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महाशिव रात्रि के अवसर पर जानिये कि शिव तत्व क्या है?👇👇👇🙏
https://youtu.be/I1D07ca0Z8s?si=y-Yrl...

1 year ago (edited) | [YT] | 31

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HAPPY NEW YEAR 2024

https://youtu.be/6VIFqrm5Sng

1 year ago | [YT] | 13

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सभी आदरणीय भाई बहनों को insighter youtube channel की तरफ से दीपावली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।दीपावली का त्यौहार वैज्ञानिक नजरिये से.......Watch Video👇👇👇

https://youtu.be/2sN5ENwLN4s

2 years ago | [YT] | 11

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🌿इंसान अपने मन के विचारों से अशांत🌿

जो लोग यह सोचते हैं कि आत्मज्ञान लेकर ही शांति मिल जाए तो वे उन लोगों से भी ज्यादा अशांत हो जाते हैं, जो अज्ञानी होते हुए भी शांत होने की फ़िक्र नहीं करते। उनकी अशांति दोहरी हो जाती है। एक तो पहले ही अशांति होती है, दूसरा एक अशांति और पकड़ लेती है कि शांत कैसे हों। सभी अपने मन के एक-एक विचार से लड़ते रहते हैं। कोई कहता है कि मेरा मन स्थिर नहीं होता इधर-उधर भागता रहता है, दुखी, अशांत रहता है। मन की इच्छाएं अलग चीज नहीं है। मन जंगली झाड़ के पेड़ की तरह और उसकी इच्छाएं पत्तों की तरह होती हैं। एक को काटो तो चार निकल आएंगे। इसी प्रकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार मन के पत्ते हैं। एक को छोड़ो तो चार तैयार होकर सामने खड़े हो जाते हैं। अगर पत्तों को नष्ट करना है तो जंगली झाड़ की जड़ को उखाड़ना पड़ेगा तो पूरा पेड़ गिर जाता है।

मन की जो व्यवस्था है उसी में मन की जड़ है। ऐसे मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार होगा ही होगा क्योंकि यह मन का स्वभाव है। अपने मन को ध्यान के अभ्यास से स्वांसों के साथ एकाकार करके नया करो। जब तुम्हारे पास नया मन होगा तो उसके पास काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार बिल्कुल नहीं होगा और तुम हर पल हर स्थिति में शांत व आनंदित रहोगे। लेकिन इस मन को बदलने की विधि क्या है? विधि है आती-जाती स्वांस को साक्षी भाव से वॉच करते रहना। लेकिन, महत्वपूर्ण सवाल ध्यान के अभ्यास के प्रति प्रतिबद्धता का है। अभ्यास से मन जैसे ही स्वांसों के साथ एकाकार होता है तो उसी पल ध्यान प्रगट हो जाता है और स्वयं के बोध से मन पूरी तरह बदल जाता है। तब चित्त हृदय की तरफ उन्मुख हो जाता है और शांति का अनुभव हो जाता है। हृदय में विराजमान परमानंद का सानिध्य मिलते ही मन की सारी इच्छाएं परिपूर्ण हो जाती हैं और मनुष्य जीवन सफल हो जाता है।

2 years ago | [YT] | 17

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🌿भाईयों की कलाई पर स्वांसों का धागा🌿

यह स्वांसों के आने-जाने के धागे की ऐसी राखी है जिससे आप स्वांसों के भीतर की शक्ति को जान सकते हैं। इसलिए इस सौभाग्य को चूकना मत। अगर इस जन्म में भी चूक गये तो बहुत बड़ी नादानी होगी। आती स्वांस में नाचता जीवन और जाती स्वांस में हँसती मौत को देख लेना। आ रही स्वांस के ताजे सवाल और जा रही स्वांस की असहायता को पढ़ लेना। आती स्वांस के अवसर और जाती स्वांस की थकान को जान लेना। ये स्वांसें भी अपना सब कुछ एक देह पर निवेश कर देती हैं। इसलिए इन अनमोल स्वांसों को कंगाल मत होने देना। बहुत पीड़ा पाती हैं ये स्वांसें जब देह के भीतर जाती हैं और प्रार्थना की बजाय अहंकार से मुलाक़ात कर बैठती हैं।

