Santoshi Rajput 21

सारी सृष्टि है जिनकी शरण में,नमन है उन "महादेव"के चरण में🔱👏


Santoshi Rajput 21

🙏🌷जय श्री महाकाल🙏🌷
बुधवार, 24 सितंबर 2025, श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान के आज के समस्त आरती श्रृंगार दर्शन कर बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करें
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13 hours ago | [YT] | 3

Santoshi Rajput 21

दीपावली के अलावा, गणेश और लक्ष्मी की एक साथ पूजा मुख्य रूप से दिवाली के पांच दिवसीय त्योहार के दौरान ही की जाती है, खासकर लक्ष्मी पूजा वाले दिन, जो दिवाली का मुख्य दिन होता है।
गणेश को "विघ्नहर्ता" (बाधाओं को दूर करने वाले) माना जाता है, और लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। इसलिए, किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में गणेश की पूजा पहले की जाती है ताकि सभी बाधाएं दूर हो सकें, और उसके बाद लक्ष्मी की पूजा की जाती है ताकि घर में धन और समृद्धि आए।
हालांकि, साल के अन्य समय में, व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं और पारिवारिक परंपराओं के अनुसार इन दोनों देवताओं की पूजा कर सकते हैं, लेकिन यह एक आम या व्यापक रूप से मनाया जाने वाला अनुष्ठान नहीं है। दीपावली का त्योहार ही वह विशेष अवसर है जब इन दोनों देवताओं की एक साथ सामूहिक और पारंपरिक रूप से पूजा की जाती है शुभ बुधवार ओम गणेशाय नमः 🙌🙌

17 hours ago | [YT] | 2

Santoshi Rajput 21

हिंदू धर्म में त्रिदेवियों का महत्व
हिंदू धर्म में, त्रिदेवियों - देवी सरस्वती, देवी लक्ष्मी, और देवी पार्वती (या दुर्गा/काली) - को सर्वोच्च देवियों के रूप में पूजा जाता है। इन तीनों को सामूहिक रूप से त्रिदेवी के नाम से जाना जाता है और इन्हें ब्रह्मांड की रचना, पालन और संहार की शक्ति माना जाता है। त्रिदेवियां, ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) की शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
आइए जानते हैं कि त्रिदेवियों को क्यों पूजा जाता है और इनका क्या महत्व है:
1. देवी सरस्वती
देवी सरस्वती ज्ञान, विद्या, कला, संगीत और वाणी की देवी हैं। वे ब्रह्मा की पत्नी और शक्ति हैं। उनकी पूजा करने से व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि और रचनात्मकता प्राप्त होती है। विद्यार्थी, कलाकार और लेखक विशेष रूप से उनकी पूजा करते हैं ताकि वे अपनी क्षमताओं को बढ़ा सकें।
2. देवी लक्ष्मी
देवी लक्ष्मी धन, समृद्धि, ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी हैं। वे भगवान विष्णु की पत्नी हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की समृद्धि मिलती है। लोग दिवाली जैसे त्योहारों पर विशेष रूप से उनकी पूजा करते हैं ताकि उनके जीवन में धन और समृद्धि का आगमन हो।
3. देवी पार्वती
देवी पार्वती, जिन्हें दुर्गा और काली के रूप में भी पूजा जाता है, शक्ति, साहस, प्रेम और मातृत्व की देवी हैं। वे भगवान शिव की पत्नी हैं। वे बुराई का नाश करने वाली और अपने भक्तों की रक्षा करने वाली हैं। उनकी पूजा से व्यक्ति को शक्ति, साहस और जीवन की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता मिलती है। नवरात्रि का त्योहार विशेष रूप से देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है।
क्यों की जाती है त्रिदेवियों की पूजा?
त्रिदेवियों की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि वे ब्रह्मांड की तीन महत्वपूर्ण शक्तियों का प्रतीक हैं:
उत्पत्ति (सरस्वती): देवी सरस्वती ज्ञान और रचनात्मकता के माध्यम से नई चीजों की उत्पत्ति में सहायक हैं।
पालन (लक्ष्मी):): देवी लक्ष्मी धन और समृद्धि के माध्यम से जीवन के पालन-पोषण और विकास को सुनिश्चित करती हैं।
संहार (पार्वती): देवी पार्वती बुराई का नाश कर संतुलन बनाए रखती हैं और अच्छे का संरक्षण करती हैं।
इस प्रकार, त्रिदेवियों की पूजा करके भक्त जीवन के तीनों महत्वपूर्ण पहलुओं - ज्ञान, धन और शक्ति - को प्राप्त करने की कामना करते हैं। वे हमें यह सिखाती हैं कि एक संपूर्ण जीवन के लिए ये तीनों शक्तियां आवश्यक हैं❤️🌼🌹🏵️🍂🚩👏

