भगवा का ध्वज लहराता था और लहराता रहेगा जब तक की यह पृथ्वी है।
7 लाख का परिवार हो जाने पर आप-हम सभी सनातन धर्मावलम्बियों को बहुत सारी शुभकामनाएं ।।
यह एक अत्यंत गर्व का क्षण है, जिस प्रकार से सभी सनातनियों ने @Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज के संघर्ष को सराहा है।हमारा लक्ष्य है की हमारे वेदों,उपनिषदों,शास्त्रों,ग्रंथों,महाकाव्यों,विभिन्न दर्शनों,रिति-रिवाज़ों एवं पौराणिक कथाओं का प्रचार एक सरल सी भाषा में इस समाज में तीव्र गति से प्रसारित हो ताकि साधारण जनमानस भी इन वैदिक उपाख्यानों तथा इनके चरित्रों को देख-सुनकर ज्यादा से ज्यादा लाभान्वित हो सके।आज के आधुनिक परिवेश में जिस तरह से हमें, हमारे सनातन पथ से भटकाने का षड्यंत्र किया गया है उसके फलस्वरूप, वर्तमान और भावी पीढ़ियों का नैतिक स्तर निम्न होता जा रहा है। ऐसे में हम सभी का कर्त्तव्य है की कोई भी सनातन पथ से भटक न जाये, इसलिए अपने सभी मित्रों,रिश्तेदारों,परिचितों के साथ ये सभी जानकारियां साझा करते रहें।
ध्यान रहे! भगवा का ध्वज लहराता था और लहराता रहेगा जब तक की यह पृथ्वी है।I
Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज
"हिंदुत्व का आत्ममंथन"
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भारतीय लोककथाओं में एक कहावत प्रचलित है — *“जड़ में मट्ठा डालना।”*
इसका आशय यह है कि जब किसी व्यवस्था की जड़ पर चोट की जाती है, तो ऊपर से वह चाहे जितनी सुदृढ़ प्रतीत हो, भीतर ही भीतर खोखली होकर धीरे-धीरे ढहने लगती है।
इसी दृष्टि से यदि हिंदुत्व की स्थिति को देखें, तो स्पष्ट प्रतीत होता है कि आज उसका विराट वृक्ष ऊपर से हरा-भरा दिखाई देता है, किंतु अतीत में ही उसकी जड़ों में मट्ठा डाल दिया था। जिसका असर धीरे-धीरे हिंदुत्व रूपी वट वृक्ष पर दिखने लगी है।
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हिंदुत्व के जीवन-रस में कभी शौर्य, पराक्रम, वीरता, नेतृत्व, तपस्या, गुरु-परंपरा और दान जैसे दिव्य संस्कार बहते थे। इन्हीं गुणों के कारण भारतभूमि दीर्घकाल तक धर्म, ज्ञान और शक्ति का केंद्र बनी रही।
किन्तु विधर्मी शक्तियों के लिए यह असहनीय था। वे जानती थीं कि जब तक हिंदुओं में यह तेज, यह आत्मबल और यह संगठन शक्ति विद्यमान है, तब तक भारतभूमि पर उनका आधिपत्य स्थापित करना संभव नहीं होगा।
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इसी कारण उन्होंने प्रत्यक्ष आक्रमण से भी अधिक खतरनाक उपाय अपनाया। उन्होंने हिंदुत्व की जड़ में मट्ठा डालना आरम्भ किया।
यह कार्य केवल बाहरी शत्रुओं ने ही नहीं किया, बल्कि हमारे ही समाज के भीतर से अधर्मी, स्वार्थलोलुप और दुराचारी गुट शत्रुओं के इशारों पर सक्रिय हो गए। उन्होंने स्वार्थ-सिद्धि के लिए अपनी ही परंपरा और धर्म की नींव खोखली कर दी।
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आज जिस विशेष स्वर्णकाल पर हम हिंदू गर्व करते हैं, वही वास्तव में पतन की शुरुआत थी।
इसी काल में हमारी आत्मा पर स्वार्थ और संकुचन का आवरण चढ़ने लगा। चौदहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच हिंदुत्व के DNA में धीरे-धीरे कायरता और अकर्मण्यता का विष प्रविष्ट हो चुका था।
ऊपर से साम्राज्य, मंदिर और वैभव दिखाई देते रहे, किंतु भीतर जड़ों में मट्ठा डल चुका था।
