@Nisha Singh sahajayogini Bareilly

*अध्याय 1: अकास्मिक मृत्यु और दुर्घटनाएं - सहज पथ पर एक चेतावनी 🛑*

सहजयोग में आने के बाद व्यक्ति परम चैतन्य की सुरक्षा में आ जाता है। यह एक ऐसा सुरक्षा कवच है जो हमें अनगिनत नकारात्मक शक्तियों, बीमारियों और समस्याओं से बचाता है, जिनके बारे में हमें पता भी नहीं होता। फिर भी, जब हम किसी सहजयोगी के साथ कोई अनहोनी घटना सुनते हैं, तो हमारा विश्वास डगमगाने लगता है। श्री माताजी ने इस विषय पर बहुत स्पष्टता से समझाया है कि ऐसा क्यों होता है। इसके कारण बाहरी नहीं, बल्कि हमारे भीतर ही छिपे होते हैं।

*1.1. कर्मों का सिद्धांत: प्रारब्ध का वेग 🏹*

श्री माताजी ने बार-बार समझाया है कि सहजयोग में आने के बाद हमारे संचित कर्मों का एक बड़ा हिस्सा जल जाता है। कुंडलिनी माँ एक करुणामयी माँ की तरह हमारे कर्मों के बोझ को हल्का कर देती हैं। लेकिन, कुछ कर्म 'प्रारब्ध' होते हैं - यानी, वे कर्म जिनका फल शुरू हो चुका है, ठीक उस तीर की तरह जो धनुष से निकल चुका है।

*1.1.1. तीर जो छूट चुका है:* श्री माताजी ने एक सुंदर उदाहरण दिया था। यदि किसी ने अपने पिछले जन्मों में या इस जन्म में साक्षात्कार से पहले कोई बहुत बड़ा दुष्कर्म किया है, जिसका फल अब पक चुका है, तो उसे भोगना पड़ सकता है। सहजयोग उस फल की तीव्रता को बहुत कम कर सकता है, लेकिन उसे पूरी तरह से मिटा दे, यह उस कर्म के वेग और व्यक्ति के समर्पण पर निर्भर करता है।

*1.1.2. श्री माताजी का हस्तक्षेप:* माँ आदिशक्ति हैं, वे चाहें तो कुछ भी बदल सकती हैं। लेकिन वे प्रकृति के नियमों का सम्मान करती हैं, जिन्हें उन्होंने स्वयं बनाया है। वे हस्तक्षेप तभी करती हैं जब व्यक्ति पूर्ण समर्पण में हो, उसका हृदय बिल्कुल शुद्ध हो और वह पूरी तरह से सहज की मर्यादाओं में हो। यदि व्यक्ति का समर्पण आधा-अधूरा है, तो माँ भी पूरी तरह से हस्तक्षेप नहीं कर पातीं।

*1.1.3. कर्मों का जलना 🔥:* सहजयोग में हमारी नित्य साधना, ध्यान, फुटसोक (जल क्रिया), सामूहिकता - यह सब एक अग्नि की तरह हैं जो हमारे कर्मों के ढेर को जलाती रहती हैं। जो साधक इसमें ढिलाई बरतता है, वह अपने कर्मों को जलने का अवसर नहीं देता, और प्रारब्ध कर्म उसे पकड़ सकता है।

*1.1.4. सामूहिक कर्म:* कभी-कभी व्यक्ति सामूहिक कर्म का भी हिस्सा होता है - अपने परिवार, समाज या देश का। यदि उस समूह पर कोई बड़ी विपत्ति आनी है, तो एक सहजयोगी होने के नाते उसे भी उसका सामना करना पड़ सकता है, हालांकि परम चैतन्य उसकी रक्षा सर्वोत्तम तरीके से करेगा।

*1.2. समर्पण का अभाव: "मैं" का सबसे बड़ा रोड़ा 🧗*

श्री माताजी के अनुसार, सहजयोग में सबसे बड़ी बाधा और सभी समस्याओं की जड़ *"अहंकार"* और *"प्रति-अहंकार"* है। समर्पण का अर्थ है - अपने कर्तापन के भाव को श्री माताजी के श्री चरणों में रख देना।

