সত্যাগ্ৰহ যোগপীঠ Satyagraha YogPeeth

Namaste! I am Kunal Roy from Nilachal Hills of Guwahati. I have been into the learning field of Yog and Health for the last 10+ years. I am here to share the art of smart living coping with the present situation of the world and I have the great pleasure to welcome you all to my official channel “Disease Free Living.” This channel will basically present content related to smartest way of dealing with day to day challenges on the common topics of health, stress, climate change, anger, depression, anxiety, superstitions etc. I will present some exclusive methods to fight and keep diseases, medicines and stress away from your life. I myself went through many ailments like thyroid disorder, immunodeficiency disorder, anxiety attack, depression which of course got cured now with right method of treatments by the help of my professors and Gurus.
Please feel free to contact me on my official mail at :- dismedaway@gmail.com If you wish to, I can be contacted on mobile no. 9706456597.


সত্যাগ্ৰহ যোগপীঠ Satyagraha YogPeeth

💥 *नई भेंट - आपके जीवन की समस्याओं का गूगल!* 💥

सोचकर देखिए 🤔 यदि कोई ऐसी वेबसाइट हो जहाँ आप अपने जीवन की कोई भी समस्या सर्च करें, और वो उत्तर में आचार्य जी के उस समस्या पर आधारित सभी लेख आपके सामने रख दे।

*तो जीवन के संघर्षों के बीच इससे बड़ी मदद कोई और नहीं हो सकती?*

महाभारत में विश्व का सबसे महान योद्धा होने के बावजूद, कर्ण की एक ही कमज़ोरी थी। क्या? यही कि सबसे अधिक ज़रूरत के समय पर वे अपने गुरु की सीख भूल जाएगा।

*अक्सर इसी कमज़ोरी से हम भी तो जूझते हैं!* 🥲

इसलिए आज आपकी संस्था का आइ.टी. विभाग आपके लिए एक बेहद ख़ास भेंट लाया है: *आचार्य प्रशांत लाइब्रेरी* 🏛️

यहाँ आप आचार्य प्रशांत के *3000+* लेख पढ़ सकते हैं पूरी तरह *निशुल्क*। साथ ही, यहाँ आपको मिलता है *'सर्च' फीचर*, जहाँ आप पूरे कोष में से किसी भी विषय पर आधारित लेख ढूँढ सकते हैं।

और मज़ेदार बात ये है कि ये सर्च *हिन्दी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में* काम करता है!

साथ ही, यहाँ आपको नियमित रूप से आचार्य जी के *नए वीडियोस* लिखित रूप में उपलब्ध करवाने का हम प्रयास करेंगे।

_अब क्यों न दिन की शुरुआत इस भेंट के साथ कुछ समय बिताकर की जाए?_

*'आचार्य प्रशांत लाइब्रेरी' अब आपकी हुई: * library.acharyaprashant.org/

🔔 *एक और ज़रूरी बात...*

*कल आपको पुस्तकों को और कम दामों पर मँगाने का नया माध्यम भेंट किया, और आज 3000+ आचार्य प्रशांत लेखों का निशुल्क कोष। आपके आर्थिक सहयोग से ही ये सब संभव हो पाता है।*

यदि आचार्य जी की सीख से आपको लाभ मिला है तो अब हमारी सहायता कीजिए उनकी सीख को देश के हर घर तक पहुँचाने में।

*सहयोग करें, क्षमता-अनुसार आर्थिक योगदान करें:* acharyaprashant.org/hi/contribute/contribute-work-…

2 years ago | [YT] | 0

সত্যাগ্ৰহ যোগপীঠ Satyagraha YogPeeth

*आधी रात, और पड़ोस से उठी एक चीख...*
_(और आपके लिए एक अनूठी फ़िल्म: आचार्य प्रशांत और नन्हा मेमना विशेष रोल में)_

दोपहर का समय था। सब अपने काम में व्यस्त थे। उसी बीच किसी की चीख सुनाई दी।

ध्यान दिया तो लगा जैसे आसपास कोई बच्चा ज़ोर से रो रहा है। संस्था के दो-तीन लोगों ने अपना काम रोका, भागकर बाहर ढूँढ़ने निकले कि आवाज़ आ कहाँ से रही है।

