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Swachhand IAS

अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने एक बार कहा था, “वयस्क जीवन में सबसे कठिन सबक जो मुझे सीखना पड़ा, वह यह था कि अंदर से कितना भी टूट चुका हो, चलते रहना जरूरी है।”

यह सच्चाई कड़वी है, कठोर है, लेकिन सार्वभौमिक है। ज़िंदगी उस वक्त भी नहीं रुकती जब हमारा दिल टूटा होता है, जब हमारा मन थका हुआ होता है, या जब हमारी आत्मा बिखरने की कगार पर होती है। जीवन आगे बढ़ता रहता है—निर्दयी और बेपरवाह—और हमसे भी यही अपेक्षा करता है कि हम भी उसके साथ-साथ चलते रहें। न ठहरने का समय है, न ही घावों को भरने की फुर्सत, न ही खुद को समेटने की कोई चुपचाप जगह। दुनिया इंतज़ार नहीं करती, चाहे हम कितनी भी शिद्दत से एक पल के ठहराव की गुहार लगाएं।

सबसे मुश्किल बात यह है कि हमें इसके लिए कोई तैयार नहीं करता। बचपन में हम उन कहानियों में खोए रहते हैं जिनका अंत हमेशा सुखद होता है—विजय की, मोक्ष की, सब कुछ ठीक हो जाने की। लेकिन जैसे ही हम बड़े होते हैं, जीवन उन सुखद कल्पनाओं की परतें उतार देता है। सच्चाई सामने होती है—बच जाना, ज़िंदा रहना, कोई नाटकीय या वीरतापूर्ण कार्य नहीं होता। यह वो होता है जब हम मुस्कराते हैं, जबकि भीतर से बिखर चुके होते हैं। जब हम सामने आते हैं, जबकि भाग जाना ज्यादा आसान लगता है। जब हम एक और क़दम आगे बढ़ाते हैं, जबकि हर कोशिका आराम के लिए तरस रही होती है।

फिर भी, हम टिके रहते हैं। यही मानवता का चमत्कार है—हम टिके रहते हैं। सबसे गहरे दर्द के क्षणों में, हम अपने भीतर छिपी ताकत को पहचानते हैं। हम खुद को ढाढ़स देते हैं, उम्मीद की छोटी-छोटी किरणों में सहारा ढूंढ़ते हैं, और तब भी साहस के शब्द दोहराते हैं जब आसपास कोई नहीं होता। समय के साथ हम समझते हैं कि सहनशीलता कोई बड़ा शोर नहीं है। यह एक खामोश हठ है, एक अडिग इरादा कि ज़िंदगी के बोझ हमें पूरी तरह कुचल नहीं सकते।

हाँ, यह अस्त-व्यस्त है। हाँ, यह थकाने वाला है। और हाँ, ऐसे दिन भी आते हैं जब बोझ असहनीय लगता है। लेकिन फिर भी, हम आगे बढ़ते हैं। हर छोटा, हिचकता हुआ क़दम हमारी सहनशक्ति का प्रमाण है—एक ऐसा संकेत कि हमारी सबसे अंधेरी घड़ियों में भी, हम अब भी लड़ रहे हैं, अब भी हार मानने से इंकार कर रहे हैं।

यही संघर्ष, यही खामोश साहस—जीवन के असली मायने हैं।

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आप सभी को होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

1 month ago | [YT] | 11

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उतनी दूर मत ब्याहना बाबा! निर्मला पुतुल

बाबा!
मुझे उतनी दूर मत ब्याहना
जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर
घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हे

मत ब्याहना उस देश में
जहाँ आदमी से ज़्यादा
ईश्वर बसते हों

जंगल नदी पहाड़ नहीं हों जहाँ
वहाँ मत कर आना मेरा लगन

वहाँ तो कतई नहीं
जहाँ की सड़कों पर
मान से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों मोटर-गाडियाँ
ऊँचे-ऊँचे मकान
और दुकानें हों बड़ी-बड़ी

उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता
जिस में बड़ा-सा खुला आँगन न हो
मुर्ग़े की बाँग पर होती नहीं हो जहाँ सुबह
और शाम पिछवाड़े से जहाँ
पहाड़ी पर डूबता सूरज न दिखे
मत चुनना ऐसा वर
जो पोचई और हड़िया में डूबा रहता हो अक्सर
काहिल-निकम्मा हो
माहिर हो मेले से लड़कियाँ उड़ा ले जाने में
ऐसा वर मत चुनना मेरी ख़ातिर

