कन्नौज की तंग गलियों में इत्र बेचने वाले आरिफ और माया की मोहब्बत की खुशबू हर जगह थी। आरिफ हर बार माया के लिए एक खास इत्र बनाता था- "उसके नाम का इत्र"। एक दिन माया की शादी किसी और से तय हो गई। विदाई वाले दिन आरिफ ने उसे आख़िरी बार वो इत्र भेंट किया। माया ने वो शीशी सीने से लगाकर कहा, "जब भी इसकी खुशबू आएगी, तू याद आएगा।" सालों बीत गए, आरिफ अब बूढ़ा है, मगर हर शाम वही इत्र सूंघकर उसकी आँखों से चुपचाप आंसू बहते हैं... जैसे वक़्त थम गया हो।
SD verma Kannauj
कन्नौज की तंग गलियों में इत्र बेचने वाले आरिफ और माया की मोहब्बत की खुशबू हर जगह थी। आरिफ हर बार माया के लिए एक खास इत्र बनाता था- "उसके नाम का इत्र"। एक दिन माया की शादी किसी और से तय हो गई। विदाई वाले दिन आरिफ ने उसे आख़िरी बार वो इत्र भेंट किया। माया ने वो शीशी सीने से लगाकर कहा, "जब भी इसकी खुशबू आएगी, तू याद आएगा।" सालों बीत गए, आरिफ अब बूढ़ा है, मगर हर शाम वही इत्र सूंघकर उसकी आँखों से चुपचाप आंसू बहते हैं... जैसे वक़्त थम गया हो।
6 days ago | [YT] | 0