भगवतप्राप्ति

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भगवतप्राप्ति

आत्मज्ञान एवं ब्रह्मज्ञान

- **उपनिषदों का केंद्रीय संदेश है कि “आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं” (अद्वैत सिद्धांत)**; आत्मा मायिक शरीर से परे है और शुद्ध चेतना के रूप में ब्रह्म की ही अभिव्यक्ति है।
- “तत् त्वम् असि” (तू वही है) जैसे सूत्र उपनिषदों में आत्म-ब्रह्म की एकता पर जोर देते हैं।
. ज्ञान की प्रधानता – कर्मकाण्ड से विमुखता

- **वेदों में जहाँ कर्मकाण्ड (यज्ञ, पूजा, आदि) प्रमुख हैं, वहीं उपनिषदों ने ज्ञान और तत्त्वचिन्तन को मथ्य विषय बनाया है।
- उपनिषद मानते हैं कि सच्चा मोक्ष ज्ञान (ब्रह्मविद्या) द्वारा ही संभव है, न कि बाहरी कर्मकांडों से

जिज्ञासा और संवाद की परम्परा

- उपनिषदों में अनेक स्थानों पर गुरु-शिष्य संवाद द्वारा शिक्षा दी गई है।
- जिज्ञासा, प्रश्न और तर्क द्वारा मर्म तक पहुँचना उपनिषदों का बोधगम्य तरीका है।
भौतिकता एवं माया का बोध

- **उपनिषद भौतिक जगत को क्षणिक और नश्वर मानते हैं** तथा सच्ची शांति आत्मसाक्षात्कार में बताते हैं।
- यहाँ जगत को त्याज्य नहीं, बल्कि आत्मा को जानकर उसका सही उपयोग करने की शिक्षा दी जाती है।

नैतिकता और आचरण

- उपनिषद **सत्य, अहिंसा, संयम, और सदाचार** को सर्वोच्च मूल्य मानते हैं तथा सभ्य जीवन की राह सुझाते हैं।
- “सत्यमेव जयते”—सत्य की विजय ही उपनिषदों का विश्व प्रसिद्ध संदेश है।
ध्यान और साधना का महत्व

- **आत्म-साक्षात्कार के लिए ध्यान व साधना का विशेष महत्व है।** उपनिषद आत्म-खोज के लिए ध्यान-मार्ग दिखाते हैं, जिससे मोह से पार पाया जा सकता है।

. संपूर्ण शिक्षा का उद्देश्य

- उपनिषदों के अनुसार **शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि आत्म-बोध, मुक्ति और चरित्र निर्माण** है।

### व्यावहारिक प्रभाव

- उपनिषदों की शिक्षाएँ भारतीय दर्शन, वेदांत, योग, सांख्य, जैन-बौद्ध आदि सभी दर्शनों का मूल आधार हैं।
- संकट व परिवर्तन के समय उपनिषदों ने सदैव भारतीय चिंतन और मानवता का मार्गदर्शन किया है।
- ये शिक्षाएँ आज भी जीवन, शिक्षा, नैतिकता तथा आत्म-विकास में प्रेरणादायी हैं।

कुल मिलाकर **उपनिषदों की शिक्षा जीवन को संपूर्ण रुप से देखती है—आत्मिक, बौद्धिक और नैतिक उत्कर्ष की ओर प्रेरित करती है, और यही इन्हें सनातन ज्ञान का अक्षय स्रोत बनाती है ।।


उपनिषदों का दार्शनिक आधार

**उपनिषदों का दार्शनिक आधार** भारतीय दर्शन और आध्यात्मवाद का सबसे गहन, मूल और मौलिक सूत्र माना जाता है। इनका मूल दर्शन *आत्मा* (स्वयं) और *ब्रह्म* (परमसत्ता) की एकता, वास्तविकता की खोज, ज्ञान की साधना और अंतःचेतना के जागरण पर केंद्रित है। नीचे उपनिषदों के दार्शनिक आधार को मुख्य बिंदुओं में स्पष्ट किया गया है:
ब्रह्म – परम तत्त्व की सिद्धि**