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परिणाम यह हुआ कि जो हिंदू कभी विश्वगुरु कहलाते थे, वे क्रमशः पराधीनता की ओर बढ़ते गए। पहले उन्होंने आक्रमणकारियों के सामने समझौते किए, फिर गुलामी स्वीकार की।
इतिहास साक्षी है कि जब भी हमने अपनी जड़ों की रक्षा नहीं की, हमारी शाखाएँ शुष्क होकर झड़ गईं।
वही स्थिति आज भी हमारे सामने किसी पिशाचिनी की तरह खड़ी है।
*"आप स्वतंत्र है , ये सिर्फ आपका वहम है।"*
मैं तो कहता हूं कि जिस प्रकार से आज हिंदू समाज मानसिक रूप से गुलाम हो गया है, इससे बेहतर 200 वर्ष पूर्व वाली गुलामी फिर भी ठीक थी।
*मानसिक गुलाम होना भौतिक गुलामी से अधिक बेकार है।*
हिंदू समाज ऊपर से तो संख्या और विस्तार में विशाल प्रतीत होता है, किंतु भीतर से उसका चरित्र, साहस और संगठन शक्ति कमजोर होती जा रही है। यही कारण है कि वह आगे भी धीरे-धीरे गुलामी की गर्त ओर खुशी-खुशी बढ़ता जा रहा है।
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*हमें यह भली-भांति स्मरण रखना चाहिए कि पराधीनता में कभी सुख नहीं मिल सकता।*
यदि हमें अपने धर्म, संस्कृति और अस्तित्व को बचाना है, तो हमें अपनी जड़ों को फिर से पोषित करना होगा। शौर्य, तप, त्याग और गुरु-परंपरा का पुनर्जागरण करना होगा।
अन्यथा इतिहास स्वयं को दोहराएगा, और हमारी पीढ़ियाँ हमें क्षमा नहीं करेंगी।
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“जड़ में मट्ठा डाल दिया गया है। यदि हम समय रहते चेत न पाए, तो यह वृक्ष केवल हरे पत्तों का छलावा बनकर रह जाएगा।”
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धन्यवाद,
हर हर महादेव 🔱
राजीव सिंह 🙏🏻
3 days ago | [YT] | 92
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Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज
जीवन का मूल्य उसकी लंबाई में नहीं, बल्कि उसकी गहराई में है।
कितने वर्ष जिये यह महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि कैसे जिये — यही असली प्रश्न है।
मनुष्य जब तक केवल अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं में उलझा रहता है, तब तक जीवन साधारण है।
लेकिन जैसे ही वह दूसरों की भलाई और धर्म की सेवा में कदम रखता है, उसी क्षण से उसका जीवन दिव्य बन जाता है।
जैसे दीपक स्वयं जलकर अंधकार मिटाता है, वैसे ही हमें भी अपनी छोटी-छोटी सुविधाओं का त्याग करके समाज और धर्म के लिए प्रकाश फैलाना चाहिए।
👉 सुख बाँटने से घटता नहीं, बढ़ता है।
👉 ज्ञान बाँटने से कम नहीं होता, अपितु और भी गहरा होता जाता है।
👉 धर्मकार्य में सहयोग करने से धन नहीं घटता, बल्कि पुण्य रूपी अमूल्य खजाना बढ़ता है।
नीतिशतक में भी कहा गया है—
"संतोषः परमं सुखम्।"
अर्थात संतोष ही परम सुख है, और संतोष उसी को मिलता है जो अपने हिस्से को दूसरों से साझा करना जानता है।
आज का संकल्प यही हो —
“मैं अपने जीवन को केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और धर्म के लिए सार्थक बनाऊँगा।” 🌸
धन्यवाद,
हर हर महादेव
-राजीव सिंह 🙏🏻🚩
5 days ago | [YT] | 118
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Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज
साथी हाथ बढ़ाना,
एक अकेला थक जायेगा मिल कर बोझ उठाना
साथी हाथ बढ़ाना ...