ये पहली बार नहीं हुआ था, पिछले कई दिनों से देर रात भी ऐसी ही आवाज़ आती थीं। एक गीता भाष्य सत्र में भी आचार्य जी ने इसका ज़िक्र भी किया था। हम बाहर देखने भी गए थे पर उस रात कुछ मिला नहीं था।

पर इस बार ढूँढ़ने पर पता चला कि पास ही के खंडहर मकान में बोतलों की क्रेट रखी हुई है और आवाज़ उसी के भीतर से आ रही थी।

देखा तो पता चला कि 8-10 दिन का एक मेमना उसमें बंद रखा हुआ है। और वो अपनी माँ को पुकार रहा है। लेकिन माँ वहाँ नहीं थी। माँ को और बाकी कुछ बकरियों को काफ़ी दूर बाँधकर रखा गया था।

हमने अनुमान लगा लिया कि उनको माँस के लिए बेचने के मक़सद से पाला जा रहा है। तभी पालने वाला व्यक्ति भी मकान के पीछे से निकालकर आ गया। तुरंत बोला: हाँ जी, हम पालते हैं, फिर ये कटते हैं।

*संयोग की बात है कि वो भगवान महावीर जयंती का दिन था (पिछले माह, 4 अप्रैल)।* अपने बोधस्थल के पास ही ये खूनी काम हमसे देखा नहीं गया। हमने कहा हम उस मेमने और चारों बकरियों को ख़रीद कर आज़ाद कर देंगे।

जब उस व्यक्ति से कहा तो वो व्यक्ति अड़ गया कि वो तो बकरियों को क़त्ल और मांस के लिए ही पाल रहा है। जब हमने और दबाव बनाया तो उसने हमसे सीधे 50,000 रुपयों की माँग रख दी।

सुनकर थोड़ा धक्का लगा, इतनी रक़म हम में से किसी के पास नहीं थी। उस व्यक्ति को फिर जैसे-तैसे मनाकर 40,000 तक लेकर आए।

*लेकिन बात सिर्फ़ बकरियों की नहीं थी। हमें उस व्यक्ति को भी उस पेशे से बाहर निकालना था।* उन 5-6 बकरियों को बचा कर हमारा काम पूरा नहीं होता। इसलिए 5,000 रुपए उसे ऊपर से और देने का, और साथ में उसके व उसके बेटे को रोज़गार दिलाने का वादा किया।

शर्त बस हमारी ये थी कि वो दोबारा इस काम को ना करे। और हमारे पैसों को फिर से पशुहत्या में निवेश ना करे।

*लेकिन 45,000 रुपए कहाँ से आएँगे?*

हमें भी नहीं पता था। इसलिए संस्था के सभी सदस्यों को एक जगह इकट्ठा किया। सबसे अपनी इच्छा-अनुसार पैसे जोड़ने को कहा। सबने हज़ार, दो-हज़ार, पाँच हज़ार तक योगदान दिया। सारे जुगाड़ लगाकर भी हम कुछ 38,000 रुपए जुटा पाए। फिर बाकी पैसे भी कुछ करके पूरे किए।

फिर उन भाईसाहब को एकमुश्त पैसे हाथ में दिए। और उनसे निवेदन किया कि अगले कुछ दिन वे बकरियों को अपने पास रखें, जब तक हम उनका किसी खुली जगह पर बंदोबस्त नहीं कर लेते।

*अगले दिन जब आचार्य जी बोधस्थल पहुँचे तो वे हमारे नए दोस्तों से मिले।*

उनके साथ थोड़ा समय भी बिताया और एक मस्त चुटकुला भी मारा!

3 दिन बाद एक छोटे ट्रक में बैठाकर हम उन बकरियों को देहरादून स्थित पी.एफ.ए (एक पशुकल्याण संस्था) के एनिमल शेल्टर में ले गए। सभी बकरियों को, और छोटे मेमने को, जगह मिली और एक मुक्त जीवन जीने का नया अवसर।

*ये कहानी है उन 5 बेज़ुबान पशुओं की जो हमें संयोग से भगवान महावीर जयंती के दिन मिल गए।* अगर उस दोपहर वो चीख हमें सुनाई नहीं दी होती तो वे मासूम भी किसी की थाली पर पहुँच चुके होते।

