“क्रोध कब और किसलिए करना चाहिए ?” महाप्रभु जी जैसे जगाई मधाई पर क्रोध करते हैं और दूसरी तरफ कहा है अपने आप को तृण के समान समझना चाहिए तो कौन सी ऐसी परिस्थिति है जहाँ हमें क्रोध आवेग में आ जाना चाहिए और कब नहीं आना चाहिए? महाप्रभु उस समय आवेग में आए हैं श्रीनित्यानन्द प्रभु की महिमा को स्थापित करने के लिए। जिससे पूरा जगत श्रीनिताई प्रभु की उस उदारता का आनन्द ले। जितने भी आवेग है चाहे वो क्रोध हो चाहे काम हो इन सबका उत्स अभिमान से होता है। अगर आपमें अभिमान नहीं है तो इनका उत्स सम्भव ही नहीं होगा। महाप्रभु जी जो यहाँ क्रोध कर भी रहे हैं निश्चित रूप से अगर आप कभी किसी के ऊपर अत्याचार देख रहे हो, कभी किसी वैष्णव की स्थापना करनी हो तो वो आवेग भी स्वभावतः नहीं है वो आवेग भी मात्र परिस्थिति जन्य है जैसे माँ बेटे पर कभी गुस्सा कर नहीं सकती वो मात्र क्रोध करने का अभिनय करती है जिससे वो उसको सुधार सके। तो मेरा ऐसा ही मानना है अपने लिए नहीं राष्ट्र के प्रति, ईष्ट के प्रति, गुरु के प्रति, गैया के प्रति, वैष्णव के प्रति, अपने बड़ो के प्रति अगर कभी अनादर सुनें तो आपको हृदयसे प्रार्थना ही करनी चाहिए कि श्रीठाकुरजी आप इसका मन जल्दी बदलिए पर आवश्यकता हो तो मात्र कभी-कभी आवेग का अभिनय कर सकते हैं। महाप्रभु जी ने भी आवेग का अभिनय किया और उसका उद्देश्य था श्रीनित्यानन्द प्रभु की महिमा को स्थापित करना। . . .
Nimai Pathshala
“क्रोध कब और किसलिए करना चाहिए ?”
महाप्रभु जी जैसे जगाई मधाई पर क्रोध करते हैं और दूसरी तरफ कहा है अपने आप को तृण के समान समझना चाहिए तो कौन सी ऐसी परिस्थिति है जहाँ हमें क्रोध आवेग में आ जाना चाहिए और कब नहीं आना चाहिए?
महाप्रभु उस समय आवेग में आए हैं श्रीनित्यानन्द प्रभु की महिमा को स्थापित करने के लिए। जिससे पूरा जगत श्रीनिताई प्रभु की उस उदारता का आनन्द ले।
जितने भी आवेग है चाहे वो क्रोध हो चाहे काम हो इन सबका उत्स अभिमान से होता है। अगर आपमें अभिमान नहीं है तो इनका उत्स सम्भव ही नहीं होगा। महाप्रभु जी जो यहाँ क्रोध कर भी रहे हैं निश्चित रूप से अगर आप कभी किसी के ऊपर अत्याचार देख रहे हो, कभी किसी वैष्णव की स्थापना करनी हो तो वो आवेग भी स्वभावतः नहीं है वो आवेग भी मात्र परिस्थिति जन्य है
जैसे माँ बेटे पर कभी गुस्सा कर नहीं सकती वो मात्र क्रोध करने का अभिनय करती है जिससे वो उसको सुधार सके। तो मेरा ऐसा ही मानना है अपने लिए नहीं राष्ट्र के प्रति, ईष्ट के प्रति, गुरु के प्रति, गैया के प्रति, वैष्णव के प्रति, अपने बड़ो के प्रति अगर कभी अनादर सुनें तो आपको हृदयसे प्रार्थना ही करनी चाहिए कि श्रीठाकुरजी आप इसका मन जल्दी बदलिए पर आवश्यकता हो तो मात्र कभी-कभी आवेग का अभिनय कर सकते हैं।
महाप्रभु जी ने भी आवेग का अभिनय किया और उसका उद्देश्य था श्रीनित्यानन्द प्रभु की महिमा को स्थापित करना।
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2 years ago | [YT] | 285