बिहार में थक चुकी राजनीति और सुस्त पड़ी पत्रकारिता की उपज है जनता जंक्शन। विभिन्न जाति-धर्म,विविधता और विचारधारा का नतीजा भी आप इसे कह सकते हैं। हमने ज्यादा कुछ नहीं किया बस सच को सच रहने दिया,लगाने को मिर्च मसाला भी लगा सकते थे पर बुजुर्गों की वह बात मानी जिसमें वह कहते हैं सादा जीवन(भोजन) उच्च विचार। हमने बिहार को दुनिया के नक्शे से निकालकर 23.5 डिग्री के एक्सिस पर रखा और फिर उसे 360 डिग्री घुमा कर देखा तो पाया कि इसकी कई भूभाग में लोग आम मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे हैं। कहीं बाढ़ ने ऐसा तबाही मचाया है जैसे साक्षात थेनॉस प्रकट हो गया हो। विद्यालयों में देश के भविष्य को दीवार फांदते देखा,तो अस्पतालों में लाचार पड़ी स्वास्थ्य व्यवस्था। युवाओं में बढ़ती रोष और ढीठ और निरंकुश होते शासक देखें। शुरुआत में हम इसे राजधानी के 8 बाई 10 के कमरे से देख रहे थे फिर हमने आसमान निहारा और अपने बाजुओं को फैलाया। जन्म भूमि को कर्मभूमि बनाने की जिद्द पाल ली। ऐसा जिद्द जिसे शायद नियति ने इसलिए लिखा था कि ये हमारे लिए आदत या यूं कहें तो लत बन जाए..
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