शंकराचार्य हैं इसलिए हम हैं

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हमारे channel पर गुरुदेव से शेष किसी भी संत अथवा व्यक्ति की वीडियो क्लिप को लगाने का प्रमुख लक्ष्य उनके चरित्रों पर टिप्पणी करना नहीं है। अहस्तक्षेप की नीति के पीछे मूल कारण असहजता अथवा आलोचना का भय नहीं, अरुचि है।


शंकराचार्य हैं इसलिए हम हैं

कई बार हम लोगों में स्वस्थ क्रांति प्रचार के प्रति संकोच की भावना आ जाती है कि यह इतना विशाल अभियान है, हम इसके बारे में कुछ कैसे कहें। इसमें गुरुदेव के विरुद्ध किए गए दुष्प्रचार का भी बहुत बड़ा हाथ है। किसी भी सादे सज्जन व्यक्ति में अर्ध नास्तिकता होना स्वाभाविक रूप से संभव है।

इसका परिणाम यह होता है कि स्वस्थ क्रांति प्रचारकों के रूप में बहुत भारी मात्रा में ऐसे ही व्यक्ति दिखाई देते हैं जिनमें शीलता का अभाव होता है।

सज्जनों से हमारा आह्वाहन है -

एक क्षण को मान लेते हैं कि स्वस्थ क्रांति में आप नास्तिक हो,

चलो एक बार को मान लिया कि ये प्रकल्प आगे नहीं बढ़ने वाला,

तो भी अपने स्वयं के गुरु का प्रचार करने में आप का क्या घाटा हो रहा है ?

यह हिंदू मर्यादा नहीं है। हिंदू मर्यादा तो गुरु के लिए सर मुंडवा के भिक्षा मांगने को भी ऐसे तत्पर रहना है जैसे जगत की सबसे उत्तम नौकरी मिल गई हो। गुरु का प्रचार करने में असफल होना भी चेले के लिए गर्व की बात होती है।

आप से कोई नहीं कह रहा कि आप भी शीलता विहीन हो जाओ। आप अपने शीलत्व में स्थित रहें, और संकोच विवेक पूर्वक ही सीमित क्षमता में जो कहते बनता है केवल उतना कहें, पर तटस्थ हो कर ना रहें। जीवन बन जाएगा। अहंकार पिघलेगा। भक्ति पुष्ट होगी। आज ही से शुरुआत करें।

शेष आप अपने निज संतोष के लिए इस वीडियो पर जा सकते हैं :

लिंक : https://youtu.be/yzp6KYbt6ic

इस वीडियो को पोस्ट किए हुए लगभग पूरा ब्रिटिश 2025 वर्ष बीत चुका है। आप कमेंट सेक्शन खंगाल कर देख लें, एक भी ऐसा रिप्लाई आप को ऐसा नहीं दिखेगा जिसमें किसी तर्क का खंडन किया गया हो। खंडन के नाम पर कोरी भावुकता ही मिलेगी और कुछ नहीं।

1 week ago | [YT] | 128

शंकराचार्य हैं इसलिए हम हैं

यद्यपि मोदी जी का यह कदम स्वागत योग्य है,

परन्तु स्मरणीय विषय है कि वर्तमान कलियुग में ऐसे बयानों को दार्शनिक कसौटी पर कसे बिना लोकग्राहय कदापि नहीं माना जाता।

"वंदे मातरम में दुर्गा लिखा होने से क्या होता है ? लिखा हुआ है तो हम क्यों मानें ? दुर्गा शब्द का अर्थ क्या है ? राष्ट्र में मातृवत दर्शन तो एक कवि की काल्पनिक भावना मात्र है!" - इत्यादि सहस्त्रों तर्कव्यूह हैं जिनका निदान आचार्य शरण बिना संभव नहीं है। नेताओं के लिए तो कदापि नहीं है।

स्मरणीय है कि जब पुरी शंकराचार्य जी आज से ४ वर्ष पूर्व गोवर्धन मठ में मां दुर्गा की मूर्ति के समक्ष एक दिव्य घटना घटी थी।

"अखंड हिंदू राष्ट्र ! अखंड हिंदू राष्ट्र ! अखंड हिंदू राष्ट्र !"

