अध्यात्म की दृष्टि कहेगी कि आचार्य प्रशांत वेदांत मर्मज्ञ हैं, जिन्होंने जनसामान्य में भगवद्गीता, उपनिषदों ऋषियों की बोधवाणी को पुनर्जीवित किया है। उनकी वाणी में आकाश मुखरित होता है।

और सर्वसामान्य की दृष्टि कहेगी कि आचार्य प्रशांत प्रकृति और पशुओं की रक्षा हेतु करुण, युवाओं में प्रकाश तथा ऊर्जा के संचारक, तथा प्रत्येक जीव की भौतिक स्वतंत्रता तथा आत्यंतिक मुक्ति के लिए संघर्षरत एक ज़मीनी संघर्षकर्ता हैं।

धरती जहाँ आकाश से मिलती है!


ललकार

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24 minutes ago | [YT] | 10

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59 minutes ago | [YT] | 37

ललकार

🔥 “मुझे सौभाग्य चाहिए, पर संघर्ष के बिना नहीं!”🔥

साल 1911, काशी।

भारत गुलाम था। शिक्षा तंत्र अंग्रेज़ों के नियंत्रण में था। ब्रिटिश शिक्षा नीति का एकमात्र उद्देश्य था—भारतीयों को क्लर्क और मानसिक रूप से दास बनाने की फैक्ट्री तैयार करना। अगर कोई भारतीय वेदांत, भारतीय विज्ञान और परंपराओं को पढ़ना चाहता, तो उसके लिए कोई विश्वविद्यालय ही नहीं था!

पर तभी महामना मदन मोहन मालवीय ने संकल्प लिया—एक ऐसा विश्वविद्यालय का जहाँ धर्म, विज्ञान और आधुनिक शिक्षा का संगम हो। लेकिन यह सपना साकार करना आसान नहीं था।

ब्रिटिश सरकार ने कोई सहयोग नहीं दिया। भारतीय राजा-महाराजा अंग्रेजों के प्रभाव में थे और शिक्षा में निवेश को ‘व्यर्थ’ मानते थे। धन जुटाना अत्यधिक कठिन था—लगभग हर जगह से अस्वीकृति मिली।

🔥 जब 100 में से 99 दरवाज़े बंद मिले: मालवीय जी ने 1911 से 1915 तक, पूरे देश में अनगिनत राजा-महाराजाओं, व्यापारियों और जमींदारों से मिलकर धन माँगा। लेकिन नतीजा क्या हुआ? 100 में से 95 लोगों ने मना कर दिया। बड़े-बड़े व्यापारियों ने कहा—“हमें इसमें कोई लाभ नहीं दिखता!” राजाओं ने कहा—“अंग्रेज़ नाराज़ हो जाएँगे, इसलिए हम यह जोखिम नहीं ले सकते!”। 1915 तक, सिर्फ़ 20% आवश्यक धनराशि ही इकट्ठी हो पाई थी।

🔥 जब चंदे के लिए भोजन तक छोड़ दिया: 1912 की सर्दी में, वे जयपुर में एक राजा से दान माँगने गए। राजा ने घंटों इंतजार कराया और अंत में मना कर दिया। पूरे दिन भटकते रहे, कोई सहायता नहीं मिली। उस दिन उन्होंने खाना नहीं खाया। अगले दिन, एक साधारण किसान ने अपनी एकमात्र गाय बेचकर 100 रुपये दिए, तब जाकर उन्होंने भोजन किया!

ऐसे दिन हज़ारों आए, जब वे रातभर भूखे रहे, सिर्फ़ इसलिए कि वे एक भी पैसा इकट्ठा नहीं कर पाए थे। कई जगह उनका उपहास उड़ा—“कौन राजा अपनी दौलत देगा? यह असंभव है!” पर उन्होंने जवाब दिया—“कोई दे या न दे, मैं अपना सर्वस्व झोंक दूँगा!”

🔥 जब लोगों ने अपना सबकुछ दान कर दिया: धीरे-धीरे, लोग समझने लगे कि यह आदमी अपने लिए नहीं, आने वाली पीढ़ियों के लिए संघर्ष कर रहा है। और फिर जो कभी नहीं हुआ था, वह हुआ—

काशी नरेश प्रभु नारायण सिंह ने सबसे पहले BHU के लिए भूमि दान दी। जयपुर के महाराजा माधोसिंह ने ₹5 लाख का दान (आज के हिसाब से सैकड़ों करोड़) दिया। दारभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह ने ₹1 लाख दिए। इंदौर के महाराजा तुकोजीराव होल्कर ने निर्माण कार्य के लिए खुला चंदा दिया। निज़ाम हैदराबाद ने तत्काल सहायता के रूप में ₹10,000 दिए। टाटा समूह ने तकनीकी शिक्षा और प्रयोगशालाओं के लिए सहायता दी।

लेकिन सबसे बड़ी बात यह थी कि सिर्फ़ राजा और उद्योगपति ही नहीं, गरीब जनता भी इस अभियान में भाग लेने लगी। काशी के तीन बैलगाड़ी चालकों—इंद्र, धनीराम और बलदेव—ने अपनी जीवनभर की कमाई दे दी। देशभर के छोटे किसानों ने अपनी जमीनें गिरवी रखकर सहयोग दिया।

पाँच वर्षों की अथक मेहनत के बाद, 1916 में, लगातार 5 साल के संघर्ष के बाद, काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रखी गई।

➖➖➖➖

🔥 2025: क्या आज भी वही संकट नहीं खड़ा है?