- उपनिषदों के अनुसार **ब्रह्म ही परम सत्य और समस्त सृष्टि का आधार है**। ब्रह्म निर्गुण (निर्विशेष), निराकार, सर्वव्यापी, चैतन्य सत्ता है—यही सृष्टि का कारण, पालनकर्ता और प्रभव-अपव का निदान है।
- "ब्रह्म" और "आत्मा" उसी तत्त्व के दो पक्ष माने गए हैं, यानी सबका प्राण और जगत का आधार।
**आत्मा-ब्रह्म का तादात्म्य (अद्वैतवाद)**

- उपनिषदों का सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक संदेश है—**आत्मा और ब्रह्म अंततः एक ही हैं** ("अहम् ब्रह्मास्मि", "तत्वमसि")।
- आत्मा शुद्ध चेतना का रूप है, जिसका अनुभव ही मोक्ष है; इसे जानना ही परम ज्ञान है।
**ज्ञान का मार्ग (ज्ञानकाण्ड)**

- उपनिषद वेदों के कर्मकाण्ड के विपरीत **ज्ञानकाण्ड** को केंद्र में रखते हैं। यज्ञ या बाहरी अनुष्ठानों की बजाय **ज्ञान, अनुभव, चिंतन और सत्य की खोज** पर जोर देते हैं।
- उपनिषदों का अध्ययन, संवाद व प्रश्न-उत्तर पद्धति से सत्य तक पहुँचने की जिज्ञासा दर्शाता है।
**सृष्टि और जगत् का विवेचन**

- उपनिषदों में जगत को ब्रह्म का विकास रूप माना गया है। वे ब्रह्म से आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी—पंचमहाभूतों की श्रृंखला बताते हैं।
- **पंचकोष** सिद्धांत के माध्यम से (अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय, आनंदमय) मानव और सृष्टि की सूक्ष्म आयामों की विवेचना की गई है।
प्रकृति व देववाद से आत्मा-विचार की ओर**

- वेदों में जहाँ बहुदेववाद व प्रकृति मूलक उपासना के संकेत हैं, वहीं उपनिषदों में ध्यान आत्मा पर केंद्रित है, और परम सत्ता का अनुभव स्वयं के भीतर करने का आह्वान है।
**अन्य दर्शनों पर प्रभाव**

- उपनिषद **सांख्य, योग, वेदांत** आदि लगभग सभी भारतीय दर्शनों का मूल स्रोत हैं।
- संपूर्ण बौद्ध और जैन परंपराओं के अनेक रेखांश भी उपनिषदों में पूर्व में दिखाई देते हैं।
**दार्शनिक प्रवृत्ति और शाश्वतता**

- उपनिषद आज भी मानवता, विज्ञान, और आध्यात्मिकता के समन्वय के लिए मार्गदर्शक हैं; उन्होंने अपनी सार्वभौमिकता व कालातीतता सिद्ध की है।

**संक्षेप में**:
उपनिषदों का दार्शनिक आधार ज्ञान, आत्मचिंतन, ब्रह्म-आत्मा की एकता, ब्रह्म के सर्वव्यापक, निर्विकार, अनंत स्वरूप की खोज, और वास्तविकता का प्रत्यक्षानुभव—इन सब गूढ़ सूत्रों में निहित है। यह भारतीय ही नहीं, बल्कि विश्व-दार्शनिक चिंतन का अमूल्य बीज है


### परिचय

उपनिषद हिंदू धर्म के प्राचीन और सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक ग्रंथ हैं, जो वेदों के ज्ञानकांड का हिस्सा हैं। ये ग्रंथ आत्मा, ब्रह्म, और मोक्ष जैसे गहन प्रश्नों पर विचार करते हैं और मानव जीवन के उद्देश्य को समझाने का प्रयास करते हैं। "ईशादि नौ उपनिषद" शब्द का अर्थ है "ईश उपनिषद से शुरू होने वाले नौ उपनिषद," जो संभवतः निम्नलिखित हैं: **ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, और श्वेताश्वतर**। ये उपनिषद वेदांत दर्शन के आधार हैं और विभिन्न वेदों से संबंधित है।

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4 months ago | [YT] | 2

भगवतप्राप्ति

#मृत्यु_के_समय_भगवान_का_नाम_कौन_ले_सकता_है ?

