बेटा-बहु अपने बैडरूम में बातें कर रहे थे, द्वार खुली होने के कारण उनकी आवाजें साफ साफ बाहर कमरे में बैठी माँ को भी सुनाई दे रहीं थीं.....
बेटा---" अपने job के कारण हम माँ का ध्यान नहीं रख पाएँगे, उनकी देखभाल कौन करेगा ? क्यूँ ना, उन्हें वृद्धाश्रम में दाखिल करा दें, वहाँ उनकी देखभाल भी होगी और हमलोग भी कभी कभी उनसे मिलते रहेंगे। " बेटे की बात पर बहु ने जो कहा, उसे सुनकर माँ की आँखों में आँसू आ गए। . . बहु---" पैसे कमाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है जी, लेकिन माँ का आशीष जितना भी मिले, वो कम है। उनके लिए पैसों से ज्यादा हमारा संग-साथ जरूरी है। मैं अगर job ना करूँ तो कोई बहुत अधिक नुकसान नहीं होगा। मैं माँ के साथ रहूँगी। घर पर ही tution पढ़ाऊँगी, इससे माँ की देखभाल भी कर पाऊँगी। याद करो, तुम्हारे बचपन में ही तुम्हारे पिता नहीं रहे और घरेलू काम धाम करके तुम्हारी माँ ने तुम्हारा पालन पोषण किया, तुम्हें पढ़ाया लिखाया, काबिल बनाया। तब उन्होंने कभी भी पड़ोसन के पास तक नहीं छोड़ा, कारण तुम्हारी देखभाल कोई दूसरा अच्छी तरह नहीं करेगा, और तुम आज ऐंसा बोल रहे हो। तुम कुछ भी कहो, लेकिन माँ हमारे ही पास रहेंगी, हमेशा, अंत तक। "
बहु की उपरोक्त बातें सुन, माँ रोने लगती है और रोती हुई ही, पूजा घर में पहुँचती है। और ईश्वर के सामने खड़े होकर माँ उनका आभार मानती है और उनसे कहती है---" भगवान, तुमने मुझे बेटी नहीं दी, इस वजह से कितनी ही बार मैने तुम्हे भला बुरा कहती रहती थी, लेकिन ऐंसी भाग्यलक्ष्मी देने के लिए आपका आभार मैं किस तरह मानूँ...? ऐंसी बहु पाकर, मेरा तो जीवन सफल हो गया, प्रभु। "
Not 🚫 पोस्ट अच्छी लगी हो तो लाईक शेयर कि बौछार कर दीजिए.. #माँ#kahani
एक सेठ के सात बेटे थे. सभी का विवाह हो चुका था. छोटी बहू संस्कारी माता-पिता की बेटी थी. बचपन से ही अभिभावकों से अच्छे संस्कार मिलने के कारण उसके रोम-रोम में संस्कार बस गया था. ससुराल में घर का सारा काम तो नौकर-चाकर करते थे, जेठानियां केवल खाना बनाती थीं. उसमें भी खटपट होती रहती थी. छोटी बहू को संस्कार मिले थे कि अपना काम स्वयं करना चाहिए और प्रेम से मिलजुल कर रहना चाहिए. अपना काम स्वयं करने से स्वास्थ्य बढ़िया रहता है. उसने युक्ति खोज निकाली और सुबह जल्दी स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर पहले ही रसोई में जा बैठी. जेठानियों ने टोका, लेकिन उसने प्रेम से रसोई बनाई और सबको प्रेम से भोजन कराया. सभी ने बड़े प्रेम से भोजन किया और प्रसन्न हुए. इसके बाद सास छोटी बहू के पास जाकर बोली, "बहू, तू सबसे छोटी है, तू रसोई क्यों बनाती है? तेरी छह जेठानियां हैं. वे खाना बनाएंगी." बहू बोली, "मांजी, कोई भूखा अतिथि घर आता है, तो उसको आप भोजन क्यों कराती हैं?" "बहू शास्त्रों में लिखा है कि अतिथि भगवान का रूप होता है. भोजन पाकर वह तृप्त होता है, तो भोजन करानेवाले को बड़ा पुण्य मिलता है." "मांजी, अतिथि को भोजन कराने से पुण्य होता है, तो क्या घरवालों को भोजन कराने से पाप होता है? अतिथि भगवान का रूप है, तो घर के सभी लोग भी तो भगवान का रूप हैं, क्योंकि भगवान का निवास तो सभी में है. अन्न आपका, बर्तन आपके, सब चीज़ें आपकी हैं, मैंने ज़रा-सी मेहनत करके सब में भगवदभाव रख कर रसोई बनाकर खिलाने की थोड़ी-सी सेवा कर ली, तो मुझे पुण्य मिलेगा कि नहीं? सब प्रेम से भोजन करके तृप्त और प्रसन्न होंगे, तो कितनी ख़ुशी होगी. इसलिए मांजी आप रसोई मुझे बनाने दें. कुछ मेहनत करूंगी, तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा." सास ने सोचा कि बहू बात तो ठीक ही कहती है. हम इसे सबसे छोटी समझते हैं, पर इसकी बुद्धि सबसे अच्छी है और बहुत संस्कारी भी है.
अगले दिन सास सुबह जल्दी स्नान करके रसोई बनाने बैठ गई. बहुओं ने देखा, तो बोलीं, 'मांजी, आप क्यों कष्ट करती हैं?" सास बोली, "तुम्हारी उम्र से मेरी उम्र ज़्यादा है. मैं जल्दी मर जाऊंगी. मैं अभी पुण्य नहीं करूंगी, तो फिर कब करूंगीं?" बहुएं बोलीं, "मांजी, इसमें पुण्य की क्या बात है? यह तो घर का काम है."
