Jain Dharm Activity.(RJ)

It is a platform, where we try to provide references for all Jain religious activities that are performing in our home town. So that anybody can take ideas from these activities.. they can perform like so beautifully.. :-) This Channel is managed by Roopal Jain from Bhilwara Rajasthan..:-)


Jain Dharm Activity.(RJ)

हनुमान जयंती विशेषांक

हनुमानजी 18 वें कामदेव थे वह बंदर नहीं थे, बल्कि वानर वंशी थे, अर्थात जैन रामायण (पद्मपुराण) के अनुसार इनके वंश के राज्य ध्वज में बंदर का चिन्ह था, इसलिए इनका कुुल वानर वंश के नाम से विख्यात है, इनके पिता राजकुमार पवन कुमार और माता अंजना थी।

जैन मान्यता के अनुसार हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी न होकर ग्रहस्थ थे ,उनके न हीं बंदर जैसा मुंह था न ही पूंछ थी उनका रंग रूप वानर जैसा नहीं था। वह विद्याधारी थेे।विद्या के बल पर उन्होंने लंका में वानर का रूप रचा था उसके बाद उन्होंने राजपाट और स्त्री आदि का त्याग कर साधु हो गए और तपस्या करके श्रीराम की तरह उसी जन्म में मांगीतुंगी से मोक्ष पधारे।

निर्वाण कांड.... राम हनु सुग्रीव सुडील, गवय गवाख्य नील महानील।
कोड़ी 99 मुक्ति पयान, तुंगीगिरि वंदौ धरी ध्यान।।

हनुमान की मांगी तुगी पर प्रतिमा है .. 🙂🙏🙂

1 month ago | [YT] | 1

Jain Dharm Activity.(RJ)

महावीर जयंती नारों की घोषणा


त्रिशला नन्दन वीर की 
जय बोलो महावीर की ।

शासननायक वीर की 
जय बोलो महावीर की ।

प्रेम से बोलो / जय महावीर । 
सब मिल बोलो / जय महावीर ।

भाईयो बोलो / जय महावीर ।
बहनो बोलो  / जय महावीर ।
ज़ोर से बोलो / जय महावीर ।

उपरवाले बोलो / जय महावीर ।  
नीचेवालो बोलो / जय महावीर ।

महावीर का नारा है
जिनशासन हमारा है।

महावीर ने क्या किया
अहिंसा का संदेश दिया । 

महावीर का क्या संदेश - 
जिओ और जीने दो ।

महावीर का क्या संदेश - 
सीखो समता, छोडो द्वेष ।

महावीर के संदेश को /
घर घर में पहुँचायेंगे ।

महावीर का एक ही घोष /
देखो अपना-अपना दोष । 

शूरो में तू शूर है /
इसीलिए महावीर है । 

जान है तो जहान है /
भगवान महावीर महान है ।

एक रुपया चांदी का /
सारा देश महावीर का ।

आज का दिन कैसा है /
सोने से भी महंगा है। 

सिद्धारथ के प्यारे है /
त्रिशला के दुलारे है।

मिला तुझे यह नरतन आला /
वीर नाम की जप ले माला ।

महावीर की बडी मिसाल /
पाया हमने शासन विशाल ।

दया धर्म की क्या पहचान /
अहिंसावादी हो इन्सान ।

जैन धर्म का नारा है /
जीना सबको प्यारा है ।

आपस में जहाँ प्रेम है /
वहीं पे सुख और चैन है ।

सादा जीवन उच्च विचार /
महावीर की जय जयकार ।

एव्हरेस्ट की उँची चोटी /
प्रभु वीर की पदवी मोटी ।

जैन धर्म पर हमको अभिमान /
महावीर जिनशासन की शान ।

सब मिलकर जय गायेंगे /
जिन धर्म की शान बढायेंगे । 

धरती-अंबर करे पुकार /
महावीर की जय जयकार 

जब तक सूरज चांद रहेगा /
महावीर तेरा नाम रहेगा ।
जब तक सूरज चांद रहेगा /
जिनशासन का नाम रहेगा।

घर घर से आयी पुकार / 
जैन धर्म की जय जयकार ।
घर घर से आयी पुकार / 
महावीर जय जयकार ।

गली गली से आयी पुकार /
जैन धर्म की जय जयकार ।
गली गली से आयी पुकार /
महावीर जय जयकार ।

सब जीवों से प्यार करो /
अहिंसा का प्रचार करो।

महावीर के सिपाही बनेंगे /
तूफानों से नहीं डरेंगे 

1 month ago | [YT] | 0

Jain Dharm Activity.(RJ)