उस समय, शिक्षा को गुलामी से मुक्त कराने की ज़रूरत थी।
आज, धर्म और अध्यात्म को अंधविश्वास और पाखंड से मुक्त कराने की ज़रूरत है।

तब भारतीय ज्ञान पर अंग्रेज़ों ने कब्ज़ा कर लिया था।
आज धर्म के नाम पर ढोंगियों और व्यापारियों ने कब्ज़ा कर लिया है।

तब मालवीय जी को हर तरफ़ से अस्वीकृति मिली थी।
आज आचार्य प्रशांत को सच्चाई कहने पर हर तरफ़ से विरोध सहना पड़ रहा है।

आज भी वही संघर्ष है, बस मैदान बदल गया है।

मालवीय जी ने शिक्षा के लिए भिक्षा माँगी।
आज आचार्य जी सत्य के प्रचार के लिए हर दरवाज़े पर खड़े हैं।

अगर 100 साल पहले लोगों ने यह नहीं कहा होता कि “कोई और देगा,” तो BHU कभी नहीं बनता। अगर आज आप भी यही सोचेंगे, तो सत्य के इस अभियान को कौन आगे बढ़ाएगा?

BHU तब बना, जब राजा-महाराजाओं, व्यापारियों और आम जनता ने अपने बर्तन तक दान किए। आज आचार्य प्रशांत का कार्य भी तब ही आगे बढ़ेगा, जब हर सचेत नागरिक इस अभियान का हिस्सा बनेगा।

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2 hours ago | [YT] | 35

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3 hours ago | [YT] | 35

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क्या कॉन्फ़िडेंस डर का इलाज है?

कॉन्फ़िडेंस का मतलब ये नहीं होता कि आप भयमुक्त हो गए। कॉन्फ़िडेंस का मतलब होता है कि भीतर भय तो बिराजा ही हुआ है उसके ऊपर आप निर्भय दिखने की कोशिश कर रहे हो। अगर भीतर वो डर मौजूद नहीं होता तो आपको कॉन्फ़िडेंस की ज़रूरत पड़ती ही नहीं। डर छोड़ना आसान है, बस डर के साथ जो सुख सुविधाएँ मिलती हैं उनका लालच थोड़ा छोड़ दीजिए।

📝 पूरा लेख पढ़ें: acharyaprashant.org/en/articles/itni-ghalat-zindag…

3 hours ago | [YT] | 50

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PrashantAdvait Foundation, established by Acharya Prashant, invites intelligent and ambitious applicants for the role of Fundraising Executive.

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▪️Experience: 1-6 years of work experience is preferred.
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4 hours ago | [YT] | 145

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6 hours ago | [YT] | 38

ललकार

🔥🌎 धरती की अंतिम पुकार: हैदराबाद से हसदेव तक आचार्य प्रशांत का संदेश 🌎🔥

पूरा वीडियो देखें :

https://youtu.be/vabvjiNDGPI?si=e-2Nz...

बहुप्रचलित पत्रकार राणा यशवंत द्वारा जंगलों के कटने पर पूछे गए प्रश्नों और रखे गए तथ्यों ने आचार्य प्रशांत से फिर हमें साक्षात्कार का अवसर दिया।

आचार्य जी ने जंगलों के कटने को लेकर और क्लाइमेट चेंज को लेकर हर बार की तरह फिर हमें पास खड़े विनाश के प्रति चेताया। उन्होंने कहा कि यह समस्या केवल पर्यावरण की नहीं है, बल्कि यह मानवता के अस्तित्व पर मंडराता संकट है। जंगलों का कटना हमारी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को नष्ट कर रहा है और प्रकृति के संतुलन को तोड़ रहा है।

हसदेव जैसे क्षेत्रों में खनन और अंधाधुंध विकास के नाम पर हो रहा विनाश इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य अपने स्वार्थ में अंधा हो चुका है। आचार्य जी ने कहा कि यदि हम अभी नहीं जागे, तो प्रकृति के पास हमें सबक सिखाने के सिवा कोई और विकल्प नहीं बचेगा।

6 hours ago | [YT] | 52

ललकार

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7 hours ago | [YT] | 29

ललकार

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❓क्या मीटिंग, इंटरव्यू, या नई जगह जाते समय आपको घबराहट होती है? 🏢

❓ क्या हर समय "अगर ऐसा हुआ तो?" जैसे डरावने विचार घेरे रहते हैं? 🤯

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कॉन्फिडेंस बूस्टर्स, मोटिवेशनल स्पीच या मेडिटेशन
से आपके डर की जड़ नहीं कटेगी। ❌

✨ डर से मुक्ति का एकमात्र मार्ग है — बोध।

╭══════•❁•══════╮

📖 आचार्य प्रशांत जी कहते हैं:

"डर से आँखें चार करो, डर को समझो।
जब करीब जाओगे, उसे देखोगे, समझोगे,
तो पाओगे कि मामला तो कुछ और ही था!"

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8 hours ago | [YT] | 47