प्रायः भोले-भाले लोग अजामिल का उदाहरण देकर कहते हैं कि मृत्यु के समय भगवान का नाम लेने से भगवान का लोक प्राप्त होता है। कई कथावाचकों इत्यादि के द्वारा अजामिल के उद्धार का आख्यान भ्रामक तरीके से लोगों के बीच में प्रचारित किया गया इसीलिये लोगों के मन में ऐसी भ्रांतियाँ उत्पन्न हुईं की सारे जीवन चाहे संसार में हम आसक्त रहें बस मृत्यु के समय भगवान का नाम ले लेंगें तो हमारा कल्याण हो जायेगा।
अस्तु ये बात गंभीरतापूर्वक विचारणीय है कि क्या मृत्यु के समय कोई भगवान का नाम ले सकता है अथवा किसी इंसान का या दानव इत्यादि किसी का भी नाम ले सकता है ? क्योंकि रामायण में तो तुलसीदास जी ने स्पष्ट लिखा -

कोटि कोटि मुनि यतन कराहीं
अंत राम कहि आवत नाहीं ।।

अर्थात् बड़े बड़े योगीन्द्र मुनीन्द्र भी करोड़ों उपाय करके भी हार जाते हैं लेकिन अंत समय में यानि मृत्यु के समय भगवान का नाम नहीं ले पाते फिर अजामिल तो घोर पापात्मा था उसने भगवान का नाम कैसे लिया ?

तो वास्तविकता ये है कि अजामिल ने भगवान का नहीं अपितु अपने सबसे छोटे पुत्र का नाम लिया जिसका नाम 'नारायण' था , जिसमें उसकी सबसे अधिक आसक्ति थी और वह भी मृत्यु से पूर्व लिया। इसके पश्चात् उसने विष्णुदूतों और यमदूतों का संवाद सुना और तब उसके हृदय में वैराग्य उत्पन्न हुआ। पूर्वकृत् पापों के प्रति पश्चाताप हुआ, इसके बाद वह विरक्त होकर हरिद्वार गया -

' गंगाद्वारमुपेयाय मुक्तसर्वानुबंधनः ' ( भागवत )

वहाँ जाकर उसने निरंतर श्री कृष्णभक्ति की । भगवान में मन लगाकर मृत्यु से पूर्व ही भगवत्प्राप्ति की तब भगवान का ध्यान करते हुए , भगवन्नाम लेते हुए उसने ये शरीर छोड़ा। इस प्रकार वह भगवद्धाम में गया। इसी रहस्य को 'राधा गोविंद गीत' में अत्यंत सरल शब्दों में स्पष्ट करते हुए श्री महाराज जी कहते हैं -

अजामिल मरा नहिं गोविंद राधे ।
गंगाद्वार जाके मन हरि में लगा दे ।।

भक्ति द्वारा भक्ति मिली गोविंद राधे ।
तब तनु त्यागा गया धाम बता दे ।।

अतएव सिद्धांत यही है कि केवल भगवत्प्राप्त महापुरुष ही मृत्यु के समय भगवान का नाम ले सकते हैं। अन्य संसारी जीव तो मृत्यु के कष्ट को सहन न कर सकने के कारण मृत्यु से पूर्व ही मूर्छा को प्राप्त हो जाते हैं। और मूर्छा के समय ही समस्त इन्द्रियाँ निश्चेष्ट हो जाती हैं। ऐसे
में न तो कोई भगवान का चिंतन कर सकता है ना उनका नाम ले सकता है न संसार का कोई चिंतन या नामोच्चारण हो सकता है।

मूर्छा से कई हजार गुना बड़ा कष्ट मृत्यु का होता है ।
'जनमत मरत दुसह दुःख होई' जन्म से भी हजार गुना बड़ा कष्ट मृत्यु का होता है इसलिए यह मायाबद्ध जीव के लिए असह्य होता है ,वह मृत्यु से पूर्व ही मूर्छित हो जाता है, समस्त इन्द्रियाँ निष्क्रिय हो जाती हैं क्योंकि मायाबद्ध जीव से ये शरीर बरबस छुड़वाया जाता है इसीलिए उसे अत्यधिक कष्ट होता है -

मायाबद्ध जीव का तो गोविंद राधे ।
तनु छुड़वाया जाय कष्ट हो बता दे ।। ( राधा गोविंद गीत )

