एक समय की बात है एक प्रतापी राजा था, उसने अपने राजमहल में ब्राह्मणों के भोजन का आयोजन किया और यह आयोजन उसने अपने बाग़ बगीचे वाले स्थान पर रखा था, इसलिए रसोइया भी उसी स्थान पर जाकर भोजन पका रहा था.
उसी समय आकाश से एक चील आया, उस चील ने अपने मुंह में एक सर्प को दबाया हुआ था और जब वो चील उस बगीचे के उपर से जा रहा था उस समय उस सांप ने उस चील को डसने की कोशिश करी, जिसके कारण ज़हर की कुछ बूदें उस बर्तन में गिर गई जिस में ब्राह्मणों के लिए भोजन पकाया जा रहा था.
लेकिन उस रसोईये को इस बात का पता नहीं चला, उसे ज़रा भी आभास नहीं हुआ कि ज़हर की बूदें इस बर्तन में गिर गई हैं. फलस्वरूप वो सारा भोजन ज़हरीला हो गया और यह भोजन ब्राह्मणों ने खा लिया.
तो ज़हरीला भोजन करने के कारण सभी ब्राह्मणों की मृत्यु हो गई और एक साथ इतने ब्राह्मणों की मृत्यु हो जाना कोई अच्छी बात नहीं थी और यह तो घोर पाप हुआ.
अब भगवान के सामने यह प्रशन उठा कि इस पाप की सजा किसको दी जाए? उस राजा को, जिस ने इस भोजन का आयोजन किया था, लेकिन उसे तो पता भी नहीं था कि भोजन में ज़हर है.
या उस रसोईये को जिस ने वो भोजन बनाया था, परन्तु वो भी इस बात से अनभिज्ञ था कि यह भोजन ज़हरीला हो चुका है. तो क्या सज़ा उस चील को दी जाए जो उस सर्प को लेकर वहां से निकला और या फिर सज़ा उस सांप को दी जाए जिसने आत्मरक्षा के लिए उस ज़हर को उगला !!
तो यह बड़े असमंजस की स्थिति बन गई कि आखिर इतने बड़े घोर पाप की सज़ा किसको दी जाए, तो इस कर्म की सज़ा के लिए काफी दिन बीत गये.
फिर एक दिन कुछ ब्राह्मण उस नगर में आए और उन्होंने एक महिला से राजमहल का पता पूछा. उस महिला ने राजमहल का पता बता दिया लेकिन पता बताने के बाद उस महिला ने उन ब्राह्मणों से कहा कि आप जा तो रहे हैं राजमहल लेकिन थोडा संभल कर जाना, क्योंकि ये जो राजा है ये ब्राह्मणों को भोजन में ज़हर मिला कर दे देता है.
उस महिला के इतना कहते ही भगवान ने कहा कि इस कर्म के फल का अधिकारी मुझे मिल गया है, तो सभी ने भगवान से पूछा कि वो कोन है?
तो भगवान ने कहा कि इस महिला को इस कर्म की सज़ा दे दी जाए, तब सभी आश्चर्यचकित हो गए और वो बोले कि वो महिला तो उस समय वहां मौजूद भी नहीं थी, ना उसने ज़हर मिलाया, ना उसने भोजन पकाया और ना ही उस ने उन ब्राह्मणों को भोजन कराया, फिर इसकी सज़ा उसे क्यों दे रहे हैं?
तब भगवान ने कहा कि किसी भी कर्म का आनंद जो सबसे ज्यादा लेता है उसी को उसका फल भुगतना पड़ता है. इस पूरे कर्म में ना रसोईये को आनंद की अनुभूति हुई, ना राजा को आनंद की अनुभूति हुई, ना सर्प को हुई और उस चील को हुई !!
लेकिन इस घटना से सबसे ज्यादा आनंद और सबसे ज्यादा रस इस महिला को ही मिला है, इसलिए इस कर्म की सज़ा इसे भी भुगतनी पड़ेगी
सीख :-- कर्म के फल की व्याख्या इतनी आसान नहीं है. शब्द ही हमारे कर्म हैं, हम जो काम करते हैं वो तो हमारे कर्म होते ही हैं लेकिन जो हमारी किसी के प्रति भावनाएं है, वही हमारे कर्म हैं, हमारे विचार ही हमारे कर्म हैं. अगर आपने अपने विचारों पर नियंत्रण करना सीख लिया तब आप एक महान इंसान बन जाते हैं.
कर्मों का सिद्धांत बड़ा ही सरल है, जैसा आप किसी को दोगे, वैसा ही आपको वापिस मिलेगा, तो अपने मन से फैसला कर लीजिए कि आपको क्या चाहिए, तो अगर आप इस ब्रह्माण्ड को सकारात्मक उर्जा दोगे, तो आपको भी सकारात्मक उर्जा ही मिलेगी....
