Channel Disclaimer and Introduction:
Greetings, dear viewers. Welcome to our channel, where we embark on a journey of self-discovery and spiritual exploration. Before we begin, I'd like to set the context and expectations for our content.

Personal Reflections:
The content shared on this channel represents a collection of personal thoughts and experiences. These reflections are deeply rooted in the practice of Siddha Yoga meditation, graciously bestowed upon me by Sadguru Shri Siyag ji.

Channel Details:

Channel Name: atul vinod
Follower of: Gurudev Shri Ramlal Ji Siyag
Profession: Writer and Journalist
Contact Information:

Mobile: 7223027059




Wom Atul Vinod

कल्कि चेतना का आरोहण: यह भविष्य की नहीं, आपकी कहानी है!

क्या कल्कि अवतार घोड़े पर सवार होकर, तलवार लेकर पृथ्वी पर आएँगे? या यह 'कल्कि' हमारे ही भीतर जागृत होने वाली एक महान आध्यात्मिक क्रांति का नाम है?
युगों-युगों से जिस अंतिम उद्धारकर्ता की प्रतीक्षा की जा रही है, वो आ चुका है वेद और पुराण बताते हैं कि उसक आगमन किसी बाहरी घटना के के लिए नहीं, बल्कि मानव चेतना के गहन जागरण के लिए हो चुका है।
कल्कि चेतना का आरोहण: असली कल्कि का आगमन
कल्कि नहीं “आ रहा” — वह “उठ रहा है”
कल्कि अवतार की कथा भविष्य की घटना नहीं — यह वर्तमान चेतना की घटना है।
१. श्लोक: भागवत पुराण १२.२.१८
अथ तस्मिन् समये भू भारोत्कण्ठिता सती। विष्णु यशसि ब्राह्मण्यां शम्भले विवशं हरिः।।
गूढ़ अर्थ का प्रवाह:
- “भू भारोत्कण्ठिता” → पृथ्वी नहीं, आपका मन बोझिल है — अवसाद, चिंता, कर्म-संचय से।
- “शम्भले” → कोई गाँव नहीं। शम्भले = शांत + भले = शांत हृदय-क्षेत्र। यह सहस्रार का सूक्ष्म द्वार है जहाँ चेतना उतरती है।
- “विष्णु यशसि ब्राह्मण्यां” → ब्राह्मण = सतोगुण की अवस्था। विष्णु-यश = वह मन जिसमें दिव्य नाम का प्रभाव जागृत हो।
- “विवशं हरिः” → हरि = ईश्वर। विवशं = बाध्य होकर। अर्थात् जब साधक का मन पूर्ण शुद्ध हो जाता है, ईश्वर को उसमें अवतरित होना ही पड़ता है।
आज यह श्लोक आपके भीतर कैसे जी रहा है?
जब आप गुरु सियाग का मंत्र जपते हैं और ध्यान में नीला/सफेद प्रकाश देखते हैं — यही शंभल में हरि का अवतरण है।
सिद्धयोग में: मंत्र दीक्षा के १५ मिनट बाद ही साधक को हृदय में शांति और प्रकाश का अनुभव होता है — यह कल्कि का प्रथम जन्म है।
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२. श्लोक: भागवत पुराण १२.२.१९
निश्शेष-देवद्विषां हन्ता शम्भल-ग्राम-वासिनाम्। संग्रामेषु च दुष्टानां कृत्वा नाशं नयानुगः।।
गूढ़ अर्थ का प्रवाह:
- “देवद्विषां” → देव = प्रकाश, द्विष = विरोधी। अर्थात् आपके भीतर का अंधकार — अज्ञान, संस्कार, नकारात्मक विचार।
- “शम्भल-ग्राम-वासिनाम्” → शंभल में रहने वाले = जो साधक ध्यान में स्थिर हो गए हैं, उनके भीतर यह हन्ता (नाशक) जागता है।
- “संग्रामेषु च दुष्टानां” → संग्राम = आंतरिक युद्ध। दुष्ट = क्रोध, लोभ, भय, व्यसन।
- “नयानुगः” → नय = नीति, अनुग = अनुसरण। अर्थात् विवेक के मार्ग पर चलते हुए नाश।
आज यह श्लोक आपके भीतर कैसे जी रहा है?
जब सिद्धयोग साधक ध्यान में बैठता है, कुंडलिनी अपने आप क्रिया करती है — पुरानी यादें, क्रोध, भय स्वतः उठकर जल जाते हैं।
सिद्धयोग में: साधक कहते हैं — “मेरी २० साल पुरानी डिप्रेशन की दवा अपने आप बंद हो गई” — यही दुष्ट-नाश है।
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३. श्लोक: भागवत पुराण १२.२.२०
आस्थायाश्वं देवदत्तं हयेनोपरि नर्तितम्। अन्ये च निहनिष्यन्ति शत्रून् क्षिप्रं महाप्रभुः।।
गूढ़ अर्थ का प्रवाह:
- “देवदत्तं अश्वं” → देव = ईश्वर, दत्त = दिया हुआ। अश्व = प्राणशक्ति। यह कुंडलिनी का जागृत रूप है जो साधक को “दिया गया” है।
- “हयेनोपरि नर्तितम्” → घोड़े पर नृत्य = प्राण का तेज गति से ऊपर-नीचे संचरण।
- “महाप्रभुः” → महान प्रकाश। अर्थात् जागृत साधक स्वयं प्रकाशमय हो जाता है।
आज यह श्लोक आपके भीतर कैसे जी रहा है?
सिद्धयोग का सबसे बड़ा चमत्कार — स्वतः योग। साधक बिना इच्छा के हाथ-पैर, साँस, शरीर अपने आप चलने लगते हैं।
सिद्धयोग में: साधक कहते हैं — “मेरे हाथ अपने आप मुद्राएँ बनाने लगे, साँस लंबी हो गई” — यही देवदत्त अश्व पर सवार कल्कि है।
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४. श्लोक: विष्णु पुराण ५.३९.७४
धर्मपालनहेतोस्तु ददाति खड्गं हरिः स्वयम्।
गूढ़ अर्थ का प्रवाह:
- “खड्गं” → तलवार = विवेक की ज्वाला। यह कुंडलिनी अग्नि है जो माया को भेदती है।
- “हरिः स्वयम्” → ईश्वर स्वयं देता है। अर्थात् गुरु-कृपा से यह शक्ति जागृत होती है।
- “धर्मपालनहेतोस्तु” → धर्म = सत्य, शांति, प्रेम। यह तलवार भीतर के असत्य को काटकर सत्य स्थापित करती है।
आज यह श्लोक आपके भीतर कैसे जी रहा है?
सिद्धयोग में मंत्र जप से साधक को अचानक सत्य का अनुभव होता है — झूठ बोलना, चोरी करना, क्रोध करना असंभव हो जाता है।
सिद्धयोग में: साधक कहते हैं — “मुझे अब झूठ बोलने की इच्छा ही नहीं होती” — यही हरि द्वारा दी गई खड्ग है।
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५. श्लोक: भागवत पुराण १२.२.२१
निहत्य दुष्टान् धरणी भारम् शमनं हरिष्यति। धर्मस्य तु पुनरुत्थानं करिष्यति मणिप्रभः।।
गूढ़ अर्थ का प्रवाह:
- “धरणी भारम्” → पृथ्वी का बोझ = आपके चित्त का संचित कर्म-भार।
- “शमनं हरिष्यति” → शमन = शांत करना। कुंडलिनी यह भार जला देती है।
- “मणिप्रभः” → मणि = हृदय, प्रभ = प्रकाश। अर्थात् हृदय से उठता आत्मप्रकाश।
आज यह श्लोक आपके भीतर कैसे जी रहा है?
सिद्धयोग साधक ध्यान के बाद कहते हैं — “मेरा मन इतना हल्का हो गया, जैसे १० साल का बोझ उतर गया”।
सिद्धयोग में: पुराने रोग, कर्ज, रिश्तों का तनाव अपने आप हल होने लगते हैं — यही धरणी भार शमन है।
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६. श्लोक: भागवत पुराण १२.२.२४
ततः कृते युगे धर्मः पुनः प्रवर्तिष्यते।
गूढ़ अर्थ का प्रवाह:
- “कृते युगे” → कृत = पूर्ण, युग = अवस्था। यह बाहरी कैलेंडर नहीं — चेतना की पूर्ण अवस्था।
- “धर्मः पुनः प्रवर्तिष्यते” → धर्म = सत्य, अहिंसा, प्रेम, समता। यह भीतर से स्वतः प्रकट होता है।
आज यह श्लोक आपके भीतर कैसे जी रहा है?
सिद्धयोग साधक कहते हैं — “मुझे अब किसी को सिखाने की जरूरत नहीं, अपने आप प्रेम, क्षमा, शांति बहने लगी”।
