20 अगस्त, जेम्स प्रिंसेप की 224 वी जंयती हैं. उन्हे " फादर ऑफ इंडियन एपिग्राफी" कहा जाता हैं. आज जो बौद्धकालीन इतिहास दुनिया देख रही हैं उसका भारत में पुनरूत्थान इसी महापुरुषने सर्वप्रथम प्राचीन धम्मलिपी को पढकर किया है.
17 वी सदी तक भारत में बौद्ध कालीन इतिहास को भुला दिया था. प्राचीन बौद्ध गुफाओं को पांडव गुफा और अशोक स्तंभ को भीम की गधा नाम से अप प्रचार भारतीय पुरोहित करते थे. भारत की इस प्राचीन लिपि को पढ़ने का प्रयास मुगलों ने भी किया था, लेकिन यहा के पुरोहितों ने नकली गपोडपंती किताब लिखकर अनेक भ्रांतीया फैलाई थी. भारत में ऐसा कोई विद्वान नही था जो इस लिपि को सही पढ़ सके.
20 अगस्त 1799 में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान का जन्म ब्रिटेन में हुआ जिसने भारत का इतिहास और भूगोल ही बदल दिया. जेम्स प्रिंसेप परक मास्टर के काम हेतु भारत आए और उनकी विशेष रुचि प्राचीन सिक्को के प्रति थी. वह भारत में अनेक प्राचीन अभिलेख पत्थरों लिखे हुऐ देखते थे लेकिन उसे पढ़ानेवाला कोई भारत में नही था. उन्होने प्राचीन इंडो ग्रीक सिक्कों का बारीकी से अध्ययन किया और सर्वप्रथम दानं (𑀤𑀸𑀦𑀁) शब्द को पढ़ा और आगे चलकर देवनापीय ( 𑀤𑁂𑀯𑀦𑀸𑀧𑀺𑀬) शब्द भी पढ़ लिया.
जेम्स प्रिसेप ने 1838 में धम्मलीपी को इंडो ग्रीक सिक्कों के जरिए संपूर्णता पढ़ लिया और उसकी वर्णमाला भी बनाई. इन सिक्को पर रोमन और धम्मलीपी में प्राचीन ग्रीक बौद्ध राजाओं का वर्णन था, इसी तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर उन्होंने धम्मलीपी को डिकोड किया. उन्हे नही पता था की देवानापीय कौन है? उन्हे लगा की यह बुद्ध का ही नाम हो सकता है. उन्हे लिपि तो समझ आई लेकिन उसकी भाषा नही पता थी. इस पर उनकी सहायता श्रीलंका में मौजूद उनके मित्र पाली भाषा के विद्वान मिस्टर टर्नर ने की जो राजवंश ग्रंथ का अध्ययन कर रहे थे.
इस प्रकार जेम्स प्रिंसेप ने पूरी दुनिया के सामने प्राचीन बौद्घमय भारत का इतिहास रखा और भुलाए गए महान राजा सम्राट अशोक के इतिहास का उनारुत्थान किया. दुर्भाग्य से 1838 में एक बीमारी के कारण उनकी लंदन में मृत्यु हुई. लेकिन उन्होंने अब संशोधन करने के लिए एक नया लिपि का हथियार दिया था, जिसपर अलेक्जेंडर कनिंगम जैसे विद्वानों ने यह साबित कर दिया की भारत बुद्ध की भूमि है..... भारत के कण कण में बुद्ध की निशानियां मौजूद है....क्युकी बुद्ध सत्य हैं.
अगर जेम्स प्रिंसिप 10 साल भी जीवित होते तो भारत का इतिहास कुछ और होता. क्युकी उनके मृत्यु बाद भारत के जातिवादी इतिहासकारो ने इस लिपि को "ब्राह्मी" नाम दिया. सम्राट अशोक के अनेक अभिलेखों में इस लिपि का स्पष्ट उल्लेख "धम्मलीपी" लिखा हुआ हैं. अजीब बात तो यह है की, ब्राह्मी को हम इस लिपि में लिख ही नहीं सकते. अगर लिखने का प्रयास किया तो इसका उच्चारण "बुम्मी" ऐसा होता हैं.
मैं उम्मीद करता हु की बहुजन अपना इतिहास स्वयं जान ले, स्वयं पढ़े. इसी लिए मैने धम्मलीपी को अनेक बौद्घ गुफाओं में पढ़ाया हैं. आप भी बिल्कुल मुफ्त में घर बैठे आप सिख सकते है. धम्मलीपी तथा जेम्स प्रिंसेप पर मैने डॉक्यूमेंट्री बनाई है उसे आप जरूर देखे. इसकी लिंक मैने डिस्क्रिप्शन में दी हैं.
Buddha Paradise
जेम्स प्रिंसेप जयंती की शुभ कामनाएं......