इंसानों को इन बेज़ुबानों की चीखें बहुत समय पहले सुनाई देनी बंद हो चुकी हैं। इसलिए आज आचार्य जी और आपकी संस्था को उनकी आवाज़ बनना पड़ रहा है।

लेकिन हमारी आवाज़ कितनी दूर तक पहुँचेगी ये बात आप पर निर्भर करता है।

आपके द्वारा किया गया योगदान हमें आम जनमानस में संवेदनशीलता जगाने का बल देता है। पर कुछ बेज़ुबानों को बचाकर बात बनेगी नहीं। हमें घर-घर तक पहुँचना होगा।

*इस कार्य में आपका सहयोग अपेक्षित है। बेज़ुबानों की आवाज़ बनें, अपनी संस्था को आर्थिक सहयोग करें:* acharyaprashant.org/hi/contribute/contribute-anima…

📸 *पूरे घटनाक्रम को हमने रिकॉर्ड करने का प्रयास किया, पूरी फ़िल्म देखें:* https://youtu.be/JY-6yCSv7zM

2 years ago | [YT] | 0

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जो भी लोभी है, कंजूस होगा ही।

कंजूस का क्या अर्थ होता है? कंजूस का अर्थ होता है...। लोभी का अर्थ होता है : जो नहीं है वह मिले। लोलुप का अर्थ होता है : जो मेरे हाथ में नहीं है, हाथ में आ जाए। कंजूस का अर्थ होता है : जो हाथ में आ गया, वह निकल न जाए। और तो कुछ मतलब नहीं होता। तो यह तो बिलकुल संगति है दोनों की; एक तर्क का फैलाव है। जो मेरे पास नहीं है, वह मुझे मिल जाए--यह लोभ। फिर जब मिल गया, तो कहीं मिला हुआ हाथ से न निकल जाए, क्योंकि और लोग भी तो झपटने को तैयार खड़े हैं। तुम अकेले ही तो नहीं हो यहां। यहां बड़े प्रतिस्पर्धी हैं। सारी पृथ्वी मारवाड़ीयों से भरी है। कहां भागोगे, कहां बच कर जाओगे! और दूसरे भी झपट रहे हैं। जैसा तुमने किसी से झपट लिया है, दूसरे तुमसे झपटने को तत्पर बैठ हैं। जैसे ही तुम्हारे हाथ में आया कि झंझट शुरू होती है।

रामकृष्ण कहा करते थे, बैठे थे एक दिन मंदिर के बाहर दक्षिणेश्वर में। उन्होंने एक चील को उड़ते देखा...।
वह एक चूहे को लेकर उड़ रही थी। और उसके पीछे
कई गिद्ध लगे थे, और चीलें लगी थी और झपट्टे मार
रही थीं उस पर। रामकृष्ण बैठे देखते रहे और उनके शिष्य भी बैठे थे। शिष्य भी देखने लगे...। रामकृष्ण को ऐसा दत्तचित्त देख कर उनको लगा कि जरूर कुछ महत्वपूर्ण बात होगी; वहां कुछ खास मामला भी नहीं है। वह चील एक चूहे को लेकर उड़ रही है। और गिद्ध उस पर हमले मार रहे हैं,और चीलें भी झपट्टे मार रही हैं। फिर चील ने वह चूहा छोड़ दिया। चूहे के छोड़ते ही सब गिद्ध और सब चीलें--जो उस पर हामला कर रहे थे--उसे छोड़ कर चले गए। वे चूहे के पीछे चले गए; इस चील से उन्हें क्या लेना-देना था! वह चील एक वृक्ष पर बैठ गई। रामकृष्ण ने अपने शिष्यों से कहा : देखो! जब तक तुम किसी चूहे को पकड़े हो, तब तक गिद्ध तुम पर हमला करेंगे। अब देखो, वह किस मजे में बैठी है! गिरह हमारा सुन्न में, अनहद में विसराम! अब वहां कोई नहीं है, सन्नाटा हो गया। अब कोई चील हमला नहीं करती, कोई गिद्ध हमला नहीं करता। अब उस चील को पता चल रहा होगा कि यह मुझ पर हमला कर ही नहीं रहे थे, इनका हमला तो चूहे पर था। मैं भी चूहे को पकड़ रही थी, ये भी चूहे को पकड़ने के प्रतियोगी थे, प्रतिस्पर्धी थे। चूहा छूट गया या छोड़ दिया--बात खत्म हो गई।

