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जो महादेव का नहीं वो किसी का भी नहीं
हर हर महादेव
जय हो भोले नाथ परम् भक्त
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Bhole Nath Parambhakt

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चेतना और ऊर्जा

हिंदू धर्म मे त्रिदेवो में शिव का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। वैदिक काल से ही भगवान शिव को मुक्ति देने वाले और ज्ञान के स्रोत के रूप में पूजा जाता है।

“ज्ञानं महेश्वरात इच्छेत”
अर्थात – “ज्ञान की प्राप्ति शिव से करो।”

परशुराम कल्पसूत्र:- जो कि एक आध्यात्मिकऔर तांत्रिक ग्रंथ है, शिव के द्वारा प्रदत्त ज्ञान के स्वरूप को इस प्रकार बताता है

परम शिव ने 18 विद्याओं का उपदेश पार्वती जी को दिया। ये सभी विद्या वेद, दर्शन और तर्क पर आधारित हैं।

महाभैरव के पाँच मुख पाँच मार्गों के प्रतीक हैं, जो मनुष्यों के जीवन को सुधारने के लिए आवश्यक हैं।

शिव – अठारह विद्याओं के स्वामी

भगवान शिव को अठारह विद्याओं का स्वामी माना जाता है।
1. वर्ण विज्ञान (Phonetics)
2. भाषा का विज्ञान (Science of Language)
3. अनुष्ठान शास्त्र (Rituals)
4. छंद शास्त्र (Prosody)
5. खगोल शास्त्र (Astronomy)
6. व्युत्पत्ति शास्त्र (Etymology)
7. मिमांसा (Investigation)
8. तर्कशास्त्र (Logic)
9. पुराण (History)
10. धर्मशास्त्र (Ethics)
11. आयुर्वेद (Medicine)
12. रणनीति और युद्ध शास्त्र (Science of War & Politics)
13. कला और संगीत (Fine Arts)
14. नीति शास्त्र (Politics) और चारों वेद – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद

शिव तंत्र, योग,संगीत के ज्ञान के भी परम आचार्य हैं । शिव द्वारा प्रदत्त ज्ञान और शिक्षाओं से साधक पूर्णता प्राप्त करता है और अंततः मुक्ति हो जाता है।

तंत्र में शिव और शक्ति का महत्व
पौराणिक कथाओं में शिव को एक गृहस्थ योगी के रूप में दिखाया गया है, जो अपनी अर्धांगिनी पार्वती और पुत्र गणेश एवं कार्तिकेय के साथ रहते हैं।
तांत्रिक साधनाओं में शिव और पार्वती दोनों की संयुक्त पूजा होती है, क्योंकि
शिव चेतना (Consciousness) का प्रतीक हैं।
पार्वती शक्ति (Energy) का प्रतीक हैं ।
साधक की साधना से जब शरीर में सुप्त ऊर्जा (कुंडलिनी) जागृत होती है और वह शिव (चेतना) से मिलती है, तब साधक को आंतरिक आनंद की अनुभूति होती है। तंत्र का उद्देश्य है चेतना को इतना ऊँचा उठाना कि वह ब्रह्मांडीय चेतना से जुड़ सके।

शक्ति – माँ का रूप और ऊर्जा का स्रोत है ।

क्योंकि शक्ति (ऊर्जा) का स्वभाव स्त्रीलिंग है, इसलिए तांत्रिक परंपराओं में माँ ( शक्ति ) की पूजा की जाती है। माँ का प्रेम , संपूर्ण रूप से निस्वार्थ होता है। जैसे एक शिशु माँ के प्रेम और देखभाल में पनपता है, वैसे ही साधक की आत्मा भी माँ की तरह शक्ति के पोषण प्राप्त कर विकसित होती है।

तंत्र का उद्देश्य है कि साधक के हृदय में माँ के प्रति प्रेम जागृत हो, ताकि उसकी सुप्त ऊर्जा सक्रिय और गतिशील ऊर्जा (Dynamic Energy) में बदल जाए। जब यह शक्ति शिव (चेतना) से मिलती है, तो परम आनंद और मुक्ति की स्थिति प्राप्त होती है।

2 months ago | [YT] | 0

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हर हर महादेव

2 years ago | [YT] | 0

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चैनल नाम चेंज फेक एकाउंट की वजह से
Update Name:
भोले नाथ परम् भक्त
Bhole Nath Param bhakt

2 years ago | [YT] | 0

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कल्पना भी नही कर सकते 🤔

ये गर्भस्थ शिशु की प्रस्तर प्रतिमा "कुंददम वादककुनाथ स्वामी मन्दिर" की दीवारों पर उकीर्ण हैं।

कल्पना करें X-RAY की खोज से हजार साल पहले ये जानकारी उस समय के लोगों को कैसे मिली होगी??

