आज के दौर में जब इंसान चाँद पर घर बनाने की बात कर रहा है, वहीं इस धरती पर लाखों ऐसे लोग हैं जिनके लिए एक वक्त का खाना भी एक सपना बन चुका है। हममें से बहुतों के लिए खाना महज़ एक दिनचर्या का हिस्सा है, लेकिन कुछ लोगों के लिए यह रोज़ की सबसे बड़ी चुनौती है।
गरीबी, बेरोज़गारी, और असमानता ने समाज में ऐसी खाई बना दी है जहाँ एक ओर थालियों में खाना फेंक दिया जाता है, तो दूसरी ओर भूखे पेट बच्चे सड़कों पर कचरे में कुछ खाने लायक तलाशते हैं। ये दृश्य सिर्फ तस्वीरों तक सीमित नहीं, बल्कि हमारे आस-पास हकीकत बनकर मौजूद हैं।
"एक वक्त का खाना सबके नसीब में नहीं होता" सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि समाज की उन कड़वी सच्चाइयों में से एक है जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। यह हमें हमारे ज़मीर से सवाल करने पर मजबूर करता है—क्या हम इंसानियत की उस कसौटी पर खरे उतर रहे हैं जहाँ हर पेट को भरपेट खाना मिल सके?
सरकारों की योजनाएं, एनजीओ की कोशिशें, और समाजसेवी संस्थाओं की मदद ज़रूर सराहनीय हैं, लेकिन असल बदलाव तब आएगा जब आम इंसान भी जागरूक होकर अपना योगदान देना शुरू करेगा। अगर हर घर से एक थाली खाना ज़रूरतमंद तक पहुंचे, तो शायद कोई बच्चा भूखा न सोए।
हमें अपने बच्चों को सिखाना होगा कि खाना सिर्फ स्वाद नहीं, एक संसाधन है—जिसकी कद्र करनी चाहिए। और हमें खुद यह समझना होगा कि हमारे थाली में जो है, वह लाखों लोगों की दुआओं का परिणाम है।
खाना बाँटने से घटता नहीं, बल्कि उसमें इंसानियत बढ़ती है। 🙏🙏🍂
MahendraMahi522
एक वक्त का खाना सबके नसीब में नहीं होता😌🌿
आज के दौर में जब इंसान चाँद पर घर बनाने की बात कर रहा है, वहीं इस धरती पर लाखों ऐसे लोग हैं जिनके लिए एक वक्त का खाना भी एक सपना बन चुका है। हममें से बहुतों के लिए खाना महज़ एक दिनचर्या का हिस्सा है, लेकिन कुछ लोगों के लिए यह रोज़ की सबसे बड़ी चुनौती है।
गरीबी, बेरोज़गारी, और असमानता ने समाज में ऐसी खाई बना दी है जहाँ एक ओर थालियों में खाना फेंक दिया जाता है, तो दूसरी ओर भूखे पेट बच्चे सड़कों पर कचरे में कुछ खाने लायक तलाशते हैं। ये दृश्य सिर्फ तस्वीरों तक सीमित नहीं, बल्कि हमारे आस-पास हकीकत बनकर मौजूद हैं।
"एक वक्त का खाना सबके नसीब में नहीं होता" सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि समाज की उन कड़वी सच्चाइयों में से एक है जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं। यह हमें हमारे ज़मीर से सवाल करने पर मजबूर करता है—क्या हम इंसानियत की उस कसौटी पर खरे उतर रहे हैं जहाँ हर पेट को भरपेट खाना मिल सके?
सरकारों की योजनाएं, एनजीओ की कोशिशें, और समाजसेवी संस्थाओं की मदद ज़रूर सराहनीय हैं, लेकिन असल बदलाव तब आएगा जब आम इंसान भी जागरूक होकर अपना योगदान देना शुरू करेगा। अगर हर घर से एक थाली खाना ज़रूरतमंद तक पहुंचे, तो शायद कोई बच्चा भूखा न सोए।
हमें अपने बच्चों को सिखाना होगा कि खाना सिर्फ स्वाद नहीं, एक संसाधन है—जिसकी कद्र करनी चाहिए। और हमें खुद यह समझना होगा कि हमारे थाली में जो है, वह लाखों लोगों की दुआओं का परिणाम है।
खाना बाँटने से घटता नहीं, बल्कि उसमें इंसानियत बढ़ती है।
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1 week ago | [YT] | 45