जबकि महापुरुष स्वेच्छा से देहत्याग करते हैं इसीलिए उन्हें मृत्यु का कोई कष्ट नहीं होता -

मायामुक्त हरिभक्त गोविंद राधे ।
तनु त्यागे निज इच्छा ते बता दे ।। ( राधा गोविंद गीत )

इसीलिए वे महापुरुष जो मृत्यु से पूर्व ही भगवत्प्राप्ति कर चुके हैं वे ही मृत्यु के समय भगवान का चिंतन करते हुए अथवा उनका नाम लेते हुए भगवद्धाम में जाते हैं -

मृत्यु पूर्व हरि ते जो गोविंद राधे ।
मिले हरि सुमिरेगा सोई बता दे ।। ( राधा गोविंद गीत )

गीता में भी भगवान श्री कृष्ण ने इसी विज्ञान को स्पष्ट करते हुए कहा -

ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिं ।।

अर्थात् भगवान का नाम लेते हुए और उनका स्मरण करते हुए जो तत्काल मृत्यु को प्राप्त होता है वो परम गति को प्राप्त होता है । तो ऐसी तैयारी करने में तो वही समर्थ है जिसे ये पता हो कि मुझे इस क्षण में जाना है और जिसे मृत्यु का कष्ट भी न हो । इसीलिए गीता में कहा गया जो देह छोड़ता है 'त्यजन्देहं' अर्थात् स्वेच्छा से शरीर का त्याग करता है। तो छोड़ने और छुड़वाये जाने में बहुत अंतर होता है। यह अंतर उसी प्रकार है जैसे कोई स्वेच्छा से जेल में निरीक्षण हेतु जाय और दूसरा अपराधी को बरबस जेल में ले जाया जाए।

अतएव जो विदेह हो चुके , मृत्यु से पूर्व ही भगवत्प्राप्ति कर चुके हैं वे ही स्वेच्छा से शरीर छोड़ने और भगवत्चिंतन इत्यादि करने में , उनका नाम लेने में समर्थ होते हैं । वे ही ये जानते हैं कि कब मृत्यु को प्राप्त होना है और वे ही मृत्यु के कष्ट से ऊपर खड़े होते हैं। भगवत्प्राप्ति के पश्चात् भगवत्चिंतन तो उन्हें स्वाभाविक रूप से सदा होता ही है , अलग से प्रयत्नपूर्वक करना नहीं पड़ता। और अगर वो न भी करें तो भी वे भगवद्धाम जायेंगे क्योंकि भगवत्प्राप्ति तो वे पूर्व में ही कर चुके ।

ऐसे महापुरुषों के अतिरिक्त कोई ऋषि मुनि योगी हों वे भी मृत्युकाल में भगवन्नाम लेने में समर्थ नहीं हो सकते ।
मृत्यु काल का अर्थ है नाम लेते ही तत्काल प्राण निकल जायें । मृत्यु से पूर्व मूर्छा इत्यादि से पहले लिया हुआ नाम मृत्युकाल में लिया हुआ नाम नहीं कहलायेगा । वह तो मृत्यु से पूर्व लिया हुआ माना जायेगा , ऐसे नाम तो हम जीवनपर्यंत कई बार लेते हैं।

अस्तु , ये सिद्धांत अक्षरशः सत्य है कि मृत्यु के समय भगवन्नाम लेने वाला , उनका चिंतन करने वाला हरिधाम में जाता है -
हरि को सुमिरि मरे गोविंद राधे ।
वाको हरिधाम ही मिलेगा बता दे ।। ( राधा गोविंद गीत )

लेकिन ऐसा करने में केवल महापुरुष ही समर्थ होते हैं ।
अतएव हमें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि बिना भक्ति के दिन रात संसार में आसक्त रहकर भी हम अंत समय में भगवान का नाम लेकर अथवा उनका चिंतन करके सद्गति को प्राप्त हो जायेंगे । परम गति प्राप्त करने के लिए मृत्यु से पूर्व ही निरंतर भक्ति करके हमें भगवान को प्राप्त करना होगा । इस रहस्य को समझकर हमें अपने एक एक क्षण का सदुपयोग भगवद्भक्ति में ही करना चाहिए ।