*प्रथम तीर्थंकर*
ऋषभदेव से संबंधित कुछ जानकारियां
अन्य नाम
आदिनाथ, ऋषभनाथ, वृषभनाथ
शिक्षाएं
अहिंसा, अपरिग्रह, असि मसि कृषि विद्या वाणिज्य आयुर्वेद युद्धकला शस्त्रविद्या
3पूर्व तीर्थंकर
भूतकाल चौबीसी के अनंतवीर्य भगवान
अगले तीर्थंकर
अजितनाथ
*गृहस्थ जीवन*
वंश
इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय
पिता
नाभिराय
माता
मरूदेवी
पुत्र
भरत चक्रवर्ती, बाहुबली और वृषभसेन,अनन्तविजय,अनन्तवीर्य आदि 98 पुत्र
पुत्री
ब्राह्मी और सुंदरी
_पंच कल्याणक_
च्यवन स्थान
सर्वार्थ सिद्धि विमान
जन्म कल्याणक
चैत्र कृष्ण नवमी (तीर्थंकर दिवस)
*जन्म स्थान*
अयोध्या
दीक्षा कल्याणक
चैत्र कृष्ण नवमी
दीक्षा स्थान
सिद्धार्थकवन में वट वृक्ष के नीचे
केवल ज्ञान कल्याणक
फाल्गुन कृष्ण एकादशी
केवल ज्ञान स्थान
सहेतुक वन अयोध्या
मोक्ष
माघ कृष्ण चतुर्दशी
मोक्ष स्थान
[[अष्टापद

/कैलास पर्वत|कैलाश पर्वत]]
लक्षण
रंग
स्वर्ण
ऊंचाई
५०० धनुष (१५०० मीटर)
आयु
८,४००,००० पूर्व (५९२.७०४ × १०१८ वर्ष)[1][2][3]
वृक्ष
दीक्षा वट वृक्ष के नीचे
शासक देव
यक्ष
गोमुख देव
यक्षिणी
चक्रेश्वरी
गणधर
प्रथम गणधर
वृषभसेन
गणधरों की संख्य
चौरासी 84
तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर के पांच कल्याणक होते हैं।

1 month ago | [YT] | 0

Jain Dharm Activity.(RJ)

*अष्टान्हिका पर्व महामहोत्सव*

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*सरव पर्व मे बड़ो अठाई परव*

_प्रश्न -1_
_अष्टान्हिका पर्व एक वर्ष मे_ _कितनी बार आता है और कौन_ कौनसे मास मे आता है पूजन की एक लाइन भी लिखो ⁉️
*उत्तर -अष्टान्हिका पर्व एक वर्ष मे तीन बार आता है आषाढ़़, फाल्गुन, कार्तिक मास मे आते है । नंदीश्वर श्री जिनधाम,* *बावन पुंज करौं ।*

_प्रश्न -2_
_अष्टान्हिका पर्व मे कौनसा विधान करते है ⁉️_
*उत्तर - अष्टान्हिका पर्व में मुख्यतः सिद्धचक्र विधान या नंदीश्वर विधान किया जाता है ।*

_प्रश्न -3_
_मैनासुंदरी ने कौनसा विधान किया था क्यों किया था ⁉️_
*उत्तर -मैनासुन्दरी ने श्रीपाल जी आदि 700 रोगियों के कुष्ठ रोग निवारण के लिए सिद्धचक्र विधान किया था ।*

_प्रश्न -4_
_सिद्धचक्र विधान मे कुल कितने अर्घ चढ़ते है ⁉️_
*उत्तर - सिद्धचक्र विधान मे कुल 2040 अर्घ चढ़ते है ।*

_प्रश्न -5_
_सिद्धचक्र विधान मे किनकी आराधना की जाती है ⁉️_
*उत्तर -सिद्धचक्र विधान मे अनंत सिद्ध परमेष्ठी की आराधना की जाती है ।*

_प्रश्न -6_
_नंदीश्वर द्वीप मे कुल कितने जिनालय है ⁉️_
*उत्तर -नंदीश्वर द्वीप मे कुल 52 जिनालय है ।*

_प्रश्न -7_
_मनुष्य कौनसे पर्वत को पार नहीं कर सकता है ⁉️_
*उत्तर -मानुषोत्तर पर्वत को मनुष्य पार नहीं कर सकता है ।*

_प्रश्न -8_
_सिद्धचक्र विधान मे पहले दिन कितने अर्घ चढ़ते है ⁉️_
*उत्तर -सिद्धचक्र विधान मे पहले दिन आठ अर्घ चढ़़ते है ।*

_प्रश्न -9_
_विदेहक्षेत्र मे कितने तीर्थंकर होते है ⁉️_
*उत्तर -विदेहक्षेत्र मे 160 तीर्थंकर होते है अजितनाथ भगवान के समय मे 170 तीर्थंकर हुए ।*

_प्रश्न -10_
_इस बार अष्टान्हिका पर्व कौनसी तिथि से शुरू हुए ⁉️_
*उत्तर फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक है ।*

_प्रश्न -11_
_नंदीश्वर द्वीप एक दिशा मे कितने करोड़़ किलोमीटर विस्तृत है ⁉️_
*उत्तर -नंदीश्वर द्वीप एक दिशा में 9, 83, 040 करोड़़ किलोमीटर विस्तृत है ।*