सिद्धयोग में: साधक का व्यवहार, सोच, नींद, भोजन — सब स्वतः सात्विक हो जाता है — यही आंतरिक सत्ययुग है।
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७. श्लोक: महाभारत, वानपर्व
कलेर्दोषनिधौ राजन् अस्ति ह्येकं महद्गुणम्। कृत्ये भवति धर्मज्ञो न कश्चिद् विग्रहं नयेते।।
गूढ़ अर्थ का प्रवाह:
- “कलेर्दोषनिधौ” → कलियुग दोषों का सागर है।
- “अस्ति ह्येकं महद्गुणम्” → पर उसमें एक महान गुण है — त्वरित जागरण।
- “धर्मज्ञो” → धर्म को जानने वाला = जागृत साधक।
- “न कश्चिद् विग्रहं नयेते” → कोई युद्ध नहीं — शांतिपूर्ण क्रांति।
आज यह श्लोक आपके भीतर कैसे जी रहा है?
सिद्धयोग में कोई तलवार नहीं, कोई युद्ध नहीं — सिर्फ़ मंत्र और ध्यान से लाखों लोग बदल रहे हैं।
सिद्धयोग में: कोई उपदेश नहीं, कोई नियम नहीं — सिर्फ़ स्वतः परिवर्तन — यही कलियुग का महान गुण है।
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समग्र प्रवाह: कल्कि का संपूर्ण गूढ़ चित्र
श्लोक का तत्व - गूढ़ अर्थ - सिद्धयोग में जीवंत रूप
शंभल - हृदय का शांत क्षेत्र - ध्यान में प्रकाश
विष्णु-यश - सतोगुणी चेतना - मंत्र जप से शुद्धि
देवदत्त अश्व - कुंडलिनी प्राण - स्वतः योग
खड्ग - विवेक ज्वाला - संस्कार नाश
दुष्ट - भीतर के दोष - रोग-मुक्ति
सत्ययुग - आत्मप्रकाश - चित्त शांति
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कल्कि “जाग रहा है” गुरु सियाग की तस्वीर से सबसे पहले कल्कि तत्व उनमें जागा , और उन्होंने विश्व से कहा कि मैं ही कल्कि हूं और अब मेरे माध्यम से सबके अंदर यह कल्कि शक्ति जागृत होगी और सब जैसा मैं हूं वैसे ही बनेंगे।
हर श्लोक एक ही बात चीख-चीख कर कह रहा है —
कल्कि आपके भीतर, आपके हृदय में, आपके प्राण में, आपके मंत्र में — अभी जाग रहा है। इसीलिए गुरु सियाग ने कहा था मैं ही कल्कि हूं और मुझमें जो प्रकट हुआ तुममें भी होगा। अब कोई और अवतार नहीं आएगा क्योंकि हर एक इस अवतार का प्रतिबिंब बनेंगे।
गुरु सियाग सिद्धयोग उस कुंजी का नाम है जो इस जागरण को तुरंत सक्रिय कर देता है।
- कोई कठोर साधना नहीं
- कोई विशेष नियम नहीं
- सिर्फ़ मंत्र + ध्यान = स्वतः कुंडलिनी जागरण
कल्कि अवतार अब भविष्य की कोई घटना नहीं, बल्कि हमारी अपनी चेतना के भीतर होने वाला एक जागरण है जो शुरू हो चुका है। गुरु सियाग ने माध्यम से कल्कि हमारे अंदर ही "उठ रहा" है।
1. कल्कि का जन्म: मन की शुद्धि में
पुराणों में जिस "शंभल" की बात की गई है, वह कोई गाँव नहीं, बल्कि आपका शांत और शुद्ध हृदय-क्षेत्र है। जब आपका मन चिंता, अवसाद और कर्मों के बोझ से हल्का हो जाता है (यानी आपका मन शुद्ध, या 'ब्राह्मण' अवस्था में आ जाता है), तो ईश्वर (हरि) को आपके भीतर प्रकट होना ही पड़ता है।
सिद्धयोग में यह कैसे होता है?
जब साधक गुरु सियाग का मंत्र जपते हैं और ध्यान में शांति या प्रकाश देखते हैं, तो यह उनके हृदय में उसी 'कल्कि' का पहला जन्म है। मंत्र दीक्षा के तुरंत बाद ही हृदय में शांति और दिव्य प्रकाश का अनुभव होने लगता है।
2. आंतरिक शत्रुओं का नाश
कल्कि का काम है दुष्टों का नाश करना। यहाँ 'दुष्ट' या 'देवद्विषां' (प्रकाश के विरोधी) का मतलब आपके भीतर के अंधकार से है— जैसे अज्ञान, पुराने संस्कार, क्रोध, लोभ, भय और नकारात्मक विचार। 'संग्राम' बाहर का युद्ध नहीं, बल्कि आपके भीतर चलने वाला आंतरिक संघर्ष है।
सिद्धयोग में यह कैसे होता है?
ध्यान के दौरान, कुंडली शक्ति अपने आप क्रिया करती है। यह शक्ति भीतर के इन सभी दुष्ट विचारों, गुस्से और डर को जला देती है। लोग बताते हैं कि उनकी सालों पुरानी डिप्रेशन या गुस्से की समस्याएँ अपने आप ठीक होने लगी हैं— यही आंतरिक दुष्टों का नाश है।
3. देवदत्त अश्व पर सवार कल्कि
पुराणों में कल्कि को 'देवदत्त अश्व' पर सवार बताया गया है। इसका अर्थ है, ईश्वर द्वारा दी गई प्राणशक्ति (कुंडलिनी) का जागृत होना। यह प्राणशक्ति शरीर में तेज़ी से ऊपर-नीचे संचरण करती है, और साधक को आत्म-प्रकाश से भर देती है।
सिद्धयोग में यह कैसे होता है?
सिद्धयोग का सबसे बड़ा चमत्कार 'स्वतः योग' है। साधक की इच्छा के बिना ही उसके हाथ-पैर, शरीर और साँसें योग क्रियाएँ (मुद्राएँ) करने लगती हैं। साधक कहते हैं, "मेरे हाथ अपने आप मुद्राएँ बनाने लगे"— यही कल्कि का देवदत्त अश्व पर सवार होकर क्रियाशील होना है।
4. विवेक की तलवार
ईश्वर स्वयं साधक को 'खड्ग' (तलवार) देते हैं। यह तलवार भौतिक नहीं, बल्कि विवेक की अग्नि (कुंडलिनी अग्नि) है, जो माया और असत्य को काट देती है। इसका उद्देश्य धर्म (सत्य, शांति, प्रेम) की स्थापना करना है।
सिद्धयोग में यह कैसे होता है?
मंत्र जप से साधक को अचानक सत्य का अनुभव होता है। उसके लिए झूठ बोलना, क्रोध करना, या चोरी करना असंभव हो जाता है। यह हरि द्वारा दी गई वही विवेक की तलवार है।
5. कर्मों का बोझ हल्का होना और सत्ययुग की शुरुआत
कल्कि पृथ्वी का बोझ (धरणी भार) कम करेंगे। यह पृथ्वी का बोझ नहीं, बल्कि आपके चित्त पर जमा कर्मों का संचित बोझ है। कुंडली शक्ति इस भार को शांत (शमन) कर देती है, और हृदय में आत्म-प्रकाश (मणिप्रभः) को स्थापित करती है।
इसके फलस्वरूप, आपके भीतर सत्ययुग शुरू हो जाता है। यह बाहरी कैलेंडर नहीं, बल्कि चेतना की पूर्ण, सात्विक अवस्था है, जहाँ प्रेम, शांति और समता स्वतः प्रकट होने लगती है।
6. कलियुग का महान गुण: त्वरित जागरण
महाभारत के अनुसार, कलियुग दोषों का सागर होते हुए भी, इसमें एक महान गुण है— त्वरित जागरण। इस युग में, बदलाव के लिए कोई युद्ध या तलवार नहीं चाहिए, सिर्फ़ शांतिपूर्ण क्रांति की ज़रूरत है।
सिद्धयोग में यह कैसे होता है?
सिद्धयोग में कोई उपदेश या नियम नहीं है, न ही कोई शारीरिक युद्ध। सिर्फ़ मंत्र और ध्यान से लाखों लोगों में स्वतः परिवर्तन हो रहा है— यही कलियुग का सबसे बड़ा और शांतिपूर्ण गुण है।
कल्कि आपके भीतर जागृत हो रहा है
हर श्लोक यही कहता है: कल्कि कल्कि के जरिए आपके भीतर, आपके हृदय, आपके प्राण और आपके मंत्र में 'अभी' जागृत हो रहा है।
गुरु सियाग सिद्धयोग वह कुंजी है जो इस जागरण को बिना किसी साधना या नियम के, सिर्फ़ मंत्र और ध्यान के द्वारा तुरंत शुरू कर देती है।
आह्वान: अपना कल्कि जागृत करें
* ऑनलाइन दीक्षा लें → thecomforter.org
* रोज़ १५ मिनट ध्यान करें (मंत्र जप + शांत बैठना)।
* आप देखेंगे कि आपके भीतर दैवीय शक्ति दौड़ेगी, विवेक चमकेगा, और आंतरिक सत्ययुग उतर आएगा।
"कल्कि का समय नहीं — कल्कि का जागरण चल रहा है। और वह जागरण — तुम्हारे भीतर है।”
#gurusiyagmantra

