बुद्ध और अशोक के आदर्श धम्मराज्य की कामना करने का उत्सव दिपावली है|
*"दिन-दिन दिवाळी, गाई म्हशी ओवाळी |*
*गाई-म्हशी कोणाच्या, गाई-म्हशी मामाच्या |*
*दे ग आई खोबऱ्याची वाटी, बामनाच्या पाठीवर मारेन काठी |*
*इडा पीडा टळू दे, बळीचं राज्य येऊ दे ||"*
इसका हिंदी अर्थ यह है-
"दिप दिपों की दिपावली पर गाय भैसों की चलो पुजा करें, यह गय भैंस किसके है, तो हमारे मामा के है| मम्मी मुझे आज दिपावली के उत्सव पर मिठाई खिला दे, और हम सब मिलकर ब्राह्मण के पिठ पर लाठी मारेंगे| ताकि, इडा रुपी पिडा चली जाएं और बलिराजा का आदर्श धम्मराज्य फिर से स्थापित हो जाएं|"
प्राचीन मूलनिवासी परंपरा में संपत्ति का अधिकार मामा से भांजे को मिलता था, इसलिए कहा गया है की गाय और भैंस मामा के हैं|
दिपावली पर मिठाई की मांग बच्चे अपनी माँ से करते हैं क्योंकि यह उत्सव बहुजनों का प्राचीन बौद्ध उत्सव है|
ब्राह्मणों ने सम्राट अशोक अर्थात बलिराजा का आदर्श धम्मराज्य नष्ट कर बहुजनों को पिडित किया है| ब्राह्मणवादी इडा पिडा को नष्ट करने के लिए हम ब्राह्मणों के पिठ पर लाठी से मारकर उन्हें सिधा करेंगे और जुल्मी ब्राह्मणराज खत्म कर बलिराजा बुद्ध और अशोक का धम्मराज्य फिर से भारत में स्थापित करेंगे ऐसी कामना उपरोक्त पारंपरिक दिवाली गित में की गई है| इससे साफ हो जाता है कि दिवाली या दिपावली बहुजनों का प्राचीन धम्मोत्सव है|
दिपावली में पहले दिन गाय और बछड़े की पुजा वसुबारस के रूप में करते हैं क्योंकि यह बहुजनों की साधन संपत्ति थीं| दुसरे दिन धम्मत्रयोदशी (धनतेरस) के दिन दुखों से मुक्ति दिलानेवाले धम्मदाता (धम्मंतरि, धन्वंतरि) बुद्ध की पुजा की जाती है| उसके बाद बुद्ध की माँ महामाया की पुजा लक्ष्मीपूजन के रूप में करते हैं| उसके बाद सम्राट अशोक (बलिराजा) ने स्थापित किए हुए बुद्ध के प्रतिपदों की पुजा अर्थात बलिप्रतिपदा पुजा की जाती है| नरक चतुर्थी में नरक रुपी ब्राह्मणवाद से मुक्ति दिलानेवाले बुद्ध को याद करते हैं| अंत में ब्राह्मणवाद का पाडाव (पराभव) कर धम्मराज्य स्थापित करने के उद्देश्य से भाई बहन एक दुसरे को भाईदूज की परंपरा मनाते है जिसकी शुरुआत महेंद्र और संघमित्रा इन दो भाई बहन ने धम्मप्रचार के लिए आरंभ कर दी थी|
इस तरह, दिपावली या दिवाली पूर्ण रूप से प्राचीन बौद्ध उत्सव है| राम चैत्र महिने में अयोध्या पधारे थे ऐसा वाल्मीकि रामायण बताता है, लेकिन दिपावली अश्विन महिने में हर साल मनाई जाती है| इसलिए, राम का दिपावली का कोई भी संबंध नहीं है, दिपावली पुर्ण रुप से बुद्ध और अशोक से संबंधित प्राचीन धम्मोत्सव है|