लोभ का अर्थ है : दूसरों के हाथ में जो है, वह मेरे हाथ में हो। कंजूसी का अर्थ है : जो मेरे हाथ में है, वह मेरे ही हाथ में रहे, किसी और के हाथ में न चला जाए। कंजूसी लोभ की छाया है और मजा यह है कि लोभी सदा दुखी रहेगा और कंजूस सदा भयभीत। लोभी सदा दुखी रहेगा, क्योंकि कितना ही तुम पा लो, बहुत कुछ सदा पाने को शेष रह जाता है। वह जो नहीं मिला है, वह पीड़ा देता है। उसका दंश चुभता है, छाती में छुरी की तरह चुभता है। एक मकान तुमने बना लिया, इससे क्या होता है; बस्ती में हजार मकान हैं; और यही कोई बस्ती तो नहीं, और हजार बस्तियां हैं। तुम कितना कर लोगे? जितना करोगे, वह सदा ही छोटा रहेगा--उसके मुकाबले में, जो शेष करने को है। जिंदगी छोटी है। यह सत्तर-अस्सी साल की जिंदगी में कितना कमाओगे? हमेशा पाओगे कि क्षुद्र ही हाथ में लगा। जितना होना था उतना नहीं हो पाया। इसलिए लोभी सदा दुखी। लोभी कभी सुखी नहीं हो सकता। और कंजूस सदा भयभीत, क्योंकि जो हाथ में है वह कोई छीन न ले! सारे लोग झपट्टा मारने को तैयार हैं। सब तरफ दुश्मन खड़े हैं।

तुम देखते हो, गरीब का कौन दुश्मन है! दुश्मन अमीर के होते हैं। तुम्हारे पास कुछ हो, तब कोई दुश्मन होता है। तुम्हारे पास कुछ न हो तो कौन दुश्मन होता है! तुम देखते हो बस्ती में ही तुम्हारे राजनेता घूमता रहता था, कोई दुश्मन नहीं था। जैसे ही वह मिनिस्टर हो जाता है, फिर मुश्किल खड़ी हो जाती है। फिर वह निकल कर घूम नहीं सकता। फिर खतरा है, फिर घिराव होगा, आंदोलन होगा, विरोध में प्रदर्शन निकलेगा, पत्थरबाजी होगी, जूते फेंके जाएंगे।

जब तक तुम्हारे हाथ में चूहा न हो, किसी को कोई मतलब नहीं है। चूहा हाथ में आया कि सबको मतलब है, क्योंकि वह चूहा औरों को भी चाहिए। तो जैसे ही तुम्हारे हाथ में पद हो, प्रतिष्ठा हो, धन हो, वैसे ही तुम अड़चन में पड़े, फिर उसकी रक्षा करनी पड़ती है। फिर सब तरफ से इंतजाम करना पड़ता है कि कोई छीन न ले, कोई झपट न ले।

जिनके पास कुछ नहीं है, वे मजे से सो सकते हैं; लेकिन जिसके पास कुछ है, वह कैसे सोए! इसलिए कंजूस सो नहीं पाता। लोभ और कंजूसी के बीच में फंस कर, इन दो चाकों के बीच में, आदमी पिस जाता है। यह कोई बड़ी होशियारी नहीं है।

अगर तुम सच में होशियार हो, तो समझो, जागो।

ओशो, अजहूं चेत गंवार, प्रवचन 20

2 years ago | [YT] | 5

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कुछ भी ध्यान बन सकता है-

"क्रोध का आना"

क्रोध की उर्जा का रूपांतरण

जब कभी तुम्हें यह पता चले कि तुम्हें क्रोध आ रहा है तो इसे सतत अभ्यास बना लो कि क्रोध में प्रवेश करने के पहले तुम पांच गहरी सांसें लो। यह एक सीधा—सरल अभ्यास है। स्‍पष्टतया क्रोध से बिलकुल संबंधित नहीं है और कोई इस पर हंस भी सकता है कि इससे मदद कैसे मिलने वाली है? लेकिन इससे मदद मिलने वाली है। इसलिए जब कभी तुम्हें अनुभव हो कि क्रोध आ रहा है तो इसे व्यक्त करने के पहले पांच गहरी सांस अंदर खींचो और बाहर छोड़ो।