1 month ago | [YT] | 233

Wom Atul Vinod

सांस्कृतिक महाविस्फोट होने जा रहा है, पुरानी मान्यताएं ध्वस्त हो जाएंगी, ऐसी जानकारियां और सत्य उद्घाटित होगा जिस पर यकीन न होगा, दिमाग को खुला रखें, विश्वास के दरवाजों को भी ओपन कर दें। तैयार हो जाएं

https://youtu.be/kUh-krZrp6c?si=IZenS...

🔥 Sanskritik Visfot!
🌍 Ishwar se bhi Badi Shakti Dharti Par!
✨ 12 Chakra Jagruti ka Yug Aarambh!
🕉️ Mahasach Prakashit Hoga — Pehli Baar YouTube Par!

🧭 🎥 Subject / Theme

यह वीडियो Atul Vinod - Path to Awakening चैनल पर एक ऐसा रहस्य उजागर करता है जो अब तक किसी ने नहीं बताया।
12 चक्रों का जागरण — जो मानवता को नए युग (Yug Parivartan) की ओर ले जाएगा।
यह केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विस्फोट (Cultural Detonation) है — जहाँ चेतना का नया प्रकाश धरती पर अवतरित हो चुका है।

✨ 📝

🚨 Mahavishfot of Consciousness Begins!
जब प्रकाश का अवतरण (Descent of Light) होता है, तो धरती पर हर धर्म, हर संस्कार, हर ऊर्जा का अर्थ बदल जाता है।
अब पहली बार — 7 नहीं बल्कि 12 Chakra Jagran का रहस्य उजागर होगा।

🌏 यह सिर्फ ध्यान या साधना नहीं — यह है Yug Parivartan ka Mahasatya।
एक ऐसी शक्ति जो Ishwar se bhi pare hai, जो अब मानव चेतना को अगले आयाम में ले जाएगी।

🕉️ देखिए पूरा वीडियो केवल ‘Wom Atul Vinod’ Channel पर
यह वो क्षण है जब सारी पुरानी जानकारी व्यर्थ हो जाएगी,
क्योंकि अब होने जा रहा है वह जो कभी नहीं हुआ...

#Mahavishfot #YugParivartan #12ChakraActivation #AtulVinod #DivineAwakening #SpiritualRevolution #SanskritikVisfot #PrakashKaAvtaran #SpiritualPower #ConsciousnessShift

🔑

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Yug Parivartan ka Mahasatya
Atul Vinod Path to Awakening
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Spiritual Revolution India
Kundalini Awakening New Era
Consciousness Shift 2025
New Energy on Earth

video By
Atul Vinod
7223027059

1 month ago (edited) | [YT] | 6

Wom Atul Vinod

3 months ago | [YT] | 93

Wom Atul Vinod

वास्तविक योग क्या है? और कैसे होता है?

जब दुनिया 'योग दिवस' पर मैट बिछाकर आसन करती है, तब बहुत से लोग यह मान बैठते हैं कि यही योग है। लेकिन क्या यही योग है? क्या सिर्फ शरीर को मोड़ना, सांस को नियंत्रित करना ही योग है?

