हम उसकी तरफ हज़ार बार हाथ बढ़ाएंगे वो उसमे भी हमारा स्वार्थ ढूंढ लेगा, अगर वो ऐसा करे तो उसे ऐसा करने देना क्योंकि ये उसका सफर है..

हम उसे उसकी जिंदगी में आने वाले किसी खतरे से आगाह करना चाहेंगे तो वो हमें ही खतरा मानने लगेगा, अगर वो ऐसा करे तो उसे ऐसा करने देना क्योंकि ये उसका सफर है

कुछ है जहाँ वो अटक सा गया है, कुछ है जिससे वो भटक सा गया है, पर वो उन रास्तों पर अपनी मंज़िलों को खोज रहा है।

वहम कोई भी हो, अहम कैसा भी हो, उनका अंत अपनी चरम सीमा पर ही होता है, अपने अंत से पहले कोई भी वहम, कोई भी अहम हार कहाँ मानता है। शायद उसके वहम का, अहम का अभी चरम पर जाना बाकी है, शायद यही उसका अपना संघर्ष है, शायद यही उसकी नियति है..

अगर हर सफर उसका सफर है तो मेरा सफर क्या है?

उसके इस सफर पर नज़र बनाये रखना ही मेरा अपना सफर है, उसके सफर में खुद को न खो देने की जिद्द ही मेरा सफर है, गर वो मुझे पुकारे तो उसकी तरफ हाथ बढ़ाना ही मेरा सफर है, जब वो नाउम्मीद हो जाये तो उसकी हर उम्मीद हो जाना ही मेरा सफर है, एक ऐसा भी दिन आएगा जब वो अपने सारे अंधेरों को चीर बाहर निकलेगा तब उसे गले लगाना ही मेरा सफर है..