1 day ago | [YT] | 6

Santoshi Rajput 21

🔱🚩 🌸जय माँ हरसिद्धि🌸 🚩🔱🙏
नवरात्री महापर्व के प्रथम दिवस*जगत जननी श्री शिवपटरानी शक्तिपीठ माता हरसिद्धि महारानी जी के प्रातः काल मंगला आरती श्रृंगार दर्शन विक्रम संवत 2082 आश्विन मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि सोमवार 22/09/2025* उज्जैन अवंतिका

म. प्र नौ रात्रि की बहुत बहुत बधाई शुभकामनाए जय माता रानी 🌹🏵️🌼❤️❣️🌹🤗🙌🕉️🌿👏

3 days ago | [YT] | 3

Santoshi Rajput 21

माँ दुर्गा के सभी रूप 🌸
माँ शैलपुत्री
पर्वतराज हिमालय की पुत्री।
माता का प्रथम स्वरूप, नंदी बैल पर सवार, हाथों में त्रिशूल और कमल।
ये शक्ति और दृढ़ता की प्रतीक हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी
माता का दूसरा रूप।
हाथों में जपमाला और कमंडल धारण करती हैं।
ये तपस्या और संयम की देवी हैं।
माँ चंद्रघंटा
तीसरा स्वरूप, जिनके मस्तक पर अर्धचंद्र की घंटा के समान आकृति है।
इनका वाहन सिंह है, दस भुजाएँ और प्रत्येक हाथ में शस्त्र।
ये वीरता और पराक्रम की प्रतीक हैं।
माँ कूष्मांडा
चौथा स्वरूप, जिन्होंने ब्रह्मांड की रचना की।
आठ भुजाएँ, हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र और कमल।
इन्हें "आदिसृष्टि की जननी" कहा जाता है।
माँ स्कंदमाता
पाँचवाँ स्वरूप, भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता।
शेर पर सवार, गोद में बाल स्कंद।
ये मातृत्व और करुणा की देवी हैं।
माँ कात्यायनी
छठा स्वरूप।
ऋषि कात्यायन की तपस्या से प्रकट हुईं।
सिंह पर सवार, चार भुजाएँ, हाथों में तलवार और कमल।
ये साहस और विजय की देवी हैं।
माँ कालरात्रि
सातवाँ स्वरूप।
काले रंग की, विकराल रूप, परंतु भक्तों के लिए अत्यंत कल्याणकारी।
इनके हाथ में वज्र और तलवार है, और वाहन गधा।
ये नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं।
माँ महागौरी
आठवाँ स्वरूप।
अत्यंत श्वेत और सुंदर, बैल पर सवार।
चार भुजाएँ, हाथ में त्रिशूल और डमरू।
ये पवित्रता और शांति की प्रतीक हैं।
माँ सिद्धिदात्री
नवाँ स्वरूप।
कमल पर विराजमान, चार भुजाएँ, हाथों में गदा, चक्र, शंख और कमल।
ये सभी सिद्धियाँ और आनंद प्रदान करने वाली हैं जयमातारानी🌹👏

3 days ago | [YT] | 4

Santoshi Rajput 21

🙏🌹आज दिनांक 22/9/2025 (नवरात्री प्रथम दिन)🌹🙏 सोमवार को करिये माँ के मंगला आरती का दिव्य दर्शन🌹🙏🌹
इस भवसागर में कुछ नही माना🌹🙏🌹
हर जन्म जगतजननी चरणों मे सामना🌹🙏🌹
ॐ शैलपुत्र्यै च विद्महे काममालायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् 🌹🙏🌹
जय जय जय विंध्याचल रानी 🌹🙏🌹
आदि शक्ति परमेश्वरी मां विंध्यवासिनी देवी शैलपुत्री ब्रह्मचारिणी चंद्रघंटा कूष्मांडा स्कंदमाता कात्यायनी कालरात्रि महागौरी सिद्धिदात्री नवदुर्गा देवी मां की असीम कृपा हम सब पर हमेशा बनी रहे 🌹🙏🌹
हम सभी के जीवन में सदा सुख शांति संतोष समृद्धि सफलता और एक दूसरे के प्रति ममता और आनंद हमेशा बना रहे 🌹🙏🌹
🌹🙏🌹जय माँ विंध्यवासिनी🌹🙏🌹

