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Chandan IAS Tutorial
🌹🙏शुभ दीपावली 🙏🌹
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युद्ध नहीं जिनके जीवन में,
वे बड़े अभागे होंगे।
या तो प्रण को तोड़ें होंगे,
या तो रण से भागे होंगे
दीपक का कुछ अर्थ नहीं है,
जब तक तम से नहीं लड़ेगा
दिनकर नहीं प्रभा बांटेगा,
जब तक स्वयं नहीं धधकेगा
कभी धधकती ज्वाला के बिन,
कुंदन भला बना है सोना
बिना घिसे मेंहदी ने बोलो
कब पाया है रंग सलोना
जीवन के पथ के राही को
क्षण भर भी विश्राम नहीं है
कौन भला स्वीकार करेगा
जीवन एक संग्राम नहीं है
अपना अपना युद्ध सभी को
हर युग में लड़ना पड़ता है
और समय के शिलालेख पर
खुद को खुद मढ़ना पड़ता है
2 months ago | [YT] | 2
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श्रीराधा का त्यागमय एकाङ्गी निर्मल भाव
पवित्रतम प्रेम-सुधामयी श्रीराधा ने प्रियतम प्रेमार्णव श्रीश्यामसुन्दर के दर्शन करके सर्वसमर्पण कर दिया। अब वे आठों पहर उन्हीं के प्रेम-रस-सुत्र-समुद्र में निमग्न रहने लगीं। श्यामसुन्दर मिले-न-मिले इसकी तनिक भी परवा न करके वे रात-दिन अकेले में बैठी मन-ही-मन किसी विचित्र दिव्य भावराज्य में विचरण किया करतीं। न किसी से कुछ कहतीं, न कुछ चाहतीं, न कहीं जाती-आती। एक दिन एक अत्यन्त प्यारी सखी ने आकर बहुत ही स्नेह से इस अज्ञात विलक्षण दशा का कारण पूछा तथा यह जानना चाहा कि वह सबसे विरत होकर दिन-रात क्या करती है। यह सुनकर श्रीराधा- के नेत्रों से अश्रुबिन्दु गिरने लगे और वे बोलीं- 'प्रिय सखी! हृदय की अतिगोपनीय यह मेरी महामूल्यमयी अत्यन्त प्रिय वस्तु, जिसका मूल्य मैं भी नहीं जानती, किसी को दिखलाने, बतलाने या समझाने की वस्तु नहीं है; पर तेरे सामने सदा मेरा हृदय खुला रहा है। तू मेरी अत्यन्त अन्तरङ्गा, मेरे ही सुख के लिये सर्वस्वत्यागिनी, परम वैराग्यनी, मेरे राग की मूर्तिमान् प्रतिमा है, इससे तुझे अपनी स्थिति, अपनी इच्छा, अभिलाषा का किंचित् दिग्दर्शन कराती हूँ। सुन-
'प्रिय सखी! मेरे प्रभु के श्रीचरणों में मैं और जो कुछ भी मेरा था, सब समर्पित हो गया। मैंने किया नहीं, हो गया। जग में पता नहीं किस काल से जो मेरा डेरा उगा था, वह सारा डेरा सदा के लिये उठ गया। मेरी सारी ममता सभी प्राणी-पदार्थ-परिस्थितियों से हट गयी, अब तो मेरी सम्पूर्ण ममता का सम्बन्ध केवल एक प्रियतम प्रभु से ही रह गया। जग में जहाँ कहीं भी, जितना भी, जो भी मेरा प्रेम, विश्वास और आत्मीयता का सम्बन्ध या, सब मिट गया । सब ओर से मेरे सारे बन्धन खुल गये। अब तो मैं केवल उन्ही के श्रीचरणों में बँध गयी। उनमें ही सारा प्रेम केन्द्रित हो गया। उन्हीं का भाव रह गया। यह सारा संसार भी उन्हीं में विलीन हो गया। मेरे लिये उनके सिवा किसी प्राणी-पदार्थ-परिस्थिति की सत्ता ही शेष नहीं रह गयी, जिससे मेरा कोई व्यवहार