Wom Atul Vinod

योग का समग्र दृष्टिकोण, गुरु सियाग योग और इंटीग्रल योग


विभिन्न योग विधाएँ (ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, हठयोग, राजयोग) मनुष्य के विभिन्न पक्षों को उच्चतम स्तर तक विकसित करने का प्रयास करती हैं। लेकिन इनकी विविधता और अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण उन्हें एकीकृत करना चुनौतीपूर्ण होता है।
केवल सतही रूप से योगों का जोड़ एक सिंथेसिस नहीं होगा, बल्कि भ्रम उत्पन्न करेगा।
प्रत्येक योग अपने तरीके से ईश्वर की अनुभूति की ओर अग्रसर करता है।
2. तंत्रयोग की भूमिका
तंत्रयोग शक्ति (प्रकृति) की पूजा पर आधारित है, जो सृजन और चेतना की ऊर्जा है।
यह प्रत्यक्ष रूप से प्रकृति और उसकी ऊर्जा से जुड़कर पूर्णता प्राप्त करने का मार्ग है।
हालांकि, इसके कुछ पथ (विशेषतः वाममार्ग) ने नैतिक पतन का कारण बना दिया, जिससे इसकी छवि धूमिल हुई।
3. योग का उद्देश्य
योग का मुख्य उद्देश्य ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करना है।
इसमें निचली प्रकृति (अज्ञानता और अहंकार से भरी हुई) से उच्च प्रकृति (ज्ञान और दिव्यता) की ओर बढ़ना शामिल है।
केवल ईश्वर की अनुभूति (संपर्क स्थापित करना) ही पर्याप्त नहीं है; लक्ष्य है ईश्वर के समान रूपांतरण।
4. समग्र योग का मार्ग
पूर्ण आत्मसमर्पण: अपने अहंकार को दिव्य शक्ति को समर्पित करना।
तीन चरण:
अहंकार से दिव्यता का संपर्क।
निचली प्रकृति का दिव्यता के लिए तैयार होना।
अंततः प्रकृति का पूर्ण रूपांतरण।
इसमें अदम्य विश्वास, साहस और धैर्य की आवश्यकता है।
5. उच्च प्रकृति की तीन विशेषताएँ
यह किसी तय नियम का पालन नहीं करती बल्कि स्वतंत्र रूप से कार्य करती है।
यह धीरे-धीरे, लेकिन गहराई से निचली प्रकृति को दिव्य प्रकृति में बदलती है।
यह हर व्यक्ति के लिए अलग तरीके से काम करती है, लेकिन हमेशा सुनिश्चित परिणाम देती है।
6. योग का अंतिम लक्ष्य
यह न केवल व्यक्तिगत मुक्ति है, बल्कि मानव चेतना का समग्र रूपांतरण है।
व्यक्ति को "ईश्वर के साधक" के रूप में कार्य करना है, ताकि उसकी पूरी प्रकृति दिव्यता का माध्यम बन सके।
समग्र योग न केवल साधक के भीतर के द्वंद्व को सुलझाने का प्रयास करता है, बल्कि उसे ईश्वर और प्रकृति के साथ एकीकरण की ओर ले जाता है। यह साधना कठिन है, लेकिन दिव्य कृपा के कारण यह मार्ग सबसे सुनिश्चित और फलदायी है।
महर्षि अरविन्द का बताया "यह पथ कठिन हो सकता है, लेकिन दिव्य शक्ति हमारी कमजोरी को अपनी शक्ति में बदल देती है।"
गुरु सियाग योग और इंटीग्रल योग
गुरु सियाग योग (GSY) इंटीग्रल योग (Integral Yoga) है क्योंकि यह योग मानव जीवन के हर पहलू को छूता है—शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक। यह योग केवल एक विशिष्ट साधना पद्धति तक सीमित नहीं है, बल्कि एक समग्र (holistic) दृष्टिकोण अपनाता है, जो साधक को परमात्मा के साथ गहन संबंध स्थापित करने और उसके माध्यम से अपने संपूर्ण अस्तित्व को बदलने का अवसर देता है।
1. सभी योगों का समन्वय (Synthesis of All Yogas):
इंटीग्रल योग का मुख्य सिद्धांत यह है कि यह सभी योगों—ज्ञान योग, कर्म योग, भक्ति योग और हठ योग—के तत्वों को अपने में समाहित करता है।
गुरु सियाग योग में भी यह समन्वय दिखता है:
ज्ञान योग: गुरु के द्वारा दिया गया बीज मंत्र साधक के अंदर स्वाभाविक ज्ञान और चेतना को प्रकट करता है।
भक्ति योग: इस योग में गुरु और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण आवश्यक है। यह प्रेम और श्रद्धा पर आधारित है।
कर्म योग: साधक के कर्म स्वाभाविक रूप से शुद्ध हो जाते हैं, क्योंकि वह दिव्य इच्छा (Divine Will) के साथ सामंजस्य में होता है।
हठ योग और कुंडलिनी जागरण: गुरु सियाग योग में ध्यान के दौरान कुंडलिनी जागरण स्वाभाविक रूप से होता है, जो शारीरिक और मानसिक शुद्धि करता है।
2. दिव्य कृपा से सहज साधना (Effortless Practice through Divine Grace):
गुरु सियाग योग में साधना के लिए साधक की व्यक्तिगत योग्यता या क्षमता (effort) पर जोर नहीं है। यह इंटीग्रल योग की उस धारणा से मेल खाता है, जहां साधना परमात्मा या गुरु की कृपा से होती है। साधक केवल गुरु द्वारा दी गई साधना का पालन करता है:
बीज मंत्र जप: जो साधक के विचारों और चेतना को शुद्ध करता है।
ध्यान: जिसमें साधक को स्वाभाविक रूप से शारीरिक क्रियाएं (जैसे योग मुद्राएं और स्पंदन) होती हैं।
3. पूर्ण आत्मसमर्पण और दिव्य रूपांतरण (Total Surrender and Divine Transformation):
इंटीग्रल योग का उद्देश्य है साधक के संपूर्ण अस्तित्व को दिव्य चेतना में रूपांतरित करना।
गुरु सियाग योग में साधक को अपने अहंकार, इच्छाओं और सीमाओं को छोड़कर गुरु और ईश्वर के प्रति आत्मसमर्पण करना होता है। यह आत्मसमर्पण साधक के भीतर एक दिव्य परिवर्तन लाता है।
इस प्रक्रिया में, साधक के भीतर शरीर, मन और आत्मा का शुद्धिकरण होता है, जो उसे आध्यात्मिक पूर्णता (Spiritual Perfection) की ओर ले जाता है।
4. योग का सहज और स्वाभाविक स्वरूप (Natural and Spontaneous Approach):
इंटीग्रल योग की तरह, गुरु सियाग योग भी प्रकृति (Nature) के साथ संघर्ष करने के बजाय उसे स्वाभाविक रूप से रूपांतरित करता है।
साधक को किसी कठिन तपस्या या कठोर अभ्यास की आवश्यकता नहीं होती।
साधना के दौरान कुंडलिनी ऊर्जा स्वचालित रूप से साधक की निचली प्रकृति (Lower Nature) को बदलकर उच्च प्रकृति (Higher Nature) में रूपांतरित करती है।
5. सभी स्तरों पर रूपांतरण (Transformation at All Levels):
गुरु सियाग योग में:
शारीरिक रूपांतरण: बीज मंत्र और ध्यान के माध्यम से बीमारियां और नकारात्मक ऊर्जाएं समाप्त होती हैं।
मानसिक रूपांतरण: मानसिक तनाव, भय और बुरी आदतें स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं।
आध्यात्मिक रूपांतरण: साधक का ईश्वर के साथ संबंध गहरा होता है, और वह अपने भीतर दिव्य चेतना का अनुभव करता है।
6. शक्ति और चेतना का सामंजस्य (Harmony of Shakti and Consciousness):
इंटीग्रल योग में पुरुष (Purusha) और प्रकृति (Prakriti) का सामंजस्य आवश्यक है।
गुरु सियाग योग में कुंडलिनी शक्ति (प्रकृति) और गुरु की कृपा (चेतना) के माध्यम से यह सामंजस्य साधक के भीतर स्वतः होता है।
गुरु सियाग योग इंटीग्रल योग का आधुनिक स्वरूप है। यह साधक के लिए सहज, समग्र और सार्वभौमिक मार्ग प्रदान करता है, जो सभी योगों के सर्वोत्तम तत्वों को समाहित करता है। यह योग केवल आध्यात्मिक साधना नहीं, बल्कि साधक के संपूर्ण अस्तित्व को दिव्य रूप में बदलने की प्रक्रिया है।

11 months ago | [YT] | 89