5 years ago | [YT] | 37

भगवतप्राप्ति

हम लोग नहीं जानते की असली जीवन क्या है? केवल शारीरिक धर्म का पालन करना जीवन का उद्देश्य नहीं है। ये तो कुत्ते-बिल्ली गधे भी हमसे कही बेहतर कर लेते हैं। कभी देखना किसी जानवर को जब वो एक बच्चे की माँ बनता है। जीवन का असली ध्येय है भगवान को जानना। आखिर 'मैं' कौन हूँ और कहाँ से आया हूँ। 'मैं' पैदा होता हूँ, कुछ समय के लिए यहाँ रहता हूँ और पुनः अचानक ही अपनी मर्जी के खिलाफ चला भी जाता हूँ। ऐसा क्यों होता है, आखिर क्यों मैं यहाँ माया के जगत में दुःख भोगने आता हूँ। 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा'-जब तक ये जिज्ञासा पैदा नहीं होगी तब तक हम मनुष्य नहीं है, हम पशु की ही श्रेणी में आते हैं। तथाकथित आधुनिक वस्तुओ का निर्माण करके हम विद्वान नहीं बन सकते, क्योंकि पक्षी भी बिना विवेक के ऐसा घोसला बनाते हैं जो मनुष्य नहीं बना सकता। तो फिर क्या उन्नति की हमने!!!! जानवरों की तरह क्या बस उदर पूर्ति ही हमारा लक्ष्य है। संसार के भोगों को भोग-भोग के भी हमारी प्यास क्यों बढ़ती जा रही है,जरा भी कम क्यों नहीं होती। क्यों अशांत,अतृप्त हो...क्या पाना चाहते हो,अब तक जो पाया उससे क्या हासिल हो गया,हम तो और अशांत हो गये,और कामनाएँ विकराल हो गयी। सोचो! विचार करो,ये जीवन किसलिए मिला है?????

जय श्री राधे।

5 years ago | [YT] | 54

भगवतप्राप्ति

सामान्य परिचय ब्रम्ह एवम् ईश्वर का

ब्रह्म और ईश्वर की जो व्याख्या है कि ब्रम्ह निर्गुण निराकार है और ईश्वर जो है वो सगुण साकार है । जो हमारे लिए जो useful है वो कोनसा है जिसमें शंकरा चार्य ने बताया है कि ब्रम्ह उपासना करना चाहिए। क्या हम जिस माहौल में जी रहे है ब्रम्ह की उपासना संभव है । जबकि हमारे जगत में अहम ब्रमआसमी , त्वम ब्रमाष्मी, जगत अर्थात् में ब्रम्ह हूं , तुम ब्रम्ह हो ये जगत ब्रम्ह है मेरा प्रश्न ये है कि जब सभी ब्रम्ह है तो कोई किसी को क्या उपदेश दे सकता है ।
दूसरों पक्ष में ईश्वर जो कि सगुण है साकार है कृपा करता है तो मेरा प्रश्न ये है कि जब ईश्वर सगुण साकार है ओर कृपा करता है तो उपनिषद ये क्यों कहता है कि
आनंदो ब्रम्हयेती विज्यानात।।
अर्थात् आनंद ही ब्रम्ह है अर्थात् श्री कृष्ण है।
जीवन में अनुभव भी यही करते है।
कोई भी कार्य किस लिए किया जाता है
उदाहरणतः मान लो में उठा क्यों उठा क्युकी बैठे बैठे मुझे जो कष्ट होने लगा है उसको दूर करने के लिए में उठा हूं। अर्थात् आनंद के लिए उठा ये इसका साकार उदाहरण हुआ
दूसरा रामायण कहती है
ईश्वर अंश जीव अविनाशी
अर्थात् जीव जो है वह ईश्वर का अंश है और अविनाशी है तो ये सत्यापित हो गया कि ब्रह्म और ईश्वर एक ही तत्व के दो रूप है । बस उपयोगिता अलग अलग है क्युकी ब्रम्ह सत्ता मात्र है जबकि ईश्वर प्रेम पूर्ण है कृपा करता है आनंद स्वरूप है जो कि भक्ति से प्राप्त होता है।

5 years ago | [YT] | 102

भगवतप्राप्ति

सुना है टू अपना लेता है जो तेरी राह में आ जाता है।
बस इतना बता दे मेरे श्याम तू किस गली आता है।।

5 years ago | [YT] | 73