उत्तर है - दिव्यदृष्टि !!

मन्दिर की दूसरी दीवारों पर भी गर्भस्थ शिशु के हर महीने की स्थिति की प्रतिमा उकेरी हुई है।

सनातन धर्म संसार का सबसे प्राचीन पहला और आखरी वैज्ञानिक धर्म है।
सनातन ने ही विश्व को विज्ञान दिया, दृष्टि दी, जीवन जीने की कला दी, सहित्य दिया, संस्कृति दी, विज्ञान दिया, विमान शास्त्र दिया, चिकित्सा शास्त्र दिया, अर्थ शास्त्र दिया, व्याकरण दिया, दर्शनशास्त्र दिया।

सनातन धर्म करोड़ों वर्षों से वैज्ञानिक अनुसंधान करता आया है। हमारे ऋषि मुनियों (विज्ञानियों) ने विज्ञान की नींव रखे हैं।
सनातन ऋषियों (विज्ञानियों) ने अपनी हड्डियां गलाकर विश्व को विज्ञान और अनुसंधान के दर्शन कराए हैं। सम्पूर्ण विश्व कभी सनातन के ऋषी मुनियों (विज्ञानियों) के ऋण से उऋण नहीं हो पाएँगे। इतना दिया है विश्व को हमारे सनातनी पूर्वजों ने।

कुंददम कोयम्बटूर से करीब ८० किलोमीटर की दूरी पर है।

सनातन धर्म सर्वोपरि है।
जय श्री राम मित्रों 🙏

2 years ago | [YT] | 0

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जैसे जैसे समयकाल बीत रहा ठीक वैसे वैसे कलीपुरुष की शक्तियां बढ़ती चली जाएंगी अभी जो 2-4 घर में बहस होती हैं ये आने वाले समय में कलीपुरूष की शक्तियां अत्याधिक प्रभाव दिखाएंगी जिसे सही तो अपने अपने जगह पर सभी होंगे लेकिन नियति से विवश होकर एक दूसरे को विरोधी समझकर लड़ने में ही अपना जीवन खत्म कर लेंगे

2 years ago | [YT] | 0

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जिस व्यक्ति कि राशि मेष वृषभ मिथुन कर्क सिंह कन्या तुला वृश्चिक धनु मकर कुंभ मीन हे वह जन्म तिथि मेसेज करे सारी जानकारी उपाय भी बता दिया जाएगा तुरंत
1. घर मे घुसते ही दिमाग खराब
2. बेवजह लड़ाई झगड़े होना
3. व्यापार में हानि
4. आलस्य और शरीर कमजोर होना
5. नुकसान होना
6. अकाल मृत्यु 7. गंदगी रहना
8. परिवार लोगो का एक न रहना

2 years ago | [YT] | 0

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अनंत अखंड अमर अविनाशी ।
कष्ट हरण हे शम्भू कैलाशी ॥

2 years ago | [YT] | 0

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आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में केदारनाथ से रामेश्वरम तक एक ही सीधी रेखा में बने महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं। ये शंख का आकार बनता है।

आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसी कौन सी विज्ञान और तकनीक थी जो हम आज तक समझ नहीं पाए? उत्तराखंड के केदारनाथ, तेलंगाना के कालेश्वरम, आंध्र प्रदेश के कालेश्वर, तमिलनाडु के एकम्बरेश्वर, चिदंबरम और अंत में रामेश्वरम मंदिर 79'E 41'54" रेखा की सीधी रेखा में बने हैं। ये सभी मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लैंगिक अभिव्यक्ति दिखाते तिरुवनैकवाल मंदिर में पानी का प्रतिनिधित्व हैं,

हैं जिन्हें हम आम भाषा में पंचभूत कहते हैं। पंचभूत का अर्थ है पृथ्वी, जल, अग्नि, गैस और अवकाश । इन पांच सिद्धांतों के आधार पर इन पांच शिवलिंगों की स्थापना की गई है।

आग का प्रतिनिधित्व तिरुवन्नामलाई में है, कालहस्ती में पवन दिखाई जाती है, कांचीपुरम और अंत में पृथ्वी का प्रतिनिधित्व हुआ

चिदंबरम मंदिर में अवकाश या आकाश का प्रतिनिधित्व!

