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आज श्री कृष्ण 🪈 जन्माष्टमी (आठे) है। कृष्ण जी का जन्मदिन है। बिडम्बना देखिये जिनकी कोख से पैदा हुए उनकी ही गोद नसीब नहीं हुई। जहां पले बड़े वहां भी जान का खतरा बना रहा।
जिसको चाहा वह गोकुल के साथ ही छूट गईं। मथुरा की राजनीति ने भावनाओं को कुचल दिया। कह तो जरूर दिया कि, "उद्धो ,मोहि व्रज बिसरत नाही", पर लौट कर कभी नहीं गए।
कंस को जीत कर जो मथुरा पाई वह भी उनकी न हो सकी। जरासंध के डर से मथुरा छोड़ द्वारिका पहुंचे।
रानी, महारानी, पटरानी सब थी पर पहचाने गये राधा जी के नाम से जो उनके संग न रहीं। बांसुरी और मोरपंख से उनकी छवि बनी प्रेमी की शांती के पुजारी की लेकिन महाभारत से पूर्व एक भी शांतिवार्ता सफल नहीं हुई।
मंदिरों में पूज्य है राधा जी और बांसुरी के संग यानी संगीत और प्रेम के प्रतीक है। लेकिन युद्ध के उदघोष की कर्कश ध्वनि उन्हौने सुनी।
महाभारत में खुद खड़े थे निहत्थे और खुद की सेना युद्ध कर रही थी उनके ही खिलाफ पांडवों से।
पांडवों को जीतने की युक्ति बता रहे थे और उनके बड़े भाई बलराम उनसे ही नाराज थे। युध्द का कोलाहल था और वह गीता जैसी कविता अर्जुन को सुना रहे थे।
छलिया, माखन चोर, रणछोड़ जैसे अपशब्द ही उनके नाम बन गये और वो भी सुशोभित हो गये। जीत जरूरी थी और उन्हौने दुश्मन को हरा दिया बिना लड़े ही।
महाबली योद्धाओं से भी जो कभी पराजित नहीं हुए उनकी मृत्यु का कारण बना एक साधारण बहेलिया का तीर।
जिस द्वारिका को उन्हौने बसाया जहां उनका परिवार फला फूला वही लोग आपस में ही लड़ मरे और उसी द्वारिका को डूबते हुए भी उन्हौने देखा।
भगवान श्री कृष्ण जी का जीवन विरोधाभासी है। जो एक बार सही वही दूसरी बार गलत और सही व गलत ऐसे ही नहीं तर्क सहित।
जिन्हें राधा का प्रेम, मथुरा का वैभव, स्वजन का स्नेह न बांध सका उनको हम लोग सोचते है कि दीप, धूप, नेवैद्य, सुगंध, फल, फूल, वस्त्र अर्पित कर उपवास रख कर मना लेंगे और वे हम पर कृपा कर हमारे क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति कर देंगे।

तो हे साधो! वे खुद छलिया हैं तुम्हारे छल प्रपंच में न आयेंगे। अर्जुन जो उनका प्रिय शिष्य था उससे भी केवल कर्म करने और और मोह छोड़ने की बात कही विजय का आश्वासन उन्हें भी नहीं दिया।
कृष्ण को पाने के दो रास्ते है या तो राधा रानी की तरह निष्काम प्रेम करो और इतना समर्पण कर दो कि
उद्धो मन न भये दस बीस
एक हुतौ सो गयो श्याम संग
को अवराधे ईश...

या अर्जुन की तरह पूछो,
"यच्छ्रेय: स्यान्नीनिश्चतम् ब्रूहि तन्मे
शिष्यस्तेहं शाधि मप्तंतवाँ प्रपन्नम्।

और गीता के उपदेश को आत्मसात कर कर्मरत हो जाओ वरना बाकी जो सब तुम नौटंकी करते हो न उसे वो छलिया मंद मंद मुस्कराते हुए आनंद से देखते है।

3 weeks ago | [YT] | 5