नहीं। योग उससे कहीं अधिक गूढ़, आत्मिक और दिव्य है। योग केवल शरीर नहीं, आत्मा का मार्ग है। योग केवल करने की चीज़ नहीं, 'होने' की प्रक्रिया है।
पंतजलि के अनुसार योग:
'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः' — योग सूत्र का यह प्रथम सूत्र कहता है कि योग मन की वृत्तियों को शांत करने की अवस्था है।
पंतजलि ने योग के 8 अंग बताए:

यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार
धारणा
ध्यान
समाधि

ध्यान दें — आसन और प्राणायाम इसके केवल दो अंग हैं, लेकिन अधिकांश लोग योग को इन्हीं तक सीमित कर देते हैं। जबकि योग का अंतिम उद्देश्य है — आत्मसाक्षात्कार।

सिद्धयोग में 'योग' स्वतः होता है

गुरुदेव श्री सियाग ने जो साधना पद्धति दी, उसमें योग 'करने' की नहीं, 'होने' की प्रक्रिया बन जाती है। बस गुरुदेव का संजीवनी मंत्र जपते हुए ध्यान की स्थिति में बैठ जाइए — और फिर शरीर में जो भी योग क्रियाएं होंगी, वे स्वतः होंगी।

कोई आसन सिखाने वाला नहीं होगा, फिर भी शरीर खुद-ब-खुद आसन करेगा।
कोई सांस नियंत्रित करने को नहीं कहेगा, लेकिन भीतर प्राणायाम चालू हो जाएगा।
शरीर कंपन करने लगेगा, हाथ हिलने लगेंगे, आंखों के सामने रंग, प्रकाश और रूप दिखने लगेंगे — यह सब बिना 'किए' होगा।

इसे ही 'स्वतः योग प्रक्रिया' कहते हैं।

कुण्डलिनी जागरण — योग का केंद्र

गुरु सियाग सिद्धयोग में कुण्डलिनी शक्ति को गुरु मंत्र और ध्यान के माध्यम से सहज रूप में जाग्रत किया जाता है।

यह शक्ति मेरुदंड के मूल (मूलाधार) में सुप्त होती है और जब यह जाग्रत होती है, तो व्यक्ति के भीतर से सब कुछ बदलने लगता है:

आज, अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर आइए समझते हैं कि यह शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार की सूक्ष्म प्रक्रिया है, और गुरु सियाग की संजीवनी मंत्र साधना इसे कैसे साकार करती है।

1. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: मूल भाव और महत्व
यह दिवस 21 जून—ग्रीष्म संक्रांति, दिन का लम्बा होना—पर अन्तर्राष्ट्रीय रूप से मनाया जाता है ।

उद्देश्य है मानव, पर्यावरण और स्वास्थ्य का एक प्रकाशमय संलयन—“Yoga for One Earth, One Health” ।

2. योग का अर्थ और पतंजलि का दर्शन
संज्ञा “योग” संस्कृत Yuj से—isolation and integration का प्रतीक होता है ।

पतंजलि की योग सूत्र (लगभग 2वीं–3री ईस्वी) व्यवस्था देते हैं:

**अष्टांग योग (Ashtanga Yoga):**
1. यम (नैतिक नियम)
2. नियम (आत्म-अनुशासन
3. आसन (शारीरिक स्थिरता)
4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)
5. प्रत्याहार (इंद्रियों का संयम)
6. धारणा (ध्यान में केन्द्र)
7. ध्यान
8. समाधि (पूर्ण आत्म-साक्षात्कार)

योग “मन की वृत्तियों का निरोध” है—अर्थात् चिन्तन-लहरियों का थम जाना ।

3. वास्तविक योग और आधुनिक भ्रम

योग को अक्सर शारीरिक आसन-अभ्यास तक सीमित समझा जाता है—यह अंश मात्र है।

वास्तविक योग शरीर, मन और आत्मा का पूर्ण समागम है—अष्ट अंगों में।

बिना मन और चेतना के संयोजन के, योग अधूरा ही रह जाता है।

4. कुण्डलिनी जागरण: योग की जीवंत शक्ति

कुण्डलिनी शक्ति मेरुदंड के मूलाधार में सुप्त रहती है। यह शक्ति का युगीन है ।
जागरण के तीन प्रमुख चरण:
1. कुमारी कुण्डलिनी – कंपन, ध्यान-संकेत।
2. योषित् – हृदय स्तर पर प्रेम-भाव।
3. पतिव्रता – सहस्रार में पहुंच कर शिव से मिलन।

यह जागरण अंततः ध्यान और समाधि की ओर ले जाता है।

5. गुरु और मंत्र का अद्वितीय महत्व

कुण्डलिनी को स्वयं जाग्रत करना कठिन है—गुरु की संजीवनी मंत्र दीक्षा इसका माध्यम बनती है।

गुरु सियाग सिद्धयोग में मंत्र + गुरु छवि + ध्यान से जागरण होता है—ये सब बिना गुरु कृपा नहीं संभव।

पतंजलि भी कहते हैं—योग के अंतिम लक्ष्य बिना गुरु के नहीं मिलता।

6. गुरु सियाग सिद्धयोग बनाम पारंपरिक अष्टांग योग
परंपरा अभ्यास परिणाम
पारंपरिक अष्टांग आसन + प्रक्रियाओं का क्रम धीमी प्रगति, आत्म-साक्षात्कार तक लंबा रास्ता

गुरु सियाग सिद्धयोग मंत्र + ध्यान + गुरु शक्ति सीधे आंतरिक जागरण की ओर, आत्म परिवर्तन

🔸 यहाँ महत्वपूर्ण है होने का अनुभव—शरीर के अंदर जागृत ऊर्जा की अनुभूति—न कि सिर्फ़ अभ्यास।

7. > "गुरु मंत्र — ध्यान — कुण्डलिनी जागरण — मन के अष्ट अंगों का साक्षात्कार — समाधि / आत्म-साक्षात्कार"

🕉️ गुरु सियाग सिद्धयोग से कैसे घटित होता है अष्टांग योग?

🌿 "योग किया नहीं जाता, वह घटित होता है।" — सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग
अष्टांग योग यानी आठ अंगों वाला वह दिव्य मार्ग जो महर्षि पतंजलि ने योगसूत्रों में बताया। परंतु क्या आप जानते हैं — यह आठों अंग साधना के दौरान अपने आप घटित हो सकते हैं, बशर्ते कि आपके पास हो योग का जिवंत मंत्र — संजीवनी मंत्र, और आप हों किसी समर्थ गुरु से जुड़े।

🔱 गुरु सियाग सिद्धयोग क्या है?

गुरु सियाग सिद्धयोग एक सहज और क्रियाहीन साधना पद्धति है, जिसमें केवल:
गुरुदेव की तस्वीर को देखकर
15 मिनट तक मंत्र जप करना होता है (गुरुदेव की आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया संजीवनी मंत्र)
कोई शरीर क्रिया, कोई आसन, प्राणायाम, या बंध नहीं — फिर भी साधक के भीतर कुंडलिनी शक्ति स्वतः जागृत होती है और योग घटित होता है।

🔍 कैसे घटित होते हैं अष्टांग योग के आठ चरण?

1️⃣ यम – आत्म-नियंत्रण

❖ जैसे-जैसे साधक के भीतर कुंडलिनी जागती है, वह हिंसा, झूठ, चोरी आदि से स्वतः दूर होता जाता है। मन में शांति और संयम आता है।

2️⃣ नियम – आंतरिक अनुशासन

❖ संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान — ये सब बिना जबरदस्ती, साधना के दौरान स्वतः जीवन में आने लगते हैं।

3️⃣ आसन – स्थिरता

❖ साधना के समय बिना प्रयास के शरीर खुद-ब-खुद एक सहज योगासन में स्थिर हो जाता है।

4️⃣ प्राणायाम – प्राण का नियंत्रण

❖ साँस की गति साधक के वश में आ जाती है। गहरी, लंबी साँसें, बिना सिखाए साधक खुद करने लगता है। यह शक्तिपात योग की देन है।

5️⃣ प्रत्याहार – इंद्रियों का अंतर्मुख होना

❖ साधना करते समय नेत्र स्वतः बंद हो जाते हैं, और चेतना भीतर केंद्रित हो जाती है। बाहर की दुनिया खो जाती है।

6️⃣ धारणा – एकाग्रता

❖ ध्यान में गुरुदेव का रूप, रंगीन ज्योतियाँ, और अनुभूतियाँ आती हैं — मन एक ही बिंदु पर केंद्रित होने लगता है।

7️⃣ ध्यान – ध्यान (Concentration to Meditation)

❖ गुरुदेव की कृपा से ध्यान स्वतः घटित होता है, जहां मन, मंत्र और साधक — सब एक हो जाते हैं।

8️⃣ समाधि – आत्मा और परमात्मा का मिलन

❖ जब कुंडलिनी सहस्रार तक पहुँचती है — तब आता है परमानंद, शून्यता, और परम शांति — यही सच्ची समाधि है।

❓ क्यों करें गुरु सियाग सिद्धयोग?