होता। पर सखी! मैं नहीं चाहती मेरी इस स्थिति का किसी को कुछ भी पता लगे। और तो क्या, मेरी यह स्थिति मेरे प्राणप्रियतम प्रभु से भी सदा अज्ञात ही रहे। प्यारी सखी! मैं सुन्दर सरस सुगन्धित सुकोमल सुमन से (सुन्दर मन से) सदा उनकी पूजा करती रहती हूं, पर बहुत ही छिपाकर करती हूँ; मैं सदा इसी डर से डरती रहती हूँ, कहीं मेरी इस पूजा का प्राणनाथ को पता न चल जाय। मैं केवल यही चाहती हूँ कि मेरी पवित्र पूजा अनन्त काल तक सुरक्षित चलती रहे। मैं कहीं भी रहूं, कैसे भी रहूँ, इस पूजा का कभी अन्त न हो और मेरी यह पूजा किसी दूसरे को- प्राणप्रियतम को भी आनन्द देने के उद्देश्य से न हो, इस मेरी पूजा से सदा-सर्वदा मैं ही आनन्द-लाभ करती रहूं। इस पूजा में ही मेरी रुचि सदा बढ़ती रहे, इसी से नित्य ही परमानन्द की प्राप्ति होती रहे। यह पूजा सदा बढ़ती रहे और यह चढ़ती हुई पूजा ही इस का अंत हो। इस पूजा में मैं नित्य-निरन्तर प्रियतम के अतिशय सौन्दर्य को देखती रहूँ। पर कभी भी वे प्रियतम मुझे और मेरी पूजा को न देख पायें। वे यदि देख पायेंगे तो उसी समय मेरा सारा मजा किरकिरा हो जायगा। फिर मेरा यह एकाङ्गी निर्मल भाव नहीं रह सकेगा। फिर तो प्रियतम से नये-नये सुख प्राप्त करने के लिये मन में नये-नये चाव उत्पन्न होने लगेंगे।'
यों कहकर राधा चुप हो गयी, निर्निमेष नेत्रो से मन-ही-मन प्रियतम के रूप-सौन्दर्य को देखने लगी।
3 months ago | [YT] | 0
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कभी सूरदास ने एक स्वप्न देखा था
रुक्मणी और राधिका मिली हैं
और एक-दूजे पर निछावर हुई जा रही हैं
सोचता हूँ
कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी
दोनों ने प्रेम किया था
एक ने बालक कन्हैया से
दूसरे ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से
एक को मिला
मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया
दूसरे को मिले
सुदर्शन चक्रधारी महायोद्धा कृष्ण
कृष्ण राधिका के बाल सखा थे
पर राधिका का दुर्भाग्य था
उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा
न महाभारत के कुचक्र को सुलझाते चतुर कृष्ण
न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण
रुक्मणी कृष्ण की पत्नी थीं
महारानी थीं
पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी
जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण रखता है
न माखन चोर
न गौ-चरवाहा
उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी
न ही माखन
कितनी अद्भुत लीला है
राधिका के लिए कृष्ण कन्हैया
रुक्मणी के लिए कन्हैया कृष्ण
पत्नी होकर भी रुक्मणी को कृष्ण उतने नहीं मिले
कि वे उन्हें "तुम" कह पातीं
आप से तुम तक की यह यात्रा
पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है
रुक्मणी कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं
राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही "तुम" से हुई थी
उन्होंने प्रारम्भ ही चरम से किया था
शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले
कितना अजीब है न
कृष्ण जिसे नहीं मिले
युगों-युगों से आजतक उसी के हैं
और जिसे मिले
उसे मिले ही नहीं
इसीलिए कहा जाता है
कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये
यदि पाने का प्रयास कीजियेगा
तो कभी नहीं मिलेंगे
बस प्रेम कीजिए और छोड़ दीजिए
जीवन भर साथ निभाएँगे कृष्ण
कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं
राधिका हों या सुदामा
कृष्ण ने मित्रता निभाई तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया
राधा और रुक्मणी जब मिली होंगी
रुक्मणी राधा के वस्त्रों में माखन की गंध ढूँढती होंगी
और राधा
रुक्मणी के आभूषणों में कृष्ण का वैभव तलाशती होंगी
कौन जाने मिला भी या नहीं
सबकुछ कहाँ मिलता है मनुष्य को
कुछ न कुछ तो छूटता ही रहता है
जितनी चीज़ें कृष्ण से छूटीं
उतनी तो किसी से नहीं छूटीं
कृष्ण से उनकी माँ छूटी
पिता छूटे
नंद-यशोदा भी छूटे
संगी-साथी छूटे
राधा छूटीं
गोकुल छूटा
फिर मथुरा भी छूटी
कृष्ण से जीवन भर कुछ न कुछ छूटता ही रहा
कृष्ण जीवन भर त्याग करते रहे
हमारी आज की पीढ़ी
जो कुछ भी छूटने पर टूटने लगती है
उसे कृष्ण को गुरु बना लेना चाहिए
जो कृष्ण को समझ लेगा
वह कभी अवसाद में नहीं जाएगा
कृष्ण आनंद के देवता हैं
कुछ छूटने पर भी कैसे खुश रहा जा सकता है
यह कृष्ण से अच्छा कोई सिखा ही नहीं सकता
मेरे कृष्ण कन्हैया
वो सचमुच महागुरु हैं।🙏
~by Ashish sir
4 months ago | [YT] | 1
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*विद्यार्थी और राजनीति - भगतसिंह (1928)*
[इस महत्वपूर्ण राजनीतिक मसले पर यह लेख जुलाई, 1928 में ‘किरती’ में छपा था। उन दिनों अनेक नेता विद्यार्थियों को राजनीति में हिस्सा न लेने की सलाहें देते थे, जिनके जवाब में यह लेख बहुत महत्वपूर्ण है। यह लेख सम्पादकीय विचारों में छपा था, और सम्भवतः भगतसिंह का लिखा हुआ है।- सं.]
इस बात का बड़ा भारी शोर सुना जा रहा है कि पढ़ने वाले नौजवान(विद्यार्थी) राजनीतिक या पोलिटिकल कामों में हिस्सा न लें। पंजाब सरकार की राय बिल्कुल ही न्यारी है। विद्यार्थी से कालेज में दाखिल होने से पहले इस आशय की शर्त पर हस्ताक्षर करवाये जाते हैं कि वे पोलिटिकल कामों में हिस्सा नहीं लेंगे। आगे हमारा दुर्भाग्य कि लोगों की ओर से चुना हुआ मनोहर, जो अब शिक्षा-मन्त्री है, स्कूलों-कालेजों के नाम एक सर्कुलर या परिपत्र भेजता है कि कोई पढ़ने या पढ़ानेवाला पालिटिक्स में हिस्सा न ले। कुछ दिन हुए जब लाहौर में स्टूडेंट्स यूनियन या विद्यार्थी सभा की ओर से विद्यार्थी-सप्ताह मनाया जा रहा था। वहाँ भी सर अब्दुल कादर और प्रोफसर ईश्वरचन्द्र नन्दा ने इस बात पर जोर दिया कि विद्यार्थियों को पोलटिक्स में हिस्सा नहीं लेना चाहिए।
