जब दुनिया 'योग दिवस' पर मैट बिछाकर आसन करती है, तब बहुत से लोग यह मान बैठते हैं कि यही योग है। लेकिन क्या यही योग है? क्या सिर्फ शरीर को मोड़ना, सांस को नियंत्रित करना ही योग है?
नहीं। योग उससे कहीं अधिक गूढ़, आत्मिक और दिव्य है। योग केवल शरीर नहीं, आत्मा का मार्ग है। योग केवल करने की चीज़ नहीं, 'होने' की प्रक्रिया है। पंतजलि के अनुसार योग: 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः' — योग सूत्र का यह प्रथम सूत्र कहता है कि योग मन की वृत्तियों को शांत करने की अवस्था है। पंतजलि ने योग के 8 अंग बताए:
यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधि
ध्यान दें — आसन और प्राणायाम इसके केवल दो अंग हैं, लेकिन अधिकांश लोग योग को इन्हीं तक सीमित कर देते हैं। जबकि योग का अंतिम उद्देश्य है — आत्मसाक्षात्कार।
सिद्धयोग में 'योग' स्वतः होता है
गुरुदेव श्री सियाग ने जो साधना पद्धति दी, उसमें योग 'करने' की नहीं, 'होने' की प्रक्रिया बन जाती है। बस गुरुदेव का संजीवनी मंत्र जपते हुए ध्यान की स्थिति में बैठ जाइए — और फिर शरीर में जो भी योग क्रियाएं होंगी, वे स्वतः होंगी।
कोई आसन सिखाने वाला नहीं होगा, फिर भी शरीर खुद-ब-खुद आसन करेगा। कोई सांस नियंत्रित करने को नहीं कहेगा, लेकिन भीतर प्राणायाम चालू हो जाएगा। शरीर कंपन करने लगेगा, हाथ हिलने लगेंगे, आंखों के सामने रंग, प्रकाश और रूप दिखने लगेंगे — यह सब बिना 'किए' होगा।
इसे ही 'स्वतः योग प्रक्रिया' कहते हैं।
कुण्डलिनी जागरण — योग का केंद्र
गुरु सियाग सिद्धयोग में कुण्डलिनी शक्ति को गुरु मंत्र और ध्यान के माध्यम से सहज रूप में जाग्रत किया जाता है।
यह शक्ति मेरुदंड के मूल (मूलाधार) में सुप्त होती है और जब यह जाग्रत होती है, तो व्यक्ति के भीतर से सब कुछ बदलने लगता है:
आज, अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर आइए समझते हैं कि यह शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार की सूक्ष्म प्रक्रिया है, और गुरु सियाग की संजीवनी मंत्र साधना इसे कैसे साकार करती है।
1. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: मूल भाव और महत्व यह दिवस 21 जून—ग्रीष्म संक्रांति, दिन का लम्बा होना—पर अन्तर्राष्ट्रीय रूप से मनाया जाता है ।
उद्देश्य है मानव, पर्यावरण और स्वास्थ्य का एक प्रकाशमय संलयन—“Yoga for One Earth, One Health” ।
2. योग का अर्थ और पतंजलि का दर्शन संज्ञा “योग” संस्कृत Yuj से—isolation and integration का प्रतीक होता है ।
पतंजलि की योग सूत्र (लगभग 2वीं–3री ईस्वी) व्यवस्था देते हैं:
**अष्टांग योग (Ashtanga Yoga):** 1. यम (नैतिक नियम) 2. नियम (आत्म-अनुशासन 3. आसन (शारीरिक स्थिरता) 4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण) 5. प्रत्याहार (इंद्रियों का संयम) 6. धारणा (ध्यान में केन्द्र) 7. ध्यान 8. समाधि (पूर्ण आत्म-साक्षात्कार)
योग “मन की वृत्तियों का निरोध” है—अर्थात् चिन्तन-लहरियों का थम जाना ।
3. वास्तविक योग और आधुनिक भ्रम
योग को अक्सर शारीरिक आसन-अभ्यास तक सीमित समझा जाता है—यह अंश मात्र है।
वास्तविक योग शरीर, मन और आत्मा का पूर्ण समागम है—अष्ट अंगों में।
बिना मन और चेतना के संयोजन के, योग अधूरा ही रह जाता है।
4. कुण्डलिनी जागरण: योग की जीवंत शक्ति
कुण्डलिनी शक्ति मेरुदंड के मूलाधार में सुप्त रहती है। यह शक्ति का युगीन है । जागरण के तीन प्रमुख चरण: 1. कुमारी कुण्डलिनी – कंपन, ध्यान-संकेत। 2. योषित् – हृदय स्तर पर प्रेम-भाव। 3. पतिव्रता – सहस्रार में पहुंच कर शिव से मिलन।
यह जागरण अंततः ध्यान और समाधि की ओर ले जाता है।
5. गुरु और मंत्र का अद्वितीय महत्व
कुण्डलिनी को स्वयं जाग्रत करना कठिन है—गुरु की संजीवनी मंत्र दीक्षा इसका माध्यम बनती है।
गुरु सियाग सिद्धयोग में मंत्र + गुरु छवि + ध्यान से जागरण होता है—ये सब बिना गुरु कृपा नहीं संभव।
पतंजलि भी कहते हैं—योग के अंतिम लक्ष्य बिना गुरु के नहीं मिलता।
6. गुरु सियाग सिद्धयोग बनाम पारंपरिक अष्टांग योग परंपरा अभ्यास परिणाम पारंपरिक अष्टांग आसन + प्रक्रियाओं का क्रम धीमी प्रगति, आत्म-साक्षात्कार तक लंबा रास्ता
गुरु सियाग सिद्धयोग मंत्र + ध्यान + गुरु शक्ति सीधे आंतरिक जागरण की ओर, आत्म परिवर्तन
🔸 यहाँ महत्वपूर्ण है होने का अनुभव—शरीर के अंदर जागृत ऊर्जा की अनुभूति—न कि सिर्फ़ अभ्यास।
7. > "गुरु मंत्र — ध्यान — कुण्डलिनी जागरण — मन के अष्ट अंगों का साक्षात्कार — समाधि / आत्म-साक्षात्कार"
🕉️ गुरु सियाग सिद्धयोग से कैसे घटित होता है अष्टांग योग?
🌿 "योग किया नहीं जाता, वह घटित होता है।" — सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग अष्टांग योग यानी आठ अंगों वाला वह दिव्य मार्ग जो महर्षि पतंजलि ने योगसूत्रों में बताया। परंतु क्या आप जानते हैं — यह आठों अंग साधना के दौरान अपने आप घटित हो सकते हैं, बशर्ते कि आपके पास हो योग का जिवंत मंत्र — संजीवनी मंत्र, और आप हों किसी समर्थ गुरु से जुड़े।
🔱 गुरु सियाग सिद्धयोग क्या है?
गुरु सियाग सिद्धयोग एक सहज और क्रियाहीन साधना पद्धति है, जिसमें केवल: गुरुदेव की तस्वीर को देखकर 15 मिनट तक मंत्र जप करना होता है (गुरुदेव की आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया संजीवनी मंत्र) कोई शरीर क्रिया, कोई आसन, प्राणायाम, या बंध नहीं — फिर भी साधक के भीतर कुंडलिनी शक्ति स्वतः जागृत होती है और योग घटित होता है।
🔍 कैसे घटित होते हैं अष्टांग योग के आठ चरण?