स्वयं में असहाय महसूस करती हैं ये स्वांसें जब भीतर परमानंद की बजाय अहंकार से मुलाक़ात कर बैठती हैं। गिनती की ही मिली है ये स्वांसें। इन गिनती की स्वांसों से ही चेतना को प्राण और बल मिल रहा है, देखना और गहरे तक गौर से देखना कि अज्ञानता के गर्भ से पोषित अहंकार और वासना के हाथों कहीं चेतना, पदार्थ पर ही लुट ना जाए। हर स्वांस के धागे की कीमत का अंदाजा लगा लेना। देह से इसका नाता टूटे उससे पहले ही स्वांसों की सूरती से अविनाशी की कलाई पर सच्चे प्रेम के इस धागे को बाँध लेना। बहुत अनमोल है ये स्वांसें उसकी मर्जी से मिलती हैं बस अपनी ही मर्जी से इन्हें प्रदूषित ना कर देना। ध्यान के अभ्यास से इन अति सुंदरतम स्वांसों की धुन में लीन होकर स्वयं और हृदय में विराजमान परमात्मा को जान लेना। सभी आदरणीय भाई बहनों को रक्षाबंधन के पावन पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएं |

2 years ago | [YT] | 21

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🌿जीवन में सच्चे गुरु की सार्थकता🌿

महत्वपूर्ण यह नहीं है कहां जा रहे हो और किस मार्ग से जा रहे हो। महत्वपूर्ण यह है कि जो जा रहा है, वह कौन है? स्वयं को जानने से ही परमानंद की मंजिल मिलती है। जिसने स्वयं को नहीं जाना वह कितने ही शास्त्र, कितने ही सिद्धांत और कितनी ही ज्ञान कुंजी लेकर चलता रहे, उसके पैर सत्य के रास्ते पर नहीं पड़ेंगे, गलत रास्ते पर ही पड़ते रहेंगे। बिना जाने जब वह चलता है तो डगमगाता है इसलिए उसके चलने के साथ ज्ञान कुंजी भी डगमगाएगी। पूर्ण गुरु शिष्य को एक ही दिशा की तरफ इशारा करते हैं कि जागो और स्वयं को जानो। इसलिए जागकर स्वयं को जानना महत्वपूर्ण है और जानने की पहली शर्त यह है कि मैं कुछ भी नहीं जानता। पूर्ण गुरु से ज्ञान लेकर लोग इतने अकड़े हुए हैं कि वे स्वयं को महाज्ञानी मान बैठे हैं और इसी से उनका चित्त भरा हुआ है। उनसे पूछो कि क्या तुम स्वांसों के पूर्ण सत्य को जानते हो तो उनका उत्तर होता है हां थोड़ा-थोड़ा जानता हूं और यह थोड़ा-थोड़ा जानना ही धोखा है। स्वांसों के भीतर की शक्ति को खंड में नहीं बांटा जा सकता। सत्य को या तो पूरा जाना जाता है और या बिल्कुल भी नहीं जाना जा सकता। कोई यह नहीं कह सकता कि मैं थोड़ा-थोड़ा जागा हूं या थोड़ा-थोड़ा सोया हूं। जो हृदय में उतरता है तो पूरा उतरता है और नहीं उतरता तो बिल्कुल नहीं उतरता, वही स्वांसों के भीतर की शक्ति का पूर्ण सत्य है।

इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि सच्चे गुरु से ज्ञान नहीं लेना चाहिए। इसका अर्थ है कि सच्चे गुरु से ज्ञान लेकर ध्यान के अभ्यास से स्वयं को शून्य करना चाहिए तभी स्वांसों के भीतर प्रवेश करने के लिए जगह मिलेगी। जिज्ञासु उसे कहते हैं जो थोड़ा जानता है, थोड़ा और जानने को उत्सुक है तथा जानकारी की खोज में है। जिज्ञासु यानी विद्यार्थी। शिष्य विद्यार्थी नहीं है, वह सत्यार्थी है। शिष्य जानकारी की खोज में नहीं निकला है, शिष्य स्वयं को जानने की खोज में निकला है। शिष्य होने की पहली शर्त यह है कि जिसने अपनी हार स्वीकार कर ली हो। जिसने सच्चे गुरु के चरणों में सिर रख दिया और कहा कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं, जिसने अपने मन के साथ अपनी बुद्धि की जानकारी भी सब गुरु के चरणों में रख दी, वही सीखने व जानने को कुशल होता है। जिस पल वह अभ्यास से अपने भीतर भरी हुई सारी जानकारी से स्वयं को खाली कर लेता है उसी पल स्वांसों के भीतर की शक्ति उसे जगाकर हृदय के द्वार पर ले जाती है। तब शिष्य का पहला कदम हृदय द्वार की चौखट पर पड़ता है। तभी जीवन में सच्चे गुरु की सार्थकता का ज्ञान होता है। सभी आदरणीय भाई बहनों को गुरु पूर्णिमा महापर्व की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं एवं नमस्कार जी।

2 years ago | [YT] | 38

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🌿ध्यान की सही विधि🌿

कई लोगों ने यह प्रश्न उठाया है कि यह कैसे संभव है कि मन लगातार विचार उत्पन्न करता रहे और जो हमने शुरू ही नहीं किया उसे हम कैसे रोक सकते हैं? कृपया उत्तर ध्यानपूर्वक पढ़ें। आप उसे रोक नहीं सकते जिसे आपने शुरू नहीं किया है। यह प्रयास मत करो; अन्यथा आप बस अपना समय और ऊर्जा बर्बाद कर रहे होंगे। तुम बस देख सकते हो, और देखने में यह रुक जाता है। ऐसा नहीं है कि आप इसे रोक देते हैं: देखने में, यह रुक जाता है। रुकना देखने का एक कार्य है, यह देखने का परिणाम है। ऐसा नहीं है कि तुम इसे रोको; मन को रोकने का कोई उपाय नहीं है। यदि आप इसे रोकने की कोशिश करेंगे तो यह और तेजी से आगे बढ़ेगी; यह आपसे लड़ेगा और आपके लिए बहुत सारी परेशानियाँ पैदा करेगा। इसे कभी भी रोकने की कोशिश न करें. यह सत्य है कि इसकी शुरुआत आपने नहीं की है तो आप इसे रोकने वाले कौन होते हैं? यह तुम्हारी अज्ञानता से आया है; यह आपकी जागरूकता से होकर गुजरेगा।

आपको इसे रोकने के लिए और अधिक सतर्क होने के अलावा कुछ नहीं करना है। यहां तक ​​कि यह विचार भी बाधा बनेगा कि कोई मन को रोकना चाहता है क्योंकि आप कहते हैं, "ठीक है, अब मैं जागरूक होने की कोशिश करूंगा ताकि मैं इसे रोक सकूं।" तब आप मुद्दे से चूक जाते हैं। तब आपकी जागरूकता भी बहुत काम नहीं आएगी क्योंकि फिर वही विचार है कि इसे कैसे रोका जाए। इसलिए, ध्यान की सही विधि यह है कि अपने विचारों को साक्षी के रूप में देखें, अपनी भावनाओं को साक्षी के रूप में देखें, अपने क्रोध को साक्षी के रूप में देखें और वे शांत हो जाएंगे। जब देखना वहां होता है, तो मन शांत हो जाता है। देखने से अंत में अद्वैत का अनुभव होता है। पहले देखने से शून्यता का अनुभव होता है और अंततः एक क्षण के बिना एक का अनुभव होता है। वह सत्-चित-आनंद का क्षण है।

2 years ago | [YT] | 94

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🌿स्वांस के सूक्ष्म ठहराव में शांति का वास🌿