_प्रश्न -12_
_नंदीश्वर द्वीप मे प्रत्येक जिनालय का आकार कितना होता है ⁉️_
*उत्तर -लम्बाई -100 योजन*
*चौड़ाई -50 योजन*
*ऊंचाई -75 योजन*

_प्रश्न -13_
_52 अकृत्रिम चैत्यालयों में कितनी प्रतिमा होती है ⁉️_
*उत्तर -5616 जिन प्रतिमा होती है ।*

_प्रश्न -14_
_नंदीश्वर द्वीप कितना बड़ा होता है ⁉️_
*उत्तर -नंदीश्वर द्वीप 163करोड़*
*84 लाख महायोजन का और* *एक महायोजन होता है 6000*
*कि. मी. का ।*

_प्रश्न -15_
_प्रत्येक चैत्यालय की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई बताओ ⁉️_
*उत्तर -4800 कि.मी.लम्बाई*
*2400 कि. मी. चौड़ाई*
*_3600 कि. मी. ऊंचाई_*
*यानि के पूरे भारत से भी ज्यादा विशाल हर मंदिर है ।*

_प्रश्न -16_
_प्रत्येक गर्भ गृह मे_
_कितनी-कितनी प्रतिमा और_ _कितनी- कितनी मीटर ऊँची है_
*उत्तर -प्रत्येक गर्भ गृह मे हलकी*
*मुस्कान बिखेरती 108-108* *प्रतिमाऐं है वो भी 500 धनुष ऊँची है यानि* *क़ुतुबमीनार से भी दस गुना ऊँची वो भी खड्गासन नहीं पद्मासन है ।*

_प्रश्न -17_
_सौधर्म आदि कल्पों के 12 इंद्र भवनत्रिक व अन्य देवों के साथ चारों दिशाओं मे कितने घंटे_ _पूजा करने के बाद दिशा_
_बदलते है लगातार कितने घंटे तक पूजा -अर्चना करते है ⁉️_
*उत्तर -चारो दिशाओं मे 6-6 घंटे (दो -दो पहर ) पूजा करने के बाद दिशा बदलते है और* *लगातार 192 घंटे पूजा - अर्चना करते है ।*

_प्रश्न -18_
_प्रत्येक चैत्यालय के मुख्य द्वार की ऊंचाई और चौड़ाई कितनी होती है ⁉️_
*उत्तर -उसके प्रत्येक का मुख्य द्वार 768 कि. मी. ऊँचा , यानि माउंट एवरेस्ट से भी सौ गुना ज्यादा ऊँचा, 384 कि. मी. चौड़ा होता है ।*

_प्रश्न -19_
_नंदीश्वर द्वीप मे पूजन की अपेक्षा देवों के द्वारा चौबीस घंटे भगवान की आराधना लेकिन मनुष्यों के द्वारा क्यों नहीं हो सकती है ⁉️_
*उत्तर -भरत क्षेत्र मे दिन और रात्रि का आवागमन चलता*
*रहता है और नंदीश्वर द्वीप पर दिन व रात्रि का भेद नहीं होता, इसीलिए चारों निकायों के देव* *चौबीस घंटे भगवान की आराधना कर सकते है हम सबकी शक्ति हो तो आप भी चौबीस घंटे आराधना कर* *सकते है ! लेकिन काल दोष के कारण ऐसा नहीं हो पाता है ।*

_प्रश्न -20_
_कोटि शशि भानु दुति तेज छिप जात है महा वैराग -परिणाम ठहरात है ⁉️_
*उत्तर -करोड़ो सूर्य का तेज़ जिन बिम्ब के तेज़ के आगे दीपक की तरह प्रतीत होता है !*

_प्रश्न -21_
_नंदीश्वर श्री जिनधाम बावन पुंज करौं ! वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरौं ⁉️_
*उत्तर -नंदीश्वर द्वीप के 52 मंदिरों के 52 अर्घ चढ़ाओ आठ दिन तक ये शाश्वत प्रतिमाएं है इनको मन मे धारण कर आनंद का भाव धरो ।*

_प्रश्न -22_
_लाला नख मुख नयन स्याम अरू श्वेत है स्याम रंग भौंह सिर -केश छवि देत है ⁉️_
*उत्तर -नंदीश्वर द्वीप के मंदिरो मे जो प्रतिमाएं है उनके होंठ व नाखून लाल रंग के होते है तथा भौंह व केश काले होते है नयन काले और सफेद होते है*

_प्रश्न -23_
_नंदीश्वर द्वीप मे अंजनगिरि और दधिमुख पर्वतो की संख्या कितनी होती है ⁉️_
*उत्तर -अंजनगिरि चार पर्वत, दधिमुख पर्वत 16 होते है !ये सब चारो दिशाओ मे होते है*

_प्रश्न -24_
_नंदीश्वर द्वीप की एक दिशा मे कुल कितने चैत्यालय है ⁉️_
*उत्तर -13 चैत्यालय*