1️⃣ यम – आत्म-नियंत्रण
❖ जैसे-जैसे साधक के भीतर कुंडलिनी जागती है, वह हिंसा, झूठ, चोरी आदि से स्वतः दूर होता जाता है। मन में शांति और संयम आता है।
2️⃣ नियम – आंतरिक अनुशासन
❖ संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान — ये सब बिना जबरदस्ती, साधना के दौरान स्वतः जीवन में आने लगते हैं।
3️⃣ आसन – स्थिरता
❖ साधना के समय बिना प्रयास के शरीर खुद-ब-खुद एक सहज योगासन में स्थिर हो जाता है।
4️⃣ प्राणायाम – प्राण का नियंत्रण
❖ साँस की गति साधक के वश में आ जाती है। गहरी, लंबी साँसें, बिना सिखाए साधक खुद करने लगता है। यह शक्तिपात योग की देन है।
5️⃣ प्रत्याहार – इंद्रियों का अंतर्मुख होना
❖ साधना करते समय नेत्र स्वतः बंद हो जाते हैं, और चेतना भीतर केंद्रित हो जाती है। बाहर की दुनिया खो जाती है।
6️⃣ धारणा – एकाग्रता
❖ ध्यान में गुरुदेव का रूप, रंगीन ज्योतियाँ, और अनुभूतियाँ आती हैं — मन एक ही बिंदु पर केंद्रित होने लगता है।
7️⃣ ध्यान – ध्यान (Concentration to Meditation)
❖ गुरुदेव की कृपा से ध्यान स्वतः घटित होता है, जहां मन, मंत्र और साधक — सब एक हो जाते हैं।
8️⃣ समाधि – आत्मा और परमात्मा का मिलन
❖ जब कुंडलिनी सहस्रार तक पहुँचती है — तब आता है परमानंद, शून्यता, और परम शांति — यही सच्ची समाधि है।
❓ क्यों करें गुरु सियाग सिद्धयोग?
✅ शरीर, मन और आत्मा — तीनों का उपचार ✅ तनाव, अवसाद, नशा, भय आदि से मुक्ति ✅ कोई मज़हब, जाति, वर्ग बाधा नहीं ✅ पूरी तरह निःशुल्क और घर बैठे संभव ✅ साक्षात् अनुभव और दिव्य दर्शन
Wom Atul Vinod
वास्तविक योग क्या है? और कैसे होता है?
जब दुनिया 'योग दिवस' पर मैट बिछाकर आसन करती है, तब बहुत से लोग यह मान बैठते हैं कि यही योग है। लेकिन क्या यही योग है? क्या सिर्फ शरीर को मोड़ना, सांस को नियंत्रित करना ही योग है?
नहीं। योग उससे कहीं अधिक गूढ़, आत्मिक और दिव्य है। योग केवल शरीर नहीं, आत्मा का मार्ग है। योग केवल करने की चीज़ नहीं, 'होने' की प्रक्रिया है।
पंतजलि के अनुसार योग:
'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः' — योग सूत्र का यह प्रथम सूत्र कहता है कि योग मन की वृत्तियों को शांत करने की अवस्था है।
पंतजलि ने योग के 8 अंग बताए:
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार
धारणा
ध्यान
समाधि
ध्यान दें — आसन और प्राणायाम इसके केवल दो अंग हैं, लेकिन अधिकांश लोग योग को इन्हीं तक सीमित कर देते हैं। जबकि योग का अंतिम उद्देश्य है — आत्मसाक्षात्कार।
सिद्धयोग में 'योग' स्वतः होता है
गुरुदेव श्री सियाग ने जो साधना पद्धति दी, उसमें योग 'करने' की नहीं, 'होने' की प्रक्रिया बन जाती है। बस गुरुदेव का संजीवनी मंत्र जपते हुए ध्यान की स्थिति में बैठ जाइए — और फिर शरीर में जो भी योग क्रियाएं होंगी, वे स्वतः होंगी।
कोई आसन सिखाने वाला नहीं होगा, फिर भी शरीर खुद-ब-खुद आसन करेगा।
कोई सांस नियंत्रित करने को नहीं कहेगा, लेकिन भीतर प्राणायाम चालू हो जाएगा।
शरीर कंपन करने लगेगा, हाथ हिलने लगेंगे, आंखों के सामने रंग, प्रकाश और रूप दिखने लगेंगे — यह सब बिना 'किए' होगा।