2 weeks ago | [YT] | 119

शंकराचार्य हैं इसलिए हम हैं

यदि आप पुरी शंकराचार्य जी के चैनल से जुड़े रहते हैं तो आप ने देखा होगा कि वर्तमान में महाराज जी विविध स्थानों पर दो दिवसीय प्रवास कर रहे हैं। ये प्रवास पहले की भांति उत्तर प्रदेश, उड़ीसा इत्यादि में नहीं ; अपितु गुजरात और हरियाणा जैसे प्रदेशों में हो रहे हैं जहां काफी समय से वो नहीं गए थे।

हरियाणा में हुए प्रवास के चित्रों से यह ज्ञात होता है कि वहां हर समागम में १००+ भीड़ एकत्रित हुई है। यह शुभ संकेत है। पहले जो लोग गुरुदेव के बारे में जानते भी नहीं थे उन्हें भी मीडिया ने केवल भड़काने की आकांक्षा के साथ पुरी शंकराचार्य जी की निंदा करते हुए कई प्रचार आंदोलन हाल ही में चलाए हैं। जनता के रुझान से यह ज्ञात होता है कि भारत के हिंदुओं में वर्तमान में होते धार्मिक पतन को ले कर चिंता और जागरूकता व्याप्त हो रही है। ऐसे में बिना जलेबी की तरह गोल गोल बातें किए धर्म के पक्ष को स्पष्ट रूप से रखने वाले पुरी शंकराचार्य महाभाग धीरे धीरे देश के कई सत्बुद्धि युक्त हिंदुओं के लिए आशा की किरण बनते चले जा रहे हैं।

तत्वपक्षपातो ही स्वभावो धियाम।।

3 weeks ago | [YT] | 410

शंकराचार्य हैं इसलिए हम हैं

दुर्भाग्य से वर्तमान में स्वस्थ क्रांति की दूरदर्शिता को वैचारिक धरातल पर उतारने हेतु जो कार्य अपेक्षित है वो पूर्ण नहीं हो सका है। एक ओर ऐसे लोग हैं जो स्वस्थ क्रांति में अविश्वास करने पर उतर आए हैं, वहीं दूसरे कई जन स्वस्थ क्रांति के समर्थक होते हुए भी उसके विषय में स्पष्ट चर्चा करने से बचते हैं।

इस community post series का लक्ष्य सरलता से समझ आने वाले तार्किक दृष्टिकोण प्रस्तुत करना है। ये कुछ ऐसे दृष्टांत हैं जो नास्तिक मनोवैज्ञानिक या सामाजिक विज्ञान के धरातल पर भी १००% सटीक सिद्ध हैं। आप इनको समझ कर ना केवल परस्पर सुहृद हिंदुओं के बीच, बल्कि अन्यों से भी विनम्रतापूर्वक स्वस्थ संवाद की प्रतिष्ठा कर सकते हैं।

1 month ago | [YT] | 239

शंकराचार्य हैं इसलिए हम हैं

स्वस्थ क्रांति के प्रचारकों से कई बार यह प्रश्न पूछा जाता है कि आप पुरी शंकराचार्य जी को जगद्गुरू क्यों कहते हैं ? जगद्गुरू होने का अर्थ क्या होता है ?

उत्तर :
youtube.com/shorts/a2bVLz714cM

1 month ago | [YT] | 239

शंकराचार्य हैं इसलिए हम हैं

आप सभी को दीपावली एवं लक्ष्मी पूजन की शुभकामनाएं ।।

2 months ago | [YT] | 177

शंकराचार्य हैं इसलिए हम हैं

नमस्कार। पुरी शंकराचार्य जी के गूढ़ विचारों से जुड़े संशयों के समाधान हेतु तथा ‪@GovardhanMath‬ channel के प्रचार हेतु हम आप के समक्ष आज से प्रस्तुत करने जा रहे हैं श्रृंखला "पुरी शंकराचार्य जी से स्वस्थ संवाद"।

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पुरी शंकराचार्य जी ने इस वीडियो में यह मत रखा है कि मनुष्य कई बार मानसिक निर्धनता को बाह्य निर्धनता समझ लेते हैं।

१. कई लोग ऐसा स्वाभाविक सा संशय कर सकते हैं कि ये तो कुटिल नेताओं या capitalist शोषक व्यापारियों जैसी बात कर रहे हैं। अतः यद्यपि पहला प्रश्न तनिक अशोभनीय भाषा में पूछा गया है पर तब भी हमें इसका संज्ञान लेना आवश्यक लगा।