_प्रश्न -25_
_अंजन गिरी की कुल ऊंचाई कितने योजन है ⁉️_
*उत्तर -84 लाख योजन*
_प्रश्न -26_
_नंदीश्वर द्वीप मे स्थित प्रतिमा कौनसे आसान वाली और कितने धनुष ऊचाई वाली है ⁉️_
*उत्तर -पदमाशन, 500 धनुष ऊँची*

_प्रश्न -27_
_दधिमुख पर्वत किनके मध्य स्तिथ है ⁉️_
*उत्तर -अशोक, सप्तछन्द, चम्पक, आम्रवन के मध्य*

_प्रश्न -28_
_नंदीश्वर द्वीप मे कुल चइतालयो की संख्या और कुल प्रतिमाओं की संख्या कितनी है ⁉️_
*उत्तर -52 जिनालय, 5616 प्रतिमा*

_प्रश्न -29_
_सैल बत्तीस एक सहस योजन कहे --ये किस पर्वत के लिए लिखा है साथ ही इनकी कुल संख्या और ऊंचाई लिखें ⁉️_
*उत्तर -रतिकर पर्वत, 32, 1000योजन ऊँचे*

_प्रश्न -30_
_नंदीश्वर द्वीप पूजन के लेखक कौन है ⁉️_
*उत्तर -कविवर धानत राय जी*

_प्रश्न -31_
_नंदीश्वर द्वीप की एक दिशा का विस्तार कितना है ⁉️_
*उत्तर -163 करोड़ 84 लाख योजन*

_प्रश्न -32_
_नंदीश्वर द्वीप मे क्या विजयार्ध पर्वत है ⁉️_
*उत्तर -विजयार्ध पर्वत नहीं है !*

_प्रश्न -33_
_नंदीश्वर स्तिथ पर्वत किस_ _आकार के होते है ⁉️_
*उत्तर -ढोल के आकार के है !*

_प्रश्न -34_
_नंदीश्वर द्वीप मे लाल वर्ण के पर्वत कौनसे होते है ⁉️_
*उत्तर -रतिकर पर्वत*

_प्रश्न -35_
_नंदीश्वर द्वीप के प्रत्येक चैत्यालय मे कितनी प्रतिमा होती है ⁉️_
*उत्तर - 108 प्रतिमा होती है*

*जय जिनेन्द्र दोस्तो*👏

2 months ago | [YT] | 2

Jain Dharm Activity.(RJ)

*स्वाध्याय से लाभ*


⭕ आकुलता कम करने का उपाय
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ दुख कम करने का उपाय
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ सुखी होने का उपाय
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ सम्यक दर्शन प्राप्त करने का उपाय
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕शांत रहने का उपाय
*👉🏽स्वाध्याय*

⭕ शीतल रहने का उपाय *
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ सरल और सहज रहने का उपाय 👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ धार्मिक विवादों से निकलने का उपाय 👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ मान कषाय से बचने का उपाय
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ पाप कर्मों से बचने का उपाय
👉🏽 *स्वाध्याय*

*⭕ वस्तु स्वरूप समझने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

*⭕ जीव अजीव की पहचान समझने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ *निरोगी रहने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ *रोग आ भी जाए तो उस स्थिति में जीने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ *व्यापार एवं नौकरी आदि में नुकसान हो जाए तो उस परिस्थिति से मानसिक रूप से बाहर निकलने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

*⭕ शरीर और आत्मा को भिन्न समझने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

*⭕ मिले हुए संयोग स्त्री, पुत्र, बच्चे, मकान, जमीन, जायजाद, वैभव, धन आदि के माध्यम से बंधने वाले कर्मों के बंधनों से छुड़ाने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ *व्यवहार और निश्चय के अंतर को समझने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ *जिनको कभी हम पाप नहीं समझते थे उस पुण्य और पाप का अंतर को समझने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ *अपने किसी ईष्ट परिवार जन का वियोग हो जाए , उस स्थिति में रहने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

*⭕ अपने पराये का और स्वयं का बोध करने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

*⭕ मिथ्यात्व से छुटने और छुड़ाने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

*⭕ पूर्व में बंधे हुए कर्मों से छूटने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

⭕ *नए कर्म ना बंधे उससे बचने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*

*⭕सच्ची जिनवाणी को समझने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय

⭕ *सिद्ध अवस्था तक पहुंचाने का उपाय*
👉🏽 *स्वाध्याय*
🙏🙏🙏

2 months ago | [YT] | 0

Jain Dharm Activity.(RJ)

