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Sshivani Durga

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1 month ago | [YT] | 25

Sshivani Durga

क्या ॐ ही वह मूल कंपन था जिससे सृष्टि का आरंभ हुआ?

✍🏻 Sshivani Durga – PhD
Occultist & Researcher
SSIWAA

हजारों वर्षों पूर्व जब वेदों की ऋचाएं गूंज रही थीं, भारतीय ऋषियों ने एक ऐसी ध्वनि का अनुभव किया जिसे उन्होंने ॐ (प्रणव) कहा — एक ऐसी कंपन, जो शब्द नहीं बल्कि ब्रह्मांड की चेतना का अनहद नाद थी।
आज, आधुनिक विज्ञान भी यह स्वीकार करता है कि ब्रह्मांड की शुरुआत एक महान विस्फोट से हुई — जिसे हम बिग बैंग (Big Bang) कहते हैं।

इस लेख में हम यह समझने का प्रयास करते हैं:
क्या ‘ॐ’ वही मूल कंपन है जिसे विज्ञान ‘बिग बैंग’ कहता है?

🔹 वैज्ञानिक दृष्टिकोण: बिग बैंग और ब्रह्मांड की कंपन
1. बिग बैंग सिद्धांत के अनुसार, लगभग 13.8 अरब वर्ष पूर्व, एक अत्यंत सघन ऊर्जा बिंदु से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई।
2. उस समय:
न समय था, न स्थान; केवल शून्य से प्रकट ऊर्जा।
यह विस्फोट नहीं, बल्कि एक स्पंदन (vibration) था — जिसने विस्तार (expansion) शुरू किया।
3. इस प्रक्रिया के बाद जो गूंज बची, उसे विज्ञान में Cosmic Microwave Background Radiation (CMB) कहा जाता है — यह ब्रह्मांड की प्राचीन ध्वनि है, जिसे अब भी रेडियो टेलीस्कोप द्वारा सुना जा सकता है।

विभिन्न वैज्ञानिकों के अनुसार यदि इसे मानव-श्रव्य सीमा में बदला जाए, तो यह एक गंभीर, गूंजती हुई ध्वनि होगी — कुछ-कुछ वैसे ही जैसे योगी ध्यान में अनुभव करते हैं।

🔹 वेदांत दृष्टिकोण: ॐ — ब्रह्मांडीय चेतना की ध्वनि
1. माण्डूक्य उपनिषद कहता है:
“ॐ एतदक्षरं इदं सर्वं” — ‘ॐ’ ही यह सम्पूर्ण सृष्टि है।
2. ॐ में तीन ध्वनियाँ समाहित हैं:
अ (A) — सृष्टि का आरंभ (ब्रह्मा)
उ (U) — पालन की शक्ति (विष्णु)
म (M) — संहार एवं अंत (महेश)
3. इन तीनों से परे “अमात्रा” है — जो तुरीय अवस्था है, निर्विकल्प ब्रह्म का अनुभव।

ऋषियों ने इसे ‘नादब्रह्म’ कहा — एक ऐसी ध्वनि जो स्वयं में सृजन है, ऊर्जा है, चेतना है।

👉 निष्कर्षतः, विज्ञान जो ऊर्जा का विस्फोट मानता है, वेद उसे चेतना का प्रस्फुटन कहते हैं।

ऋषियों की अनुभूति और विज्ञान की खोज — दोनों एक ही मूल सत्य की ओर संकेत करते हैं।
जहाँ विज्ञान कहता है “Big Bang was the beginning”, वहीं वेद कहते हैं:

“ॐ इत्येतदक्षरं इदं सर्वं…” — यही सम्पूर्ण ब्रह्मांड की ध्वनि है।

अतः यह कहा जा सकता है कि ॐ कोई मात्र धार्मिक ध्वनि नहीं, बल्कि वह ब्रह्मांडीय मूल कंपन है,
जो सृष्टि की जड़ में है — नाद ही ब्रह्म है, और ॐ उसका रूप।

✨ समर्पित भाव

जो ध्यान से ॐ को सुनता है, वह ब्रह्मांड की आत्मा को सुनता है।
जो उसे समझता है, वह स्वयं ब्रह्म बन जाता है।

5 months ago | [YT] | 49

Sshivani Durga

8 months ago | [YT] | 45

Sshivani Durga

नव संवत्सर सिद्धार्थ , वर्ष २०८२ चैत्र नवरात्रि एवं गुडी पाडवा की हार्दिक शुभकामनाएँ
लेखिका: डॉ. Sshivani Durga (Occultist and Researcher)

भारतीय संस्कृति में समय की गणना केवल कैलेंडर के अनुसार नहीं होती, बल्कि प्रत्येक क्षण का आध्यात्मिक और खगोलीय महत्व होता है। नव संवत्सर और चैत्र नवरात्रि, दोनों ही इस दिव्यता को उद्घाटित करने वाले विशेष पर्व हैं। ये केवल पर्व नहीं, बल्कि आत्मचिंतन, शुद्धिकरण और नवसृजन के प्रतीक हैं।

क्या है नव संवत्सर?