देखें सबसे पहली बात, पुरी शंकराचार्य जी का यह कहना नहीं है कि बाह्य गरीबी होती ही नहीं है। जब कोई व्यक्ति कहता है कि "ध्यान से देखो, कहीं अंधकार के कारण रस्सी सांप जैसी तो नहीं दिख रही", तो इसका अर्थ ये नहीं होता कि सांप का अस्तित्व जगत में कहीं नहीं है। "बाहर की गरीबी, गरीबी नहीं है" का अर्थ है कि बाहर की गरीबी केवल बाहर की ही है।

रही बात पांच दिन भूखे रहने की, तो पुरी शंकराचार्य जी ५ छोड़ो, ५० दिन वन के वृक्ष की पत्तियां खा के भी जीवित रह चुके हैं। लगातार कई दिन झुलसती गर्मी में पैदल नंगे पांव चलने का दुर्भाग्य भी उनकी देह ने देखा है।

२. "मन की संकीर्णता क्या है" से पहले प्रश्न उठता है कि ये अंधकार क्या है जिसके कारण आंतरिक गरीबी भी कुछ लोगों को बाह्य प्रतीत होती है। तो उसका उत्तर है "मलेच्छता"। मलेच्छता का अर्थ वीडियो के संदर्भ में "मल युक्त इच्छा" ग्रहण करने योग्य है। जैसे देखें जो राजा, कुलपति इत्यादि का उदाहरण है, वो एक सदिच्छा है। मल युक्त इच्छा क्या हुई ? ठीक उससे विपरीत। और यही मानसिक संकीर्णता है और इसी से बचना है।

एक शास्त्र सम्मत नियम है जो पुरी शंकराचार्य जी ने बचपन में अंग्रेज़ी की पुस्तक में पढ़ा था और वह उन्हें आज तक जस का तस भाषा में भी प्रिय है। "हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा व्यवहार हम स्वयं के लिए चाहते हैं"।

आप कहेंगे कि हम तो दूसरों के साथ अच्छा करते हैं लेकिन सामने वाला बुरा कर देता है। तो समझें, यदि हम दूसरों के प्रति उदारता का भाव रखेंगे तो सामने वाला मनुष्य चाहे कैसा भी भाव रखें, *सज्जनों से प्रेम करने वाले, सरलता से करुणा करने वाले भगवान आप के प्रति उदार हो जाएंगे*।

आप में से कुछ जन कहेंगे कि भले हम में बाह्य गरीबी नहीं है, पर इतना धन भी नहीं है कि उदारता के नाम पर बांटते फिरें। तो यहां पर यह समझना चाहिए कि उदारता का अर्थ केवल बाह्य गतिविधि नहीं होता। सनातन धर्म एक ऐसे समाज की संरचना करने का लक्ष्य प्रस्तुत करता है जहां सब लोग कम से कम मानसिक रूप से एक दूसरे के हितैषी हों। धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज जी को यह चौपाई कितनी प्रिय थी : "सब नर करहिं परस्पर प्रीति, चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।"

यदि आप से किसी दूसरे के लिए कुछ सहयोग होते नहीं बनता तो भी कोई समस्या नहीं है। आप मन में एक दो क्षण ईश्वर से प्रार्थना भाव में उसके कल्याण की भावना व्यक्त करें, और इसके साथ साथ अपने कल्याण की भावना भी करें कि "हे ईश्वर, मुझे अन्य जनों की सहायता करने में समर्थ बनाएं" , तो अवश्य सबका मंगल होगा।

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वीडियो लिंक :

youtube.com/shorts/3OlUID6ZziI

2 months ago (edited) | [YT] | 242

शंकराचार्य हैं इसलिए हम हैं

१. नभोमार्ग शारदा चैनल गोवर्धन मठ के मूल चैनल का विकल्प साधन नहीं है। हम नभोमार्ग के धरातल पर अपने सामर्थ्य के अनुसार काम करने वाला एक समूह मात्र हैं। वास्तविकता ये है कि आप सब के सब नभोमार्ग के सदस्य हैं, हमने केवल अपने आप को एक छोटे से व्यूह के रूप में संगठित किया है जिसका नाम "शारदा नभोमार्ग" रखा गया है।