वास्तुकला-विज्ञान वेदों का अद्भुत समागम दर्शाते हैं ये पांच मंदिर

भौगोलिक दृष्टि से भी खास हैं ये मंदिर इन पांच मंदिरों का निर्माण योग विज्ञान के अनुसार किया गया है।
और एक दूसरे के साथ एक विशेष भौगोलिक संरेखण में रखा गया है। इसके पीछे कोई विज्ञान होना चाहिए जो मानव शरीर को प्रभावित करे।

मंदिरों का निर्माण लगभग पांच हजार साल पहले हुआ था, जब उन स्थानों के अक्षांश को मापने के लिए उपग्रह तकनीक उपलब्ध नहीं थी।

तो फिर पांच मंदिर इतने सटीक कैसे स्थापित हो गए? इसका जवाब भगवान ही जाने।

केदारनाथ और रामेश्वरम की दूरी 2383 किमी है। ये सभी मंदिर लगभग एक समानान्तर रेखा में हैं। आखिरकार, यह आज भी एक रहस्य ही है, किस तकनीक से इन मंदिरों का निर्माण हजारों साल पहले समानांतर रेखाओं में किया गया

था।

श्रीकालहस्ती मंदिर में छिपा दीपक बताता है कि यह हवा में एक तत्व है।

तिरुवनिक्का मंदिर के अंदर पठार पर पानी के स्प्रिंग संकेत देते हैं कि वे पानी के अवयव हैं। अन्नामलाई पहाड़ी पर बड़े दीपक से पता चलता है कि यह एक अग्नि तत्व है।

कांचीपुरम की रेती आत्म तत्व पृथ्वी तत्व और चिदंबरम की असहाय अवस्था भगवान की असहायता अर्थात आकाश तत्व की ओर संकेत करती है। अब यह कोई आश्चर्य नहीं है कि दुनिया के पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच लिंगों को सदियों पहले एक ही पंक्ति में स्थापित किया गया था।

हमें अपने पूर्वजों के ज्ञान और बुद्धिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास विज्ञान और तकनीक थी जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं पहचान सका।

माना जाता है कि सिर्फ ये पांच मंदिर ही नहीं बल्कि इस लाइन में कई मंदिर होंगे जो केदारनाथ से रामेश्वरम तक सीधी लाइन में आते हैं। इस पंक्ति को शिवशक्ति अक्षरेखा' भी कहते हैं, शायद ये सभी

मंदिर 81.3119° ई में आने वाली कैलास को देखते हुए बने

हैं!?

इसका जवाब सिर्फ भगवान शिव ही जानते हैं

आश्चर्यजनक कथा 'महाकाल' उज्जैन में शेष ज्योतिर्लिंग के बीच दूरी देखें।
उज्जैन से सोमनाथ - 777 किमी

उज्जैन से ओंकारेश्वर - 111 किमी उज्जैन से भीमाशंकर -666 किमी

उज्जैन से काशी विश्वनाथ 999 किमी

उज्जैन से मल्लिकार्जुन -999 किमी

उज्जैन से केदारनाथ 888 किमी

उज्जैन से त्र्यंबकेश्वर - 555 किमी उज्जैन से बैजनाथ 999 किमी

उज्जैन से रामेश्वरम -1999 किमी

उज्जैन से घृष्णेश्वर 555 किमी

सनातन धर्म में कुछ भी बिना कारण के नहीं किया जाता है।

सनातन धर्म में हजारों वर्षों से माने जाने वाले उज्जैन को पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। इसलिए उज्जैन में सूर्य और ज्योतिष की गणना के लिए लगभग 2050 वर्ष पूर्व मानव निर्मित उपकरण बनाए गए थे।

और जब एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने 100 साल पहले पृथ्वी पर एक काल्पनिक रेखा (कर्क) बनाई तो उसका मध्य भाग उज्जैन गया। उज्जैन में आज भी वैज्ञानिक सूर्य और अंतरिक्ष की जानकारी लेने आते हैं।

हर हर महादेव

2 years ago | [YT] | 0

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मां का प्यार पापा का साथ और सर पे महादेव का हाथ अगर ये तीनो साथ है तो दुख में भी सुख का अहसास हैं |

2 years ago | [YT] | 0