कोई थारी-लोटा तो नहीं
कि बाद में जब चाहूँगी बदल लूँगी
अच्छा-ख़राब होने पर

जो बात-बात में
बात करे लाठी-डंडा की
निकाले तीर-धनुष, कुल्हाड़ी
जब चाहे चला जाए बंगाल, असम या कश्मीर
ऐसा वर नहीं चाहिए हमें

और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ
जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाए
फ़सलें नहीं उगाईं जिन हाथों ने
जिन हाथों ने दिया नहीं कभी किसी का साथ
किसी का बोझ नहीं उठाया

और तो और!
जो हाथ लिखना नहीं जानता हो ‘ह’ से हाथ
उसके हाथ मत देना कभी मेरा हाथ!

ब्याहना हो तो वहाँ ब्याहना
जहाँ सुबह जाकर
शाम तक लौट सको पैदल
मैं जो कभी दुख में रोऊँ इस घाट
तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम
सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप

महुआ की लट और
खजूर का गुड़ बनाकर भेज सकूँ संदेश तुम्हारी ख़ातिर
उधर से आते-जाते किसी के हाथ
भेज सकूँ कद्दू-कोहड़ा, खेखसा, बरबट्टी
समय-समय पर गोगो के लिए भी

मेला-हाट-बाज़ार आते-जाते
मिल सके कोई अपना जो
बता सके घर-गाँव का हाल-चाल
चितकबरी गैया के बियाने की ख़बर
दे सके जो कोई उधर से गुज़रते
ऐसी जगह मुझे ब्याहना!

उस देश में ब्याहना
जहाँ ईश्वर कम आदमी ज़्यादा रहते हों
बकरी और शेर
एक घाट पानी पीते हों जहाँ
वहीं ब्याहना मुझे!

उसी के संग ब्याहना जो
कबूतर के जोड़े और पंडुक पक्षी की तरह
रहे हरदम हाथ
घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर
रात सुख-दुख बाँटने तक
चुनना वर ऐसा
जो बजाता हो बाँसुरी सुरीली
और ढोल-माँदल बजाने में हो पारंगत

वसंत के दिनों में ला सके जो रोज़
मेरे जूड़े के ख़ातिर पलाश के फूल

जिससे खाया नहीं जाए
मेरे भूखे रहने पर
उसी से ब्याहना मुझे!

-निर्मला पुतुल

1 month ago | [YT] | 25

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वायु प्रदूषण मापने वाली स्विट्जरलैंड की संस्था "आईक्यू एयर" की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के केवल सात देशों के लोग ही साफ हवा में सांस ले पा रहे हैं. इनमें ऑस्ट्रेलिया, आइसलैंड, न्यूजीलैंड, बहामास, बारबाडोस, एस्टोनिया, ग्रेनेडा जैसे देश शामिल हैं. संस्था ने 138 देशों से हवा की गुणवत्ता मापने वाली करीब 40,000 मशीनों से डेटा इकट्ठा किया है.

सबसे खराब स्थिति बांग्लादेश और चाड जैसे देशों की है. यहां की हवा, विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय पैमानों से पंद्रह गुना अधिक प्रदूषित पाई गई. इस सूची में भारत पांचवें स्थान पर है. दुनिया के 25 सबसे प्रदूषित शहरों में 15 शहर भारत के हैं.

संगठन ने चेताया कि अमेरिका ने हवा को मॉनिटर करने की अपनी कोशिशों पर रोक लगा दी है. इससे स्मॉग और प्रदूषित हवा के खिलाफ जारी लड़ाई कमजोर पड़ सकती है. कई एशियाई और अफ्रीकी देश हवा की गुणवत्ता मापने के लिए अमेरिकी दूतावास की लगाई गई मशीनों पर निर्भर होते हैं. लेकिन ट्रंप सरकार ने बजट का हवाला देते हुए इस योजना को खत्म कर दिया है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि हर साल वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में करीब 70 लाख लोगों की मौत होती है.

#airpollution #climatechange #trump

1 month ago | [YT] | 6