20 अगस्त, जेम्स प्रिंसेप की 224 वी जंयती हैं. उन्हे " फादर ऑफ इंडियन एपिग्राफी" कहा जाता हैं. आज जो बौद्धकालीन इतिहास दुनिया देख रही हैं उसका भारत में पुनरूत्थान इसी महापुरुषने सर्वप्रथम प्राचीन धम्मलिपी को पढकर किया है.
17 वी सदी तक भारत में बौद्ध कालीन इतिहास को भुला दिया था. प्राचीन बौद्ध गुफाओं को पांडव गुफा और अशोक स्तंभ को भीम की गधा नाम से अप प्रचार भारतीय पुरोहित करते थे. भारत की इस प्राचीन लिपि को पढ़ने का प्रयास मुगलों ने भी किया था, लेकिन यहा के पुरोहितों ने नकली गपोडपंती किताब लिखकर अनेक भ्रांतीया फैलाई थी. भारत में ऐसा कोई विद्वान नही था जो इस लिपि को सही पढ़ सके.
20 अगस्त 1799 में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान का जन्म ब्रिटेन में हुआ जिसने भारत का इतिहास और भूगोल ही बदल दिया. जेम्स प्रिंसेप परक मास्टर के काम हेतु भारत आए और उनकी विशेष रुचि प्राचीन सिक्को के प्रति थी. वह भारत में अनेक प्राचीन अभिलेख पत्थरों लिखे हुऐ देखते थे लेकिन उसे पढ़ानेवाला कोई भारत में नही था. उन्होने प्राचीन इंडो ग्रीक सिक्कों का बारीकी से अध्ययन किया और सर्वप्रथम दानं (𑀤𑀸𑀦𑀁) शब्द को पढ़ा और आगे चलकर देवनापीय ( 𑀤𑁂𑀯𑀦𑀸𑀧𑀺𑀬) शब्द भी पढ़ लिया.
जेम्स प्रिसेप ने 1838 में धम्मलीपी को इंडो ग्रीक सिक्कों के जरिए संपूर्णता पढ़ लिया और उसकी वर्णमाला भी बनाई. इन सिक्को पर रोमन और धम्मलीपी में प्राचीन ग्रीक बौद्ध राजाओं का वर्णन था, इसी तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर उन्होंने धम्मलीपी को डिकोड किया. उन्हे नही पता था की देवानापीय कौन है? उन्हे लगा की यह बुद्ध का ही नाम हो सकता है. उन्हे लिपि तो समझ आई लेकिन उसकी भाषा नही पता थी. इस पर उनकी सहायता श्रीलंका में मौजूद उनके मित्र पाली भाषा के विद्वान मिस्टर टर्नर ने की जो राजवंश ग्रंथ का अध्ययन कर रहे थे.
इस प्रकार जेम्स प्रिंसेप ने पूरी दुनिया के सामने प्राचीन बौद्घमय भारत का इतिहास रखा और भुलाए गए महान राजा सम्राट अशोक के इतिहास का उनारुत्थान किया. दुर्भाग्य से 1838 में एक बीमारी के कारण उनकी लंदन में मृत्यु हुई. लेकिन उन्होंने अब संशोधन करने के लिए एक नया लिपि का हथियार दिया था, जिसपर अलेक्जेंडर कनिंगम जैसे विद्वानों ने यह साबित कर दिया की भारत बुद्ध की भूमि है..... भारत के कण कण में बुद्ध की निशानियां मौजूद है....क्युकी बुद्ध सत्य हैं.
अगर जेम्स प्रिंसिप 10 साल भी जीवित होते तो भारत का इतिहास कुछ और होता. क्युकी उनके मृत्यु बाद भारत के जातिवादी इतिहासकारो ने इस लिपि को "ब्राह्मी" नाम दिया. सम्राट अशोक के अनेक अभिलेखों में इस लिपि का स्पष्ट उल्लेख "धम्मलीपी" लिखा हुआ हैं.
अजीब बात तो यह है की, ब्राह्मी को हम इस लिपि में लिख ही नहीं सकते. अगर लिखने का प्रयास किया तो इसका उच्चारण "बुम्मी" ऐसा होता हैं.
मैं उम्मीद करता हु की बहुजन अपना इतिहास स्वयं जान ले, स्वयं पढ़े. इसी लिए मैने धम्मलीपी को अनेक बौद्घ गुफाओं में पढ़ाया हैं. आप भी बिल्कुल मुफ्त में घर बैठे आप सिख सकते है. धम्मलीपी तथा जेम्स प्रिंसेप पर मैने डॉक्यूमेंट्री बनाई है उसे आप जरूर देखे. इसकी लिंक मैने डिस्क्रिप्शन में दी हैं.
https://youtu.be/WuWYxZb5kFU?si=K0r-W...
- Umakant Mane
1 year ago (edited) | [YT] | 136