सास बोली, "घर का काम करने से पाप होता है क्या? जब भूखे व्यक्तियों को, साधुओं को भोजन कराने से पुण्य मिलता है, तो क्या घरवालों को भोजन कराने से पाप मिलेगा? सभी में ईश्वर का वास है." सास की बातें सुनकर सभी बहुओं को लगा कि इस बारे में तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं. यह युक्ति बहुत बढ़िया है. अब जो बहू पहले जाग जाती, वही रसोई बनाने लगती. पहले जो भाव था कि तू रसोई बना… बारी बंधी थी.. अब मैं बनाऊं, मैं बनाऊं… यह भाव पैदा हुआ, तो आठ बारी बध गई. दो और बढ़ गए सास और छोटी बहू. काम करने में ʹतू कर, तू कर…ʹ इससे काम बढ़ जाता है और आदमी कम हो जाते हैं, पर ʹमैं करूं, मैं करूं…ʹ इससे काम हल्का हो जाता है और आदमी बढ़ जाते हैं. छोटी बहू उत्साही थी. सोचा कि ʹअब तो रोटी बनाने में चौथे दिन बारी आती है, फिर क्या किया जाए?ʹ घर में गेहूं पीसने की चक्की थी. उसने उससे गेहूं पीसना शुरु कर दिया. मशीन की चक्की का आटा गर्म-गर्म बोरी में भर देने से जल जाता है. उसकी रोटी स्वादिष्ट नहीं होती. जबकि हाथ से पीसा गया आटा ठंडा और अधिक पौष्टिक होता है तथा उसकी रोटी भी स्वादिष्ट होती है. छोटी बहू ने गेहूं पीसकर उसकी रोटी बनाई, तो सब कहने लगे कि आज तो रोटी का ज़ायका बड़ा विलक्षण है. सास बोली, "बहू, तू क्यों गेहूं पीसती है? अपने पास पैसों की कमी है क्या." "मांजी, हाथ से गेहूं पीसने से व्यायाम हो जाता है और बीमारी भी नहीं होती. दूसरे रसोई बनाने से भी ज़्यादा पुण्य गेहूं पीसने से होता है." सास और जेठानियों ने जब सुना, तो उन्हे लगा कि बहू ठीक ही कहती है. उन्होंने अपने-अपने पतियों से कहा, "घर में चक्की ले आओ, हम सब गेहूं पीसेंगी." रोज़ाना सभी जेठानियां चक्की में दो से ढाई सेर गेहूं पीसने लगीं. इसके बाद छोटी बहू ने देखा कि घर में जूठे बर्तन मांजने के लिए नौकरानी आती है. अपने जूठे बर्तन ख़ुद साफ़ करने चाहिए, क्योंकि सब में ईश्वर का वास है, तो कोई दूसरा हमारा जूठा क्यों साफ़ करे! अगले दिन उसने सब बर्तन मांज दिए. सास बोली, "बहू, ज़रा सोचो, बर्तन मांजने से तुम्हारे गहने घिस जाएंगें, कपड़े ख़राब हो जाएंगें." "मांजी, काम जितना छोटा, उतना ही उसका माहात्म्य ज़्यादा. पांडवों के यज्ञ में भगवान श्रीकृष्ण ने जूठी पत्तलें उठाने का काम किया था." अगले दिन सास बर्तन मांजने बैठ गई. उन्हें देख कर सभी बहुओं ने बर्तन मांजने शुरु कर दिए. घर में झाड़ू लगाने के लिए नौकर आता था. एक दिन छोटी बहू ने सुबह जल्दी उठकर झाड़ू लगा दी. सास ने पूछा, "बहू झाड़ू तुमने लगाई है?" "मांजी, आप मत पूछिए. आप से कुछ कहती हूं, तो मेरे हाथ से काम चला जाता है." "झाड़ू लगाने का काम तो नौकर का है, तुम क्यों लगाती हो?" "मांजी, ʹरामायणʹ में आता है कि वन में बड़े-बड़े ऋषि-मुनि रहते थे. भगवान उनकी कुटिया में न जा कर पहले शबरी की कुटिया में गए थे, क्योंकि शबरी रोज़ चुपके से झाड़ू लगाती थी, पम्पा सरोवर का रास्ता साफ़ करती थी कि कहीं आते-जाते ऋषि-मुनियों के पैरों में कंकड़ न चुभ जाएं." सास ने देखा कि छोटी बहू, तो सब को लूट लेगी, क्योंकि यह सबका पुण्य अकेले ही ले लेती है. अब सास और सभी बहुओं ने मिलकर झाड़ू लगानी शुरू कर दी.
जिस घर में आपस में प्रेम होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है और जहां कलह होती है, वहां निर्धनता आती है. सेठ का तो धन दिनोंदिन बढ़ने लगा. उसने घर की सब स्त्रियों के लिए गहने और कपड़े बनवा दिए. छोटी बहू ससुर से मिले गहने लेकर बड़ी जेठानी के पास जा कर बोली, "आपके बच्चे हैं, उनका विवाह करोगी, तो गहने बनवाने पड़ेंगे. मुझे तो अभी कोई बच्चा है नहीं. इसलिए इन गहनों को आप रख लीजिए." गहने जेठानी को दे कर छोटी बहू ने कुछ पैसे और कपड़े नौकरों में बांट दिए. सास ने देखा तो बोली, "बहू, यह तुम क्या करती हो? तेरे ससुर ने सबको गहने बनवा कर दिए हैं और तुमने उन्हें जेठानी को दे दिए. पैसे और कपड़े नौकरों में बांट दिए." "मांजी, मैं अकेले इतना संग्रह करके क्या करूंगी? अपनी चीज़ किसी ज़रूरतमंद के काम आ जाए, तो आत्मिक संतोष मिलता है और दान करने का तो अमिट पुण्य होता ही है."
सास को बहू की बात दिल को छू गई. वह सेठ के पास जाकर बोली, "मैं नौकरों में धोती-साड़ी बांटूगी और आसपास में जो ग़रीब परिवार रहते हैं, उनके बच्चों का फीस मैं स्वयं भरूंगी. अपने पास कितना धन है, अगर यह किसी के काम आ जाए, तो अच्छा है. न जाने कब मौत आ जाए. उसके बाद यह सब यहीं पड़ा रह जाएगा. जितना अपने हाथ से पुण्य कर्म हो जाए अच्छा है." सेठ बहुत प्रसन्न हुआ. पहले वह नौकरों को कुछ देते थे, तो सेठानी लड़ पड़ती थी. अब कह रही है कि ʹमैं ख़ुद दूंगी.' सास दूसरों को वस्तुएं देने लगी, तो यह देखकर बहुएं भी देने लगीं. नौकर भी ख़ुश हो कर मन लगा कर काम करने लगे और आस-पड़ोस में भी ख़ुशहाली छा गई. श्रेष्ठ मनुष्य जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य भी उसी के अनुसार आचरण करते हैं. छोटी बहू ने जो आचरण किया, उससे उसके घर का तो सुधार हुआ ही, साथ में पड़ोस पर भी अच्छा असर पड़ा. उनके घर भी सुधर गए. देने के भाव से आपस में प्रेम-भाईचारा बढ़ गया. इस तरह बहू को संस्कार से मिली सूझबूझ ने उसके घर के साथ-साथ अनेक घरों को ख़ुशहाल कर दिया...!!