क्या होगा इससे? इससे बहुत सारी चीजें हो पायेंगी। क्रोध केवल तभी हो सकता है अगर तुम होश नहीं रखते। और यह श्वसन एक सचेत प्रयास है। बस, क्रोध व्यक्त करने से पहले जरा होशपूर्ण ढंग से पांच बार अंदर—बाहर सांस लेना। यह तुम्हारे मन को जागरूक बना देगा। और जागरूकता के साथ क्रोध प्रवेश नहीं कर सकता। और यह केवल तुम्हारे मन को ही जागरूक नहीं बनायेगा, यह तुम्हारे शरीर को भी जागरूक बना देगा, क्योंकि शरीर में ज्यादा ऑक्सीजन हो तो शरीर ज्यादा जागरूक होता है। जागरूकता की इस घड़ी में,अचानक तुम पाओगे कि क्रोध विलीन हो गया है।

दूसरी बात, तुम्हारा मन केवल एक—विषयी हो सकता है। मन दो बातें साथ—साथ नहीं सोच सकता; यह मन के लिए असंभव है। यह एक से दूसरी चीज में बहुत तेजी से परिवर्तित हो सकता है। दो विषय एक साथ एक ही समय मन में नहीं हो सकते। एक चीज होती है, एक वक्त में। मन का गलियारा बहुत संकरा होता है। एक वक्त में केवल एक चीज वहां हो सकती है। इसलिए यदि क्रोध वहां होता, तो क्रोध वहां होता है, लेकिन यदि तुम पांच बार सांस अंदर—बाहर लो, तो अचानक मन सांस लेने के साथ संबंधित हो जाता है। वह दूसरी दिशा में मोड़ दिया गया है। अब वह अलग दिशा में बढ़ रहा होता है। और यदि तुम फिर क्रोध की ओर सरकते भी हो, तो तुम फिर से वही नहीं हो सकते क्योंकि वह घड़ी जा चुकी है।

गुरजिएफ ने कहा था, जब मेरे पिता मर रहे थे,उन्होंने मुझसे केवल एक बात याद रखने को कहा, 'जब कभी तुम्हें क्रोध आये तो चौबीस घंटे प्रतीक्षा करो, और फिर वह करो जो कुछ भी तुम चाहते हो। अगर तुम जाकर कत्‍ल भी करना चाहते हो, जाओ और कर दो कत्‍ल, लेकिन चौबीस घंटे प्रतीक्षा करना।’

चौबीस घंटे तो बहुत ज्यादा है; चौबीस सेकंड चल जायेंगे। प्रतीक्षा करना मात्र तुम्हें बदल देता है। वह ऊर्जा जो क्रोध की ओर बह रही है, नया रास्ता अपना लेती है। यह वही ऊर्जा है। यह क्रोध बन सकती है, यह करुणा बन सकती है। इसे जरा मौका दे दो।

तो पुराने शास्त्र कहते है, 'यदि कोई अच्छा विचार तुम्हारे मन में आता है, तो उसे स्थगित मत करो; उस काम को तुरंत करो। और यदि कोई बुरा विचार मन में आता है, तो उसे स्थगित कर दो; उसे तत्काल कभी मत करो।’ लेकिन हम बहुत चालाक हैं, बहुत होशियार। हम सोचते हैं, और जब भी कोई अच्छा विचार आता है, हम उसे स्थगित कर देते है।

मार्क ट्वेन ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि वह दस मिनट तक एक पादरी को सुन रहा था, किसी चर्च में। व्याख्यान तो असाधारण था और उसने अपने मन में सोचा,आज मुझे दस डॉलर दान करने ही हैं। यह पादरी अद्भुत है। इस चर्च की मदद की ही जानी चाहिए! उसने निर्णय ले लिया कि व्याख्यान के बाद उसे दस डॉलर दान करने ही हैं। दस मिनट और हुए और वह सोचने लगा कि दस डालर तो बहुत ज्यादा होंगे। पांच से काम चलेगा। दस मिनट और हुए और उसने सोचा, 'यह आदमी तो पांच के लायक भी नहीं है।’