🌇 🚩 *प्रश्न : णमोकार मंत्र के पर्यायवाची नाम बताईये ?*

उत्तर - *अनादिनिधन मंत्र -* यह मंत्र शाश्वत है , न इसका आदि है और न ही अंत है ।
*अपराजित मंत्र -* यह मंत्र किसी से पराजित नहीं हो सकता है ।
*महामंत्र -* सभी मंत्रों में महान् अर्थात् श्रेष्ठ है ।
*मूलमंत्र -* सभी मंत्रों का मूल मंत्र अर्थात् जड़ है , जड़ के बिना वृक्ष नहीं रहता है , इसी प्रकार इस मंत्र के अभाव में कोई भी मंत्र टिक नहीं सकता है ।
*मृत्युंजयी मंत्र -* इस मंत्र से मृत्यु को जीत सकते हैं अर्थात् इस मंत्र के ध्यान से मोक्ष को भी प्राप्त कर सकते हैं ।
*सर्वसिद्धिदायक मंत्र -* इस मंत्र के जपने से सभी ऋद्धि सिद्धि प्राप्त हो जाती है ।
*तरणतारण मंत्र -* इस मंत्र से स्वयं भी तर जाते हैं और दूसरे भी तर जाते हैं ।
*आदि मंत्र -* सर्व मंत्रों का आदि अर्थात् प्रारम्भ का मंत्र है ।
*पंच नमस्कार मंत्र -* इसमें पाँचों परमेष्ठियों को नमस्कार किया जाता है ।
*मंगल मंत्र -* यह मंत्र सभी मंगलों में प्रथम मंगल है ।
*केवलज्ञान मंत्र -* इस मंत्र के माध्यम से केवलज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं ।

🌇 🚩 *प्रश्न : णमोकार मंत्र कहाँ कहाँ पढ़ना चाहिए ?*

उत्तर - दुःख में , सुख में , डर के स्थान , मार्ग में , भयानक स्थान में , युद्ध के मैदान में एवं कदम कदम पर णमोकार मंत्र का जाप करना चाहिए । यथा -

*दुःखे - सुखे भयस्थाने , पथि दुर्गे - रणेSपि वा ।*
*श्री पंचगुरु मंत्रस्य , पाठ : कार्य : पदे पदे ॥*

🌇 🚩 *प्रश्न : क्या अपवित्र स्थान में णमोकार मंत्र का जाप कर सकते हैं ?*
उत्तर - यह मंत्र हमेशा सभी जगह स्मरण कर सकते हैं , पवित्र व अपवित्र स्थान में भी , किंतु जोर से उच्चारण पवित्र स्थानों में ही करना चाहिए । अपवित्र स्थानों में मात्र मन से ही पढ़ना चाहिए ।

🌇 🚩 *प्रश्न : णमोकार मंत्र ९ या १०८ बार क्यों जपते हैं ?*

उत्तर - ९ का अंक शाश्वत है उसमें कितनी भी संख्या का गुणा करें और गुणनफल को आपस में जोड़ने पर ९ ही रहता है ।
जैसे ९*३ =२७ , २ + ७ = ९

कर्मों का आस्रव १०८ द्वारों से होता है , उसको रोकने हेतु १०८ बार णमोकार मंत्र जपते हैं । प्रायश्चित में २७ या १०८ , श्वासोच्छवास के विकल्प में ९ या २७ बार णमोकार मंत्र पढ़ सकते हैं ।

🌇 🚩 *प्रश्न : आचार्यों ने उच्चारण के आधार पर मंत्र जाप कितने प्रकार से कहा है ?*

उत्तर - *वैखरी -* जोर जोर से बोलकर मंत्र का जाप करना चाहिए जिसे दूसरे लोग भी सुन सकें ।
*मध्यमा -* इसमें होंठ नहीं हिलते किंतु अंदर जीभ हिलती रहती है ।
*पश्यन्ति -* इसमें न होंठ हिलते हैं और न जीभ हिलती है इसमें मात्र मन में ही चिंतन करते हैं ।
*सूक्ष्म -* मन में जो णमोकार मंत्र का चिंतन था वह भी छोड़ देना सूक्ष्म जाप है । जहाँ उपास्य उपासक का भेद समाप्त हो जाता है । अर्थात् जहाँ मंत्र का अवलंबन छूट जाये वो ही सूक्ष्म जाप है ।

🌇 🚩 *प्रश्न : इस मंत्र का क्या प्रभाव है ?*
उत्तर - यह पंच नमस्कार मंत्र सभी पापों का नाश करने वाला है । तथा सभी मंगलों में प्रथम मंगल है । यथा -
*एसो पंच णमोयारो सव्वपावप्पणासणो ।*
*मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होई मंगलं । ।*

मंगल शब्द का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है ।
मंङ्ग = सुख । ल = ददाति , जो सुख को देता है , उसे मंगल कहते हैं ।
मंगल - मम् = पापं । गल = गालयतीति = जो पापों को गलाता है , नाश करता है उसे मंगल कहते हैं ।

मंत्र के प्रभाव से -
🕌पद्मरुचि सेठ ने बैल को मंत्र सुनाया तो वह सुग्रीव हुआ ।
🕌रामचंद्र जी ने जटायु पक्षी को सुनाया तो वह स्वर्ग में देव हुआ ।
🕌जीवंधर कुमार ने कुत्ते को सुनाया तो वह यक्षेन्द्र हुआ ।
🕌अंजन चोर ने मंत्र पर श्रद्धा रखकर आकाश गामिनी विद्या को प्राप्त किया ।