कभी पिता आपका एक्सीडेंट होने पर भी नार्मल रह सकते हैं…. और कभी आपको जरा सा बुखार आने पर दुनिया एक कर देते हैं
बहुत से पिता कभी कभी बच्चों को टॉफी के लिए भी मना कर देते है, तो कभी कभी वो ही पिता अपनी 6 महीने की कमाई बचा बचा कर बच्चों के लिए बहुत महंगा खिलौना ले आते हैं क्योंकि उन्होंने अपने बच्चे की आंखों में उसे पाने की चाहत देखी है…
पिता कभी छोटी सी बात पर बेटे को लाल पीला कर देते हैं और जब जरूरत पड़ती हैं तब उसी बेटे के लिए पूरी दुनिया से लड़ जाते हैं….
पिता अपने बच्चों को घर से ज्यादा दूर जाने पर पाबंदी लगा देते है.. तो कभी उन्हीं बच्चो को अपनी भावना को आंखों में छुपाए बॉर्डर पर भेज देते है।
पिता कभी आपको टॉप करने पर भी शाबाशी नहीं देंगे और ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे कोई बड़ी बात नहीं है… कभी लाखो की फीस देने के बाद भी आपके फेल होने पर फिर से कोशिश करना कह के बात खत्म कर देते हैं।
पिता जेब से सुपारी का पाउच निकलने पर आपको चप्पल टूटने तक मार सकते हैं… तो कभी नशे में धुत्त होकर आने पर भी आंखो में आंसू लेकर चुपचाप कमरे में छोड़ आते हैं।
पिता आपको उनके दोस्तों की नौकरी,और उनकी तरक्की से रोज ताने मार सकते हैं तो कभी 5000 रुपए के लिए आपको दिन भर पसीने में तर बतर दौड़ते देखकर…. "ये नौकरी छोड़ दो हम पैसे बचाएं है उसे खुद का बिजनेस शुरू करो" ये कह देते हैं इसी लिए पिता शब्द समझने के लिए आपको उन्हें दिल से समझना पड़ेगा...
**पति की आवश्यकता क्यों ?* :: 😊😊 एक महिला एक मनोचिकित्सक के पास गई और उससे बोली कि *"मैं शादी नहीं करना चाहती.. मैं शिक्षित, स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हूं.. मुझे पति की जरूरत नहीं है.. फिर भी मेरे माता-पिता मुझसे शादी करने के लिए कह रहे हैं... आप सुझाव दीजिए कि मैं क्या करूं?"*
मनोचिकित्सक ने उत्तर दिया:- *"आप निस्संदेह अपने जीवन में बहुत कुछ हासिल करोगी.. लेकिन किसी दिन अनिवार्य रूप से जिस तरह से आप चाहती हैं वैसे नहीं हो पाया या कुछ कुछ गलत हो जाएगा अथवा कभी-कभी आप असफल हो जाएंगी या फ़िर कभी-कभी आपकी योजनाएं फेल हो जायेंगी या आपकी इच्छाएं पूरी नहीं होंगी.. उस समय आप किसे दोष देंगी ?.. क्या आप खुद को दोषी मानेंगी ?”*
महिला:- *"नहीं.. हरगिज़ नहीं...!!!"*
मनोचिकित्सक:- *"इसीलिए आपको एक पति की आवश्यकता है. ताकि जब भी आपका मूड खराब हो... तब आप सारा दोष अपने पति को देकर अपना मन हल्का कर सकें......।"*
पापा" आप तो "बेस्ट" "मॉम" हो..... अंजलि जैन: short story in Hindi . . . . . " क्या बात है बेटा आज उठी नही हो अब तक स्कूल नही जाना क्या ?" रवि अपनी बेटी प्रीति के कमरे में आकर उसे उठाते हुए बोला।
" पापा वो ..वो मेरे पेट में दर्द है !" प्रीति नजरें चुराते हुए बोली।
" रात को पापा ने मना किया था ना चाइनीज खाने को पर आपने सुना नही खैर मैं कोई दवाई देता हूं अभी !" रवि प्यार से बोला।
" नही पापा मुझे कोई दवाई नही चाहिए आप बस यहां से जाओ मैं थोड़ा साऊंगी तो ठीक हो जाऊंगी!" प्रीति तेज आवाज में ये बोल मुंह फेर कर लेट गई।
रवि बेटी के व्यवहार से हैरान था बारह साल की प्रीति जिसकी मां उसे छह साल की अवस्था में छोड़ ईश्वर के पास चली गई थी घर में प्रीति, उसकी दादी और रवि थे बस। रवि ने बेटी को मां बाप दोनो का प्यार देने की भरपूर कोशिश की बाकी थोड़ी कसर दादी के जरिए पूरी हो जाती थी। पत्नी की मृत्यु के बाद रवि पर दूसरी शादी का भी दबाव पड़ा पर रवि ने बेटी की खातिर दूसरी शादी करना उचित नहीं समझा। प्रीति के ग्यारह वर्ष का होते ही प्रीति की दादी भी दुनिया को अलविदा कह गई। अब रवि ही प्रीति के लिए सब कुछ था। प्रीति भी वक्त से पहले समझदार हो गई थी वो भी अपने पापा का पूरा ख्याल रखती थी बाप बेटी में दोस्ती वाला रिश्ता था पर आज रवि को लगा प्रीति उससे कुछ छिपा रही है।
रवि बाहर आकर पत्नी पूजा की फोटो से बात करने लगा।
" पूजा नन्ही सी परी को मेरी गोद में डाल तुम तो तारों में छिप गई छह साल की थी वो जब तुम गई थी आज बारह साल की हो गई इन छह सालों में मैने कोई कमी महसूस नही होने दी पर आज लगता है मैं कही न कही चूक गया इसलिए आज मेरी बेटी मुझे अपना दर्द नही बताना चाहती....!" रवि बोला... क्या प्रीति बारह साल की हो गई ओह माय गॉड मैं क्यों नही समझा ये !” अचानक उसे कुछ याद आया और वो खुद से बोला।
और उसने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और कुछ देखने लगा .... फिर भाग कर बाजार गया और एक पैकेट लेकर लौटा।
" प्रीति बेटा मुझे आपसे कुछ बात करनी है अंदर आ जाऊं !" प्रीति के कमरे के बाहर से रवि बोला।
