भक्ति भजन

#बिग_ब्रेकिंग
सनसनीखेज समाचार
(जो आप तक कुछ दिनों बाद पहुंचेगी)
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ट्रंप के टैरिफ का खेल आपको क्या लगता है?
जो दिख रहा है, पहले वो देखें जो दिखाया जा रहा है।
1. ट्रंप नोबल के लालच में है।
2. ट्रंप अमेरिका के मुकाबले मजबूत भारत नहीं देखना चाहता।
3. ट्रंप भारत-पाकिस्तान का तनाव खत्म करना चाहता है।
4. ट्रंप डॉलर के मुकाबले में ब्रिक्स को नहीं देखना चाहता।
5. ट्रंप भारत के बढ़ते हथियार निर्यात से चिढ़ गया है।
ब्लॉ ब्लॉ ब्लॉ ब्लॉ
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लेकिन पर्दे के पीछे की हकीकत आपकी नींद उड़ा देगी।
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दरअसल इस सबके पीछे है आतंकवाद का खेल। आतंकियों के पास मिले अमरीकी हथियार यूं ही नहीं उन तक पहुंच रहे थे। असल में भारत के आतंकवाद के पीछे बरसों से अमेरिका ही रहा है। यह खेल बदस्तूर चलता आ रहा था, लेकिन पहलगाम ने पूरा रुख बदल दिया।
पहलगाम हमले के तुरंत बाद अमित शाह जी कश्मीर पहुंच गए, और फिर देर रात होते होते बहुत कुछ साफ हो गया कि,
"ये अकेले पाकिस्तान की हिमाकत नहीं हो सकती"
इसके बाद चीन ने फटे में टांग डालते हुए पाकिस्तान का समर्थन कर दिया, जबकि मोदी जी ने जब सबसे पहले जेडी वेंस से बात किए तो एक ही सवाल पूछे "आतंकियों तक अत्याधुनिक अमरीकी हथियार (कुछ 2022 के बाद निर्मित) कैसे पहुंचे, जिसके जवाब में अगले दिन वेंस ने भारत को समर्थन दे दिया।
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फिर शुरू हुआ सिंदूर का कहर, इसकी चोट पाकिस्तान, चीन और अमेरिका तीनों को बराबर लगी। ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका ने फिर से भारत पर बेहद घातक हमले का प्लान तैयार किया लेकिन तब तक ....
भारत ने घोषणा कर दिया कि "ऑपरेशन सिंदूर खत्म नहीं हुआ है, केवल स्थगित हुआ है। अब जो भी आतंकी हमला भारत पर होगा उसका पहला सीधा जिम्मेदार पाकिस्तान को मानते हुए तत्काल्ल कार्यवाही होगी। अब केवल आतंकी नहीं बल्कि उनके आकाओं को भी सजा दी जाएगी"
इससे पाकिस्तान की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। तब तक सिंधु जल समझौते जैसे कई नियम भारत ने हथियार के तौर पर पाकिस्तान पर दाग दिए।
इससे अमरीकी प्लान को ना केवल पाक सेना ने बल्कि उसके यहां बैठे आतंकियों के सरदारों ने भी नकार दिए।
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इस बीच हुआ ये कि अजित डोभाल जी और जयशंकर जी ने रूस और चीन को साथ लेकर कन्फर्म करा दिए कि ऑपरेशन सिंदूर से असली शिकार अमेरिका बना है, ना कि चीन। इस कहानी में ट्विस्ट ये आया कि चीन को लगने लगा कि यदि भारत के साथ उसके संबंध सुधरते है, तो वो सीधे अमेरिका को भी पछाड़ सकता है क्योंकि वर्तमान में चीन का रास्ता केवल अमेरिका ही रोकता है।
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इस बीच ट्रंप ने सोचा कि मोदी जी और मुनीर को एक साथ बैठा भर लूं, फिर तो जो कहूंगा वह दुनिया मानेगी ये समझते हुए उसने मोदीजी को कनाडा से सीधे अमेरिका आने का संदेश भेजा, जिसे मोदी जी ने एक लाइन में ठुकरा दिए।
इसके बाद जब वह साइप्रस , मॉरिशस जैसे छोटे देशों की यात्रा पर निकले तो उन देशों ने यह समझते हुए कि "मोदी जी ने हमारे लिए अमेरिका का न्योता ठुकरा दिए" उनका जबरदस्त स्वागत कर दिए।
इधर ट्रंप ने अपनी चाल बदलकर चीन को अपनी तरफ करने की कोशिश किया, लेकिन चीन ने भी रूस को ऊपर रखा।
फिर दूसरी चाल चली गई, अब आतंकी कारोबार पाकिस्तान से हटाकर दूसरे देश में ले जाने का। इसके लिए बांग्लादेश को चुना गया और अब उसकी तरफ पाक के रास्ते अमेरिका हाथ मिलाना चाह रहा है। लेकिन बांग्लादेश की पहले ही लगी पड़ी है। कब मोदी जी किधर से क्या कर देंगे यह सोचकर तो उसकी हलक सूखी पड़ी है, साथ ही अब चीन भी उसे भाव देना बंद कर दिया है।

अब अमेरिका को शायद पश्चिम बंगाल या केरल के रास्ते अपना मकसद पूरा करने का अवसर मिलने वाला है, लेकिन यहां भी मुश्किल पाकिस्तान की ही बढ़ेगी क्योंकि पुख्ता खबर है बांग्लादेश और नेपाल की सीमा पूरी तरह से सीलबंद है, जो थोड़ा बहुत है वह पंजाब के रास्ते ही हो सकता है।
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खैर ,
अभी देखना ये बाकी है कि भारत को अस्थिर करने के लिए अमेरिका यहां के किस दल को, किस व्यक्ति को और किन संगठनों को पैसे पहुंचाएगा।
#डब्बू_मिश्रा

1 month ago | [YT] | 1