*1.2.1. "मैं कर रहा हूँ" का भाव:* जैसे ही व्यक्ति सोचता है, *"मैं ध्यान कर रहा हूँ," "मैं प्रचार कर रहा हूँ," "मैं बहुत अच्छा सहजयोगी हूँ,"* वह परम चैतन्य से अपना संबंध काट लेता है। वह अपनी छोटी सी शक्ति पर निर्भर हो जाता है और परमात्मा की अनंत शक्ति से वंचित हो जाता है। दुर्घटनाएं और समस्याएं तब होती हैं जब हम अपनी सीमित बुद्धि से जीवन की गाड़ी चलाने की कोशिश करते हैं।

*1.2.2. ईश्वर पर संदेह:* जब जीवन में थोड़ी सी भी मुश्किल आती है, तो सहजयोगी का चित्त यदि डगमगा जाए और वह सोचे, *"माँ मेरी मदद क्यों नहीं कर रही हैं?"* - यह समर्पण की कमी का सबसे बड़ा लक्षण है। यह संदेह एक दीवार बना देता है। श्री माताजी ने कहा, *"मुझ पर संदेह मत करो, अपने आप पर संदेह करो।"* इसका अर्थ था कि अपनी साधना और समर्पण की कमी पर संदेह करो।

*1.2.3. शर्तें लगाना:* कई लोग सहजयोग में शर्तों के साथ आते हैं - *"अगर मेरी नौकरी लग जाएगी तो मैं सहजयोग करूँगा," "अगर मेरी बीमारी ठीक हो जाएगी तो मैं मानूँगा।"* श्री माताजी ने इसे एक सौदा बताया। परमात्मा से सौदा नहीं किया जा सकता। यह बिना शर्त प्रेम और समर्पण का मार्ग है। जो शर्तें लगाता है, वह हमेशा असुरक्षित रहता है।

*1.2.4. सच्चा समर्पण क्या है?:* सच्चा समर्पण है - *"माँ, आप ही कर्ता हैं और आप ही भोक्ता हैं।"* जीवन में जो भी हो रहा है, अच्छा या बुरा, उसे माँ की इच्छा मानकर स्वीकार करना। सुख में अहंकार नहीं और दुःख में निराशा नहीं। यह स्थिति व्यक्ति को हर दुर्घटना और नकारात्मकता से परे ले जाती है।

*1.3. मर्यादाओं का उल्लंघन: सुरक्षा कवच को तोड़ना 🛡️💥*

श्री माताजी ने सहजयोगियों के लिए कुछ नियम और मर्यादाएं बनाई थीं। ये बंधन नहीं, बल्कि हमारी सुरक्षा के लिए थे, ठीक ट्रैफिक नियमों की तरह। जो इन मर्यादाओं को तोड़ता है, वह स्वयं को दुर्घटना के लिए आमंत्रित करता है।

*1.3.1. नित्य साधना में आलस्य:* श्री माताजी ने जोर देकर कहा था - *"आपको दिन में दो बार ध्यान करना ही है और रोज़ रात को सोने से पहले जल क्रिया करनी है।"* यह हमारी आध्यात्मिक स्वच्छता *(spiritual hygiene)* है। जैसे हम रोज़ नहाते हैं, वैसे ही यह हमारे चक्रों और नाड़ियों की रोज़ की सफाई है। जो ऐसा नहीं करता, उसके चक्रों पर नकारात्मकता जमा होती जाती है, जो धीरे-धीरे बीमारी या किसी अनहोनी का रूप ले लेती है।

*1.3.2. सामूहिकता से दूरी:* *"एक लकड़ी को कोई भी तोड़ सकता है, पर लकड़ियों के गट्ठर को तोड़ना मुश्किल है।"* सामूहिकता हमारी सबसे बड़ी शक्ति और सुरक्षा है। जो व्यक्ति स्वयं को केंद्र से और सामूहिक ध्यान से दूर कर लेता है, वह अकेला पड़ जाता है और नकारात्मक शक्तियों का आसान शिकार बन जाता है। श्री माताजी ने कहा था कि जो सामूहिक से कट जाता है, वह ऐसे है जैसे शरीर से कोई अंग कट गया हो।

*1.3.3. आलोचना और गुटबाजी:* सहजयोग में सबसे बड़ा पाप है किसी दूसरे सहजयोगी की आलोचना करना। जब हम किसी की आलोचना करते हैं, तो हम उसकी सारी नकारात्मकता अपने ऊपर ले लेते हैं। गुटबाजी करना, एक-दूसरे के खिलाफ राजनीति करना - यह सब सहज के सिद्धांतों के बिल्कुल विरुद्ध है और यह व्यक्ति के विशुद्धि चक्र को पूरी तरह से नष्ट कर देता है, जिससे उसे हर तरह की समस्याएं घेर लेती हैं।