" हां..... हां.. पापा आ जाओ !” प्रीति हड़बड़ाहट में बोली।
दरवाजा खोलते हुए रवि ने देख लिया प्रीति कोई कपड़ा छिपा रही थी ” उफ्फ " मेरी बेटी कितना दर्द में है" रवि की आंख में आंसू आ गए।
ये समय एक पिता के लिए सबसे बड़ी परीक्षा का समय होता है। बेटी की मां बनने के बड़े बड़े दावे करने वाले पिता को यही वो समय होता है जब सच में मां बनना पड़ता है।
" बोलिए पापा !” प्रीति कुछ संभल कर बोली उसका उतरा चेहरा उसका दर्द बयां रहा था । रवि से रुका नही गया उसने आगे बढ़कर बेटी को गले लगा लिया प्रीति हैरान थी पर इस वक्त पापा का यूं गले लगाना मानो जादू की झप्पी का काम कर रहा था।
" बेटा आप अक्सर बोलते हो ना कि मैने आपको कभी मम्मा की कमी नही महसूस होने दी ?” रवि बेटी को खुद से अलग करते हुए बोला।
" हां पापा ये तो सच है आप मम्मा की तरह ही मुझे प्यार करते हो !” प्रीति अभी भी हैरान थी की आज उसके पापा को हुआ क्या है।
" तो आपने पापा को क्यों नही बताया .....खैर मैं तुम्हारी हिचक भी समझ सकता हूं हमारी सोसाइटी में ऐसी बात बेटी पिता को नही बताती पर बेटा मैं आपके पापा होने के साथ साथ मम्मा भी हूं ना !” रवि बोला।
" ऑफकोर्स पापा !” प्रीति बोली।
" ये बेटा तुम्हारे लिए इससे तुम्हारी परेशानी हल होगी !” साथ लाया पैकेट बेटी को देते हुए रवि बोला।
" पापा इसमें क्या ....!" पैकेट खोल कर देखते हुए प्रीति बोलते बोलते रुक गई वो कभी पैकेट में रखे सेनेटरी नेपकिन को देख रही थी कभी पापा को।
" बेटा इसे कैसे इस्तेमाल करते हैं,वो इस वीडियो में है तुम इसे देखो इतने पापा अभी आते हैं!" अपना मोबाइल बेटी को देकर । रवि बाहर आ गया। बाहर आ उसने सिकाई का बैग गर्म किया सूप बनाया और बेटी के कमरे में वापिस आ गया तब तक प्रीति वीडियो देख चुकी थी।
" लो बेटा इससे पेट की सिकाई करो आराम मिलेगा और लो ये गर्म गर्म सूप बेटा तुम्हारी मम्मी होती तो शायद तुम्हे अच्छे से समझाती पर वो नही है कमला आंटी भी गांव गई है तो मुझे ही बताना होगा । ये सब 5 से 6 दिन रहेगा तुम चिंता मत करना ये नॉर्मल है सबके साथ होता है बस तुम जो मैने दिया उसका ठीक से इस्तेमाल करना खाने पीने पर ध्यान देना और सबसे बड़ी बात स्ट्रेस मत लेना !” रवि अपने हाथ से सूप पिलाते हुए बोला। जी पापा मुझे थोड़ा बहुत मेरी दोस्त ने बताया था !” प्रीति सूप पीते हुए बोली।
" गुड ... बेटा तुम्हे कोई भी परेशानी हो मुझे बताना मैने अपनी तरफ से कोशिश की है बाकी ये सच है ऐसे समय में शायद मां की जरूरत सबसे ज्यादा होती है !” सूप का अंतिम चम्मच पिलाते हुए रवि उदास होते हुए बोला।
" नही पापा आपने मम्मा से भी अच्छा बताया आप मेरे बेस्ट पापा तो थे ही अब बेस्ट मम्मा भी हो !" ये बोल प्रीति रवि के गले लग गई। रवि ने बेटी को सीने से लगा लिया, प्रीति पापा के सीने से लगी थोड़ी ही देर में चैन की नींद सो गई। अब उसके चेहरे पर दर्द नही सुकून था
मतलब रवि उसकी मां बनने में सफल रहा था। रवि ने बेटी का माथा चूम लिया।
AnjaliJain_345
बेटा-बहु अपने बैडरूम में बातें कर रहे थे, द्वार खुली होने के कारण उनकी आवाजें साफ साफ बाहर कमरे में बैठी माँ को भी सुनाई दे रहीं थीं.....
बेटा---" अपने job के कारण हम माँ का ध्यान नहीं रख पाएँगे, उनकी देखभाल कौन करेगा ?
क्यूँ ना, उन्हें वृद्धाश्रम में दाखिल करा दें, वहाँ उनकी देखभाल भी होगी और हमलोग भी कभी कभी उनसे मिलते रहेंगे। "
बेटे की बात पर बहु ने जो कहा, उसे सुनकर माँ की आँखों में आँसू आ गए।
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बहु---" पैसे कमाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है जी, लेकिन माँ का आशीष जितना भी मिले, वो कम है। उनके लिए पैसों से ज्यादा हमारा संग-साथ जरूरी है।
मैं अगर job ना करूँ तो कोई बहुत अधिक नुकसान नहीं होगा। मैं माँ के साथ रहूँगी।
घर पर ही tution पढ़ाऊँगी, इससे माँ की देखभाल भी कर
पाऊँगी। याद करो, तुम्हारे बचपन में ही तुम्हारे पिता
नहीं रहे और घरेलू काम धाम करके तुम्हारी माँ ने तुम्हारा पालन पोषण किया, तुम्हें पढ़ाया लिखाया, काबिल बनाया।
तब उन्होंने कभी भी पड़ोसन के पास तक नहीं छोड़ा, कारण तुम्हारी देखभाल कोई दूसरा अच्छी तरह नहीं करेगा,
और तुम आज ऐंसा बोल रहे हो।
तुम कुछ भी कहो, लेकिन माँ हमारे ही पास रहेंगी,
हमेशा, अंत तक। "
बहु की उपरोक्त बातें सुन, माँ रोने लगती है और रोती हुई ही, पूजा घर में पहुँचती है।
और ईश्वर के सामने खड़े होकर माँ उनका आभार मानती है
और उनसे कहती है---" भगवान, तुमने मुझे
बेटी नहीं दी, इस वजह से कितनी ही बार मैने तुम्हे भला बुरा कहती रहती थी, लेकिन ऐंसी भाग्यलक्ष्मी देने के लिए आपका आभार मैं किस तरह मानूँ...?