पंजाब को राजनीतिक जीवन में सबसे पिछड़ा हुआ(Politically backward) कहा जाता है। इसका क्या कारण है?क्या पंजाब ने बलिदान कम किये हैं? क्या पंजाब ने मुसीबतें कम झेली है? फिर क्या कारण है कि हम इस मैदान में सबसे पीछे है?इसका कारण स्पष्ट है कि हमारे शिक्षा विभाग के अधिकारी लोग बिल्कुल ही बुद्धू हैं। आज पंजाब कौंसिल की कार्रवाई पढ़कर इस बात का अच्छी तरह पता चलता है कि इसका कारण यह है कि हमारी शिक्षा निकम्मी होती है और फिजूल होती है, और विद्यार्थी-युवा-जगत अपने देश की बातों में कोई हिस्सा नहीं लेता। उन्हें इस सम्बन्ध में कोई भी ज्ञान नहीं होता। जब वे पढ़कर निकलते है तब उनमें से कुछ ही आगे पढ़ते हैं, लेकिन वे ऐसी कच्ची-कच्ची बातें करते हैं कि सुनकर स्वयं ही अफसोस कर बैठ जाने के सिवाय कोई चारा नहीं होता। जिन नौजवानों को कल देश की बागडोर हाथ में लेनी है, उन्हें आज अक्ल के अन्धे बनाने की कोशिश की जा रही है। इससे जो परिणाम निकलेगा वह हमें खुद ही समझ लेना चाहिए। यह हम मानते हैं कि विद्यार्थियों का मुख्य काम पढ़ाई करना है, उन्हें अपना पूरा ध्यान उस ओर लगा देना चाहिए लेकिन क्या देश की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार सोचने की योग्यता पैदा करना उस शिक्षा में शामिल नहीं?यदि नहीं तो हम उस शिक्षा को भी निकम्मी समझते हैं, जो सिर्फ क्लर्की करने के लिए ही हासिल की जाये। ऐसी शिक्षा की जरूरत ही क्या है? कुछ ज्यादा चालाक आदमी यह कहते हैं- “काका तुम पोलिटिक्स के अनुसार पढ़ो और सोचो जरूर, लेकिन कोई व्यावहारिक हिस्सा न लो। तुम अधिक योग्य होकर देश के लिए फायदेमन्द साबित होगे।”
बात बड़ी सुन्दर लगती है, लेकिन हम इसे भी रद्द करते हैं,क्योंकि यह भी सिर्फ ऊपरी बात है। इस बात से यह स्पष्ट हो जाता है कि एक दिन विद्यार्थी एक पुस्तक ‘Appeal to the young, ‘Prince Kropotkin’ ('नौजवानों के नाम अपील’, प्रिंस क्रोपोटकिन) पढ़ रहा था। एक प्रोफेसर साहब कहने लगे, यह कौन-सी पुस्तक है? और यह तो किसी बंगाली का नाम जान पड़ता है! लड़का बोल पड़ा- प्रिंस क्रोपोटकिन का नाम बड़ा प्रसिद्ध है। वे अर्थशास्त्र के विद्वान थे। इस नाम से परिचित होना प्रत्येक प्रोफेसर के लिए बड़ा जरूरी था। प्रोफेसर की ‘योग्यता’ पर लड़का हँस भी पड़ा। और उसने फिर कहा- ये रूसी सज्जन थे। बस! ‘रूसी!’ कहर टूट पड़ा! प्रोफेसर ने कहा कि “तुम बोल्शेविक हो, क्योंकि तुम पोलिटिकल पुस्तकें पढ़ते हो।” प्रोफेसर की ‘योग्यता’ पर लड़का हँस भी पड़ा। और उसने फिर कहा- ये रूसी सज्जन थे। बस! ‘रूसी!’ कहर टूट पड़ा! प्रोफेसर ने कहा कि “तुम बोल्शेविक हो, क्योंकि तुम पोलिटिकल पुस्तकें पढ़ते हो।”
देखिए आप प्रोफेसर की योग्यता! अब उन बेचारे विद्यार्थियों को उनसे क्या सीखना है? ऐसी स्थिति में वे नौजवान क्या सीख सकते है?
