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लोकदेवता बाबा रामदेव का जन्म संवत 1409 में (14वीं सदी) हुआ था, और उन्होंने अपना जीवन गरीबों और समाज के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया. वह भगवान कृष्ण के अवतार माने जाते हैं, जिन्होंने छुआछूत का विरोध किया और सामुदायिक सद्भाव का संदेश दिया. मक्का के पाँच पीरों ने उनकी चमत्कारी शक्तियों की परीक्षा ली और बाद में उन्हें श्रद्धांजलि दी, जिसके बाद मुस्लिम समुदाय उन्हें 'रामसा पीर' के नाम से पूजता है. अंततः, रामदेव ने सभी के लिए बिना भेदभाव के पूजा-पाठ करने का संदेश देते हुए समाधि ले ली. 

जन्म और प्रारंभिक जीवन

जन्म:

बाबा रामदेव का जन्म वि. सं. 1409 में भाद्रपद शुक्ल दूज को पोखरण के निकट रुणिचा के शासक तंवरवंशीय राजपूत राजा अजमलजी के घर हुआ. 

भगवान कृष्ण का अवतार:

उन्हें भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है. 

गुरु का आशीर्वाद:

उनके गुरु बाबा बालीनाथ थे, जिनकी तपोस्थली मसूरिया पहाड़ी पर है. 

सामाजिक कार्य और चमत्कारी शक्तियाँ

सामाजिक समानता:

बाबा रामदेवजी ने अपने जीवनकाल में समाज में फैली छूआछूत और रूढ़ियों का कड़ा विरोध किया और दलितों व पिछड़े लोगों के उत्थान के लिए काम किया. 

भैरव का दमन:

उन्होंने पोकरण क्षेत्र में आतंक मचाने वाले एक क्रूर सेठ 'भैरव' को उस इलाके से भगाया था. 

कावड़िया पंथ:

उन्होंने कावड़िया पंथ की शुरुआत की. 

मक्का के पीर:

मक्का से आए पाँच पीरों ने उनकी चमत्कारी शक्तियों को देखा और बाद में उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए 'रामसा पीर' के नाम से पुकारा. 

समाधि और संदेश 

समाधि लेना:

संवत 1442 में, रामदेवजी ने सबके प्रति संदेश देते हुए समाधि ली.

समाधि का प्रमाण:

जब लोगों ने उनकी समाधि को खोदा, तो उन्हें शरीर की जगह फूल मिले.

अंतिम संदेश:

समाधि लेते समय उन्होंने यह संदेश दिया कि पूजा-पाठ में कोई अंतर न हो, हर कोई एक समान है, और वह हमेशा अपने भक्तों के साथ रहेंगे.

लोकप्रियता

धार्मिक पहचान:

वे राजस्थान के एक सुप्रसिद्ध लोकदेवता और संत हैं, जो गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में पूजे जाते हैं. 

सांप्रदायिक सद्भाव:

सामुदायिक सद्भाव और अमन के प्रतीक के रूप में, उन्हें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय पूजते हैं, और पाकिस्तान से मुस्लिम भक्त भी उनकी पूजा करने भारत आते हैं. 

3 months ago | [YT] | 3