स्वांस के दो बिंदु है, दो छोर है। एक छोर है जहां वह शरीर और विश्‍व को छूती है और दूसरा वह छोर है जहां वह विश्‍वातीत को छूती है। हम स्वांस के एक उसी हिस्‍से से परिचित हैं जब वह विश्‍व में, शरीर में गति करती है। लेकिन वह सदा ही शरीर से अशरीर में गति करती है। अगर तुम अभ्यास से दूसरे बिंदू को जो सेतु है, धुव्र है, जान जाओ तो तुम एकाएक रूपांतरित होकर दूसरी ही चेतना में प्रवेश कर जाओगे। लेकिन वह बिंदु बहुत सूक्ष्‍म है। जो चीज जितनी निकट हो उतनी ही कठिन मालूम पड़ेगी। स्वांस तुम्‍हारे इतना करीब है कि उसके बीच स्‍थान ही नहीं बना रहता या इतना अल्‍प स्‍थान है कि उसे देखने के लिए बहुत सूक्ष्‍म दृष्‍टि चाहिए। तभी तुम उन बिंदुओं के प्रति बोध पूर्ण हो सकते हो। जब तुम्‍हारी स्वांस भीतर आये तो उसका निरीक्षण करो। फिर बाहर या ऊपर के लिए मुड़ने के पहले एक क्षण के लिए या क्षण के हज़ारवें भाग के लिए स्वांस बंद हो जाती है। स्वांस भीतर आती है और वहां एक बिंदु है जहां वह ठहर जाती है। फिर स्वांस बाहर जाती है और जब बाहर जाती है तो वहां एक बिंदु पर ठहर जाती है। फिर वह भीतर को लौटती है। स्वांस के भीतर या बाहर मुड़ने के पहले एक क्षण है जब तुम स्वांस नहीं लेते हो। उसी क्षण में घटना घटनी संभव है। क्‍योंकि जब तुम स्वांस नहीं लेते हो तो तुम संसार में नहीं होते हो। लेकिन यह क्षण इतना छोटा है कि तुम उसे कभी देख नहीं पाते। प्रत्‍येक बहिर्गामी स्वांस मृत्‍यु है और प्रत्‍येक आने वाली स्‍वांस पुनर्जन्‍म है।

इसलिए प्रत्‍येक स्वांस के साथ तुम मरते हो और प्रत्‍येक स्वांस के साथ तुम जन्‍म लेते हो। दोनों के बीच का अंतराल बहुत क्षणिक है, लेकिन ध्यान के अभ्यास से पैनी दृष्‍टि, शुद्ध निरीक्षण और दृष्टा होकर उसे अनुभव किया जा सकता है। अभ्यास से यदि तुम उस अंतराल को अनुभव कर सको तो वहीं परम शांति उपलब्‍ध है। तब और किसी चीज की जरूरत नहीं है। तुमने स्वयं को जान लिया; घटना घट गई। स्वांसों का ऐसा सत्य जिसका न जन्‍म है न मरण को जानने के लिए ध्यान का सरल प्रयोग करो। पहले भीतर आने वाली स्वांस के प्रति होश पूर्ण बनो। उसे देखो और पूरी सजगता से उसके साथ यात्रा करो। स्वांस के साथ ठीक कदम से कदम मिलाकर नीचे उतरो; न आगे जाओ और ने पीछे पड़ो। उसका साथ न छूटे; बिलकुल साथ-साथ चलो। स्‍मरण रहे, न आगे जाना है और न छाया की तरह पीछे चलना है। समानांतर चलो। स्वांस नीचे जाती है तो तुम भी नीचे जाओ और तभी उस बिंदु को पा सकते हो जो दो स्वांसों के बीच में है। यह आसान नहीं है। स्वांस के साथ अंदर जाओ; स्वांस के साथ बाहर आओ। संसार के सभी जीवंत सच्चे गुरु ध्यान से ही शांति की मंजिल पर पहुंचे हैं। अगर तुम स्वांस के प्रति सजगता का, बोध का अभ्‍यास करते गए तो एक दिन अनजाने ही तुम आने-जाने वाले स्वांसों की उस स्थिति के प्रति अबोध कैसे रह सकते हो जहां स्‍वांस नहीं है। वह क्षण आ ही जाएगा जब तुम महसूस करोगे कि अब स्वांस न जाती है, न आती है। स्वांस का आना-जाना बिल्कुल ठहर गया है और उसी ठहराव में परमानंद का वास है, सच्चिदानंद का वास है और परम शांति का वास है।

2 years ago | [YT] | 36

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Please Watch Special Message Of Mahadev On Mahashivratri 2023......
भगवान शिव किसका ध्यान करते है?||Whom does Lord Shiva meditate on?

https://youtu.be/IdxSe_-j9Lc

2 years ago (edited) | [YT] | 65