3 days ago | [YT] | 2

Santoshi Rajput 21

शिवलिंग की पूजा करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, ताकि पूजा का पूरा फल मिल सके और कोई गलती न हो। यहाँ कुछ ऐसी गलतियाँ बताई गई हैं, जिन्हें शिवलिंग की पूजा करते समय भूलकर भी नहीं करना चाहिए:
1. गलत सामग्री का प्रयोग
तुलसी के पत्ते: शिवलिंग पर कभी भी तुलसी के पत्ते नहीं चढ़ाने चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से हुआ था, इसलिए शिवलिंग पर तुलसी वर्जित मानी जाती है।
हल्दी और कुमकुम: शिवलिंग पर हल्दी और कुमकुम नहीं चढ़ाया जाता है। यह दोनों चीजें स्त्री देवी-देवताओं को चढ़ाई जाती हैं, जबकि शिवलिंग को पुरुष तत्व का प्रतीक माना जाता है।
2. जल अर्पण का तरीका
शंख से जल: शिवलिंग पर शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए। भगवान शिव ने शंखचूड़ राक्षस का वध किया था, जो विष्णु भक्त था और उसी की हड्डियों से शंख की उत्पत्ति हुई। इसलिए शंख से जल चढ़ाना अशुभ माना जाता है।
खड़े होकर जल देना: शिवलिंग पर कभी भी खड़े होकर जल नहीं चढ़ाना चाहिए। हमेशा बैठकर ही जल अर्पण करना चाहिए।
3. अधूरी परिक्रमा
पूरी परिक्रमा न करें: शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। परिक्रमा करते समय जलधारी (जिससे जल बहता है) को पार न करें। परिक्रमा करते समय जलधारी से पहले रुक जाएं और वापस लौट आएं।
4. वर्जित फूल और फल
केतकी का फूल: भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के झूठ को उजागर करने पर केतकी के फूल को श्राप दिया था। इसलिए शिवलिंग पर केतकी का फूल कभी नहीं चढ़ाना चाहिए।
नारियल पानी: शिवलिंग पर नारियल चढ़ा सकते हैं, लेकिन उसका पानी नहीं चढ़ाना चाहिए।
5. पूजा का समय और स्थान
पुराने फूल: शिवलिंग पर कभी भी बासी या मुरझाए हुए फूल नहीं चढ़ाने चाहिए। हमेशा ताजे फूल ही अर्पित करें।
शिवलिंग को जमीन पर रखना: घर में अगर आप शिवलिंग स्थापित कर रहे हैं, तो उसे सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। हमेशा किसी आसन या चौकी पर ही रखें।
इन नियमों का पालन करके आप शिवलिंग की पूजा को सही ढंग से कर सकते हैं और भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय ॐनमःशिवाय 🕉️👏

3 days ago | [YT] | 1

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22 सितंबर 2025 को शारदीय नवरात्रि का पहला दिन है। इस दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। नवरात्रि की शुरुआत निम्नलिखित विधि से की जाती है:
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना (घट स्थापना) नवरात्रि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
शुभ मुहूर्त: 22 सितंबर 2025, सोमवार को सुबह 06:12 बजे से 07:44 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त: यह एक और शुभ मुहूर्त है, जो सुबह 11:49 बजे से दोपहर 12:37 बजे तक रहेगा।
पूजा की तैयारी
सामग्री: कलश, गंगाजल, मिट्टी, जौ, आम के पत्ते, सुपारी, चावल, रोली, मौली, नारियल, और दुर्गा सप्तशती की पुस्तक।
स्थान: घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) को साफ करके पूजा के लिए तैयार करें।
कलश स्थापना की विधि
एक मिट्टी के पात्र में थोड़ी मिट्टी डालकर उसमें जौ बो दें।
कलश में गंगाजल, सुपारी, सिक्का, और अक्षत (चावल) डालें।
कलश के मुख पर आम के पत्ते रखें और उसके ऊपर एक नारियल रखें। नारियल को मौली (लाल धागे) से लपेटें।
कलश को जौ से भरे पात्र के बीच में रखें।
देवी दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर को कलश के पास स्थापित करें।
पूजा विधि
कलश और माँ दुर्गा का ध्यान करते हुए पूजा शुरू करें।
सबसे पहले कलश की पूजा करें। फिर दीपक जलाकर माँ दुर्गा की आरती करें।
माँ शैलपुत्री का ध्यान करते हुए उनके मंत्रों का जाप करें। उनका मंत्र है: "ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः"।
माँ को लाल फूल, लाल वस्त्र और भोग (हलवा, खीर या कोई मीठी वस्तु) अर्पित करें।
नवरात्रि के व्रत का संकल्प लें।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
इस तरह, पूरे विधि-विधान से पूजा करके आप नवरात्रि का शुभारंभ कर सकते हैं🕉️👏