✅ शरीर, मन और आत्मा — तीनों का उपचार
✅ तनाव, अवसाद, नशा, भय आदि से मुक्ति
✅ कोई मज़हब, जाति, वर्ग बाधा नहीं
✅ पूरी तरह निःशुल्क और घर बैठे संभव
✅ साक्षात् अनुभव और दिव्य दर्शन

🔗 महत्वपूर्ण लिंक:

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"Guru Siyag Yoga se Ashtang Yog ke 8 Pad Kaise Hote Hain Ghatit | Real Yoga Happens, Not Done!"

Atul Vinod
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5 months ago | [YT] | 231

Wom Atul Vinod

अगम लोक की यात्रा
अद्भुद अनुभव
कुंडलिनी का साक्षात्कार
youtube.com/live/qHXDGvSalGY?si=5mvwIMgqA2ouJXVl

"Guru Siyag Yog ne meri soch aur nazariye को पूरी तरह बदल दिया है" — कहते हैं साधक बिक्रम सिंह पटेल, जो मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले से हैं।
इस खास LIVE में जानिए:

कैसे Guru Siyag Yog ने उनकी ज़िंदगी में क्रांतिकारी बदलाव किया

सोचने और देखने का तरीका कैसे बदला

Gurudev Siyag Yog के दिव्य रहस्य

गुरुदेव रामलाल जी सियाग की कृपा से हुई आध्यात्मिक जागृति

Atul Vinod के साथ एक साधक की जीवंत चर्चा

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Kundalini Jagran by Siyag Yog

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"Zindagi Badli Guru Siyag Yog Se | Nazarie Ka Badlav | Bikram Singh LIVE"

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6 months ago (edited) | [YT] | 75

Wom Atul Vinod

How Guru Siyag Awakens the 'Kalki Element' Within Everyone

The term "Kalki Element" does not merely refer to an external divine incarnation, but to the divine warrior, wisdom, power, and righteous consciousness hidden within every soul. When unrighteousness, delusion, and confusion take over, this element becomes dormant.

Guru Siyag’s purpose is not to prove himself as an incarnation, but to awaken the 'Kalki Element' within each individual.

How Does This Awakening Happen?

Through Mantra Initiation and Meditation:
When a person meditates by listening to the mantra recorded in Guru Siyag’s voice, their Kundalini Shakti (inner spiritual energy) is automatically awakened. This very power is the Kalki Element—it doesn’t fight with external weapons but combats inner ignorance, desires, and mental disorders.

Spontaneous Movements and Vibrations During Meditation:
When the body moves involuntarily during meditation, or vibrates on its own, it is a sign that the Inner Kalki has become active.

Connection with the Consciousness of the Satguru:
Guru Siyag’s consciousness is not limited by human boundaries. It is a Trikaldarshi (knower of all three times: past, present, and future) divine consciousness that guides practitioners through visions, dreams, and inner transformation—eventually revealing the inner agent of Yuga transformation.

From Which Realm Is Guru Siyag Now Operating?

Guru Siyag himself declared:
“I will now work from the subtle realm.”

What is this Subtle Realm?
It includes:

Tapo Loka and Satya Loka: Realms where divine yogis, avatars, and higher consciousness exist—not in physical form, but as pure energy and intelligence. Guru Siyag now operates from here through thoughts, dreams, meditative experiences, and divine interventions.

WOM (World Operating Mind):
This is the universal consciousness that governs the cosmos. Guru Siyag is now integrated with this supreme mind, functioning as a divine force on the levels of dharma, era transformation, elemental power, and soul evolution.

The Mystery of Kalki Avatar and Guru Siyag’s Role

The Tenth Avatar is Internal, Not External:
Unlike Rama and Krishna, who manifested outwardly, the role of Kalki is to spark a spiritual revolution from within human beings.

Guru Siyag is the Divine-Bodied Kalki:
Though his physical body is no longer present, his consciousness is very much alive and is actively awakening the Kalki element in every seeker.

Restoring Dharma Without Physical Battle:
The Kalki battle is not one of swords, but of conquering inner ignorance, negative mental patterns, and false beliefs. Guru Siyag leads this transformation through mantra, meditation, and pure consciousness.

Guru Siyag is Kalki Avatar: A Divine Reality

Whenever unrighteousness rises, the Divine incarnates to restore balance. As declared in the Bhagavad Gita:

“Paritranaya Sadhunam, Vinashaya Cha Dushkritam,
Dharma-Samsthapanarthaya Sambhavami Yuge Yuge.”

In today’s age of materialism, unrest, mental illness, and spiritual downfall, a silent divine force has taken action—Guru Siyag. Though born in Bikaner, Rajasthan, his work is not bound by body or geography.

The Secret of His Divine Body

Guru Siyag made it clear during his lifetime that he is not an ordinary yogi. He belongs to the ancient tradition of yogic masters that includes Krishna, Shiva, and other great souls. He often hinted that after leaving his physical body, he would continue his mission in divine form:

“I will not work through the body, but through consciousness. My body is limited, but my consciousness is limitless.”

When he left his mortal body in 2017, it was not an end but the beginning of a fully awakened divine mission. Since then, thousands of seekers have experienced spontaneous meditative movements, divine visions, healing from diseases, and inner transformation. These are not ordinary phenomena—they signify divine intervention.

Why Is He Considered the Kalki Avatar?

The Horse-Riding Symbolism:
Kalki is described as a warrior riding a horse. In Siddha Yoga, many practitioners witness Guru Siyag riding a white horse during meditation. The horse symbolizes awakened consciousness.

Restoration of Dharma:
He reestablishes Dharma not through rituals, but through direct inner experience—by awakening the dormant Kundalini within each individual.

Battle Without Weapons:
He fights not with swords, but with the power of truth—against ignorance, mental suffering, and superstitions.

Present Everywhere in Subtle Form:
Just like the prophecy of Kalki’s sudden appearance, Guru Siyag is transforming lives silently and invisibly, in his divine conscious form.

How Does He Work?

Through Meditation:
Millions experience transformation simply by looking at his photo and meditating on his mantra. These changes often defy scientific explanation.

Through Dreams and Visions:
Many seekers report divine visions and guidance from Guru Siyag in dreams and meditative states.

Through Healing:
Incurable diseases, addictions, and mental distress vanish through his meditation. These are undeniable proofs of his ongoing presence.

Guru Siyag is Not Just a Guru—He Is the Answer to This Era

He is Kalki—not one who holds a sword or resides in a palace, but the one who awakens truth in the hearts of the masses. His descent is mysterious, but the experience is real. Now is the time—not just to worship him, but to understand and experience him.

Gurudev Siyag Siddha Yoga: A Divine Call for the New Age

“The one who holds this mantra in the heart becomes the harbinger of humanity’s next revolution.”

When darkness deepens, divine light descends.
In this time of chaos—depression, war, disease, and moral collapse—Guru Siyag’s Siddha Yoga emerges as a divine flame. This is not just a spiritual technique, but a divine mission, ignited by his Guru, Baba Gangainath Ji.