2 months ago | [YT] | 0

Jain Dharm Activity.(RJ)

*आचार्य श्री विद्यासागर जी के* *चल समारोह मे बोलने वा लिखने बाले नारे*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
1-सारे विश्व की सच्ची शान, विद्यासागर गुरू महान।
2-विद्या गुरू को देख लो, त्याग करना सीख लो।
3-विद्यासागर संत महान, चलते-फिरते ये भगवान।
4-विद्यागुरू का सच्चा द्वार, हर जीवों से करते प्यार।
5 -जब तक सूरज चाँद रहेगा, विद्यासागर नाम रहेगा।
6-अखिल विश्व में गूँजे नारा, विद्यासागर गुरू हमारा।
7-विद्यागुरू का क्या संदेश, रहो स्वदेश, न जाओ विदेश।
8-जगमग चमकें विद्यासागर, भरते सबकी खाली गागर।
9-इंडियो छोड़ो, भारत बोलो, विद्यासागर की जय बोलो।
10-विद्यासागर एक सहारे, जग में रहते जग से न्यारे।
11-विद्यासागर संकट हारी, नैया सबकी पार उतारी।
12-विद्यासागर नाम जो ध्याता, पापी भी भव से तिर जाता।
13-ज्ञान के सागर, विद्यासागर।
अध्यात्म के सागर, विद्यासागर।
14-विद्यासागर नाम है उनका, गौ रक्षा का भाव है जिनका।
15-नील गगन में एक सितारा, विद्यागुरू को नमन हमारा।
16-जिनका कोई नहीं जवाब, विद्यासागर लाजवाब।
17-विद्यासागर जिसे निहारें, नैया उसकी पार उतारें।
18-जग जीवों के पालन हारे, विद्यासागर गुरू हमारे।
19-विद्यासागर देकर ज्ञान, हर लेते सबके अज्ञान।
20-एक ही नारा, एक ही नाम, विद्या गुरूवर तुम्हें प्रणाम।
21-एक दो तीन चार, विद्या गुरू की जय जयकार।
22-पांच छः सात आठ, विद्या गुरू के प्रभु सम ठाठ।
23-नौ दस ग्यारह बारह, विद्यासागर जग में न्यारा ।
24-तेरह चौदह पंद्रह सोलह, बच्चा बच्चा गुरू की जय बोला।
25-सत्तरह अठारह उन्नीस बीस, विद्यागुरू को नवओ शीश।
26-बिना तिथि के करें विहार, विद्यासागर सदा बहार।
27-अखिल विश्व में गूंजे नाद, विद्यासागर जिंदाबाद।
28-विद्यासागर किसके हैं, जो भी ध्यावे उसके हैं।
29-पाप छोड़ के पुण्य कमाओ, पूरी मैत्री तुम अपनाओ।
30-जैन जगत के कौन सितारे, विद्यासागर गुरू हमारे ।
31-विद्यागुरू से करते यदि प्यार, तो हाथ करघा को करो स्वीकार ।
32-श्रीमति माँ का प्यारा लाला, विद्यासागर नाम निराला ।
33-चेतन रत्नों के व्यापारी, विद्यासागर संयम धारी।
34-विद्यासागर महिमावान, गुरू हैं कलियुग के भगवान।
35-हर माँ का बेटा कैसा हो, विद्यासागर जैसा हो।
36-छोड़ो हिंसा सीखो प्यार, विद्या गुरू की ही पुकार।
37-मूकमाटी के रचनाकार, संयम का करते व्यापार।
38-विद्यागुरू गये बीना बारह. खुल गई दुग्ध शांतिधारा।
39-विद्यागुरू रत्नों की खान, होठों पर रहती मस्कान।
40-संघ को गुरुकुल बनाया है, गुरु का वचन निभाया है।
41-भक्तों के दुःख हरने वाली, गुरुवर की मुस्कान निराली।
42-विद्यासागर जहां थम जायें, उसी जगह तीरथ बन जाये।
43-एक चवन्नी चांदी की, जय हो विद्यावाणी की।
44-विद्यासागर अनियत बिहारी, पीछे पागल जनता सारी।
45-विद्यासागर वो कहलाया, जिसने दया धर्म सिखलाया।
46-विद्यासागर लगते प्रभु वीरा, रत्नत्रय से चमकित हीरा।
47-विद्यासागर किरपा करते, रत्नत्रय से झोली भरते।
48-जिसके सिर गुरु हाथ होगा, बाल न बाका उसका होगा।
49-ऊपर नभ में सूरज चमके, विद्यासागर जग में चमके(दमके)।
41-धर्म ध्वजा गुरु फहराते, संत कहलाते।
42-बड़भागी शरणा पाते. विद्यागुरु सबको भाते।
43-धीर, वीर, गंभीर शूर हैं, विद्यासागर कोहिनूर हैं।
44-चाँद रात में दाग सहित है, विद्यासागर राग रहित हैं।
45-विद्यागुरु की कोमल काया, फिर भी छोड़ी जग की माया।
46-रथ, घोड़े न पालकी, जय मल्लप्पा लाल की।
47-जैन धर्म की जान है. विद्यागरु भगवान हैं
👏👏👏👏👏