भक्ति भजन
एक समय की बात है एक प्रतापी राजा था, उसने अपने राजमहल में ब्राह्मणों के भोजन का आयोजन किया और यह आयोजन उसने अपने बाग़ बगीचे वाले स्थान पर रखा था, इसलिए रसोइया भी उसी स्थान पर जाकर भोजन पका रहा था.
उसी समय आकाश से एक चील आया, उस चील ने अपने मुंह में एक सर्प को दबाया हुआ था और जब वो चील उस बगीचे के उपर से जा रहा था उस समय उस सांप ने उस चील को डसने की कोशिश करी, जिसके कारण ज़हर की कुछ बूदें उस बर्तन में गिर गई जिस में ब्राह्मणों के लिए भोजन पकाया जा रहा था.
लेकिन उस रसोईये को इस बात का पता नहीं चला, उसे ज़रा भी आभास नहीं हुआ कि ज़हर की बूदें इस बर्तन में गिर गई हैं. फलस्वरूप वो सारा भोजन ज़हरीला हो गया और यह भोजन ब्राह्मणों ने खा लिया.
तो ज़हरीला भोजन करने के कारण सभी ब्राह्मणों की मृत्यु हो गई और एक साथ इतने ब्राह्मणों की मृत्यु हो जाना कोई अच्छी बात नहीं थी और यह तो घोर पाप हुआ.
अब भगवान के सामने यह प्रशन उठा कि इस पाप की सजा किसको दी जाए? उस राजा को, जिस ने इस भोजन का आयोजन किया था, लेकिन उसे तो पता भी नहीं था कि भोजन में ज़हर है.
या उस रसोईये को जिस ने वो भोजन बनाया था, परन्तु वो भी इस बात से अनभिज्ञ था कि यह भोजन ज़हरीला हो चुका है. तो क्या सज़ा उस चील को दी जाए जो उस सर्प को लेकर वहां से निकला और या फिर सज़ा उस सांप को दी जाए जिसने आत्मरक्षा के लिए उस ज़हर को उगला !!
तो यह बड़े असमंजस की स्थिति बन गई कि आखिर इतने बड़े घोर पाप की सज़ा किसको दी जाए, तो इस कर्म की सज़ा के लिए काफी दिन बीत गये.
फिर एक दिन कुछ ब्राह्मण उस नगर में आए और उन्होंने एक महिला से राजमहल का पता पूछा. उस महिला ने राजमहल का पता बता दिया लेकिन पता बताने के बाद उस महिला ने उन ब्राह्मणों से कहा कि आप जा तो रहे हैं राजमहल लेकिन थोडा संभल कर जाना, क्योंकि ये जो राजा है ये ब्राह्मणों को भोजन में ज़हर मिला कर दे देता है.
उस महिला के इतना कहते ही भगवान ने कहा कि इस कर्म के फल का अधिकारी मुझे मिल गया है, तो सभी ने भगवान से पूछा कि वो कोन है?
तो भगवान ने कहा कि इस महिला को इस कर्म की सज़ा दे दी जाए, तब सभी आश्चर्यचकित हो गए और वो बोले कि वो महिला तो उस समय वहां मौजूद भी नहीं थी, ना उसने ज़हर मिलाया, ना उसने भोजन पकाया और ना ही उस ने उन ब्राह्मणों को भोजन कराया, फिर इसकी सज़ा उसे क्यों दे रहे हैं?
तब भगवान ने कहा कि किसी भी कर्म का आनंद जो सबसे ज्यादा लेता है उसी को उसका फल भुगतना पड़ता है. इस पूरे कर्म में ना रसोईये को आनंद की अनुभूति हुई, ना राजा को आनंद की अनुभूति हुई, ना सर्प को हुई और उस चील को हुई !!
लेकिन इस घटना से सबसे ज्यादा आनंद और सबसे ज्यादा रस इस महिला को ही मिला है, इसलिए इस कर्म की सज़ा इसे भी भुगतनी पड़ेगी
सीख :--
कर्म के फल की व्याख्या इतनी आसान नहीं है. शब्द ही हमारे कर्म हैं, हम जो काम करते हैं वो तो हमारे कर्म होते ही हैं लेकिन जो हमारी किसी के प्रति भावनाएं है, वही हमारे कर्म हैं, हमारे विचार ही हमारे कर्म हैं. अगर आपने अपने विचारों पर नियंत्रण करना सीख लिया तब आप एक महान इंसान बन जाते हैं.
कर्मों का सिद्धांत बड़ा ही सरल है, जैसा आप किसी को दोगे, वैसा ही आपको वापिस मिलेगा, तो अपने मन से फैसला कर लीजिए कि आपको क्या चाहिए, तो अगर आप इस ब्रह्माण्ड को सकारात्मक उर्जा दोगे, तो आपको भी सकारात्मक उर्जा ही मिलेगी....
1 month ago | [YT] | 1