28.4.2025 संसार में ऐसा देखा जाता है, कि अधिकतर लोग प्रदर्शनमय जीवन जीते हैं, अर्थात दिखावा बहुत करते हैं। *"उनके मन वाणी और शरीर के व्यवहारों में एकरूपता बहुत कम दिखती है।"* प्रायः लोगों में गुण भी होते हैं, और दोष भी। *"इस प्रदर्शन या औपचारिकता के दौर में लोग अपनी स्वार्थ सिद्धि करने के लिए दूसरे व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा तो करते हैं, परंतु पूरी वास्तविकता नहीं बताते। अर्थात उनके दोष नहीं बताते। क्योंकि उन्हें यह आशंका होती है, कि "यदि हम सामने वाले व्यक्ति का दोष बताएंगे, तो यह हमसे रुष्ट (नाराज) हो जाएगा। यदि यह व्यक्ति हमसे नाराज हो गया, तो हमारी स्वार्थ सिद्धि में बाधा पड़ेगी। इसलिए वे प्रायः दोष नहीं बताते, और सच्ची झूठी प्रशंसा करके दूसरे व्यक्ति को प्रसन्न रखना चाहते हैं, तथा वैसा करते भी हैं।"* परंतु यदि कोई व्यक्ति आपके दोष नहीं बताता और केवल आप की सच्ची झूठी प्रशंसा करता रहता है, तो इससे आपको अनेक हानियां भी होती हैं। इससे आपके दोष दूर नहीं हो पाते। क्योंकि आपको पता ही नहीं चलता, कि *"मुझमें क्या-क्या दोष हैं।"* *"इसलिए जीवन में 2/4 व्यक्ति ऐसे ईमानदार सज्जन व्यक्तियों को अपना मित्र अवश्य बनाना चाहिए, जो आपसे डरें नहीं। निर्भय होकर वे आपका दोष आपको बता सकें। और आप उन अपने हितैषियों से अपने दोष जानकर उन्हें दूर कर सकें। जिससे कि होने वाली हानियों से आप बच पाएं।"* इसके लिए आपको अपना व्यवहार ऐसा रखना होगा, कि *"जो 2/4 व्यक्ति आपके निकट हों, आपको गहराई से समझते हों, उनके द्वारा आपके दोष बताए जाने पर आप उनको डांट न लगाएं, उनको धमकाएं नहीं। तब वे निर्भय होकर आपको आपके दोष बताएंगे।"* फिर आप उन दोषों पर निष्पक्ष भाव से चिंतन/विचार करें। *"यदि वे दोष आपमें हों, तो उन्हें दूर करें। दोष बताने वाले अपने उन मित्रों पर गुस्सा न करें। उनके साथ झगड़ा न करें।" "और यदि उनके द्वारा बताए गए दोष आपमें न हों, तो प्रेम से अपना स्पष्टीकरण उन मित्रों को सुना दें, कि "यह दोष मुझमें नहीं है। शायद आपको भ्रांति हुई हो।" "अथवा 20/ 30 प्रतिशत दोष हो, तो जितना भी हो उतना अवश्य ही स्वीकार करें, और उसे दूर भी करें। तभी दोषों से छूट कर आपके दुख दूर होंगे। और आप अच्छे गुणों को धारण करके सुखी जीवन जी पाएंगे।"* ----- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।"*
अध्यात्म यात्रा – Adhyatm Yaatra
28.4.2025
संसार में ऐसा देखा जाता है, कि अधिकतर लोग प्रदर्शनमय जीवन जीते हैं, अर्थात दिखावा बहुत करते हैं। *"उनके मन वाणी और शरीर के व्यवहारों में एकरूपता बहुत कम दिखती है।"*
प्रायः लोगों में गुण भी होते हैं, और दोष भी। *"इस प्रदर्शन या औपचारिकता के दौर में लोग अपनी स्वार्थ सिद्धि करने के लिए दूसरे व्यक्ति के गुणों की प्रशंसा तो करते हैं, परंतु पूरी वास्तविकता नहीं बताते। अर्थात उनके दोष नहीं बताते। क्योंकि उन्हें यह आशंका होती है, कि "यदि हम सामने वाले व्यक्ति का दोष बताएंगे, तो यह हमसे रुष्ट (नाराज) हो जाएगा। यदि यह व्यक्ति हमसे नाराज हो गया, तो हमारी स्वार्थ सिद्धि में बाधा पड़ेगी। इसलिए वे प्रायः दोष नहीं बताते, और सच्ची झूठी प्रशंसा करके दूसरे व्यक्ति को प्रसन्न रखना चाहते हैं, तथा वैसा करते भी हैं।"*
परंतु यदि कोई व्यक्ति आपके दोष नहीं बताता और केवल आप की सच्ची झूठी प्रशंसा करता रहता है, तो इससे आपको अनेक हानियां भी होती हैं। इससे आपके दोष दूर नहीं हो पाते। क्योंकि आपको पता ही नहीं चलता, कि *"मुझमें क्या-क्या दोष हैं।"*
*"इसलिए जीवन में 2/4 व्यक्ति ऐसे ईमानदार सज्जन व्यक्तियों को अपना मित्र अवश्य बनाना चाहिए, जो आपसे डरें नहीं। निर्भय होकर वे आपका दोष आपको बता सकें। और आप उन अपने हितैषियों से अपने दोष जानकर उन्हें दूर कर सकें। जिससे कि होने वाली हानियों से आप बच पाएं।"*
इसके लिए आपको अपना व्यवहार ऐसा रखना होगा, कि *"जो 2/4 व्यक्ति आपके निकट हों, आपको गहराई से समझते हों, उनके द्वारा आपके दोष बताए जाने पर आप उनको डांट न लगाएं, उनको धमकाएं नहीं। तब वे निर्भय होकर आपको आपके दोष बताएंगे।"*
फिर आप उन दोषों पर निष्पक्ष भाव से चिंतन/विचार करें। *"यदि वे दोष आपमें हों, तो उन्हें दूर करें। दोष बताने वाले अपने उन मित्रों पर गुस्सा न करें। उनके साथ झगड़ा न करें।" "और यदि उनके द्वारा बताए गए दोष आपमें न हों, तो प्रेम से अपना स्पष्टीकरण उन मित्रों को सुना दें, कि "यह दोष मुझमें नहीं है। शायद आपको भ्रांति हुई हो।" "अथवा 20/ 30 प्रतिशत दोष हो, तो जितना भी हो उतना अवश्य ही स्वीकार करें, और उसे दूर भी करें। तभी दोषों से छूट कर आपके दुख दूर होंगे। और आप अच्छे गुणों को धारण करके सुखी जीवन जी पाएंगे।"*
----- *"स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।"*
4 days ago | [YT] | 134