दूसरी बात यह है कि व्यावहारिक राजनीति क्या होती है? महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस का स्वागत करना और भाषण सुनना तो हुई व्यावहारिक राजनीति, पर कमीशन या वाइसराय का स्वागत करना क्या हुआ? क्या वो पलिटिक्स का दूसरा पहलू नहीं? सरकारों और देशों के प्रबन्ध से सम्बन्धित कोई भी बात पोलिटिक्स के मैदान में ही गिनी जायेगी,तो फिर यह भी पोलिटिक्स हुई कि नहीं? कहा जायेगा कि इससे सरकार खुश होती है और दूसरी से नाराज? फिर सवाल तो सरकार की खुशी या नाराजगी का हुआ। क्या विद्यार्थियों को जन्मते ही खुशामद का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए? हम तो समझते हैं कि जब तक हिन्दुस्तान में विदेशी डाकू शासन कर रहे हैं तब तक वफादारी करनेवाले वफादार नहीं, बल्कि गद्दार हैं, इन्सान नहीं, पशु हैं, पेट के गुलाम हैं। तो हम किस तरह कहें कि विद्यार्थी वफादारी का पाठ पढ़ें।
सभी मानते हैं कि हिन्दुस्तान को इस समय ऐसे देश-सेवकों की जरूरत हैं, जो तन-मन-धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी के लिए न्योछावर कर दें। लेकिन क्या बुड्ढों में ऐसे आदमी मिल सकेंगे? क्या परिवार और दुनियादारी के झंझटों में फँसे सयाने लोगों में से ऐसे लोग निकल सकेंगे? यह तो वही नौजवान निकल सकते हैं जो किन्हीं जंजालों में न फँसे हों और जंजालों में पड़ने से पहले विद्यार्थी या नौजवान तभी सोच सकते हैं यदि उन्होंने कुछ व्यावहारिक ज्ञान भी हासिल किया हो। सिर्फ गणित और ज्योग्राफी का ही परीक्षा के पर्चों के लिए घोंटा न लगाया हो।
क्या इंग्लैण्ड के सभी विद्यार्थियों का कालेज छोड़कर जर्मनी के खिलाफ लड़ने के लिए निकल पड़ना पोलिटिक्स नहीं थी? तब हमारे उपदेशक कहाँ थे जो उनसे कहते- जाओ, जाकर शिक्षा हासिल करो। आज नेशनल कालेज, अहमदाबाद के जो लड़के सत्याग्रह के बारदोली वालों की सहायता कर रहे हैं, क्या वे ऐसे ही मूर्ख रह जायेंगे? देखते हैं उनकी तुलना में पंजाब का विश्वविद्यालय कितने योग्य आदमी पैदा करता है? सभी देशों को आजाद करवाने वाले वहाँ के विद्यार्थी और नौजवान ही हुआ करते हैं। क्या हिन्दुस्तान के नौजवान अलग-अलग रहकर अपना और अपने देश का अस्तित्व बचा पायेंगे? नवजवानों 1919 में विद्यार्थियों पर किये गए अत्याचार भूल नहीं सकते। वे यह भी समझते हैं कि उन्हें क्रान्ति की जरूरत है। वे पढ़ें। जरूर पढ़े! साथ ही पालिटिक्स का भी ज्ञान हासिल करें और जब जरूरत हो तो मैदान में कूद पड़ें और अपने जीवन को इसी काम में लगा दें। अपने प्राणों को इसी में उत्सर्ग कर दें। वरना बचने का कोई उपाय नजर नहीं आता।
Date Written: 1928
Author: Bhagat Singh
Title: Students and Politics (Vidyarthi aur Rajneeti)
First Published: in Kirti, July 1928
http://www.marxists.org/hindi/bhagat-singh/1928/vidyarthi-aur-rajneeti.htm
4 months ago | [YT] | 0
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चारबाग रेलवे स्टेशन, लखनऊ — एक ऐतिहासिक धरोहर के 100 वर्ष
लखनऊ का चारबाग रेलवे स्टेशन भारत के सबसे खूबसूरत और ऐतिहासिक रेलवे स्टेशनों में गिना जाता है। चारबाग भवन की नींव 1 अगस्त 1925 को रखी गई थी, यानी 2025 में यह प्रतिष्ठित इमारत 100 वर्ष की हो गई है।
पट्टिका पर खुदा ऐतिहासिक विवरण:
चारबाग रेलवे स्टेशन का एक बुर्ज (turret)
तिथि: 1 अगस्त 1925
मुख्य अधिकारी:
C. L. Colvin Esq., C.B., C.M.G., D.S.O.
एजेंट, ईस्ट इंडियन रेलवे
इस दीवार के भीतर एक casket (धातु का संदूक) रखा गया, जिसमें उस समय के सिक्के और समाचार पत्र रखे गए थे ताकि इमारत की नींव के कार्य की सफलता को चिह्नित किया जा सके।
निम्न प्रमुख नाम पट्टिका पर अंकित है :
R.E. Marriot – Executive Engineer
J.C. Banerjee – Contractor
J.H. Horniman – Architect
चारबाग रेलवे स्टेशन के
निर्माण की शुरुआत: 1914
समापन और उद्घाटन: 1925
निर्माण शैली: मुग़ल, राजस्थानी, और अवधी स्थापत्य शैली का सम्मिलन
वास्तुकार: J.H. Horniman
विशेषता: स्टेशन भवन की छतें, मेहराबें और गुंबद किसी शाही महल की भव्यता का आभास कराते हैं।
“चारबाग” का अर्थ है – चार बागों का संगम, यह नाम मुगल काल के बागीचों की वास्तुकला से प्रेरित है।
इस स्टेशन को बाहर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई भव्य इमामबाड़ा हो। निर्माण के समय इसे एक “रॉयल पॅलेस” की तरह डिज़ाइन किया गया था, जिससे यात्रियों पर एक प्रभावशाली छवि पडे़।
चारबाग स्टेशन उत्तर भारत के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों में से एक है।
यह उत्तर रेलवे और उत्तर पूर्व रेलवे का संयुक्त स्टेशन है।
लाखों यात्री रोज़ाना यहां से यात्रा करते हैं।
शताब्दी वर्ष – 2025:
अब जबकि चारबाग रेलवे स्टेशन ने 100 साल पूरे कर लिए हैं, यह उपयुक्त समय है कि लखनऊ और भारतवासी इस ऐतिहासिक स्थल की गौरवशाली विरासत को पुनः जानें, संजोएं और नई पीढ़ी को इससे जोड़ें।
4 months ago | [YT] | 1
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"गीदड़ों के झुंड के बीच एक अकेला शेर हार जाएगा ...."
सीज़-फायर होने की खबर से मैं बहुत ग़ुस्से में था।
मन कर रहा था कि पाकिस्तान को अभी के अभी मिट्टी में मिला दिया जाए, उन्हें पाताल तक घुस कर मारा जाए।
लेकिन 1 दिन जब ठंडे दिमाग से सोचा कि ऐसी क्या मजबूरी होगी ? भारत की कूटनीति, भविष्य, अर्थव्यवस्था और सीमाओं पर खड़े लाखों जवानों को ध्यान में रखा, अपने दुश्मन देशों का रुख देखा तो एक अलग दृष्टिकोण भी बना।
कई लोग आज सवाल पूछ रहे हैं-जो भारत शुरुआत में फ्रंट फुट पर था, वो अचानक क्यों पीछे हट गया? जिसने मिसाइलों से जवाब देने की ताकत रखी, वो सिर्फ S-400 से दुश्मन के ड्रोन और मिसाइलें ही क्यों गिराता रहा?
दरअसल, ये 1971 वाला भारत नहीं है। ना वैसा वक़्त है, ना वैसी वैश्विक परिस्थितियाँ। तब भारत परमाणु शक्ति नहीं था, पाकिस्तान भी नहीं। तब चीन भी उतना सामरिक रूप से आक्रामक नहीं था।
तब केवल दो ध्रुव थे-अमेरिका और रूस, और रूस पूरी तरह भारत के साथ था।
अब हालात अलग हैं। जिसका शायद भारत को भान नहीं था। उसे लगा रहा, मिज़ाइल स्ट्राइक करके पहले की तरह मामला शांत हो जाएगा। चुनावों में फायदा भी भुना लेंगे। मगर पाकिस्तान के मृत शरीर में इस बार पूरी हवा भरी जा चुकी थी।
तीसरे ही दिन उसके अलाई (मित्र देश) खुल कर भारत के सामने आ चुके हैं। तुर्की के ड्रोन मोर्चे पर हैं, चीन खुले समर्थन में है। बांग्लादेश की सीमा से भी हलचल है, और भारत के पूर्वी-पश्चिमी दोनों छोर सतर्क हैं।
ये लड़ाई अब सिर्फ भारत-पाक की नहीं रही, ये एक मल्टी -फ्रंट वार बन चुकी थी। भारत को शायद 4-5 मोर्चों पर युद्ध वाली परिस्थिति का भान नहीं था।
तो क्या भारत कमजोर है? बिलकुल नहीं।
भारत जानता है कि 4 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था यूँ ही युद्ध में झोंकी नहीं जाती। एक जिम्मेदार देश वही होता है जो हर चाल सोच-समझ कर चलता है।