ऐंसी बहु पाकर, मेरा तो जीवन सफल हो गया, प्रभु। "
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2 weeks ago | [YT] | 2
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AnjaliJain_345
संस्कारी बहू
एक सेठ के सात बेटे थे. सभी का विवाह हो चुका था. छोटी बहू संस्कारी माता-पिता की बेटी थी. बचपन से ही अभिभावकों से अच्छे संस्कार मिलने के कारण उसके रोम-रोम में संस्कार बस गया था. ससुराल में घर का सारा काम तो नौकर-चाकर करते थे, जेठानियां केवल खाना बनाती थीं. उसमें भी खटपट होती रहती थी. छोटी बहू को संस्कार मिले थे कि अपना काम स्वयं करना चाहिए और प्रेम से मिलजुल कर रहना चाहिए. अपना काम स्वयं करने से स्वास्थ्य बढ़िया रहता है.
उसने युक्ति खोज निकाली और सुबह जल्दी स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनकर पहले ही रसोई में जा बैठी. जेठानियों ने टोका, लेकिन उसने प्रेम से रसोई बनाई और सबको प्रेम से भोजन कराया. सभी ने बड़े प्रेम से भोजन किया और प्रसन्न हुए.
इसके बाद सास छोटी बहू के पास जाकर बोली, "बहू, तू सबसे छोटी है, तू रसोई क्यों बनाती है? तेरी छह जेठानियां हैं. वे खाना बनाएंगी."
बहू बोली, "मांजी, कोई भूखा अतिथि घर आता है, तो उसको आप भोजन क्यों कराती हैं?"
"बहू शास्त्रों में लिखा है कि अतिथि भगवान का रूप होता है. भोजन पाकर वह तृप्त होता है, तो भोजन करानेवाले को बड़ा पुण्य मिलता है."
"मांजी, अतिथि को भोजन कराने से पुण्य होता है, तो क्या घरवालों को भोजन कराने से पाप होता है? अतिथि भगवान का रूप है, तो घर के सभी लोग भी तो भगवान का रूप हैं, क्योंकि भगवान का निवास तो सभी में है.
अन्न आपका, बर्तन आपके, सब चीज़ें आपकी हैं, मैंने ज़रा-सी मेहनत करके सब में भगवदभाव रख कर रसोई बनाकर खिलाने की थोड़ी-सी सेवा कर ली, तो मुझे पुण्य मिलेगा कि नहीं? सब प्रेम से भोजन करके तृप्त और प्रसन्न होंगे, तो कितनी ख़ुशी होगी. इसलिए मांजी आप रसोई मुझे बनाने दें. कुछ मेहनत करूंगी, तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा."
सास ने सोचा कि बहू बात तो ठीक ही कहती है. हम इसे सबसे छोटी समझते हैं, पर इसकी बुद्धि सबसे अच्छी है और बहुत संस्कारी भी है.
अगले दिन सास सुबह जल्दी स्नान करके रसोई बनाने बैठ गई. बहुओं ने देखा, तो बोलीं, 'मांजी, आप क्यों कष्ट करती हैं?"
सास बोली, "तुम्हारी उम्र से मेरी उम्र ज़्यादा है. मैं जल्दी मर जाऊंगी. मैं अभी पुण्य नहीं करूंगी, तो फिर कब करूंगीं?"
बहुएं बोलीं, "मांजी, इसमें पुण्य की क्या बात है? यह तो घर का काम है."
सास बोली, "घर का काम करने से पाप होता है क्या? जब भूखे व्यक्तियों को, साधुओं को भोजन कराने से पुण्य मिलता है, तो क्या घरवालों को भोजन कराने से पाप मिलेगा? सभी में ईश्वर का वास है."
सास की बातें सुनकर सभी बहुओं को लगा कि इस बारे में तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं. यह युक्ति बहुत बढ़िया है. अब जो बहू पहले जाग जाती, वही रसोई बनाने लगती.
पहले जो भाव था कि तू रसोई बना… बारी बंधी थी.. अब मैं बनाऊं, मैं बनाऊं… यह भाव पैदा हुआ, तो आठ बारी बध गई. दो और बढ़ गए सास और छोटी बहू.
काम करने में ʹतू कर, तू कर…ʹ इससे काम बढ़ जाता है और आदमी कम हो जाते हैं, पर ʹमैं करूं, मैं करूं…ʹ इससे काम हल्का हो जाता है और आदमी बढ़ जाते हैं.
छोटी बहू उत्साही थी. सोचा कि ʹअब तो रोटी बनाने में चौथे दिन बारी आती है, फिर क्या किया जाए?ʹ घर में गेहूं पीसने की चक्की थी. उसने उससे गेहूं पीसना शुरु कर दिया. मशीन की चक्की का आटा गर्म-गर्म बोरी में भर देने से जल जाता है. उसकी रोटी स्वादिष्ट नहीं होती. जबकि हाथ से पीसा गया आटा ठंडा और अधिक पौष्टिक होता है तथा उसकी रोटी भी स्वादिष्ट होती है. छोटी बहू ने गेहूं पीसकर उसकी रोटी बनाई, तो सब कहने लगे कि आज तो रोटी का ज़ायका बड़ा विलक्षण है.
सास बोली, "बहू, तू क्यों गेहूं पीसती है? अपने पास पैसों की कमी है क्या."
"मांजी, हाथ से गेहूं पीसने से व्यायाम हो जाता है और बीमारी भी नहीं होती. दूसरे रसोई बनाने से भी ज़्यादा पुण्य गेहूं पीसने से होता है."
सास और जेठानियों ने जब सुना, तो उन्हे लगा कि बहू ठीक ही कहती है. उन्होंने अपने-अपने पतियों से कहा, "घर में चक्की ले आओ, हम सब गेहूं पीसेंगी."
रोज़ाना सभी जेठानियां चक्की में दो से ढाई सेर गेहूं पीसने लगीं.
इसके बाद छोटी बहू ने देखा कि घर में जूठे बर्तन मांजने के लिए नौकरानी आती है. अपने जूठे बर्तन ख़ुद साफ़ करने चाहिए, क्योंकि सब में ईश्वर का वास है, तो कोई दूसरा हमारा जूठा क्यों साफ़ करे!
अगले दिन उसने सब बर्तन मांज दिए. सास बोली, "बहू, ज़रा सोचो, बर्तन मांजने से तुम्हारे गहने घिस जाएंगें, कपड़े ख़राब हो जाएंगें."
"मांजी, काम जितना छोटा, उतना ही उसका माहात्म्य ज़्यादा. पांडवों के यज्ञ में भगवान श्रीकृष्ण ने जूठी पत्तलें उठाने का काम किया था."
अगले दिन सास बर्तन मांजने बैठ गई. उन्हें देख कर सभी बहुओं ने बर्तन मांजने शुरु कर दिए.
घर में झाड़ू लगाने के लिए नौकर आता था. एक दिन छोटी बहू ने सुबह जल्दी उठकर झाड़ू लगा दी. सास ने पूछा, "बहू झाड़ू तुमने लगाई है?"
