Santoshi Rajput 21

सारी सृष्टि है जिनकी शरण में,नमन है उन "महादेव"के चरण में🔱👏


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🔱🚩 🌸जय माँ हरसिद्धि🌸 🚩🔱🙏
नवरात्री महापर्व के प्रथम दिवस*जगत जननी श्री शिवपटरानी शक्तिपीठ माता हरसिद्धि महारानी जी के प्रातः काल मंगला आरती श्रृंगार दर्शन विक्रम संवत 2082 आश्विन मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि सोमवार 22/09/2025* उज्जैन अवंतिका

म. प्र नौ रात्रि की बहुत बहुत बधाई शुभकामनाए जय माता रानी 🌹🏵️🌼❤️❣️🌹🤗🙌🕉️🌿👏

19 hours ago | [YT] | 2

Santoshi Rajput 21

माँ दुर्गा के सभी रूप 🌸
माँ शैलपुत्री
पर्वतराज हिमालय की पुत्री।
माता का प्रथम स्वरूप, नंदी बैल पर सवार, हाथों में त्रिशूल और कमल।
ये शक्ति और दृढ़ता की प्रतीक हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी
माता का दूसरा रूप।
हाथों में जपमाला और कमंडल धारण करती हैं।
ये तपस्या और संयम की देवी हैं।
माँ चंद्रघंटा
तीसरा स्वरूप, जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र की घंटा के समान आकृति है।
इनका वाहन सिंह है, दस भुजाएँ और प्रत्येक हाथ में शस्त्र।
ये वीरता और पराक्रम की प्रतीक हैं।
माँ कूष्मांडा
चौथा स्वरूप, जिन्होंने ब्रह्मांड की रचना की।
आठ भुजाएँ, हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र और कमल।
इन्हें "आदिसृष्टि की जननी" कहा जाता है।
माँ स्कंदमाता
पाँचवाँ स्वरूप, भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता।
शेर पर सवार, गोद में बाल स्कंद।
ये मातृत्व और करुणा की देवी हैं।
माँ कात्यायनी
छठा स्वरूप।
ऋषि कात्यायन की तपस्या से प्रकट हुईं।
सिंह पर सवार, चार भुजाएँ, हाथों में तलवार और कमल।
ये साहस और विजय की देवी हैं।
माँ कालरात्रि
सातवाँ स्वरूप।
काले रंग की, विकराल रूप, परंतु भक्तों के लिए अत्यंत कल्याणकारी।
इनके हाथ में वज्र और तलवार है, और वाहन गधा।
ये नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं।
माँ महागौरी
आठवाँ स्वरूप।
अत्यंत श्वेत और सुंदर, बैल पर सवार।
चार भुजाएँ, हाथ में त्रिशूल और डमरू।
ये पवित्रता और शांति की प्रतीक हैं।
माँ सिद्धिदात्री
नवाँ स्वरूप।
कमल पर विराजमान, चार भुजाएँ, हाथों में गदा, चक्र, शंख और कमल।
ये सभी सिद्धियाँ और आनंद प्रदान करने वाली हैं जयमातारानी🌹👏

19 hours ago | [YT] | 4

Santoshi Rajput 21

🙏🌹आज दिनांक 22/9/2025 (नवरात्री प्रथम दिन)🌹🙏 सोमवार को करिये माँ के मंगला आरती का दिव्य दर्शन🌹🙏🌹
इस भवसागर में कुछ नही माना🌹🙏🌹
हर जन्म जगतजननी चरणों मे सामना🌹🙏🌹
ॐ शैलपुत्र्यै च विद्महे काममालायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 🌹🙏🌹
जय जय जय विंध्याचल रानी 🌹🙏🌹
आदि शक्ति परमेश्वरी मां विंध्यवासिनी देवी शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी चंद्रघंटा कूष्मांडा स्कंदमाता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्री नवदुर्गा देवी मां की असीम कृपा हम सब पर हमेशा बनी रहे 🌹🙏🌹
हम सभी के जीवन में सदा सुख शांति संतोष समृद्धि सफलता और एक दूसरे के प्रति ममता और आनंद हमेशा बना रहे 🌹🙏🌹
🌹🙏🌹जय माँ विंध्यवासिनी🌹🙏🌹

