Hindu Rituals - हिन्दू रीति रिवाज

नियंता द्वारा बनाया गया विधि विधान कभी गलत नहीं हो सकता। परंतु मनुष्य इतना महत्वकांक्षी है कि वह अपनी आवश्यकताओं के हिसाब से नियंता के बनाए विधि विधान को छेड़ता रहता है । जिसका उन्हें तत्काल लाभ तो मिल जाता है परंतु उससे होने वाली हानि आने वाली पीढ़ियों को भुगतनी पड़ती है।
उदाहरणार्थ; जिसने भी दर्पण का आविष्कार किया होगा वह अपने आप को बहुत बड़ा आविष्कारक मानता होगा। उसने लोगों को दर्पण के कई गुण बताए होंगे।
परंतु इस दर्पण के आविष्कार ने मनुष्य की आइडेंटिटी ही बदल कर रख दी। इस दर्पण ने मनुष्य होने के मायने ही बदल डालें।

अगर नियंता यह चाहता कि व्यक्ति अपनी वास्तविक पहचान सिर्फ अपनी शारीरिक बनावट और रूपरेखा से करे तो नियंता ने आंखें चेहरे पर न देकर शरीर के किसी अन्य हिस्से में बनाई होती।
नियंता ने आंखें दीं, दुनिया को देखने के लिए। ताकि आप अन्य व्यक्ति, जीव और वस्तुओं को पहचान सको।
नियंता ने मनुष्य को स्वयं को देखने के लिए अंतर्मन के चक्षु दिए हैं। ताकि जब व्यक्ति स्वयं को देखना चाहे तो अपनी आंखें बंद करे और अपने अंतर्मन में झांके। फिर उसे अपनी वास्तविक छवि का सही दर्शन हो।
परंतु दर्पण का आविष्कार मनुष्य को अंदर झांकने का मौका ही नहीं देता। मनुष्य को जब अपनी रूप रेखा देखना, निहारना होता है तो वह दर्पण के सामने खड़े होकर एक क्षणभंगुर चेहरे को देखकर उसमें गोते लगाना शुरू करता है।
वह अपनी वास्तविक पहचान तक कभी पहुंच ही नहीं पाता।
अपनी वास्तविक पहचान को समझने के लिए तो अपनी आंखें बंद करके अंदर की तरफ यात्रा शुरू करनी पड़ती है, यह तभी संभव है ।
दर्पण में स्वयं को देखकर मनुष्य अपनी नज़रों में स्वयं को सुंदर देखता है और फिर मायावश उसमें ही उलझा रहता है। जब की वास्तविकता कुछ और है।
दर्पण में आप जिस प्रतिबिंब को देखकर फूले नहीं समा रहे, वास्तव में वह प्रतिबिंब आपको रिप्रेजेंट नहीं करती।
आपको रिप्रेजेंट करती है आपकी चेतना और आपका लौकिक व्यवहार।

अस्तु आप अपनी वास्तविक छवि तो तभी देख सकेंगे जब आप अंतर्मन की दृष्टि से स्वयं को देखेंगे।
"दर्पण में स्वयं को देखना तो स्वयं के साथ छलावा है" ।

धन्यवाद,
राजीव सिंह
हर हर महादेव..
!! जय शिवशक्ति !!
🙏🏻🚩🔱🪷🙇🏻‍♂️

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1 month ago | [YT] | 58