"सच्चा धन वही, जो धर्म पथ में लगाया जाए।"
"True wealth is what uplifts souls and sustains Dharma."
Har Har Mahadev 🙏🏻🔱🚩
1 week ago | [YT] | 30
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Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज
✨ आज का ज्ञान ✨
मनुष्य का जीवन केवल भोग-विलास या धन कमाने के लिए नहीं है। जीवन का वास्तविक उद्देश्य है – आत्मा को पहचानना और अपने कर्मों को ऐसा बनाना कि उनसे दूसरों का भी कल्याण हो।
राजीव सिंह 🙏🏻🔱
1 week ago | [YT] | 27
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Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज
🌸🙏 सभी साधक जनों को हार्दिक अभिवादन 🙏🌸
✨ आज का ज्ञान ✨
**कर्म ही धर्म है – गीता का संदेश**
भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा –
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” (गीता 2.47)
अर्थात् – “तुझे केवल अपने कर्तव्य कर्म का ही अधिकार है, फल पर नहीं।”
आज के समय में मनुष्य का सबसे बड़ा भ्रम यही है कि वह कर्म की जगह केवल फल पर ध्यान देता है। परिणामस्वरूप, जीवन में अधीरता, असंतोष और मानसिक अशांति बढ़ जाती है।
समाज में भी यही स्थिति है – लोग सेवा, कर्तव्य और सत्य की जगह केवल लाभ और परिणाम के पीछे भाग रहे हैं।
यदि गीता का यह संदेश जीवन में उतार लिया जाए तो मनुष्य अपने कर्म को ही पूजा समझेगा। किसान खेत जोतेगा तो इसे धर्म समझकर करेगा, व्यापारी न्यायपूर्ण लेन-देन करेगा तो उसे धर्म समझकर करेगा, और विद्यार्थी पढ़ाई करेगा तो उसे साधना मानकर करेगा। जब प्रत्येक मनुष्य अपने कर्तव्य को धर्म मानकर करेगा, तभी समाज में संतुलन, शांति और न्याय स्थापित होगा।
🌼 **वर्तमान शिक्षा** 🌼
आज का समय हमें पुकार रहा है –
1. अपने कार्य को ही पूजा समझो।
2. कर्म करते रहो, परिणाम की चिंता न करो।
3. सत्य, सेवा और न्याय को ही जीवन का मार्ग बनाओ।
यही गीता का सार है और यही जीवन का वास्तविक धर्म है।
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✍️ *लेखक* –
**राजीव सिंह**
धर्मयोद्धा • चिंतक • भक्ति-संगीत साधक
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1 week ago | [YT] | 26
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Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज
“कुत्तों पर बहस और संतुलन/धर्म”
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कभी-कभी समाज हमें दर्पण दिखाता है।
आज वह दर्पण एक छोटे से जीव — कुत्ते के रूप में हमारे सामने है।
आज मैं सड़क किनारे बैठा था।
एक बच्चा बिस्किट खा रहा था।
उसके सामने एक आवारा कुत्ता खड़ा था — भूखा, काँपता हुआ।
बच्चे ने बिस्किट आधा खाया और आधा उस कुत्ते की तरफ बढ़ा दिया।
दोनों की आँखों में चमक थी — एक का पेट भरा और दूसरे को दया का सुख मिला।
फिर दूसरी तरफ इसी समाज में रोज़ खबरें आती हैं —
कहीं कोई बच्चा कुत्ते के काटने से घायल हो गया,
कहीं कोई बुज़ुर्ग गिर पड़ा,
तो कहीं कोई परिवार रैबीज़ के डर से सहमा बैठा है।
यानी उपरोक्त दोनों परिस्थितियों को देखा जाए तो सवाल केवल इतना है कि -
क्या कुत्तों को हमारी गलियों से हटाया जाए?