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बुद्ध और अशोक के आदर्श धम्मराज्य की कामना करने का उत्सव दिपावली है|
*"दिन-दिन दिवाळी, गाई म्हशी ओवाळी |*
*गाई-म्हशी कोणाच्या, गाई-म्हशी मामाच्या |*
*दे ग आई खोबऱ्याची वाटी, बामनाच्या पाठीवर मारेन काठी |*
*इडा पीडा टळू दे, बळीचं राज्य येऊ दे ||"*
इसका हिंदी अर्थ यह है-
"दिप दिपों की दिपावली पर गाय भैसों की चलो पुजा करें, यह गय भैंस किसके है, तो हमारे मामा के है| मम्मी मुझे आज दिपावली के उत्सव पर मिठाई खिला दे, और हम सब मिलकर ब्राह्मण के पिठ पर लाठी मारेंगे| ताकि, इडा रुपी पिडा चली जाएं और बलिराजा का आदर्श धम्मराज्य फिर से स्थापित हो जाएं|"
प्राचीन मूलनिवासी परंपरा में संपत्ति का अधिकार मामा से भांजे को मिलता था, इसलिए कहा गया है की गाय और भैंस मामा के हैं|
दिपावली पर मिठाई की मांग बच्चे अपनी माँ से करते हैं क्योंकि यह उत्सव बहुजनों का प्राचीन बौद्ध उत्सव है|
ब्राह्मणों ने सम्राट अशोक अर्थात बलिराजा का आदर्श धम्मराज्य नष्ट कर बहुजनों को पिडित किया है| ब्राह्मणवादी इडा पिडा को नष्ट करने के लिए हम ब्राह्मणों के पिठ पर लाठी से मारकर उन्हें सिधा करेंगे और जुल्मी ब्राह्मणराज खत्म कर बलिराजा बुद्ध और अशोक का धम्मराज्य फिर से भारत में स्थापित करेंगे ऐसी कामना उपरोक्त पारंपरिक दिवाली गित में की गई है| इससे साफ हो जाता है कि दिवाली या दिपावली बहुजनों का प्राचीन धम्मोत्सव है|
दिपावली में पहले दिन गाय और बछड़े की पुजा वसुबारस के रूप में करते हैं क्योंकि यह बहुजनों की साधन संपत्ति थीं| दुसरे दिन धम्मत्रयोदशी (धनतेरस) के दिन दुखों से मुक्ति दिलानेवाले धम्मदाता (धम्मंतरि, धन्वंतरि) बुद्ध की पुजा की जाती है| उसके बाद बुद्ध की माँ महामाया की पुजा लक्ष्मीपूजन के रूप में करते हैं| उसके बाद सम्राट अशोक (बलिराजा) ने स्थापित किए हुए बुद्ध के प्रतिपदों की पुजा अर्थात बलिप्रतिपदा पुजा की जाती है| नरक चतुर्थी में नरक रुपी ब्राह्मणवाद से मुक्ति दिलानेवाले बुद्ध को याद करते हैं| अंत में ब्राह्मणवाद का पाडाव (पराभव) कर धम्मराज्य स्थापित करने के उद्देश्य से भाई बहन एक दुसरे को भाईदूज की परंपरा मनाते है जिसकी शुरुआत महेंद्र और संघमित्रा इन दो भाई बहन ने धम्मप्रचार के लिए आरंभ कर दी थी|
इस तरह, दिपावली या दिवाली पूर्ण रूप से प्राचीन बौद्ध उत्सव है| राम चैत्र महिने में अयोध्या पधारे थे ऐसा वाल्मीकि रामायण बताता है, लेकिन दिपावली अश्विन महिने में हर साल मनाई जाती है| इसलिए, राम का दिपावली का कोई भी संबंध नहीं है, दिपावली पुर्ण रुप से बुद्ध और अशोक से संबंधित प्राचीन धम्मोत्सव है|
नमो बुद्धाय 🙏💖☸️
Gautam Bombarde
1 month ago | [YT] | 792