शेर जब पीछे हटता है, तो लंबी छलांग के लिए ही हटता है।
आज गीदड़ों के सामने भारत अकेला खड़ा है-
अमेरिका न्यूट्रल है,(वो भारत का परम्परागत शत्रु है) IMF के रूप में वो पाकिस्तान को युद्ध-सहायता दे चुका है। मित्र इज़राइल अपनी लड़ाई में उलझा है,
और हमारा पुराना साथी रूस भी अपने मोर्चों में फंसा हुआ है।
ऐसे में ज़रूरत है-
अपनी कूटनीति को मजबूत करने की, सैन्य शक्ति को और धार देने की । और सबसे ज़रूरी—अपने नए भरोसेमंद साथी तैयार करने की। अब न्यूट्रल रहने का समय नहीं है। अब वक्त है ठंडे दिमाग से सोचने का।
अब वक्त है रणनीति से खेलने का। क्योंकि जो देश सब्र से चलते हैं, वही इतिहास रचते हैं।
जय हिंद। 🇮🇳❤️
हम कोई सरकार का प्रतिनिधि नहीं हैँ। उसकी कल आलोचना करने वाले भी हम थे। बेशक़ ये युद्ध रोकना सरकार के लिए आत्मघाती है और इसका नुकसान होगा चुनाव में। क्योंकि जनता का मूड युद्ध का था। कायर होने का जुमला अब सरकार के साथ चलेगा। मगर खून का घूंट पीने के लिए मजबूर हैं ये लोग।
ये मेरा स्वयं का आकलन है कि फ्रंटफुट पर खेल शुरू करने वाला देश अचानक पीछे क्यों हट गया, फिलहाल इसको हम सरकार की विफल सामरिक कूटनीति और विदेश नीति कहेँगे।)
7 months ago | [YT] | 2
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8 months ago | [YT] | 1
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RO ARO EXAM 27 JULY 25
9 months ago | [YT] | 2
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उत्तर प्रदेश में EWS (Economically Weaker Section) आरक्षण का लाभ उन सामान्य वर्ग (General Category) के उम्मीदवारों को मिलता है, जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है और जो निम्नलिखित शर्तों को पूरा करते हैं।
EWS के लिए पात्रता (Eligibility Criteria)
1. पारिवारिक वार्षिक आय
✅ परिवार की कुल वार्षिक आय ₹8 लाख से कम होनी चाहिए।
इसमें सभी स्रोतों (वेतन, व्यवसाय, कृषि, किराया आदि) से होने वाली आय शामिल होगी।
2. जमीन/संपत्ति की सीमा
✅ निम्नलिखित संपत्ति से अधिक नहीं होनी चाहिए:
कृषि भूमि – 5 एकड़ से अधिक नहीं।
रिहायशी प्लॉट (नगर निगम क्षेत्र में) – 100 वर्ग गज से अधिक नहीं।
रिहायशी प्लॉट (नगर निगम से बाहर) – 200 वर्ग गज से अधिक नहीं।
फ्लैट/मकान – 1000 वर्ग फुट से अधिक नहीं।
3. किन लोगों की आय जोड़ी जाएगी?
✅ आवेदक के माता-पिता की कुल आय।
✅ यदि अविवाहित हैं, तो माता-पिता की आय देखी जाएगी।
✅ यदि विवाहित हैं, तो पति/पत्नी और माता-पिता सभी की कुल आय गिनी जाएगी।
4. कौन EWS के लिए पात्र नहीं हैं?
❌ जिनकी आय ₹8 लाख से अधिक हो।
❌ जिनके पास ऊपर बताई गई सीमा से अधिक संपत्ति हो।
❌ OBC, SC, ST वर्ग के लोग – केवल सामान्य वर्ग (General Category) के लिए है।
UP में EWS सर्टिफिकेट कैसे बनवाएं?
1. तहसील में जाकर आवेदन करें।
2. जरूरी दस्तावेज लगाएं:
आधार कार्ड, आय प्रमाण पत्र, संपत्ति प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र (अगर उपलब्ध हो), निवास प्रमाण पत्र।
3. जिला प्रशासन द्वारा सत्यापन के बाद प्रमाण पत्र जारी किया जाता है।
4. EWS सर्टिफिकेट 1 साल तक वैध होता है।
9 months ago | [YT] | 1
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Happy holi
9 months ago | [YT] | 1
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