या उन्हें भी पालतू जीव जगत का हिस्सा मानते हुए आसपास रहने दिया जाए?
फिलहाल हमारा समाज इन दो गुटों में बंटा हुआ है और दोनों ही पक्ष अपने परिप्रेक्ष्य को बहुत मजबूती से सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।
इसी बीच अगर कभी कुत्तों पर नजर पड़ जाए तो लगता है जैसे वो हमसे दो प्रश्न प्रश्न पूछ रहे हों :
1. क्या तुम मुझे डर की नज़र से देखते हो?
2. या मुझे उसी परमपिता की संतान समझते हो, जिसकी संतान तुम भी हो?
पहला पक्ष कहता है:
“हमें सुरक्षा चाहिए, सुरक्षा पहले" ।
हमारे बच्चे को कुत्ते न काट लें, हमारे बुज़ुर्ग गिरकर घायल न हों। बच्चों और बुज़ुर्गों को डर में जीने देना गलत है।
हमें चैन से बेखौफ जीने का अधिकार है।”
यह पक्ष सही है — क्योंकि सुरक्षा भी धर्म है।
दूसरा पक्ष कहता है:
“ये भी प्राणी हैं, भगवान ने इन्हें भी बनाया है।
इनकी आँखों में भी आँसू हैं, इन्हें भी भूख लगती है। इन्हें भी प्रेम चाहिए।
क्या इन्हें केवल समस्या मानकर हम क्रूर बन जाएँ?”
यह पक्ष भी सही है — क्योंकि दया भी धर्म है।
जब दोनों ही पक्ष सही है तो फिर गलत है कौन?
फिर रास्ता क्यों नहीं निकल रहा? फिर किसी विचार पर विरोध कैसा और समर्थन कैसा?
विरोध है, क्योंकि दोनों ही पक्ष सही होते हुए भी अधूरे हैं। इनमें अपूर्णता है। इनमें असंतुलन है।
धर्म क्या कहता है? इस पर बारीकी से विचार करने की आवश्यकता है।
(विशेषकर इस मामले में) धर्म की परिभाषा है — संतुलन।
सनातन हमें यही सिखाता है कि धर्म कभी एकतरफा नहीं होता।
अगर सुरक्षा है, पर दया नहीं — तो वह कठोरता है।
अगर दया है, पर सुरक्षा नहीं — तो वह अंधी भावुकता है।
" धर्म वहां है जहां दोनों में संतुलन हो" ।
धर्म न तो केवल सुरक्षा है, न केवल दया।
धर्म है — संतुलन।
"मनुष्य की ( अपनी) रक्षा करना भी धर्म है, और प्राणी पर दया करना भी धर्म है।
धर्म वहीं है, जहाँ दोनों का मिलन हो।"
तो फिर समाधान क्या है?