नभोमार्ग का कार्य स्वस्थ संवाद और प्रचार करना मात्र है। इसके लिए हम प्राप्त ज्ञान सामग्री को संदर्भ अनुसार व्यवस्थित करते हैं अथवा युक्ति, नीति इत्यादि में ढालते हैं। उदाहरण के लिए आप जगन्नाथ मंदिर पर हमारी डॉक्युमेंटरी देख सकते हैं जिसका शीर्षक है "जगन्नाथ मंदिर व हिंदुओं के लिए पुरी शंकराचार्य जी ने जो कुछ किया, क्या उसका ऋण कभी हम चुका पाएंगे?"। हमने इस विषय पर मठ के अपने videos+ news reports+ ग्रंथ सामग्री का उपयोग कर एक संकलन बना दिया है तथा प्राप्त जानकारी को तर्क के रूप में सरल हिंदी में लिख दिया है जिससे कोई नया व्यक्ति भी समझ पाए। यदि यह शोध किसी को स्वतंत्र रूप से करना हो तो बहुत अधिक समय का व्यय होगा। लेकिन यदि कोई व्यक्ति इस वीडियो को आज से १०० या ५०० वर्ष बाद भी देखेगा तो वह सब कुछ भली भांति समझ पाएगा।

Link - https://youtu.be/Q27vWsN6Md4


२. मल्लेच्छराज सीरीज़ के आरम्भ के कुछ episodes प्रकाशित होने के बाद हमने टिप्पणी की थी कि वैसे तो निग्रहाचार्य से हम बहुत सारे मतभेद रखते हैं, लेकिन इस वीडियो सीरीज़ में यह भाव भली भांति प्रस्तुत किया जा रहा है कि जगत की जो आसुरी शक्तियां होती हैं वो कितनी अधिक सजग और व्यवस्थित होती हैं, कितना अधिक अनुशासन कर्म कांड इत्यादि में रखती हैं। पुरी शंकराचार्य जी भी कई बार यह वेदना व्यक्त करते हैं कि शास्त्रों में असुरों के बल और उनकी पूर्व मीमांसा के प्रति जो निष्ठा है वह आज कल के कथा वाचक व्यक्त करते ही नहीं हैं। यह एक बड़ा अभाव है। तो हमने टिप्पणी में व्यक्तित्व निरपेक्ष हो कर कार्य की प्रशंसा की थी कि इस सीरीज़ के माध्यम से हिंदुओं तक यह जागरूकता भी पहुंच सकती है तथा वो कर्म कांड के प्रति जागरूक भी हो सकते हैं। हमारे अपने शारदा समूह में भी सब प्रकार के लोग हैं तो उनका भी यह अनुभव था कि उनको यह series प्रेरणार्थ उत्तम लग रही है।

लेकिन दुर्भाग्य से आरम्भ के episodes के बाद यह सीरीज़ दिशाहीन हो गई। प्रेरणा का स्थान निराशावाद ने ले लिया।

आप में से कुछ लोग कहेंगे कि ये वीडियो सीरीज़ कम से कम अर्ध नास्तिक हिंदुओं की आँखें खोलने के लिए देखी जा सकती होगी। लेकिन दुर्भाग्य से इसकी वह उपयोगिता भी नहीं है। इस वीडियो में ऐसे ऐसे तर्क उपयोग किए गए हैं जिनका खंडन उक्त संस्थाएं दस बीस वर्ष पहले ही कर चुकी हैं। निग्रहाचार्य का कर्तव्य था कि उनके खंडनों का संज्ञान ले कर संशोधित तर्क देते, अथवा उनको रखते ही नहीं। वैसे तो हम व्यर्थ बहस के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन यदि आप इस सीरीज़ को कहीं प्रमाण के रूप में बहस के लिए भी अपना आधार बनाना चाहेंगे तो आप का उपहास उड़ेगा। ले दे कर यह सीरीज़ केवल one sided narrative सुन कर अपना मनोरंजन करने का एक तुच्छ साधन मात्र ही शेष रहती है जो कि एक दुर्भाग्य है।

३. ऐसा नहीं है कि हमने शिव और शक्ति पर content बनाया ही ना हो, पर हां यह सत्य है कि वैष्णव इष्टों की तुलना में बहुत कम बनाया है। इसका एक सीधा सा कारण यह है कि पुरी शंकराचार्य जी के इष्ट कृष्ण और करपात्री जी महाराज के राम जी हैं। धर्मसम्राट जी द्वारा प्राप्त हिंदी लेखनी में यदि दर्शनवाद को हटा दिया जाए तो कम से कम ७०% ग्रंथ वैष्णव इष्ट परक हैं। भागवत महापुराण पर पूरी की पूरी विशाल टीका है, अन्य किसी पुराण पर तो नहीं है ना ? राधा सुधा निधि पर भी टीका है, इत्यादि। पर हम आप के सुझाव का संज्ञान ले कर तदानुसार कार्य करने का प्रयास भविष्य में अवश्य करेंगे।

2 months ago | [YT] | 115