2 months ago | [YT] | 1

Jain Dharm Activity.(RJ)

प्रश्नोत्तरी

🔔1-प्रश्न -निद्रा और निद्रानद्रा में क्या अंतर है?
🔔उत्तर - निद्रावान पुरुष सुखपूर्वक जागृत हो जाता है जबकि निद्रानिद्रा वाला बहुत कठिनता से सचेत होता है।
🔔2-प्रश्न-प्रचला व प्रचला- प्रचला दर्शनावरण कर्म के लक्षण बताईये।
🔔उत्तर - जो शोक श्रम और मद आदि के कारण उत्पन्न हुई है और जो बैठे हुए प्राणी के भी नेत्र गात्र की विक्रिया की सूचक है ऐसी आत्मा को चलायमान करने वाली क्रिया प्रचला है और प्रचला की पुनः पुनः आवृत्ति होना प्रचला- प्रचला है।
🔔 3-प्रश्न-स्त्यानगृद्धि दर्शनावरण कर्म का लक्षण बताईये ?
🔔उत्तर - जसके निमित्त से स्वप्न में वीर्य विशेष का अविर्भाव हो वह स्त्यानगृद्धि है। अर्थात जिसके उदय से आत्मा दिन में करने योग्य रौद्र कार्यों को रात्री में कर डालता है वह स्त्यानगृद्धि दर्शनावरण कर्म है।
🔔4- प्रश्न-वेदनीय कर्म के भेद बताईये ?
🔔उत्तर - 'सदसद्वेद्ये।' सद्वेद्य अर्थात् साता वेदनीय और असदवेद्य अर्थात् असाता ये दो वेदनीय कर्म के भेद हैं।
🔔5-प्रश्न- मोहनीय कर्म के उत्तरभेद बताईये ?
🔔उत्तर - 'दर्शनचारित्र मोहनीयाकषाय- कषाय वेदनीयाख्यास्त्रिद्विनवषोडशभेदाः सम्यक्त्व मिथ्यात्वतदुभयान्यकषाय कषायौहास्यरत्यरति शोकभय जुगुप्सा स्त्री- पुन्नपुंसक वेदा अनंतानुबंध्य प्रत्याख्यान - प्रत्याख्यान- संज्वलन विकल्पाश्चैकशः क्रोधमानमायालोभाः।' दर्शनमोहनीय, चारित्र मोहनीय, अकषाय वेदनीय, कषायवेदनीय इनके क्रम से तीन, दो नौ और सोलह भेद हैं। समयक्त्व, मिथ्यात्व और सम्यक्मिथ्यात्व ये दर्शन-मोहनीय के ३ भेद हैं। कषाय वेदनीय और अकषाय वेदनीय ये चारित्रमोहनीय के २ भेद हैं। हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसक वेद ये नौ अकषायवेदनीय हैं तथा अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन ये प्रत्येक के क्रोध, मान, माया, लोभ के भेद से सोलह कषाय वेदनीय हैं।
🔔6-प्रश्न-संज्वलन कषाय का उदयकाल कितना है ?
🔔उत्तर - संज्वलन कषाय का उदयकाल अंतर्मुहूर्त है।
🔔7-प्रश्न- संज्वलन कषाय का वासनाकाल कितना है ?
🔔उत्तर - संज्वलन कषाय का वासनाकाल भी अंतर्मुहूर्त है।
🔔8- प्रश्न-अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ किसके समान है ?
🔔उत्तर - अनंतानुबंधी क्रोध - शला रेखा के समान अनंतानुबंधी मान - शला सम भाव अनंतानुबंधी माया - बांस की जड़ के समान भाव अनंतानुबंधी लोभ - कृमिराग के समान।
🔔9-प्रश्न-अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, सहित जीवों की उत्पत्ति के स्थान बताओ?
🔔उत्तर - अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, सहित जीवों की उत्पत्ति नरकायु में होती है।
🔔10-प्रश्न-अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, किसके समान है ?
🔔उत्तर - अप्रत्याख्यान क्रोध- पृथ्वी रेखा के समान अप्रत्याख्यान मान- हड्डी समान भाव अप्रत्याख्यान माया- मेढ़े के सींग समान भाव अप्रत्याख्यान लोभ - गाड़ी के ओंगण के समान
🔔11-प्रश्न-अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, और लोभ सहित जीवों की उत्पत्ति के स्थान बताओ।
🔔उत्तर - अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, और लोभ सहित जीवों की उत्पत्ति तिर्यंचायु में होती है।
🔔12-प्रश्न-प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, किसके समान है ?
🔔उत्तर - प्रत्याख्यान क्रोध - धूलि रेखा के समान प्रत्याख्यान मान- काष्ठ समान भाव प्रत्याख्यान माया- गोमूत्र समान भाव प्रत्याख्यान लोभ शरीर के मैल समान
🔔13-प्रश्न- प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, सहित जीवों की उत्पत्ति के स्थान बताओ?
🔔उत्तर - प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, सहित जीवों की उत्पत्ति मनुष्यायु में होती है।