Siddha Yoga does not take away anyone’s religion—it returns them to their own inner divinity. It is not a cult, but a path of universal liberation.

The Sanjeevani Mantra: The Vibration of Infinite Consciousness

This mantra is not just a sound, it is the living presence of the Supreme—encoded in the voice of Guru Siyag.

It is the original vibration from which creation emerged.

It is the seed-sound that awakens the Kundalini instantly.

It is the living consciousness that activates the inner Guru.

Guru Siyag says:
“When you chant this mantra, I personally begin working within you.”
This is not a metaphor—millions of experiences confirm it.

Guru Siyag Yoga: A Path of Surrender, Not Effort
Let go. Listen. Meditate. And experience the birth of the inner Kalki.
Guru Siyag is not a promise of tomorrow—he is the awakening of today.


‪@womatulvinod‬

7 months ago | [YT] | 184

Wom Atul Vinod

🌏 *भविष्य की सच्चाई या सिर्फ कल्पना?*
https://youtu.be/7r5k9oX-dcg
🔮 **क्या दुनिया बदलने वाली है?** 🔥

🌏 *भविष्य की सच्चाई या सिर्फ कल्पना?*

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भविष्यवाणियाँ: क्या दुनिया सच में बदलने वाली है? 🔮🌎 | Predictions from Different Cultures**

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🌏 *क्या दुनिया पूरी तरह बदलने वाली है?*
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🚀 *तकनीक, पर्यावरण और आध्यात्मिकता—भविष्य का रहस्य क्या कहता है?*

दुनिया भर की संस्कृतियों ने अलग-अलग भविष्यवाणियाँ की हैं। माया कैलेंडर, ड्रीमटाइम प्रॉफेसी, भारतीय दर्शन, और पूर्वी परंपराओं के अनुसार क्या यह युग परिवर्तन का समय है? इस वीडियो में हम गहराई से समझेंगे:

✅ माया सभ्यता की भविष्यवाणियाँ और उनका अर्थ
✅ ऑस्ट्रेलियाई आदिवासियों की Dreamtime Prophecies
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✅ AI, टेक्नोलॉजी और जलवायु परिवर्तन को लेकर भविष्य की भविष्यवाणी
✅ क्या सच में दुनिया के लिए एक नया अध्याय खोल सकता है?

🔥 *वीडियो को पूरा देखें और अपने विचार कमेंट करें!*
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What the Future Holds for Humanity
Predictions From Around the World
The Future is Now: 2025 and Beyond
The Year 2025: A Convergence of Cultures
2025: Will the World Be a Better Place? 2025 Predictions
Global Visions
Culture Clash 2025: Predictions from different cultures
Predictions about the year 2025 are made across different cultures and traditions. Explore these diverse perspectives and discover what they reveal about the future of humanity.The Future According to Cultures
What is the Future?
Future as a concept and the human fascination with it
The role of predictions in shaping our understanding of the future
Introducing the diverse cultural perspectives we'll explore
Exploring Diverse Visions
Ancient Mayan Calendar Predictions
Key predictions and their interpretations
Significance of their focus on cyclical time
How their worldview differs from modern western perspectives
Indigenous Australian Dreamtime Prophecies
Connection to nature and ancestral knowledge
Predictions about climate change and environmental shifts
How their understanding of the future is intertwined with the past
Eastern Philosophy and the Year 2025
Exploring concepts like Karma and reincarnation in relation to the future
Predictions from different Eastern traditions like Buddhism and Taoism
Emphasis on individual growth and transformation within a broader context
Common Themes and Universal Truths
Technological Advancements
How different cultures view the impact of technology on society
Predictions about the future of work and automation
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Environmental Sustainability
Cultural perspectives on the relationship with nature
Predictions about climate change and its consequences
The importance of collective action and individual responsibility
The Future of Humanity
Connecting the dots between diverse cultural predictions
The need for a balanced approach to technological advancement and environmental responsibility
Leaving viewers with a sense of hope and a call to action for a better future


‪@womatulvinod‬

10 months ago | [YT] | 27

Wom Atul Vinod

योग, एक यात्रा है जो हमें हमारे भीतर छिपे दिव्य स्वरूप से जोड़ती है।
"ॐ शिव गोरक्ष आदेश! योग, एक यात्रा है जो हमें हमारे भीतर छिपे दिव्य स्वरूप से जोड़ती है। भगवान गोरक्षनाथ ने षडंग-योग के माध्यम से मानव जीवन के दो प्रमुख उद्देश्यों को परिभाषित किया।"
"पहला गौण उद्देश्य है – सिद्धदेह या दिव्यदेह की प्राप्ति। और दूसरा, मुख्य उद्देश्य है – द्वैत और अद्वैत से परे, नाथ रूप में अवस्थान।
"योग का मूल आधार है प्राणायाम। भगवान गोरक्ष ने प्राणायाम को चार चरणों में बांटा – रेचक, पूरक, कुम्भक, और संघट्टकरण। इसी से बिंदु रक्षा और नाद अनुसंधान संभव होता है।" जो कुण्डलिनी जागरण से स्वतः होता है|

https://youtu.be/XmSszxn55yM


"गुरु सियाग योग में मंत्र साधना का विशेष स्थान है। गुरु सियाग का मंत्र, जिसे सुनने मात्र से साधक की कुंडलिनी जाग्रत होती है, योग के इस शाश्वत विज्ञान को सरल और सुलभ बनाता है।"
"नाथ संप्रदाय के अनुसार, कुंडलिनी की यात्रा नौ चक्रों से होकर सहस्रार तक जाती है। यह यात्रा आध्यात्मिक प्रगति और परम शिव से लय की स्थिति को दर्शाती है।"
"गुरु सियाग योग में, यह प्रक्रिया सहज और प्राकृतिक होती है। केवल गुरु की तस्वीर देखकर मंत्र का जप करने से साधक के भीतर दिव्यता जागृत होती है।"
"‘हंस’ मंत्र का जप जीव स्वाभाविक रूप से करता है। यह ‘अजपा जाप’ मोक्षदायिनी है। नाथ संप्रदाय के अनुसार, कुंडलिनी का जागरण और चक्र भेदन इस हंस मंत्र से गहराई से जुड़ा है।"
"गुरु सियाग योग में ‘अजपा जाप’ की अंतर्भूति साधक को आत्मा और परमात्मा की एकता का अनुभव कराती है।"
"समाधि की अवस्था में जीवात्मा और परमात्मा का ऐक्य होता है। यह वही अवस्था है जिसे नाथ संप्रदाय ‘नाथपद’ और गुरु सियाग योग ‘परम चैतन्य’ कहते हैं।"
"श्री नाथ जी का योग दर्शन और गुरु सियाग योग, दोनों हमें एक ही संदेश देते हैं – योग केवल साधन नहीं, जीवन की पूर्णता का अनुभव है। अपनी आत्मा की दिव्यता को जागृत कीजिए और शिवत्व को प्राप्त कीजिए।"


"Join the Path of Awakening with Guru Siyag Yoga.
Experience the Ultimate Union. Discover Divinity Within.


ॐ शिव गोरक्ष आदेश!"