"मांजी, आप मत पूछिए. आप से कुछ कहती हूं, तो मेरे हाथ से काम चला जाता है."
"झाड़ू लगाने का काम तो नौकर का है, तुम क्यों लगाती हो?"
"मांजी, ʹरामायणʹ में आता है कि वन में बड़े-बड़े ऋषि-मुनि रहते थे. भगवान उनकी कुटिया में न जा कर पहले शबरी की कुटिया में गए थे, क्योंकि शबरी रोज़ चुपके से झाड़ू लगाती थी, पम्पा सरोवर का रास्ता साफ़ करती थी कि कहीं आते-जाते ऋषि-मुनियों के पैरों में कंकड़ न चुभ जाएं."
सास ने देखा कि छोटी बहू, तो सब को लूट लेगी, क्योंकि यह सबका पुण्य अकेले ही ले लेती है. अब सास और सभी बहुओं ने मिलकर झाड़ू लगानी शुरू कर दी.
जिस घर में आपस में प्रेम होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है और जहां कलह होती है, वहां निर्धनता आती है.
सेठ का तो धन दिनोंदिन बढ़ने लगा. उसने घर की सब स्त्रियों के लिए गहने और कपड़े बनवा दिए. छोटी बहू ससुर से मिले गहने लेकर बड़ी जेठानी के पास जा कर बोली, "आपके बच्चे हैं, उनका विवाह करोगी, तो गहने बनवाने पड़ेंगे. मुझे तो अभी कोई बच्चा है नहीं. इसलिए इन गहनों को आप रख लीजिए."
गहने जेठानी को दे कर छोटी बहू ने कुछ पैसे और कपड़े नौकरों में बांट दिए. सास ने देखा तो बोली, "बहू, यह तुम क्या करती हो? तेरे ससुर ने सबको गहने बनवा कर दिए हैं और तुमने उन्हें जेठानी को दे दिए. पैसे और कपड़े नौकरों में बांट दिए."
"मांजी, मैं अकेले इतना संग्रह करके क्या करूंगी? अपनी चीज़ किसी ज़रूरतमंद के काम आ जाए, तो आत्मिक संतोष मिलता है और दान करने का तो अमिट पुण्य होता ही है."
सास को बहू की बात दिल को छू गई. वह सेठ के पास जाकर बोली, "मैं नौकरों में धोती-साड़ी बांटूगी और आसपास में जो ग़रीब परिवार रहते हैं, उनके बच्चों का फीस मैं स्वयं भरूंगी. अपने पास कितना धन है, अगर यह किसी के काम आ जाए, तो अच्छा है. न जाने कब मौत आ जाए. उसके बाद यह सब यहीं पड़ा रह जाएगा. जितना अपने हाथ से पुण्य कर्म हो जाए अच्छा है."
सेठ बहुत प्रसन्न हुआ. पहले वह नौकरों को कुछ देते थे, तो सेठानी लड़ पड़ती थी. अब कह रही है कि ʹमैं ख़ुद दूंगी.' सास दूसरों को वस्तुएं देने लगी, तो यह देखकर बहुएं भी देने लगीं. नौकर भी ख़ुश हो कर मन लगा कर काम करने लगे और आस-पड़ोस में भी ख़ुशहाली छा गई.
श्रेष्ठ मनुष्य जो आचरण करता है, दूसरे मनुष्य भी उसी के अनुसार आचरण करते हैं. छोटी बहू ने जो आचरण किया, उससे उसके घर का तो सुधार हुआ ही, साथ में पड़ोस पर भी अच्छा असर पड़ा. उनके घर भी सुधर गए. देने के भाव से आपस में प्रेम-भाईचारा बढ़ गया. इस तरह बहू को संस्कार से मिली सूझबूझ ने उसके घर के साथ-साथ अनेक घरों को ख़ुशहाल कर दिया...!!
@anjalijain__345 #anjalijain_345
9 months ago | [YT] | 4
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AnjaliJain_345
कभी पिता आपका एक्सीडेंट होने पर भी नार्मल रह सकते हैं….
और कभी आपको जरा सा बुखार आने पर दुनिया एक कर देते हैं
बहुत से पिता कभी कभी बच्चों को टॉफी के लिए भी मना कर देते है,
तो कभी कभी वो ही पिता अपनी 6 महीने की कमाई बचा बचा कर बच्चों के लिए बहुत महंगा खिलौना ले आते हैं
क्योंकि उन्होंने अपने बच्चे की आंखों में उसे पाने की चाहत देखी है…
पिता कभी छोटी सी बात पर बेटे को लाल पीला कर देते हैं और जब जरूरत पड़ती हैं तब उसी बेटे के लिए पूरी दुनिया से लड़ जाते हैं….
पिता अपने बच्चों को घर से ज्यादा दूर जाने पर पाबंदी लगा देते है..
तो कभी उन्हीं बच्चो को अपनी भावना को आंखों में छुपाए बॉर्डर पर भेज देते है।
पिता कभी आपको टॉप करने पर भी शाबाशी नहीं देंगे और ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे कोई बड़ी बात नहीं है… कभी लाखो की फीस देने के बाद भी आपके फेल होने पर फिर से कोशिश करना कह के बात खत्म कर देते हैं।
पिता जेब से सुपारी का पाउच निकलने पर आपको चप्पल टूटने तक मार सकते हैं…
तो कभी नशे में धुत्त होकर आने पर भी आंखो में आंसू लेकर चुपचाप कमरे में छोड़ आते हैं।
पिता आपको उनके दोस्तों की नौकरी,और उनकी तरक्की से रोज ताने मार सकते हैं
तो कभी 5000 रुपए के लिए आपको दिन भर पसीने में तर बतर दौड़ते देखकर….
"ये नौकरी छोड़ दो हम पैसे बचाएं है उसे खुद का बिजनेस शुरू करो" ये कह देते हैं
इसी लिए पिता शब्द समझने के लिए आपको उन्हें दिल से समझना पड़ेगा...
10 months ago | [YT] | 2
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AnjaliJain_345
Sahi kaha na..?
10 months ago | [YT] | 2
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AnjaliJain_345
स्त्री तेरी कहानी.....
10 months ago | [YT] | 2
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AnjaliJain_345
कौन-कौन मेरी बात से agree करता है ,कमेंट में जरूर बताना🙏🏻
10 months ago | [YT] | 2
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AnjaliJain_345
इसमें जो भी लिखा है अब थोङा उल्टा हो गया है।
क्या खूब लिखा है.. एक पत्नी ने अपने पति के लिए प्यारे मित्रो एक बार अवश्य पढ़े...................
