@Nisha Singh sahajayogini Bareilly

श्रीकृष्ण द्वारा सिखाया आत्मदर्शन ||


सहजयोग अब व्यापक रूप से फैल चुका है, पर जब तक यह हमारे भीतर वास्तविक रूप से प्रकट नहीं होगा, इसकी सच्ची अनुभूति नहीं हो सकती। श्रीकृष्ण का संदेश है — अपने अंदर झांकना, देखना कि कौन-सी बातें हमें दुविधा में डालती हैं। जैसे दर्पण में हम अपना चेहरा देखते हैं, वैसे ही आत्मा के दर्शन के लिए भीतर देखना आवश्यक है। इसके लिए पहले नम्र होना चाहिए, अन्यथा हम अपने ही विचारों में उलझे रहेंगे।

श्रीकृष्ण और यीशु मसीह दोनों ने कहा कि हमें छोटे बालक जैसा बनना चाहिए — भोला, अबोध और निर्मल। बच्चे चालाकी नहीं जानते, वे सबको प्रिय मानते हैं। हमें भी अपने भीतर उसी भोलेपन को ढूंढना और संजोना है। पर कई लोग सहजयोग में कपट और चतुराई के साथ आते हैं, जबकि असली प्रगति तभी होती है जब हम पहले स्वयं की ओर दृष्टि डालें और अपने दोष पहचानें।

दूसरों के दोष देखने से कुछ लाभ नहीं, क्योंकि वही दोष हमारे अंदर भी हो सकते हैं। सच्चे साधु-संत पहले अपने दोष देखते हैं और उन्हें सुधारने का प्रयास करते हैं। जब ध्यान भीतर जाता है, तो कुण्डलिनी हमें हमारे मार्ग की रुकावटें दिखाती है। सफाई के लिए जरूरी है कि दृष्टि सूक्ष्म और बारीक हो, ताकि भीतर छुपे दोष स्पष्ट दिख सकें।

दोष देखना कठिन नहीं, पर उनसे छूटना कठिन है। इसका उपाय है ध्यान — विशेषकर श्रीकृष्ण का ध्यान, जिससे भीतर की मलिनता धुलती है। पर समस्या यह है कि लोग दूसरों के दोष तो देख लेते हैं, पर अपने नहीं। यही हमारा अहंकार है, जो भीतर झांकने में सबसे बड़ा पर्दा बनता है।

श्रीकृष्ण ने हमें सिखाया कि पहले अपने भीतर की गलतियां देखो। जब हम अपने दोषों को पहचानते हैं और उन पर हंसते हैं, तो वे धीरे-धीरे समाप्त होते जाते हैं। यदि हमारी दृष्टि दूसरों पर केंद्रित है, तो हमारा चित्त बिखर जाता है। पर जब यह भीतर स्थिर होता है, तो सफाई का कार्य स्वयं होने लगता है।

आज का पर्व — श्रीकृष्ण पूजा — हमें यही स्मरण कराता है कि अपने भीतर झांकें। अहंकार और दुर्गुणों के पर्दे हटाकर, भोलेपन और निर्मलता के साथ भीतर उतरें। जब भीतर सफाई हो जाती है, तो शक्तियां स्वयं प्रकट होती हैं और अनेक कार्य कराती हैं — न कि अहंकार बढ़ाने के लिए, बल्कि आत्मा की शुद्धि के लिए।

अपने दोष देखने का अभ्यास करें। जैसे वस्त्र पर गंदगी को स्वयं साफ करना पड़ता है, वैसे ही भीतर की मलिनता को भी हमें ही हटाना होगा। ध्यान और आत्मनिरीक्षण से चित्त भीतर जाने लगेगा, और जब यह आदत बन जाएगी, तो सहजयोग का वास्तविक अनुभव होगा। यही श्रीकृष्ण की बाललीला का सार है — भोलेपन में डूबकर स्वयं को जानना और भीतर से निर्मल होना।


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1 week ago | [YT] | 440