अब वह कुछ सुन भी नहीं रहा था। अब वह उन दस डॉलर के लिए चिंतित था। उसने इस विषय में किसी से कुछ नहीं कहा था, लेकिन अब वह अपने को यकीन दिला रहा था कि यह तो बहुत ज्यादा था। जिस समय तक व्याख्यान समाप्त हुआ, उसने कहा, 'मैने कुछ न देने का फैसला किया। और जब वह आदमी मेरे सामने चंदा लेने आया, वह आदमी जो इधर से उधर जा रहा था चंदा इकट्ठा करने के लिए, मैंने कुछ डॉलर उठा लेने और चर्च से भागने तक की बात सोच ली।’

मन निरंतर परिवर्तित हो रहा है। यह गतिहीन कभी नहीं है; यह एक प्रवाह है। तो अगर कुछ बुरा वहां है, तो थोड़ी प्रतीक्षा करना। तुम मन को स्थिर नहीं कर सकते। मन एक प्रवाह है। बस, थोड़ी प्रतीक्षा करना और तुम बुरा नहीं कर पाओगे। लेकिन अगर कुछ अच्छा होता है और तुम उसे करना चाहते हो, तो फौरन उसे कर डालो क्योंकि मन परिवर्तित हो रहा है। कुछ मिनटों के बाद तुम उसे कर न पाओगे। तो अगर वह प्रेमपूर्ण और भला कार्य है, तो उसे स्थगित मत करो। और अगर यह कुछ हिंसात्मक या विध्वंसक है, तो उसे थोड़ा—सा स्थगित कर दो।

यदि क्रोध आये, तो उसे पांच सांसों तक स्थगित करना, और तुम क्रोध कर न पाओगे। यह एक अभ्यास बन जायेगा। हर बार जब क्रोध आये, पहले अंदर सांस लो और बाहर निकालो पांच बार। फिर तुम मुक्त हो वह करने के लिए,जो तुम करना चाहते हो। निरंतर इसे किये जाओ। यह आदत बन जाती है, तुम्हें इसके बारे में सोचने की भी जरूरत नहीं। जिस क्षण क्रोध प्रवेश करता है, तुम्हारे अंदर का रचनातंत्र तेज, गहरी सांस लेने लगता है। तुम सांस शांत और शिथिल लेने लगो, तो कुछ वर्षों के भीतर तुम्हारे लिए नितांत असंभव हो जायेगा क्रोध करना। तुम क्रोधित हो नहीं पाओगे।

कोई अभ्यास, कोई सचेतन प्रयास तुम्हारे पुराने ढांचे को बदल सकता है। लेकिन यह कोई ऐसा कार्य नहीं है जो तुरंत किया जा सकता हो। इसमें समय लगेगा क्योंकि तुमने अपनी आदतो का ढांचा बहुत से जन्मों से बनाया है। यदि तुम एक जीवन में भी इसे बदल सको, तो यह बहुत जल्दी है।
ओशो
पतंजलि योग सूत्र, भाग 1, प्रवचन- 7

2 years ago | [YT] | 1

সত্যাগ্ৰহ যোগপীঠ Satyagraha YogPeeth

নমন কৰোঁ আপোনাৰ সাহস, আপোনাৰ বলিদান বোৰক। সেইবোৰক ব্যৰ্থ যাবলৈ নিদিওঁ। চিৰ কৃতজ্ঞ থাকিম।

2 years ago | [YT] | 0

সত্যাগ্ৰহ যোগপীঠ Satyagraha YogPeeth

আচাৰ্য্য প্ৰশান্ত কোনো ধূৰ্ত আৰু অকৰ্ম প্ৰৱচন কৰি ঘূৰি ফুৰা বাবা আদি নহয়। আমাৰ বাবে, নিৰীহ পশুবোৰৰ বাবে, মহিলাৰ বাবে, জলবায়ু সমস্যাৰ বাবে দিনে ৰাতি কাৰ্য্য কৰি আছে।

তেওঁৰ ভিডিওৰ দ্বাৰা লাখ লাখ মানুহৰ জীৱন পৰিৱৰ্তন হৈছে। তেওঁ কোনো তলতীয়া নিবিচাৰে। কেৱল নিজৰ কাম কৰি আছে। আমাৰ সকলোৰে বাস্তৱিক ভাল বিচাৰে।