20 hours ago | [YT] | 2

Santoshi Rajput 21

शिवलिंग की पूजा करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, ताकि पूजा का पूरा फल मिल सके और कोई गलती न हो। यहाँ कुछ ऐसी गलतियाँ बताई गई हैं, जिन्हें शिवलिंग की पूजा करते समय भूलकर भी नहीं करना चाहिए:
1. गलत सामग्री का प्रयोग
तुलसी के पत्ते: शिवलिंग पर कभी भी तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाने चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से हुआ था, इसलिए शिवलिंग पर तुलसी वर्जित मानी जाती है।
हल्दी और कुमकुम: शिवलिंग पर हल्दी और कुमकुम नहीं चढ़ाया जाता है। यह दोनों चीजें स्त्री देवी-देवताओं को चढ़ाई जाती हैं, जबकि शिवलिंग को पुरुष तत्व का प्रतीक माना जाता है।
2. जल अर्पण का तरीका
शंख से जल: शिवलिंग पर शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए। भगवान शिव ने शंखचूड़ राक्षस का वध किया था, जो विष्णु भक्त था और उसी की हड्डियों से शंख की उत्पत्ति हुई। इसलिए शंख से जल चढ़ाना अशुभ माना जाता है।
खड़े होकर जल देना: शिवलिंग पर कभी भी खड़े होकर जल नहीं चढ़ाना चाहिए। हमेशा बैठकर ही जल अर्पण करना चाहिए।
3. अधूरी परिक्रमा
पूरी परिक्रमा न करें: शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। परिक्रमा करते समय जलधारी (जिससे जल बहता है) को पार न करें। परिक्रमा करते समय जलधारी से पहले रुक जाएं और वापस लौट आएं।
4. वर्जित फूल और फल
केतकी का फूल: भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के झूठ को उजागर करने पर केतकी के फूल को श्राप दिया था। इसलिए शिवलिंग पर केतकी का फूल कभी नहीं चढ़ाना चाहिए।
नारियल पानी: शिवलिंग पर नारियल चढ़ा सकते हैं, लेकिन उसका पानी नहीं चढ़ाना चाहिए।
5. पूजा का समय और स्थान
पुराने फूल: शिवलिंग पर कभी भी बासी या मुरझाए हुए फूल नहीं चढ़ाने चाहिए। हमेशा ताजे फूल ही अर्पित करें।
शिवलिंग को जमीन पर रखना: घर में अगर आप शिवलिंग स्थापित कर रहे हैं, तो उसे सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। हमेशा किसी आसन या चौकी पर ही रखें।
इन नियमों का पालन करके आप शिवलिंग की पूजा को सही ढंग से कर सकते हैं और भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय 🕉️👏

20 hours ago | [YT] | 1

Santoshi Rajput 21

22 सितंबर 2025 को शारदीय नवरात्रि का पहला दिन है। इस दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। नवरात्रि की शुरुआत निम्नलिखित विधि से की जाती है:
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना (घट स्थापना) नवरात्रि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
शुभ मुहूर्त: 22 सितंबर 2025, सोमवार को सुबह 06:12 बजे से 07:44 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त: यह एक और शुभ मुहूर्त है, जो सुबह 11:49 बजे से दोपहर 12:37 बजे तक रहेगा।
पूजा की तैयारी
सामग्री: कलश, गंगाजल, मिट्टी, जौ, आम के पत्ते, सुपारी, चावल, रोली, मौली, नारियल, और दुर्गा सप्तशती की पुस्तक।
स्थान: घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) को साफ करके पूजा के लिए तैयार करें।
कलश स्थापना की विधि
एक मिट्टी के पात्र में थोड़ी मिट्टी डालकर उसमें जौ बो दें।
कलश में गंगाजल, सुपारी, सिक्का, और अक्षत (चावल) डालें।
कलश के मुख पर आम के पत्ते रखें और उसके ऊपर एक नारियल रखें। नारियल को मौली (लाल धागे) से लपेटें।
कलश को जौ से भरे पात्र के बीच में रखें।
देवी दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को कलश के पास स्थापित करें।
पूजा विधि
कलश और माँ दुर्गा का ध्यान करते हुए पूजा शुरू करें।
सबसे पहले कलश की पूजा करें। फिर दीपक जलाकर माँ दुर्गा की आरती करें।
माँ शैलपुत्री का ध्यान करते हुए उनके मंत्रों का जाप करें। उनका मंत्र है: "ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः"।
माँ को लाल फूल, लाल वस्त्र और भोग (हलवा, खीर या कोई मीठी वस्तु) अर्पित करें।
नवरात्रि के व्रत का संकल्प लें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
इस तरह, पूरे विधि-विधान से पूजा करके आप नवरात्रि का शुभारंभ कर सकते हैं🕉️👏