इसे ही 'स्वतः योग प्रक्रिया' कहते हैं।
कुण्डलिनी जागरण — योग का केंद्र
गुरु सियाग सिद्धयोग में कुण्डलिनी शक्ति को गुरु मंत्र और ध्यान के माध्यम से सहज रूप में जाग्रत किया जाता है।
यह शक्ति मेरुदंड के मूल (मूलाधार) में सुप्त होती है और जब यह जाग्रत होती है, तो व्यक्ति के भीतर से सब कुछ बदलने लगता है:
आज, अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर आइए समझते हैं कि यह शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार की सूक्ष्म प्रक्रिया है, और गुरु सियाग की संजीवनी मंत्र साधना इसे कैसे साकार करती है।
1. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: मूल भाव और महत्व
यह दिवस 21 जून—ग्रीष्म संक्रांति, दिन का लम्बा होना—पर अन्तर्राष्ट्रीय रूप से मनाया जाता है ।
उद्देश्य है मानव, पर्यावरण और स्वास्थ्य का एक प्रकाशमय संलयन—“Yoga for One Earth, One Health” ।
2. योग का अर्थ और पतंजलि का दर्शन
संज्ञा “योग” संस्कृत Yuj से—isolation and integration का प्रतीक होता है ।
पतंजलि की योग सूत्र (लगभग 2वीं–3री ईस्वी) व्यवस्था देते हैं:
**अष्टांग योग (Ashtanga Yoga):**
1. यम (नैतिक नियम)
2. नियम (आत्म-अनुशासन
3. आसन (शारीरिक स्थिरता)
4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)
5. प्रत्याहार (इंद्रियों का संयम)
6. धारणा (ध्यान में केन्द्र)
7. ध्यान
8. समाधि (पूर्ण आत्म-साक्षात्कार)
योग “मन की वृत्तियों का निरोध” है—अर्थात् चिन्तन-लहरियों का थम जाना ।
3. वास्तविक योग और आधुनिक भ्रम
योग को अक्सर शारीरिक आसन-अभ्यास तक सीमित समझा जाता है—यह अंश मात्र है।
वास्तविक योग शरीर, मन और आत्मा का पूर्ण समागम है—अष्ट अंगों में।
बिना मन और चेतना के संयोजन के, योग अधूरा ही रह जाता है।
4. कुण्डलिनी जागरण: योग की जीवंत शक्ति
कुण्डलिनी शक्ति मेरुदंड के मूलाधार में सुप्त रहती है। यह शक्ति का युगीन है ।
जागरण के तीन प्रमुख चरण:
1. कुमारी कुण्डलिनी – कंपन, ध्यान-संकेत।
2. योषित् – हृदय स्तर पर प्रेम-भाव।
3. पतिव्रता – सहस्रार में पहुंच कर शिव से मिलन।
यह जागरण अंततः ध्यान और समाधि की ओर ले जाता है।
5. गुरु और मंत्र का अद्वितीय महत्व
कुण्डलिनी को स्वयं जाग्रत करना कठिन है—गुरु की संजीवनी मंत्र दीक्षा इसका माध्यम बनती है।
गुरु सियाग सिद्धयोग में मंत्र + गुरु छवि + ध्यान से जागरण होता है—ये सब बिना गुरु कृपा नहीं संभव।
पतंजलि भी कहते हैं—योग के अंतिम लक्ष्य बिना गुरु के नहीं मिलता।
6. गुरु सियाग सिद्धयोग बनाम पारंपरिक अष्टांग योग
परंपरा अभ्यास परिणाम
पारंपरिक अष्टांग आसन + प्रक्रियाओं का क्रम धीमी प्रगति, आत्म-साक्षात्कार तक लंबा रास्ता
गुरु सियाग सिद्धयोग मंत्र + ध्यान + गुरु शक्ति सीधे आंतरिक जागरण की ओर, आत्म परिवर्तन
🔸 यहाँ महत्वपूर्ण है होने का अनुभव—शरीर के अंदर जागृत ऊर्जा की अनुभूति—न कि सिर्फ़ अभ्यास।
7. > "गुरु मंत्र — ध्यान — कुण्डलिनी जागरण — मन के अष्ट अंगों का साक्षात्कार — समाधि / आत्म-साक्षात्कार"
🕉️ गुरु सियाग सिद्धयोग से कैसे घटित होता है अष्टांग योग?