*प्रिय पतिदेव,*
नहीं कहती हूँ आपसे कि चाँद -तारे तोडकर लाओ,
पर जब आते हो, एक मुस्कान साथ लाया करो..!!
नहीं कहती, के मुझे सबसे ज्यादा चाहो,
पर एक नज़र प्यार से तो उठाया करो..!!
नही कहती, के बाहर खिलाने ले जाओ,
पर एक पहर साथ बैठ के तो खाया करो..!!
नही कहती, के हाथ बंटाओ मेरा,
पर कितना करती हूँ, देख तो जाया करो..!!
नही कहती, के हाथ पकड के चलो मेरा,
पर कभी दो कदम साथ तो आया करो..!!
यूँ ही गुज़र जाएगा जिंदगी का सफ़र भागते भागते,
एक पल थक के साथ तो बैठ जाया करो..!!
नही कहती, के कई नामों से पुकारो,
एक बार फुर्सत से "सुनो" ही कह जाया करो..!!
नहीं कहती हूँ आपसे कि चाँद -तारे तोडकर लाओ,
पर जब आते हो, एक मुस्कान साथ लाया करो..!
✍......... 🏀👉आखिर पति के लिए पत्नी क्यों जरूरी है?👈🏀
🙏मानो न मानो -🙏
👌(१) जब तुम दुःखी हो,
तो वह तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेगी।🎾
👌(२) हर वक्त, हर दिन,
तुम्हें तुम्हारे अन्दर की बुरी आदतें छोड़ने को कहेगी।🌕
👌(३) हर छोटी-छोटी बात पर तुमसे झगड़ा करेगी,
परंतु ज्यादा देर गुस्सा नहीं रह पाएगी।🎾
👌(४)तुम्हें आर्थिक मजबूती देगी।🌕
👌(५) कुछ भी अच्छा न हो, फिर भी,
तुम्हें यही कहेगी; चिन्ता मत करो, सब ठीक हो जाएगा।🎾
👌(६) तुम्हें समय का पाबन्द बनाएगी।🌕
👌(७) यह जानने के लिए कि तुम क्या कर रहे हो, दिन में 15 बार फोन करके हाल पूछेगी। कभी कभी तुम्हें खीझ भी आएगी, पर सच यह है कि तुम कुछ कर नहीं पाओगे।🎾
👌(८) चूँकि, पत्नी ईश्वर का दिया एक विशेष उपहार है,
इसलिए उसकी उपयोगिता जानो और उसकी देखभाल करो।🌕
👌(९) यह सन्देश हर विवाहित पुरुष के मोबाइल पर होना चाहिए,
ताकि उन्हें अपनी पत्नी के महत्व का अंदाजा हो।🎾
👌(१०) अंत में हम दोनों ही होंगे।🌕
👌(११) भले ही झगड़ें, गुस्सा करें,
एक दूसरे पर टूट पड़ें, एक दूसरे पर दादागीरी करने के
लिए; अंत में हम दोनों ही होंगे।🎾
👌(१२) जो कहना है, वह कह लें, जो करना है,
वह कर लें; एक दूसरे के चश्मे और लकड़ी ढूंढने में,
अंत में हम दोनों ही होंगे।🌕
👌(13) मैं रूठूँ तो तुम मना लेना,
तुम रूठो तो मैं मना लूंगा,
एक दूसरे को लाड़ लड़ाने के लिए;
अंत में हम दोनों ही होंगे।🎾
👌(१४) आंखें जब धुंधली होंगी,
याददाश्त जब कमजोर होगी,
तब एक दूसरे को, एक दूसरे
में ढूंढने के लिए, अंत में हम दोनों ही होंगे।🌕
👌(१५) घुटने जब दुखने लगेंगे,
कमर भी झुकना बंद करेगी, तब एक दूसरे के पांव के नाखून काटने के लिए, अन्त में हम दोनों ही होंगे।🎾
👌(१६) "अरे मुुझे कुछ नहीं हुआ,
बिल्कुल नॉर्मल हूं" ऐसा कह कर एक दूसरे को बहकाने के लिए, अंत में हम दोनों ही होंगे।🌕
👌(१७) साथ जब छूट जाएगा,
विदाई की घड़ी जब आ जाएगी,
तब एक दूसरे को माफ करने के लिए
अंत में हम दोनों ही होंगे।🎾
10 months ago | [YT] | 1
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AnjaliJain_345
**पति की आवश्यकता क्यों ?* ::
😊😊
एक महिला एक मनोचिकित्सक के पास गई और उससे बोली कि
*"मैं शादी नहीं करना चाहती.. मैं शिक्षित, स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हूं.. मुझे पति की जरूरत नहीं है.. फिर भी मेरे माता-पिता मुझसे शादी करने के लिए कह रहे हैं... आप सुझाव दीजिए कि मैं क्या करूं?"*
मनोचिकित्सक ने उत्तर दिया:-
*"आप निस्संदेह अपने जीवन में बहुत कुछ हासिल करोगी.. लेकिन किसी दिन अनिवार्य रूप से जिस तरह से आप चाहती हैं वैसे नहीं हो पाया या कुछ कुछ गलत हो जाएगा अथवा कभी-कभी आप असफल हो जाएंगी या फ़िर कभी-कभी आपकी योजनाएं फेल हो जायेंगी या आपकी इच्छाएं पूरी नहीं होंगी.. उस समय आप किसे दोष देंगी ?.. क्या आप खुद को दोषी मानेंगी ?”*
महिला:- *"नहीं.. हरगिज़ नहीं...!!!"*
मनोचिकित्सक:- *"इसीलिए आपको एक पति की आवश्यकता है. ताकि जब भी आपका मूड खराब हो... तब आप सारा दोष अपने पति को देकर अपना मन हल्का कर सकें......।"*
🤣🤣🤣😂😂😂*
@anjalijain__345
11 months ago | [YT] | 3
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AnjaliJain_345
पापा" आप तो "बेस्ट" "मॉम" हो..... अंजलि जैन: short story in Hindi
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" क्या बात है बेटा आज उठी नही हो अब तक स्कूल नही जाना क्या ?" रवि अपनी बेटी प्रीति के कमरे में आकर उसे उठाते हुए बोला।
" पापा वो ..वो मेरे पेट में दर्द है !" प्रीति नजरें चुराते हुए बोली।
" रात को पापा ने मना किया था ना चाइनीज खाने को पर आपने सुना नही खैर मैं कोई दवाई देता हूं अभी !" रवि प्यार से बोला।
" नही पापा मुझे कोई दवाई नही चाहिए आप बस यहां से जाओ मैं थोड़ा साऊंगी तो ठीक हो जाऊंगी!" प्रीति तेज आवाज में ये बोल मुंह फेर कर लेट गई।