1 day ago | [YT] | 2

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जानिए बद्रीनाथ के तप्त कुंड का क्या है रहस्य?
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हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का अपना एक विशेष महत्व है। इनमें गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम शामिल हैं। इस अलौकिक धाम की यात्रा देश का हर हिंदू करना चाहता है। भगवान बद्रीनाथ का मंदिर हिमालय पर्वत की श्रेणी में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। क़रीब 3133 मीटर की ऊंचाई पर बने इस मंदिर का इतिहास काफ़ी पुराना है। इसके बारे में कई अलौकिक कथाएं भी प्रचलित हैं। नर और नारायण पहाड़ों के बीच कस्तूरी शैली में बना यह मंदिर मुख्य रूप से भगवान विष्णु का मंदिर है। यहां नर और नारायण की पूजा की जाती है। यहां भगवान विग्रह रूप में विराजमान हैं। मंदिर तीन भागों में विभाजित है।

गर्भगृह, दर्शन मंडप और सभामंडप का तापमान हमेशा 9 से 10 डिग्री सेल्सियस रहता है। लेकिन यहां उपस्थित तप्त कुंड का तापमान औसतन 54 डिग्री सेल्सियस रहता है। यह अपने आप में एक चमत्कार है कि जो मंदिर चारों ओर से बर्फ़ की ढकी पहड़ियों से घिरा हो, जहां नल का पानी भी जम जाता हो, वहां इस तप्त कुंड में इतना गर्म पानी कैसे रह सकता है? आइए जानें इस चमत्कारी तप्त कुंड का रहस्य...

तप्त कुंड
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कहते हैं कि बद्रीनाथ धाम में गर्म पानी के कुंड में स्नान करने से शरीर संबंधित सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि बाहर से छूने पर कुंड का पानी काफ़ी गर्म लगता है। लेकिन नहाते समय कुंड का पानी शरीर के तापमान जितना ही हो जाता है। तप्त कुंड की मुख्य धारा को दो भागों में बांट कर यहां महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग स्नान कुंड बनाया गया है। माना जाता है कि नीलकण्ठ की पहाड़ियों से इस पानी का उद्गम है। कहते हैं कि भगवान बद्रीनाथ ने यहां तप किया था। वही पवित्र स्थल आज तप्त कुंड के नाम से विश्व विख्यात है।

मान्यता है कि तप के रूप में ही आज भी इस कुंड में गर्म पानी रहता है। मान्यता यह भी है कि इस तप्त कुंड में साक्षात सूर्य देव विराजते हैं। वहाँ के पुरोहित बताते हैं कि सूर्य देव को भक्षा-भक्षी की हत्या का पाप लगा था। तब भगवान नारायण के कहने पर सूर्य देव, बद्रीनाथ आये और तप किया। तब से सूर्य देव को भगवान ने जल रूप में विचलित किया। जिसमें स्नान कर लोगों को अपनी शरीर सम्बंधी सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है और साथ ही भगवान के दर्शन कर वो अपने पापों से मुक्ति भी पाते हैं।

मंदिर से महज़ चार किलोमीटर की दूरी पर बसा है ‘माना गाँव।’ कहते हैं इसी गांव से ‘धरती का स्वर्ग’ निकलता है। लोगों का यह भी कहना है कि यहाँ आने से पैसों से सम्बंधित सभी परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। यहां मौजूद गणेश गुफा, भीम पुल और व्यास गुफा अपने आप में कई पौराणिक कथाओं को समेटे हुए हैं। कहते हैं कि तप्त कुंड के पानी में स्नान करने से भक्तों को उनके पापों से छुटकारा ही नहीं मिलता बल्कि उन्हें कई रोगों से मुक्ति भी मिल जाती है। इसीलिए कहा जाता है कि ‘बदरी सदृशं तीर्थ, न भूतं न भविष्यति’
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1 day ago | [YT] | 1

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महालया यानी महान आगमन का आधार या शुरुआत. बंगाल में इसी दिन से दुर्गापूजा की शुरुआत मानी जाती है. महालया आश्विन मास की अमावस्या को मनाया जाता है. इस दिन पितृपक्ष का अंत होता है और देवी दुर्गा का आगमन पृथ्वी पर होता है. महालया के अगले दिन यानी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि यानी प्रतिपदा के साथ ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाती है. पूरे भारत में नवरात्रि की शुरुआत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है, लेकिन बंगाल में दुर्गा पूजा की शुरुआत महालया से होती है.