‘संवत्सर’ का अर्थ है वर्ष, और ‘नव संवत्सर’ का अर्थ है नए वर्ष की शुरुआत। यह हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को आरंभ होता है, जिसे ‘विक्रम संवत्’ कहा जाता है। राजा विक्रमादित्य की विजय के उपलक्ष्य में इस संवत की शुरुआत हुई थी। यह दिन खगोलीय दृष्टि से भी अत्यंत विशेष होता है क्योंकि इसी समय सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, जो नवचेतना, ऊर्जा और आत्मबल का प्रतीक है।2025 के संवत् को २०८२ - सिद्धार्थ नाम से जाना जायेगा ।

चैत्र नवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य

चैत्र नवरात्रि देवी शक्ति की आराधना का पर्व है। यह वह समय होता है जब प्रकृति स्वयं नवजीवन धारण करती है — वृक्षों पर नये पत्ते आते हैं, फूल खिलते हैं, और वातावरण में एक नवीन ऊर्जा का संचार होता है। इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है — शैलपुत्री से लेकर सिद्धिदात्री तक।

हर रूप किसी न किसी चेतनात्मक शक्ति को जागृत करता है। ये शक्तियाँ केवल देवी के प्रतीक रूप नहीं हैं, बल्कि हमारे भीतर की सोई हुई संभावनाएँ हैं। इन नवरात्रों का उद्देश्य है — आत्मशुद्धि, आत्मचिंतन और आत्मबोध।

नव संवत्सर और नवरात्रि का वैज्ञानिक और तांत्रिक दृष्टिकोण

सिर्फ धार्मिक नहीं, इन पर्वों का वैज्ञानिक और तांत्रिक दृष्टिकोण भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
• वैज्ञानिक दृष्टिकोण: इस समय पृथ्वी की धुरी की स्थिति में परिवर्तन आता है, जिससे मौसम में बदलाव होता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, इसलिए उपवास, फलाहार और ध्यान का विशेष महत्त्व होता है।
• तांत्रिक दृष्टिकोण: यह काल तांत्रिक साधनाओं के लिए अत्यंत सिद्ध समय होता है। पृथ्वी और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच एक संतुलन बनता है। साधक इस समय साधनाओं द्वारा अपनी ऊर्जा को पुनर्संयोजित कर सकते हैं, नई सृजनात्मकता प्राप्त कर सकते हैं।

कैसे करें नव संवत्सर और नवरात्रि का स्वागत?
1. संकल्प लें – आत्मविकास, सेवा, और प्रकृति से जुड़ने का।
2. ध्यान और साधना – प्रातःकाल ध्यान करें, अपने भीतर की शक्ति को जागृत करें।
3. रोगमुक्त जीवनशैली अपनाएँ – उपवास, फलाहार और शुद्ध जल का सेवन करें।
4. शुद्ध वातावरण बनाएँ – घर में दीपक जलाएँ, धूप दें और सकारात्मक मंत्रों का जाप करें।
5. प्रकृति से जुड़ें – वृक्षारोपण करें, पक्षियों को दाना-पानी दें।

नव संवत्सर और चैत्र नवरात्रि, हमें स्मरण कराते हैं कि हर अंत के बाद एक नया आरंभ होता है। यह समय है पुराने विकारों को त्याग कर नवचेतना को अपनाने का। यह समय है शक्ति को जागृत करने का, और अपने जीवन को नये संकल्पों से आलोकित करने का।

आप सभी को नव संवत्सर और चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपका जीवन माँ दुर्गा की कृपा से शक्ति, समृद्धि और स्वास्थ्य से परिपूर्ण हो।

– डॉ. Sshivani Durga
Occultist and Researcher

8 months ago | [YT] | 45

Sshivani Durga

In my darkest hours I release the brightest light. Not everyone has the guts to stand by me in the dark and not everyone deserves to receive those gems. - Durga

10 months ago | [YT] | 106

Sshivani Durga

नासिक कुंभ 2015 से

11 months ago | [YT] | 215

Sshivani Durga

यदि हलाल certified food हो सकता है तो सनातन certified क्यों नहीं ? - दुर्गा

11 months ago | [YT] | 235

Sshivani Durga

नागा / अघोरी साधुओं के 17 श्रृंगार: वैराग्य और साधना का प्रतीक

नागा / अघोरी साधु भारतीय सनातन परंपरा के प्रमुख साधक हैं, जो तप, त्याग और वैराग्य के प्रतीक माने जाते हैं। उनका जीवन और श्रृंगार शिव की साधना और आत्मा के शुद्धिकरण पर केंद्रित होता है। नागा साधुओं के 17 प्रमुख श्रृंगार उनकी आंतरिक और बाह्य साधना का प्रतिनिधित्व करते हैं। आइए इनके बारे में विस्तार से जानें:

1. जटा (लंबे बाल)

नागा / अघोरी साधु लंबे, बिना काटे बालों को जटा के रूप में धारण करते हैं। यह उनकी तपस्या, त्याग और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है।

2. भस्म (राख)

साधु अपने शरीर पर चिता की भस्म लगाते हैं। यह भस्म जीवन की नश्वरता, मृत्यु और आत्मा की अमरता का प्रतीक है।

3. कंठमाला

वे गले में रुद्राक्ष या तुलसी की माला धारण करते हैं। रुद्राक्ष माला शिव और उनके आशीर्वाद का प्रतीक है, जो साधु को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है।

4. त्रिपुंड (तीन रेखाएं)

माथे पर भस्म से त्रिपुंड बनाना शिव साधना की पहचान है। ये रेखाएं त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) और मन के तीन गुणों (सत्त्व, रजस, तमस) का प्रतीक हैं।

5. धुनी (अग्नि)

अखंड धुनी (अग्नि) नागा साधुओं की साधना का केंद्र है। यह आत्मा की शुद्धता और ध्यान में ऊर्जा का स्रोत है।

6. कमंडल

नागा / अघोरी साधु एक साधारण पात्र (कमंडल) में पानी रखते हैं। यह सरल और त्यागपूर्ण जीवन का प्रतीक है।

7. चिमटा

चिमटा नागा : अघोरी साधुओं का प्रमुख उपकरण है, जो तप और सादगी का प्रतीक है। इसे वे हमेशा अपने पास रखते हैं।

8. लंगोट

वैराग्य धारण करने वाले नागा / अघोरी पुरुष साधु केवल लंगोट पहनते हैं, जो सांसारिक सुखों और इच्छाओं के त्याग का संकेत है। महिला साध्वियाँ बिना सिला कपड़ा धारण करती हैं।

9. अखंड मौन व्रत

कई साधु समय-समय पर मौन व्रत धारण करते हैं। यह आत्म-नियंत्रण और मन की स्थिरता का प्रतीक है।

10. गज-मुक्ता माला

हड्डियों या प्राकृतिक पदार्थों से बनी माला साधुओं द्वारा धारण की जाती है। यह मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र का स्मरण कराती है।

11. शिवलिंग

शिव के प्रति अटूट भक्ति का प्रतीक शिवलिंग साधु हमेशा अपने पास रखते हैं और उनकी साधना का मुख्य केंद्र होता है।

12. तिरशूल

तिरशूल शिव का मुख्य अस्त्र है, जो धर्म, अर्थ और मोक्ष का प्रतीक है। नागा / अघोरी साधु इसे शक्ति और आध्यात्मिक विजय के रूप में धारण करते हैं।

13. डमरु

डमरु ब्रह्मांडीय ध्वनि और शिव की शक्ति का प्रतीक है। नागा / अघोरी साधु इसे धारण करते हैं और ध्यान के समय इसका उपयोग करते हैं।

14. भिक्षा पात्र

नागा / अघोरी साधु भिक्षा में प्राप्त भोजन करते हैं। यह उनके त्यागपूर्ण जीवन और निर्भरता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

15. कपाल (खोपड़ी)

कुछ साधु ध्यान और साधना के लिए कपाल (मानव खोपड़ी) धारण करते हैं। यह जीवन की नश्वरता और मृत्यु की वास्तविकता को समझने का प्रतीक है।

16. मुद्रा (हाथ की स्थिति)

योग मुद्रा नागा / अघोरी साधुओं की ध्यान साधना का हिस्सा है, जो आध्यात्मिक जागरण में सहायक होती है।

17. अखंड संन्यास व्रत

नागा / अघोरी साधु अपने जीवन में संन्यास व्रत धारण करते हैं। वे गृहस्थ जीवन और सांसारिक इच्छाओं का त्याग करते हुए केवल ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हैं।

नागा / अघोरी साधुओं के ये 17 श्रृंगार न केवल उनकी आंतरिक साधना और तपस्या का प्रतीक हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि कैसे वे अपने जीवन को पूरी तरह शिव की भक्ति और वैराग्य में समर्पित कर देते हैं। उनका जीवन हमें त्याग, आत्म-अनुशासन और आध्यात्मिक शक्ति का संदेश देता है। - दुर्गा

11 months ago | [YT] | 78

Sshivani Durga

महँगे शौक हर किसी के बस की बात नहीं। प्रेम, विद्वता, ज्ञान , सच्चाई , निष्ठा , विश्वास , ईमानदारी , त्याग , धैर्य, एकांतवास और संगीत कुछ ऐसे ही शौक है। - दुर्गा

11 months ago | [YT] | 173