझमें इतनी दूर आने की शक्ति नहीं है। बिना शक्ति के कैसे?

हंसते हुए ग्वालन ने कहा, 'शक्ति के बिना कोई एक कदम भी नहीं उठाता और आप शक्ति का खंडन करने निकले हैं?'

इतना सुनते ही आचार्य की आंखें खुल गईं । वह समझ गए कि भगवती स्वयं ही इस ग्वालन के रूप में आयी हैं। उनके मन में जो शिव और शक्ति के बीच का अंतर था वो मिट गया और उन्होंने शक्ति के सामने समर्पण कर दिया और शब्द निकले *"गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी"*

समर्पण का यह स्तवन *"भवानी अष्टकम"* के नाम से प्रसिद्ध है, जो अद्भुत है । शिव स्थिर शक्ति हैं और भवानी उनमें गतिशील शक्ति हैं.... दोनों अलग-अलग हैं... एक दूध है और दूसरा उसकी सफेदी है... नेत्रों पर अज्ञान का जो आखिरी पर्दा भी माँ ने ही हटाया था

*सारांश :-* *वास्तव मेँ किसी भी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति को देखने का नज़रिया, हमारा कैसा है ये महत्त्वपूर्ण है जिसने भी इसे ठीक क़र लिया उसका जीवन अपने आप आनंदमय हो गया |*

इसी लिए शंकराचार्य जी ने कहा "माँ, मैं कुछ नहीं जानता"।

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता
न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ १॥

भवाब्धावपारे महादुःखभीरु
प्रपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ २॥

न जानामि दानं न च ध्यानयोगं
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ३॥

न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं
न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्-
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ४॥

कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः
कुलाचारहीनः कदाचारलीनः ।
कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ५॥

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं
दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित् ।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ६॥

विवादे विषादे प्रमादे प्रवास
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ७॥

अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो
महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः ।
विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ॥ ८॥

*!! ॐ नमः शिवाय !!*
*꧁ *श्रीपार्वतीपतये नमः꧂*

3 months ago | [YT] | 0

Rathore

*꧁श्रीकृष्ण: शरणं ममः꧂*

पर पीड़ा से छलक उठे मन,
यह छलकन ही गंगाजल है।

दुःख हरने को तत्पर है मन,
यह तत्परता तुलसीदल है।

थके पथिक को राह दिखाना,
यही तो सच्चा तीर्थाटन है।

मित्रों के संग पुलक उठे मन,
यह पुलकन ही पंचामृत है।

*༺꧁*राधे* *राधे*꧂༻*

3 months ago | [YT] | 0