*1.3.4. धन और सहजयोग का मिश्रण:* श्री माताजी इस मामले में अत्यंत कठोर थीं। सहजयोगियों के बीच पैसे का लेन-देन, सहज के नाम पर व्यापार करना, या सहज को आर्थिक लाभ के लिए इस्तेमाल करना, इसे उन्होंने एक अक्षम्य अपराध बताया। ऐसा करने से व्यक्ति की लक्ष्मी तत्व की कृपा समाप्त हो जाती है और वह गंभीर आर्थिक और शारीरिक समस्याओं में फँस जाता है।

*1.3.5. आँख की मर्यादा:* सहजयोग में आँख की मर्यादा पर बहुत जोर दिया गया है। पुरुषों को स्त्रियों के प्रति एक माँ या बहन का भाव रखना और स्त्रियों को पुरुषों के प्रति एक पिता या भाई का भाव रखना। चंचल और अशुद्ध दृष्टि व्यक्ति के स्वाधिष्ठान और मूलाधार चक्र को खराब करती है, जो सभी प्रकार के व्यसनों, बीमारियों और पतन का मूल कारण है।

*1.4. "पकड़" और नकारात्मकता: अनदेखे दुश्मन 👻*

श्री माताजी ने *"पकड़" (catches)* शब्द का बहुत प्रयोग किया। इसका अर्थ है नकारात्मक शक्तियों या मृत आत्माओं का प्रभाव, जो हमारे चक्रों या नाड़ियों को पकड़ लेते हैं।

*1.4.1. इड़ा नाड़ी (चंद्र नाड़ी) की पकड़:* जो लोग बहुत भावुक होते हैं, अतीत में जीते हैं, स्वयं को दोषी मानते हैं, या गलत गुरुओं के पास गए होते हैं, उनकी इड़ा नाड़ी पर पकड़ होती है। इससे उन्हें सुस्ती, अवसाद *(depression)*, और असाध्य बीमारियाँ *(जैसे कैंसर)* हो सकती हैं। ये लोग अक्सर धीमी और दर्दनाक मृत्यु का शिकार हो सकते हैं अगर वे अपनी इस स्थिति को ठीक न करें।

*1.4.2. पिंगला नाड़ी (सूर्य नाड़ी) की पकड़:* जो लोग बहुत आक्रामक, अहंकारी, भविष्य की चिंता करने वाले, क्रोधी और दूसरों पर हावी होने वाले होते हैं, उनकी पिंगला नाड़ी अति-सक्रिय हो जाती है। श्री माताजी ने इसे *"Right-sided attack"* कहा। *ऐसे लोगों को दिल का दौरा (heart attack), उच्च रक्तचाप (high blood pressure), लिवर की समस्या और लकवा जैसी बीमारियाँ होती हैं।* दुर्घटनाएं भी अधिकतर अति-सक्रिय पिंगला नाड़ी के कारण होती हैं, क्योंकि व्यक्ति बहुत तेज और आक्रामक हो जाता है और उसका संतुलन बिगड़ जाता है।

*1.4.3. पकड़ आती कहाँ से है?:* गलत जगहों पर जाना *(अस्पताल, श्मशान, गंदे स्थान)*, गलत लोगों से मिलना, नकारात्मक विषयों पर सोचना, भूत-प्रेत की फिल्में देखना या किताबें पढ़ना, गलत गुरुओं और तांत्रिकों के चक्कर में पड़ना - यह सब पकड़ के मुख्य स्रोत हैं।

*1.4.4. पकड़ का निदान: श्री माताजी ने इससे बचने के बहुत सरल उपाय बताए हैं:*

*बंधन लेना:* घर से निकलने से पहले और किसी भी संदिग्ध स्थान पर बंधन लेना हमारा सबसे बड़ा सुरक्षा कवच है।

*जल क्रिया (Footsoaking):* यह सभी प्रकार की नकारात्मकता को निकालने का सबसे प्रभावी तरीका है। नमक का पानी सारी नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेता है।

*कपूर और मोमबत्ती का प्रयोग:* इड़ा नाड़ी की समस्याओं के लिए मोमबत्ती उपचार और पिंगला नाड़ी की समस्याओं के लिए बर्फ का प्रयोग *(ice-pack)* बहुत प्रभावी है।

*श्री गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ:* यह मूलाधार चक्र की सभी बाधाओं और नकारात्मकता को दूर करता है।

*जय श्री माताजी 💕🙏*

3 weeks ago | [YT] | 130