ये डाकघर ज़िन्दगी की पाती है। मानवीय सामवेंदनाओ का आइना है। आपाधापी में एक छांव है। जो वर्तमान का हाथ थामे है और भूत से समाहित। सामाजिक मुद्दों पर बेवाक, टेक्नॉलजी का समाज और सभ्यता और प्रभाव बताता और जताता ...

दफ्तर दफ्तर खेल रहे है, जीवन गड्डी झेल रहे है,
धर्म लुटा ईमान लुटा है, पर भौकाली पेल रहे

जब से मेरी कमायी को किश्तों ने आँका है,
तब से समय को मैंने बालिश्तों में नापा है। @विक्रम


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