🌿 "योग किया नहीं जाता, वह घटित होता है।" — सद्गुरुदेव श्री रामलाल जी सियाग
अष्टांग योग यानी आठ अंगों वाला वह दिव्य मार्ग जो महर्षि पतंजलि ने योगसूत्रों में बताया। परंतु क्या आप जानते हैं — यह आठों अंग साधना के दौरान अपने आप घटित हो सकते हैं, बशर्ते कि आपके पास हो योग का जिवंत मंत्र — संजीवनी मंत्र, और आप हों किसी समर्थ गुरु से जुड़े।
🔱 गुरु सियाग सिद्धयोग क्या है?
गुरु सियाग सिद्धयोग एक सहज और क्रियाहीन साधना पद्धति है, जिसमें केवल:
गुरुदेव की तस्वीर को देखकर
15 मिनट तक मंत्र जप करना होता है (गुरुदेव की आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया संजीवनी मंत्र)
कोई शरीर क्रिया, कोई आसन, प्राणायाम, या बंध नहीं — फिर भी साधक के भीतर कुंडलिनी शक्ति स्वतः जागृत होती है और योग घटित होता है।
🔍 कैसे घटित होते हैं अष्टांग योग के आठ चरण?
1️⃣ यम – आत्म-नियंत्रण
❖ जैसे-जैसे साधक के भीतर कुंडलिनी जागती है, वह हिंसा, झूठ, चोरी आदि से स्वतः दूर होता जाता है। मन में शांति और संयम आता है।
2️⃣ नियम – आंतरिक अनुशासन
❖ संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान — ये सब बिना जबरदस्ती, साधना के दौरान स्वतः जीवन में आने लगते हैं।
3️⃣ आसन – स्थिरता
❖ साधना के समय बिना प्रयास के शरीर खुद-ब-खुद एक सहज योगासन में स्थिर हो जाता है।
4️⃣ प्राणायाम – प्राण का नियंत्रण
❖ साँस की गति साधक के वश में आ जाती है। गहरी, लंबी साँसें, बिना सिखाए साधक खुद करने लगता है। यह शक्तिपात योग की देन है।
5️⃣ प्रत्याहार – इंद्रियों का अंतर्मुख होना
❖ साधना करते समय नेत्र स्वतः बंद हो जाते हैं, और चेतना भीतर केंद्रित हो जाती है। बाहर की दुनिया खो जाती है।
6️⃣ धारणा – एकाग्रता
❖ ध्यान में गुरुदेव का रूप, रंगीन ज्योतियाँ, और अनुभूतियाँ आती हैं — मन एक ही बिंदु पर केंद्रित होने लगता है।
7️⃣ ध्यान – ध्यान (Concentration to Meditation)
❖ गुरुदेव की कृपा से ध्यान स्वतः घटित होता है, जहां मन, मंत्र और साधक — सब एक हो जाते हैं।
8️⃣ समाधि – आत्मा और परमात्मा का मिलन
❖ जब कुंडलिनी सहस्रार तक पहुँचती है — तब आता है परमानंद, शून्यता, और परम शांति — यही सच्ची समाधि है।
❓ क्यों करें गुरु सियाग सिद्धयोग?
✅ शरीर, मन और आत्मा — तीनों का उपचार
✅ तनाव, अवसाद, नशा, भय आदि से मुक्ति
✅ कोई मज़हब, जाति, वर्ग बाधा नहीं
✅ पूरी तरह निःशुल्क और घर बैठे संभव
✅ साक्षात् अनुभव और दिव्य दर्शन
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"Guru Siyag Yoga se Ashtang Yog ke 8 Pad Kaise Hote Hain Ghatit | Real Yoga Happens, Not Done!"
Atul Vinod
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5 months ago | [YT] | 231