रवि बेटी के व्यवहार से हैरान था बारह साल की प्रीति जिसकी मां उसे छह साल की अवस्था में छोड़ ईश्वर के पास चली गई थी घर में प्रीति, उसकी दादी और रवि थे बस। रवि ने बेटी को मां बाप दोनो का प्यार देने की भरपूर कोशिश की बाकी थोड़ी कसर दादी के जरिए पूरी हो जाती थी। पत्नी की मृत्यु के बाद रवि पर दूसरी शादी का भी दबाव पड़ा पर रवि ने बेटी की खातिर दूसरी शादी करना उचित नहीं समझा। प्रीति के ग्यारह वर्ष का होते ही प्रीति की दादी भी दुनिया को अलविदा कह गई। अब रवि ही प्रीति के लिए सब कुछ था। प्रीति भी वक्त से पहले समझदार हो गई थी वो भी अपने पापा का पूरा ख्याल रखती थी बाप बेटी में दोस्ती वाला रिश्ता था पर आज रवि को लगा प्रीति उससे कुछ छिपा रही है।
रवि बाहर आकर पत्नी पूजा की फोटो से बात करने लगा।
" पूजा नन्ही सी परी को मेरी गोद में डाल तुम तो तारों में छिप गई छह साल की थी वो जब तुम गई थी आज बारह साल की हो गई इन छह सालों में मैने कोई कमी महसूस नही होने दी पर आज लगता है मैं कही न कही चूक गया इसलिए आज मेरी बेटी मुझे अपना दर्द नही बताना चाहती....!" रवि बोला... क्या प्रीति बारह साल की हो गई ओह माय गॉड मैं क्यों नही समझा ये !” अचानक उसे कुछ याद आया और वो खुद से बोला।
और उसने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और कुछ देखने लगा .... फिर भाग कर बाजार गया और एक पैकेट लेकर लौटा।
" प्रीति बेटा मुझे आपसे कुछ बात करनी है अंदर आ जाऊं !" प्रीति के कमरे के बाहर से रवि बोला।
" हां..... हां.. पापा आ जाओ !” प्रीति हड़बड़ाहट में बोली।
दरवाजा खोलते हुए रवि ने देख लिया प्रीति कोई कपड़ा छिपा रही थी ” उफ्फ " मेरी बेटी कितना दर्द में है" रवि की आंख में आंसू आ गए।
ये समय एक पिता के लिए सबसे बड़ी परीक्षा का समय होता है। बेटी की मां बनने के बड़े बड़े दावे करने वाले पिता को यही वो समय होता है जब सच में मां बनना पड़ता है।
" बोलिए पापा !” प्रीति कुछ संभल कर बोली उसका उतरा चेहरा उसका दर्द बयां रहा था । रवि से रुका नही गया उसने आगे बढ़कर बेटी को गले लगा लिया प्रीति हैरान थी पर इस वक्त पापा का यूं गले लगाना मानो जादू की झप्पी का काम कर रहा था।
" बेटा आप अक्सर बोलते हो ना कि मैने आपको कभी मम्मा की कमी नही महसूस होने दी ?” रवि बेटी को खुद से अलग करते हुए बोला।
" हां पापा ये तो सच है आप मम्मा की तरह ही मुझे प्यार करते हो !” प्रीति अभी भी हैरान थी की आज उसके पापा को हुआ क्या है।
" तो आपने पापा को क्यों नही बताया .....खैर मैं तुम्हारी हिचक भी समझ सकता हूं हमारी सोसाइटी में ऐसी बात बेटी पिता को नही बताती पर बेटा मैं आपके पापा होने के साथ साथ मम्मा भी हूं ना !” रवि बोला।
" ऑफकोर्स पापा !” प्रीति बोली।
" ये बेटा तुम्हारे लिए इससे तुम्हारी परेशानी हल होगी !” साथ लाया पैकेट बेटी को देते हुए रवि बोला।
" पापा इसमें क्या ....!" पैकेट खोल कर देखते हुए प्रीति बोलते बोलते रुक गई वो कभी पैकेट में रखे सेनेटरी नेपकिन को देख रही थी कभी पापा को।
" बेटा इसे कैसे इस्तेमाल करते हैं,वो इस वीडियो में है तुम इसे देखो इतने पापा अभी आते हैं!" अपना मोबाइल बेटी को देकर । रवि बाहर आ गया। बाहर आ उसने सिकाई का बैग गर्म किया सूप बनाया और बेटी के कमरे में वापिस आ गया तब तक प्रीति वीडियो देख चुकी थी।
" लो बेटा इससे पेट की सिकाई करो आराम मिलेगा और लो ये गर्म गर्म सूप बेटा तुम्हारी मम्मी होती तो शायद तुम्हे अच्छे से समझाती पर वो नही है कमला आंटी भी गांव गई है तो मुझे ही बताना होगा । ये सब 5 से 6 दिन रहेगा तुम चिंता मत करना ये नॉर्मल है सबके साथ होता है बस तुम जो मैने दिया उसका ठीक से इस्तेमाल करना खाने पीने पर ध्यान देना और सबसे बड़ी बात स्ट्रेस मत लेना !” रवि अपने हाथ से सूप पिलाते हुए बोला।
जी पापा मुझे थोड़ा बहुत मेरी दोस्त ने बताया था !” प्रीति सूप पीते हुए बोली।
" गुड ... बेटा तुम्हे कोई भी परेशानी हो मुझे बताना मैने अपनी तरफ से कोशिश की है बाकी ये सच है ऐसे समय में शायद मां की जरूरत सबसे ज्यादा होती है !” सूप का अंतिम चम्मच पिलाते हुए रवि उदास होते हुए बोला।
" नही पापा आपने मम्मा से भी अच्छा बताया आप मेरे बेस्ट पापा तो थे ही अब बेस्ट मम्मा भी हो !" ये बोल प्रीति रवि के गले लग गई। रवि ने बेटी को सीने से लगा लिया, प्रीति पापा के सीने से लगी थोड़ी ही देर में चैन की नींद सो गई। अब उसके चेहरे पर दर्द नही सुकून था
मतलब रवि उसकी मां बनने में सफल रहा था। रवि ने बेटी का माथा चूम लिया।
1 year ago | [YT] | 8
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AnjaliJain_345
Happy Independence Day To Everyone !! 🙏🏻🎈
1 year ago | [YT] | 3
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