2 months ago | [YT] | 1

Jain Dharm Activity.(RJ)

प्रश्नोत्तरी..
📝1-प्रश्न-सिद्ध और अरिहंतों में क्या भेद है ?
📝उत्तर-आठ कर्मों को नष्ट करने वाले सिद्ध और चार घातिया कर्म को नष्ट करने वाले अरहंत होते हैं।
📝2-प्रश्न-शहद की एक बिंदु मात्र के भक्षण से क्या पाप लगता है ?
📝उत्तर-सात ग्राम जलाने का पाप लगता है।
📝3-प्रश्न-जंगमप्रतिमा का क्या स्वरूप है ?
📝उत्तर-निरतिचार चारित्र का पालन करने वाले निग्र्रन्थ दि. मुनि चलती फिरती जंगम प्रतिमा है।
📝4-प्रश्न-क्षायिक सम्यक्त्व कैसे होता है ?
📝 उत्तर- केवली या श्रुतकेवली के पादमूल में
📝5-प्रश्न-अणुव्रत और महाव्रत में क्या भेद है ?
📝उत्तर-एकदेशव्रत को अणुव्रत तथा सर्व देश्विरति को महाव्रत संज्ञा है।
📝6-प्रश्न-जिनमुद्रा और चक्रवर्ती मुद्रा में क्या अन्तर है ?
📝 उत्तर-मुनियों का आकार जिनमुद्रा है और ब्रह्मचारियों का आकार चक्रवर्ती मुद्रा है।
📝7-प्रश्न-मोक्ष का द्वार किसे कहा गया है ?
📝उत्तर-विनय को
📝8-प्रश्न-अपात्र और कुपात्र में क्या भिन्नता है ?
📝उत्तर-सम्यग्दर्शन से रहित हो व्रत का पालन करने वाले कुपात्र और सम्यग्दर्शन तथा व्रत इन दोनों से रहित मनुष्य अपात्र हैं।
📝9-प्रश्न-जितमोह साधु का जब मोह नष्ट हो जाता है, तब उन्हें क्या संज्ञा प्रदान की गई है ?
📝उत्तर-क्षीणमोह
📝10-प्रश्न-जीव का वास्तविक स्वरूप क्या है ?
📝उत्तर-ज्ञान-दर्शनमय होना

2 months ago | [YT] | 1

Jain Dharm Activity.(RJ)

*मंदिर दर्शन क्यों?*

1. जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करने से अनेक जन्मों के कर्मो का नाश होता है। सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है, पुण्यार्जन होता है और अनेक उपवास का फल मिलता है, स्वर्ग मोक्ष का साधन है।

2. जिनेन्द्र भगवान का दर्शन खुली आँखो से करना चाहिये जिससे हमें हमारे आत्म स्वरूप का भान होता है।

3. जिनेन्द्र भगवान के जन्म के समय शचि इंद्राणी प्रथम दर्शन से एक भवावतारी हो जाती है, सौधर्म इन्द्र एक हजार नेत्र बनाकर भगवान के दर्शन करता है, तब भी तृप्त नहीं होता है।

4. जिनेन्द्र भगवान के
- ललाट दर्शन से - अनन्त ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- नेत्र दर्शन से - अनन्त दर्शन की प्राप्ति होती है।
- मुख दर्शन से - अनन्त सुख की प्राप्ति होती है।
- वक्षस्थल दर्शन से - अनन्त वीर्य की प्राप्ति होती है।
- सर्वांग दर्शन से - अनन्त गणों की प्राप्ति होती है।

5. भगवान की मुद्रा का अवलोकन करते हुए भगवान से वार्तालाप करें। भगवान आपने ज्ञानावरणी कर्म का नाश करके अनन्त ज्ञान को प्राप्त कर लिया है। दर्शनावरणी कर्म का नाश करके अनन्त दर्शन को प्राप्त कर लिया है। मोहनीय कर्म का नाश करके अनन्त सुख को प्राप्त कर लिया है।अन्तराय कर्म को नाश करके अनन्त वीर्य को प्रकट किया है। जिस तरह से आपने अनन्त चतुष्टय को प्राप्त करके अरिहन्त पद को पाया है, हम भी घातिया कर्मों का नाश करेक अनन्त चतुष्टय प्राप्त करें।

*प्रार्थना*

है भगवन, मेरी सद्दृष्टि हो।
है भगवन, में विचार सद्विचार हो।
है भगवन, मेरा विवेक सद्विवेक हो।
है भगवन, मेरी श्रद्धा सद्श्रद्धा हो।

मैं दूसरों के बारे में, बुरा न देखु, न सुनु, न करूं और ना ही सोचूंगा।

2 months ago | [YT] | 1