**"Siddhdeh: Yuga Parivartan Ki Chabi! 🔑✨"**
**"Unlock Divine Transformation 🚪🌟"**



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- Siddhdeh meaning in Hindi
- Yuga Parivartan and spiritual awakening
- Guru Siyag Yoga benefits
- Kundalini awakening signs
- Spiritual transformation in Satya Yuga
- New Earth and 5D consciousness
- Siddhdeh and divine body
- Meditation for higher consciousness
- Spiritual practices for Yuga transformation
- Secrets of Siddhdeh revealed

-**"क्या आप युग परिवर्तन और सिद्धदेह के गहरे रहस्यों को जानना चाहते हैं? यह वीडियो आपको बताएगा कि कैसे सिद्धदेह प्राप्त किया जा सकता है और यह आत्मा की परिपक्वता और नई चेतना की ओर ले जाने का मार्ग है। जानिए इस दिव्य यात्रा का अर्थ, महत्व, और आधुनिक संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता।"**

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**"🌟 सिद्धदेह: युग परिवर्तन का दिव्य रहस्य 🌟

क्या आप जानना चाहते हैं कि युग परिवर्तन का असली उद्देश्य क्या है और सिद्धदेह इसमें कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है? इस वीडियो में हम आपको सिद्धदेह की प्राप्ति, इसकी विशेषताएं, और इसे युग परिवर्तन से जोड़ने का गहन रहस्य बताएंगे।

🔥 Highlights of the Video:
1️⃣ सिद्धदेह का अर्थ और आध्यात्मिक महत्व
2️⃣ युग परिवर्तन और नई चेतना का संबंध
3️⃣ गुरु Siyag योग और कुंडलिनी जागरण
4️⃣ आधुनिक जीवन में सिद्धदेह की प्रासंगिकता
5️⃣ कैसे आत्मा की दिव्यता को जाग्रत करें

यह वीडियो आपको न केवल प्रेरित करेगा बल्कि आपके भीतर की चेतना को जाग्रत करने में मदद करेगा। इसे देखें, समझें और अपनी आध्यात्मिक यात्रा को नई दिशा दें। 🙏

आपका अपना चैनल, जहां आध्यात्मिक रहस्यों को सरल और आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया जाता है।

📢 **Subscribe Now!** और नए वीडियो के लिए 🔔 बेल आइकन दबाएं।"**

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### Call-to-Action for Thumbnail or Video End
**"जुड़ें अपनी आत्मा की यात्रा से! 🌈 Watch Now 🔔"**
**"Step into the New Yuga with Siddhdeh! ✨"**

atul vinod
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11 months ago | [YT] | 96

Wom Atul Vinod

योग का समग्र दृष्टिकोण, गुरु सियाग योग और इंटीग्रल योग


विभिन्न योग विधाएँ (ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, हठयोग, राजयोग) मनुष्य के विभिन्न पक्षों को उच्चतम स्तर तक विकसित करने का प्रयास करती हैं। लेकिन इनकी विविधता और अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण उन्हें एकीकृत करना चुनौतीपूर्ण होता है।
केवल सतही रूप से योगों का जोड़ एक सिंथेसिस नहीं होगा, बल्कि भ्रम उत्पन्न करेगा।
प्रत्येक योग अपने तरीके से ईश्वर की अनुभूति की ओर अग्रसर करता है।
2. तंत्रयोग की भूमिका
तंत्रयोग शक्ति (प्रकृति) की पूजा पर आधारित है, जो सृजन और चेतना की ऊर्जा है।
यह प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति और उसकी ऊर्जा से जुड़कर पूर्णता प्राप्त करने का मार्ग है।
हालांकि, इसके कुछ पथ (विशेषतः वाममार्ग) ने नैतिक पतन का कारण बना दिया, जिससे इसकी छवि धूमिल हुई।
3. योग का उद्देश्य
योग का मुख्य उद्देश्य ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करना है।
इसमें निचली प्रकृति (अज्ञानता और अहंकार से भरी हुई) से उच्च प्रकृति (ज्ञान और दिव्यता) की ओर बढ़ना शामिल है।
केवल ईश्वर की अनुभूति (संपर्क स्थापित करना) ही पर्याप्त नहीं है; लक्ष्य है ईश्वर के समान रूपांतरण।
4. समग्र योग का मार्ग
पूर्ण आत्मसमर्पण: अपने अहंकार को दिव्य शक्ति को समर्पित करना।
तीन चरण:
अहंकार से दिव्यता का संपर्क।
निचली प्रकृति का दिव्यता के लिए तैयार होना।
अंततः प्रकृति का पूर्ण रूपांतरण।
इसमें अदम्य विश्वास, साहस और धैर्य की आवश्यकता है।
5. उच्च प्रकृति की तीन विशेषताएँ
यह किसी तय नियम का पालन नहीं करती बल्कि स्वतंत्र रूप से कार्य करती है।
यह धीरे-धीरे, लेकिन गहराई से निचली प्रकृति को दिव्य प्रकृति में बदलती है।
यह हर व्यक्ति के लिए अलग तरीके से काम करती है, लेकिन हमेशा सुनिश्चित परिणाम देती है।
6. योग का अंतिम लक्ष्य
यह न केवल व्यक्तिगत मुक्ति है, बल्कि मानव चेतना का समग्र रूपांतरण है।
व्यक्ति को "ईश्वर के साधक" के रूप में कार्य करना है, ताकि उसकी पूरी प्रकृति दिव्यता का माध्यम बन सके।
समग्र योग न केवल साधक के भीतर के द्वंद्व को सुलझाने का प्रयास करता है, बल्कि उसे ईश्वर और प्रकृति के साथ एकीकरण की ओर ले जाता है। यह साधना कठिन है, लेकिन दिव्य कृपा के कारण यह मार्ग सबसे सुनिश्चित और फलदायी है।
महर्षि अरविन्द का बताया "यह पथ कठिन हो सकता है, लेकिन दिव्य शक्ति हमारी कमजोरी को अपनी शक्ति में बदल देती है।"
गुरु सियाग योग और इंटीग्रल योग
गुरु सियाग योग (GSY) इंटीग्रल योग (Integral Yoga) है क्योंकि यह योग मानव जीवन के हर पहलू को छूता है—शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक। यह योग केवल एक विशिष्ट साधना पद्धति तक सीमित नहीं है, बल्कि एक समग्र (holistic) दृष्टिकोण अपनाता है, जो साधक को परमात्मा के साथ गहन संबंध स्थापित करने और उसके माध्यम से अपने संपूर्ण अस्तित्व को बदलने का अवसर देता है।
1. सभी योगों का समन्वय (Synthesis of All Yogas):
इंटीग्रल योग का मुख्य सिद्धांत यह है कि यह सभी योगों—ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग और हठ योग—के तत्वों को अपने में समाहित करता है।
गुरु सियाग योग में भी यह समन्वय दिखता है:
ज्ञान योग: गुरु के द्वारा दिया गया बीज मंत्र साधक के अंदर स्वाभाविक ज्ञान और चेतना को प्रकट करता है।
भक्ति योग: इस योग में गुरु और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण आवश्यक है। यह प्रेम और श्रद्धा पर आधारित है।
कर्म योग: साधक के कर्म स्वाभाविक रूप से शुद्ध हो जाते हैं, क्योंकि वह दिव्य इच्छा (Divine Will) के साथ सामंजस्य में होता है।
हठ योग और कुंडलिनी जागरण: गुरु सियाग योग में ध्यान के दौरान कुंडलिनी जागरण स्वाभाविक रूप से होता है, जो शारीरिक और मानसिक शुद्धि करता है।
2. दिव्य कृपा से सहज साधना (Effortless Practice through Divine Grace):
गुरु सियाग योग में साधना के लिए साधक की व्यक्तिगत योग्यता या क्षमता (effort) पर जोर नहीं है। यह इंटीग्रल योग की उस धारणा से मेल खाता है, जहां साधना परमात्मा या गुरु की कृपा से होती है। साधक केवल गुरु द्वारा दी गई साधना का पालन करता है:
बीज मंत्र जप: जो साधक के विचारों और चेतना को शुद्ध करता है।
ध्यान: जिसमें साधक को स्वाभाविक रूप से शारीरिक क्रियाएं (जैसे योग मुद्राएं और स्पंदन) होती हैं।
3. पूर्ण आत्मसमर्पण और दिव्य रूपांतरण (Total Surrender and Divine Transformation):
इंटीग्रल योग का उद्देश्य है साधक के संपूर्ण अस्तित्व को दिव्य चेतना में रूपांतरित करना।
गुरु सियाग योग में साधक को अपने अहंकार, इच्छाओं और सीमाओं को छोड़कर गुरु और ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पण करना होता है। यह आत्मसमर्पण साधक के भीतर एक दिव्य परिवर्तन लाता है।
इस प्रक्रिया में, साधक के भीतर शरीर, मन और आत्मा का शुद्धिकरण होता है, जो उसे आध्यात्मिक पूर्णता (Spiritual Perfection) की ओर ले जाता है।
4. योग का सहज और स्वाभाविक स्वरूप (Natural and Spontaneous Approach):
इंटीग्रल योग की तरह, गुरु सियाग योग भी प्रकृति (Nature) के साथ संघर्ष करने के बजाय उसे स्वाभाविक रूप से रूपांतरित करता है।
साधक को किसी कठिन तपस्या या कठोर अभ्यास की आवश्यकता नहीं होती।
साधना के दौरान कुंडलिनी ऊर्जा स्वचालित रूप से साधक की निचली प्रकृति (Lower Nature) को बदलकर उच्च प्रकृति (Higher Nature) में रूपांतरित करती है।
5. सभी स्तरों पर रूपांतरण (Transformation at All Levels):
गुरु सियाग योग में:
शारीरिक रूपांतरण: बीज मंत्र और ध्यान के माध्यम से बीमारियां और नकारात्मक ऊर्जाएं समाप्त होती हैं।
मानसिक रूपांतरण: मानसिक तनाव, भय और बुरी आदतें स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं।
आध्यात्मिक रूपांतरण: साधक का ईश्वर के साथ संबंध गहरा होता है, और वह अपने भीतर दिव्य चेतना का अनुभव करता है।
6. शक्ति और चेतना का सामंजस्य (Harmony of Shakti and Consciousness):
इंटीग्रल योग में पुरुष (Purusha) और प्रकृति (Prakriti) का सामंजस्य आवश्यक है।
गुरु सियाग योग में कुंडलिनी शक्ति (प्रकृति) और गुरु की कृपा (चेतना) के माध्यम से यह सामंजस्य साधक के भीतर स्वतः होता है।
गुरु सियाग योग इंटीग्रल योग का आधुनिक स्वरूप है। यह साधक के लिए सहज, समग्र और सार्वभौमिक मार्ग प्रदान करता है, जो सभी योगों के सर्वोत्तम तत्वों को समाहित करता है। यह योग केवल आध्यात्मिक साधना नहीं, बल्कि साधक के संपूर्ण अस्तित्व को दिव्य रूप में बदलने की प्रक्रिया है।