3 days ago | [YT] | 2

Santoshi Rajput 21

जानिए बद्रीनाथ के तप्त कुंड का क्या है रहस्य?
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हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का अपना एक विशेष महत्व है। इनमें गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम शामिल हैं। इस अलौकिक धाम की यात्रा देश का हर हिंदू करना चाहता है। भगवान बद्रीनाथ का मंदिर हिमालय पर्वत की श्रेणी में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। क़रीब 3133 मीटर की ऊंचाई पर बने इस मंदिर का इतिहास काफ़ी पुराना है। इसके बारे में कई अलौकिक कथाएं भी प्रचलित हैं। नर और नारायण पहाड़ों के बीच कस्तूरी शैली में बना यह मंदिर मुख्य रूप से भगवान विष्णु का मंदिर है। यहां नर और नारायण की पूजा की जाती है। यहां भगवान विग्रह रूप में विराजमान हैं। मंदिर तीन भागों में विभाजित है।

गर्भगृह, दर्शन मंडप और सभामंडप का तापमान हमेशा 9 से 10 डिग्री सेल्सियस रहता है। लेकिन यहां उपस्थित तप्त कुंड का तापमान औसतन 54 डिग्री सेल्सियस रहता है। यह अपने आप में एक चमत्कार है कि जो मंदिर चारों ओर से बर्फ़ की ढकी पहड़ियों से घिरा हो, जहां नल का पानी भी जम जाता हो, वहां इस तप्त कुंड में इतना गर्म पानी कैसे रह सकता है? आइए जानें इस चमत्कारी तप्त कुंड का रहस्य...

तप्त कुंड
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कहते हैं कि बद्रीनाथ धाम में गर्म पानी के कुंड में स्नान करने से शरीर संबंधित सभी प्रकार के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है। आश्चर्य की बात तो यह है कि बाहर से छूने पर कुंड का पानी काफ़ी गर्म लगता है। लेकिन नहाते समय कुंड का पानी शरीर के तापमान जितना ही हो जाता है। तप्त कुंड की मुख्य धारा को दो भागों में बांट कर यहां महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग स्नान कुंड बनाया गया है। माना जाता है कि नीलकण्ठ की पहाड़ियों से इस पानी का उद्गम है। कहते हैं कि भगवान बद्रीनाथ ने यहां तप किया था। वही पवित्र स्थल आज तप्त कुंड के नाम से विश्व विख्यात है।

मान्यता है कि तप के रूप में ही आज भी इस कुंड में गर्म पानी रहता है। मान्यता यह भी है कि इस तप्त कुंड में साक्षात सूर्य देव विराजते हैं। वहाँ के पुरोहित बताते हैं कि सूर्य देव को भक्षा-भक्षी की हत्या का पाप लगा था। तब भगवान नारायण के कहने पर सूर्य देव, बद्रीनाथ आये और तप किया। तब से सूर्य देव को भगवान ने जल रूप में विचलित किया। जिसमें स्नान कर लोगों को अपनी शरीर सम्बंधी सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है और साथ ही भगवान के दर्शन कर वो अपने पापों से मुक्ति भी पाते हैं।

मंदिर से महज़ चार किलोमीटर की दूरी पर बसा है ‘माना गाँव।’ कहते हैं इसी गांव से ‘धरती का स्वर्ग’ निकलता है। लोगों का यह भी कहना है कि यहाँ आने से पैसों से सम्बंधित सभी परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। यहां मौजूद गणेश गुफा, भीम पुल और व्यास गुफा अपने आप में कई पौराणिक कथाओं को समेटे हुए हैं। कहते हैं कि तप्त कुंड के पानी में स्नान करने से भक्तों को उनके पापों से छुटकारा ही नहीं मिलता बल्कि उन्हें कई रोगों से मुक्ति भी मिल जाती है। इसीलिए कहा जाता है कि ‘बदरी सदृशं तीर्थ, न भूतं न भविष्यति’
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3 days ago | [YT] | 1

Santoshi Rajput 21

महालया यानी महान आगमन का आधार या शुरुआत. बंगाल में इसी दिन से दुर्गापूजा की शुरुआत मानी जाती है. महालया आश्विन मास की अमावस्या को मनाया जाता है. इस दिन पितृपक्ष का अंत होता है और देवी दुर्गा का आगमन पृथ्वी पर होता है. महालया के अगले दिन यानी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि यानी प्रतिपदा के साथ ही शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो जाती है. पूरे भारत में नवरात्रि की शुरुआत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है, लेकिन बंगाल में दुर्गा पूजा की शुरुआत महालया से होती है.

#Durga #DurgaPuja #Mahalaya #MahalayaAmavasya 🙏🌹जय मां दुर्गा🌹🙏

3 days ago | [YT] | 2