তেওঁৰ ভিডিওবোৰ, কিতাববোৰ নুশুনাকৈ, নপঢ়াকৈ নুবুজাকৈ, তেওঁক ব্যক্তিগতভাৱে আলোচনা কৰাটো উচিত নহয়। আগতে শুনক নতুবা পঢ়ক।

#IamwithAcharyaPrashant

2 years ago (edited) | [YT] | 0

সত্যাগ্ৰহ যোগপীঠ Satyagraha YogPeeth

||𝗦𝗲𝗰𝗿𝗲𝘁 𝗢𝗳 𝗣𝗼𝘄𝗲𝗿𝗳𝘂𝗹 𝗟𝗶𝗳𝗲💪🏻||

क्या शक्ति का स्त्रोत भोजन है? 🍏🫑🥑🍉🍐

fithumarabharat.com/secret-of-power-life-by-darsha…

2 years ago | [YT] | 0

সত্যাগ্ৰহ যোগপীঠ Satyagraha YogPeeth

Did you know ?

▪️Both the legs together have 50% of the nerves of the human body, 50% of the blood vessels and 50% of the blood is flowing through them.
*Walk*

▪️ It is the largest circulatory network that connects the body.
*So Walk daily*

▪️Only when the feet are healthy then the convention current of blood flows , smoothly, so people who have strong leg muscles will definitely have a strong heart. *Walk*

▪️Aging starts from the feet upwards.
*Walk*

▪️As a person gets older, the accuracy & speed of transmission of instructions between the brain and the legs decreases, unlike when a person is young.
*Please Walk*

▪️In addition, the so-called Bone Fertilizer Calcium will sooner or later be lost with the passage of time, making the elderly more prone to bone fractures.
*WALK*

▪️Bone fractures in the elderly can easily trigger a series of complications, especially fatal diseases such as brain thrombosis.
*Walk*

▪️Do you know that 15% of elderly patients generally, will die max. within a year of a thigh-bone fracture !!
*Walk daily without fail*

▪️ Exercising the legs, is never too late, even after the age of 60 years.
*W A L K*

▪️Although our feet/legs will gradually age with time, exercising our feet/ legs is a life-long task.
*Walk 10,000 steps*

▪️Only by regular strengthening the legs, one can prevent or reduce further aging.
*Walk 365 days*

▪️ Please walk for at least 30-40 minutes daily to ensure that your legs receive sufficient exercise and to ensure that your leg muscles remain healthy.
*KEEP WALKING*

2 years ago | [YT] | 0

সত্যাগ্ৰহ যোগপীঠ Satyagraha YogPeeth

दवा हमेशा बोतलें, गोलियाँ या इंजेक्शन में... नही पाई जाती।

*आइये समझते हैं दुनिया की सर्वश्रेष्ठ दवाएं...*

*(1). प्राकृतिक भोजन एक औषधि है।*

*(2). जंक फ़ूड छोड़ना* एक दवा है।

*(3). व्यायाम* एक औषधि है।

*(4). उपवास* एक औषधि है।

*(5). हँसी* एक औषधि है।

*(6) मौसम की सब्जियां और फल* औषधि हैं।

*(7) प्रेम एक औषधि है।*

*(8) इमानदारी एक औषधि है।*

*(9). गहरी नींद* एक औषधि है।

*(10). धूप* एक औषधि है।

*(11) कृतज्ञता एक औषधि हैं।*

*(12) सत्संग एक औषधि है*।

*(13). अच्छे दोस्त* दवाई हैं।

*(14). ध्यान* एक औषधि है।

*(15). सत्य बोलना* एक दवा है।

*(16). सकारात्मक दृष्टिकोण* एक औषधि है।

*(17). सभी जीवों के प्रति निस्वार्थ सेवा और प्रेम* एक औषधि है।

*(18). भजन सुनना* एक औषधि है।

*(19) प्रेम से बोलना और बांटना* दवाएं हैं।

*(21) अपनी गलतियों को स्वीकारना* एक औषधि है।

*(22). वर्तमान क्षणों में जीना और रहना सर्वश्रेष्ठ औषधि है*

*(23) *अच्छा विचार एक औषधि है!*

2 years ago | [YT] | 0