#Durga #DurgaPuja #Mahalaya #MahalayaAmavasya 🙏🌹जय मां दुर्गा🌹🙏

1 day ago | [YT] | 2

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'महामृत्युंजय मंत्र' का जाप भगवान शिव की उपासना के लिए किया जाता है। इसे मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला महामंत्र माना जाता है। इसका जाप मुख्य रूप से गंभीर रोगों, अकाल मृत्यु के भय और जीवन की बड़ी बाधाओं को दूर करने के लिए किया जाता है।
महामृत्युंजय मंत्र और उसका अर्थ
यह मंत्र ऋग्वेद और यजुर्वेद में पाया जाता है और इसका जाप करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक और शारीरिक दोनों तरह के लाभ मिलते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
मंत्र का अर्थ:
हम तीन आँखों वाले भगवान शिव की पूजा करते हैं, जो प्रत्येक श्वास में मधुरता और जीवन शक्ति का पोषण करते हैं। जिस तरह पका हुआ ककड़ी अपनी बेल से आसानी से अलग हो जाता है, उसी तरह हमें भी मृत्यु के बंधन से मुक्ति प्रदान करें, और हमें अमरता की ओर ले जाएं।
महामृत्युंजय मंत्र का महत्व
अकाल मृत्यु का निवारण: इस मंत्र का सबसे बड़ा महत्व यह है कि इसका नियमित जाप अकाल मृत्यु के भय को दूर करता है। यह माना जाता है कि मंत्र की शक्ति से व्यक्ति को जीवन में आने वाले संकटों से बचाया जा सकता है।
गंभीर रोगों से मुक्ति: इस मंत्र का जाप करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है और असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक माना जाता है।
ग्रह दोषों का शमन: ज्योतिष के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प दोष, मंगल दोष या कोई अन्य ग्रह दोष हो, तो इस मंत्र का जाप करने से उनके नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है।
मानसिक शांति और शक्ति: यह मंत्र मन को शांत करता है और व्यक्ति को मानसिक तनाव, चिंता और भय से मुक्ति दिलाता है। यह आत्मबल और साहस को बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति हर चुनौती का सामना कर पाता है।
मोक्ष प्राप्ति: इस मंत्र का अंतिम उद्देश्य मृत्यु के भय को समाप्त करना और आत्मा को जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करना है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ाता है।
यह मंत्र न केवल शारीरिक और मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि यह भक्तों को भगवान शिव के निकट लाकर उन्हें आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर करता है🕉️👏

2 days ago | [YT] | 5

Santoshi Rajput 21

श्रीनगर गढ़वाल में मां धारी देवी मंदिर का रात का अद्भुत दृश्य जय मां धारी देवी हर हर महादेव,🌻❣️💐🌿❣️

5 days ago | [YT] | 4

Santoshi Rajput 21

🙏🍀गणपति की पूजा: प्रसाद और फूल🍀🙏
भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए आप उन्हें ये प्रसाद और फूल अर्पित कर सकते हैं:
प्रसाद:
मोदक: गणपति का सबसे प्रिय भोग मोदक है, इसलिए यह प्रसाद में सबसे पहले शामिल करना चाहिए।
लड्डू: मोतीचूर या बेसन के लड्डू भी उन्हें बहुत पसंद हैं।
केला: उन्हें केले बहुत पसंद हैं, आप उन्हें पूरे या कटे हुए केले अर्पित कर सकते हैं।
नारियल: नारियल का भोग भी बहुत शुभ माना जाता है।
फूल:
गुड़हल: लाल गुड़हल का फूल गणेश जी को अत्यंत प्रिय है।
गेंदा: पीले और नारंगी गेंदे के फूल भी उन्हें अर्पित किए जाते हैं।
चमेली: चमेली के फूल भी पूजा में इस्तेमाल होते हैं।
दूब घास: दूब घास की 21 गांठें बनाकर चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है।
गणपति की पूजा में इन चीज़ों को शामिल करने से वे प्रसन्न 🙏☘️होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं☘️🙏

5 days ago | [YT] | 4