वर्तमान स्थिति को देखते हुए तो ,
1.सरकार शेल्टर बनाए, स्टेरिलाइजेशन और वैक्सीनेशन करे।
2.पशुप्रेमी समाज आगे आए, दत्तक अपनाने की संस्कृति बढ़ाए।
और
3. हम सब — न क्रूर बनें, न अंधे भावुक — बल्कि जिम्मेदार और विवेकी बनें और इतिहास से रेफरेंस लिया जाए।
महाभारत का वो प्रसंग याद कीजिए जब —
युधिष्ठिर जी से स्वर्गारोहण से पहले कहा गया, “कुत्ते को छोड़ दो।” तब
उन्होंने कहा, “जो मेरे साथ चला, उसे छोड़कर मैं स्वर्ग नहीं चाहता।”
मेरा व्यक्तिगत मत तो यह है कि पशु को पशु रहने दिया जाए और इंसान भी इंसान बन जाएं।
कुत्ता तो पशु है, और पशुओं की प्रवृति होती है - आवारापन। वह गलियों की शोभा है, वह दरवाजे की शोभा है, उसे दरवाजे पर बांधिए या गलियों में घूमने दीजिए, यही उसका स्वभाव है।
वो अपनी रक्षा, अपना भोजन, अपना वंश विस्तार स्वयं कर लेगा। इसमें किसी इंसानी हस्तक्षेप की आवश्यकता है ही नहीं।
और इंसान भी इंसान बने। पालतू कुत्ते को दरवाजे पर बांध कर रखिए। कुत्ते के साथ सोना और उसका मुंह चाटना (हालांकि निजी choice परंतु अंधी भावुकता) मानवीय चेतना नहीं अपितु पशुता है।
विश्वास कीजिए,
आप कुत्ते को रोटी दीजिए या ना दीजिए वह तब भी चौकीदारी करेगा। और,
आप उसको रोटी दीजिए या ना दीजिए जब उसका मूल प्रवृति -पशुता ( हिंसा) उस पर हावी होगा, तो वो काटेगा ही काटेगा।
वे (सभी जीव) अपना संतुलित जीवन जीते हैं। आपका एक्स्ट्रा प्यार/ एक्स्ट्रा घृणा उनको असंतुलित बना देता है।)
परंतु आप संतुलन बनाना कब सीखेंगे? आप अपना संतुलन मत खोइए।
"इंसान अपना काम करे, पशु तो अपना काम स्वयं कर ही लेते हैं"।
(इंसान अपने काम की टेंशन छोड़कर पूरी दुनिया की टेंशन लिए फिरता है, जैसे कि सृष्टि संचालन की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर है।) 😀
आप इंसान बनिए। आप इन मुद्दों को पकड़कर extremist ना बनिए।
न ही उनसे मुंह चटवाईये ना ही उनको पत्थर मारिए।
कुत्तों के लिए इंसान का सर मत फोड़िए और ना ही सरफिरे व असंतुलित इंसानों के लिए कुत्तों को पत्थर मारिए।
समाज में और प्रकृति के साथ संतुलन बनाइए यही सनातन धर्म की सीख है।
एक बात और मजेदार है कि , चाहे कितने भी शेल्टर बन जाएं, लिखकर ले लीजिए कुछ कुत्ते आपके आस पास दिखेंगे ही दिखेंगे और दिखने भी चाहिए तभी तंत्र में संतुलन होगा।
एक कहावत है; "सब कुकुर काशी जयिहें त हंडिया के चांटी।"
संतुलन के लिए कुछ कुत्तों का आपके आस पास रहना अनिवार्य है। बचा खुचा भोजन कुत्तों को डालते रहिए, इससे तंत्र में संतुलन बना रहेगा। इससे कुत्ता भी पलता रहेगा और left over food management भी होगा और अन्न का अनादर भी नहीं होगा।
पूर्वकाल से ही हमारे पूर्वजों ने यह नियम बनाया था और इसी ढर्रे पर इंसान और कुत्ते के बीच का सामंजस्य मित्रवत रहता आ रहा है।
नोट: आंख कान और दिमाग को खोल कर पढ़िए , जो अभी ऊपर की पंक्ति में लिखा गया है। 👆🏻
कुत्ते को बचा खुचा भोजन दीजिए, स्पेशली बनाकर के रोटी नहीं ।
स्पेशली रोटी जिसके लिए लिए बनती है वह कुत्ता नहीं होता, वह गाय होती है।
कहावत है कि " पहली रोटी गाय की, आखिरी रोटी कुत्ते की" !