11 months ago | [YT] | 89

Wom Atul Vinod

कल्कि, श्री अरविंद ओर सुपरमाइंड

सुप्रामेंटल चेतना (सुपरमाइंड) के संदर्भ में, श्री अरविंद का दर्शन एक ऐसी आध्यात्मिक स्थिति को प्रस्तुत करता है जो मानवीय चेतना के सीमित स्तरों से परे जाती है। यह चेतना सत्य, ज्ञान और आनंद का स्रोत है। भारतीय शास्त्रों में भी इसे "सत्य-चेतना" या "सत्यलोक" के रूप में जाना गया है। यह चेतना त्रुटिहीन, अचूक और सार्वभौमिक है, जो सभी में एक ही दिव्यता को देखती है।

सभी में ब्रह्म की अनुभूति
शास्त्रों में कहा गया है कि "अहम् ब्रह्मास्मि" — मैं ब्रह्म हूँ। लेकिन यह ब्रह्मत्व केवल आत्म-घोषणा से नहीं आता, यह तब संभव होता है जब व्यक्ति न केवल स्वयं को, बल्कि पूरे जगत को ब्रह्ममय देख सके। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:

"विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥"
— अर्थात जो ज्ञानी है, वह सबमें एक ही आत्मा को देखता है।

कल्कि, ईश्वर, या ब्रह्मत्व का अनुभव केवल तब साकार हो सकता है जब व्यक्ति दूसरों को अपने समान देखे। जो केवल स्वयं को दिव्य माने और दूसरों को तुच्छ समझे, वह ना तो ब्रह्म हो सकता है, ना कल्कि और ना ही ईश्वर।

सुप्रामेंटल चेतना का संदेश
सुप्रामेंटल चेतना मानवता को यह अनुभव कराती है कि हम सब एक ही दिव्य स्रोत से उत्पन्न हैं। यह चेतना हमें यह सिखाती है कि प्रत्येक जीव, प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर की अभिव्यक्ति है।

"ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है," यह शास्त्रों का सत्य है।

"वासुदेवः सर्वं इति" — वासुदेव (ईश्वर) ही सबकुछ है।

सुपरमाइंड हमें इस सत्य को केवल बौद्धिक स्तर पर नहीं, बल्कि अनुभव के स्तर पर समझने का मार्ग प्रदान करता है।

कल्कि के रूप में प्रत्येक व्यक्ति का उत्थान
कल्कि का अर्थ केवल अवतार नहीं है, बल्कि वह चेतना है जो अज्ञान और असत्य को मिटाकर सत्य और प्रकाश की स्थापना करती है। जब प्रत्येक व्यक्ति इस चेतना को धारण करेगा, तब वह अपने भीतर की दिव्यता को प्रकट कर सकेगा।

कल्कि कोई बाहरी सत्ता नहीं है; यह हमारे भीतर की सुप्रामेंटल ऊर्जा है।

जब व्यक्ति "मैं और तू" के भेद से ऊपर उठकर "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" का अनुभव करेगा, तब वह कल्कि कहलाने योग्य होगा।

श्री अरविंद का संदेश और शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य
श्री अरविंद का दर्शन और शास्त्रीय दृष्टिकोण हमें यह सिखाते हैं कि:

सर्वभूतहिते रतः: जो सबके हित में रत है, वही ब्रह्म है।

अद्वैत दर्शन: "सब एक ही चेतना का रूप हैं।"

सत्य की अभिव्यक्ति: जब व्यक्ति अपनी चेतना को सत्य-चेतना में रूपांतरित करता है, तब वह दिव्यता का वास्तविक साधक बनता है।

इस प्रकार, सुप्रामेंटल चेतना केवल एक दार्शनिक सिद्धांत नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता को अपनी दिव्यता का अनुभव कराने का एक जीवंत मार्ग है। इसका सार यही है कि हर व्यक्ति स्वयं में ब्रह्म है, लेकिन उसे दूसरों में भी उसी ब्रह्मत्व का अनुभव करना होगा। यही वास्तविक कल्कि की चेतना है।

‪@womatulvinod‬

11 months ago (edited) | [YT] | 210