इस कहावत को सूत्र बना लीजिए तो संतुलन बना रहेगा।
यह असंतुलन ही इसी वजह से है क्योंकि भावुकता ( पागलपना ) में आपने कुत्ते को श्रेणी में सबसे ऊपर रखा है।
सृष्टि में सब कुछ पदानुक्रम के अनुसार है, उसमें छेड़छाड़ होने पर खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा।
सो भुगतो! 🙏🏻
असली मुद्दे की बात: यह लड़ाई कुत्ता बनाम इंसान है ही नहीं।
न भूतो न भविष्यति!
इंसान और कुत्ता एक दूसरे के दुश्मन ना कभी थे, न कभी होंगे।
इंसान और कुत्ते हमेशा मित्र रहे हैं, आज भी हैं और आगे भी रहेंगे।
दरअसल यह लड़ाई Dog Lovers vs Dog Haters की है। क्योंकि ये दोनों ही पक्ष extremist हैं। ये दोनों हीं पक्ष असंतुलित है। दोनों ही अपने-अपने परिप्रेक्ष्य से सही हैं परंतु इन दोनों का सत्य अधूरा है। इसलिए कुत्तों से अधिक ये भोंक रहे हैं और एक दूसरे को काटने पर आमादा हो रहे हैं।
और अभी तो सिर्फ कुत्तों का अध्याय शुरू हुआ है । बंदरों और कबूतरों वाला मामला भी कभी न कभी आतंक का रूप लेगा ही।
और ये सब कुछ हो रहा है अधिक भावुक, अधिक समझदार और अत्यधिक संतुलित लोगों की वजह से।
प्रिय मित्रों,
अब मैं आपसे पूछता हूँ —
आपके अंतर्मन में क्या जवाब है?
अगर निर्णय आपको लेना होता, तो आप सुरक्षा चुनते या दया?
या फिर वह संतुलन, जो ecosystem के लिए suitable हो, जो धर्मसंगत हो?
- राजीव सिंह 🙏🏻
#dog #doglover #DogHaters #delhistreetdogs #streetdogs #supremecourtondogs
Note:- Image Credit goes to Google, Concerned Authorities and Creators.
2 weeks ago | [YT] | 28
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Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज
📜 आधिकारिक संदेश
प्रिय साधकगण एवं धर्मपथ के यात्रीयों,
यह दिव्य घोषणा की जाती है कि मेरा पुराना संपर्क सूत्र ( मोबाइल नंबर) 9999832756 अब (19th august onwards) मेरे व्यक्तिगत उपयोग में नहीं रहेगा। यह क्रमांक अब केवल टीम एवं प्रबंधन कार्यों के लिए उपलब्ध होगा।
हालांकि यदि आप इस पर संदेश प्रेषित करेंगे तो वे मेरी मंडली के माध्यम से छनकर, आवश्यकता अनुसार, मुझ तक पहुँच सकेंगे।
यद्यपि इसी क्रमांक (मोबाइल नंबर) के द्वारा आप सभी को मेरे लेख, संदेश एवं दिव्यज्ञान समय-समय पर Hindu Rituals Team के माध्यम से WhatsApp चैनल, whatsapp Group तथा अन्य social media platforms पर प्राप्त होते रहेंगे।
अतः आप सभी को मेरा अप्रत्यक्ष सान्निध्य निरंतर मिलता रहेगा।
अब मेरा नया /निजी संपर्क सूत्र ( मोबाइल नंबर) केवल Rajeev Singh Support Circle के सीमित सदस्यों तक सुरक्षित रहेगा।
उनके लिए भी मैं केवल विशेष अवसरों पर, दुर्लभ क्षणों में, उपलब्ध रहूँगा।
यह परिवर्तन महज़ एक व्यवस्था नहीं है, बल्कि एक संकेत है कि अब से हमारी समस्त साधना और धर्मयात्रा “महादेवदूत” के मार्गदर्शन में और भी अनुशासित एवं गूढ़ स्वरूप लेगी।
आप सभी के विश्वास और भक्ति को प्रणाम।
हर हर महादेव 🚩
— राजीव सिंह
2 weeks ago | [YT] | 63
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Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज
🌸🙏 सभी साधक जनों को हार्दिक अभिवादन 🙏🌸
✨ आज का ज्ञान ✨
**धर्म का वास्तविक स्वरूप**
धर्म—यह शब्द जितना छोटा है, उतना ही विराट इसका अर्थ है। धर्म न तो किसी एक जाति का नाम है, न किसी विशेष संप्रदाय का। धर्म का शाब्दिक अर्थ है—“धारण करने योग्य”। वह आचरण, वह नीति, वह सत्य, जो संपूर्ण समाज को सँभालकर चलाए और सबके लिए हितकारी सिद्ध हो—वही धर्म है।
जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता उपदेश दिया, तब उन्होंने धर्म की यही संकल्पना स्थापित की। धर्म वही है, जो न्याय की स्थापना करे, सत्य की रक्षा करे और कर्तव्य का निर्वाह कराए। धर्म केवल मंदिर में दीप जलाने तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक कर्म में झलकता है। जब एक व्यापारी न्यायपूर्वक तौलता है, जब एक शिक्षक निःस्वार्थ ज्ञान बाँटता है, जब एक पुत्र अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करता है—यही सच्चा धर्म है।
परंतु आज के युग में धर्म को संकीर्ण बना दिया गया है। लोग धर्म को केवल अपने समुदाय, अपनी जाति, अपने झंडे या अपने संगठन तक बाँध चुके हैं। परिणामस्वरूप धर्म का स्वरूप आपसी विवाद, राजनीति और स्वार्थ के बोझ तले दब जाता है। धर्म का मूल तत्त्व – “समाज को जोड़ना, सत्य की रक्षा करना” – कहीं खो सा गया है।
आज आवश्यकता है कि मनुष्य अपने भीतर झाँके और पूछे—क्या धर्म केवल एक बाहरी पहचान है, या यह वह आचरण है जिससे हम सबका कल्याण कर सकते हैं? यदि धर्म को सही रूप में समझा जाए तो यह हमें विभाजित नहीं करेगा, बल्कि जोड़ देगा। यह हमें श्रेष्ठता का अहंकार नहीं देगा, बल्कि सेवा और समर्पण की भावना जगाएगा।
🌼 **वर्तमान शिक्षा** 🌼
आज का मनुष्य यदि धर्म को सही अर्थ में अपनाए, तो समाज से अन्याय और द्वेष मिट जाएगा। जाति, पंथ या समूह से ऊपर उठकर यदि हम सत्य, करुणा और कर्तव्य को धर्म मानें, तो यह धरती पुनः स्वर्ग बन सकती है।
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✍️ *लेखक* –
**राजीव सिंह**
धर्मयोद्धा • चिंतक • भक्ति-संगीत साधक
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3 weeks ago | [YT] | 239
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Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज
🌸 हरे कृष्ण, भक्तों 🌸
आज हम सभी उस दिव्य क्षण का उत्सव मना रहे हैं जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में प्रकट होकर अधर्म का नाश और धर्म की पुनर्स्थापना का संकल्प लिया।
जन्माष्टमी केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम और कर्मयोग का संदेश है।
इस पावन अवसर पर, आइए हम भी अपने जीवन में सत्य, धर्म और करुणा के दीप प्रज्वलित करें।
🚩 Hindu Rituals परिवार की ओर से आप सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
हरि बोल! हर हर महादेव!
#जन्माष्टमी #KrishnaJanmashtami #HinduRituals #Bhakti #ShriKrishna
3 weeks ago | [YT] | 220
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Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज
#saawanquiz2025 #shivpuran #ques28
क्षिवपुराण की किस संहिता में ज्योतिर्लिंगों की कथा विस्तार से दी गई है ?
4 weeks ago | [YT] | 51
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