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I’m Dipti Mishra, and this is your go-to space for amazing DIY art & craft ideas that transform your home and spark your creativity. From best out of waste projects to DIY organizers, wall hangings, vases, jewelry, and paper crafts we turn old materials into beautiful, useful, and unique creations.

यहाँ धागों में बसती हैं कहानियाँ, रंगों में छुपे हैं जज़्बात, और हर तोहफ़े में बुनता है प्यार। 💛

What you’ll find here:
🎨 Handmade Portraits
🧵 Embroidery Art
🎁 DIY Gift Ideas
✨ Endless Creative Inspiration

Every video brings a new spark of light into your creative journey. Because art isn’t just made… it’s lived!

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The Roshni

Most of the time, we try to wear someone else’s beauty…hoping the world will finally see us. But the truth is, borrowed beauty never fits. The moment we honour our own light, we stop needing anyone else’s glow.
दुनियादारी और कलाकार के बीच एक अनोखा संघर्ष है जो दोनों को एक ही दिशा में चलने से रोकता है। यदि वे एक साथ चलते हैं, तो जाहिर है कला दम तोड़ देती है फिर अर्थी उठती है कलाकार की और जनाज़े में शामिल होने आतुर होती है दुनियादारी। दुनिया एक ब्लैकहोल की तरह है जो सब कुछ अपनी ओर खींचती है और जो सब समझने की कोशिश करता है दुनियादारी का शिकार हो जाता है।
एक पक्ष और है जहाँ कलाकार दुनियादारी को मुँह चिढ़ाने में सफल हो जाता है किस कीमत पर सफल हुए इसकी बात नहीं करते हैं लेकिन बने बनाए दुनियादारी के नियमों को तोड़कर वो कलाकार किसी बच्चे सा आनंदित महसूस करने लग जाता है और उसे लगता है कि उसने नई दुनिया बना ली, कोई जाकर बताए उसे कि सब भ्रम है।


In the pause between realisation and reflection… that’s where I live.🕊️

2 weeks ago | [YT] | 31

The Roshni

वो भी अपने ना हुए, दिल भी गया हाथों से यही मामला है... बड़ी मुसीबत है ख़ैर अजीब सा डर और ढेर सारा उथल-पुथल लेकर जब एक कलाकार दुनियादारी की क़ीमत चुकाकर घर लौटता है, तो उसका शरीर थका होता है, पर दिमाग़ और दिल के भीतर एक और जंग चल रही होती है। वो जंग होती है ख़ुद से, समाज से, समय से।

दिनभर लोगों की मांगों, उम्मीदों और हालातों से टकरा कर लौटा हुआ वो कलाकार, अपने स्टूडियो में चुपचाप कदम रखता है। बाहर की दुनिया में उसने हँसी पहनी होती है, चालाकियाँ ओढ़ी होती हैं, लेकिन इस कमरे में आते ही सब कुछ उतार देता है जैसे कोई अपनी असल खाल में लौट आया हो। उसकी थकान अब उसे खींचकर कैनवस के सामने लाती है, या उस अधूरी स्केचबुक तक, जहाँ उसका "कल" पल-पल बन रहा है।

वो सोचता है कि आज कुछ न सोचे... न समाज, न बिल, न असुरक्षाएं लेकिन मन है कि चुप नहीं होता। फिर भी, वो अपने थके हुए हाथों से एक ब्रश उठाता है, कोई रेखा खींचता है, कोई रंग उड़ेलता है और उस एक पल में सब कुछ जैसे थम जाता है।

उसका लौटना स्टूडियो की दीवारों को जीवन देता है। जैसे थका हुआ बच्चा अपनी मां की गोद में लौट आता है, वैसा ही कुछ रिश्ता है उसका और उसके आर्ट का। वहाँ कोई शर्त नहीं, कोई भूमिका नहीं। बस वही एक सच्चा रिश्ता वो और उसका "रंगों वाला सुकून"।
अब यह सुकून मिले तो डांट लगाऊं उसको क्या भई कहां रह गए थे? कब से इंतजार कर रही।

Between silent struggles and loud battles 🕊️✨

1 month ago | [YT] | 14

The Roshni

समाज ने हमेशा उस नकलीपन को सराहा है, जो उसकी बनाई हुई परिभाषाओं में फिट बैठता है। हम सब कहीं न कहीं नकली हैं इसलिए नहीं कि हम ऐसा बनना चाहते हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि जो हम सच में हैं, उसे स्वीकार करने का साहस हममें नहीं है। हम सामाजिक स्वीकृति की चाह में ख़ुद को इस कदर ढाल लेते हैं कि असल ‘मैं’ कहीं पीछे छूट जाता है।

जब हम उदास होते हैं, तो उस उदासी को जीने की बजाय चेहरे पर मुस्कान का मुखौटा पहन लेते हैं क्योंकि एक मुस्कराता चेहरा समाज के लिए अधिक "स्वीकार्य" है। हमें आदर्श वही लगता है जो भावनाओं से परे, संयमित और सतही हो। हम यह भूल जाते हैं कि असली मानवता हमारे टूटने, बिखरने, और फिर जुड़ने में है न कि केवल हर परिस्थिति में "मजबूत" दिखने में।

आजकल सामाजिक मान्यता इस बात पर निर्भर करती है कि हम कितने चतुर हैं, न कि कितने सच्चे या संवेदनशील। हम बहुत कुछ जानकर सिर्फ "जानकार" बन सकते हैं, लेकिन जब तक हम स्वयं को नहीं जानते, तब तक एक बेहतर इंसान नहीं बन सकते। परंतु सत्य से आमना-सामना करना सरल नहीं है क्योंकि सत्य हमें खोलता है, हमारी कमजोरियों को उजागर करता है, और हम उस नग्नता से डरते हैं।

हम झूठे आदर्शों और समाज की उम्मीदों की बाड़ में उलझकर अपनी प्राकृतिकता खो देते हैं। हम अपनी असलियत को छुपा देते हैं, और उस सच्चाई से मुँह मोड़ लेते हैं जो भीतर कहीं चुपचाप हमें पुकार रही होती है।

शायद इसी कारण, जो कुछ हम जीवन में नहीं जी पाते, उसे हम कविता में बुनते हैं, कहानियों में रचते हैं, और सिनेमा में देखना चाहते हैं। हमारी अधूरी भावनाएँ, अस्वीकृत इच्छाएँ और खोई संवेदनाएँ कला में शरण ले लेती हैं क्योंकि वास्तविक जीवन उन्हें वह स्थान नहीं देता, जिसकी वे हक़दार हैं।

आखिरकार सवाल यही है हम अपने आप से कब मिलेंगे? कब खुद को वैसे ही स्वीकार करेंगे जैसे हम हैं बिना दिखावे, बिना भय के? और हाँ, शायद जवाब भी है… होता ही होगा सबके भीतर अपने हिस्से का, बस शब्द मिलते-मिलते जीवन के क्षण खत्म हो जाते हैं।
🕊️🌿

Between silence and Chaos!🧘🏻‍♀️

1 month ago | [YT] | 32

The Roshni

✨ Happy Diwali, everyone!🪔🪔
May this Diwali light up your path with
health, wisdom & prosperity 🌸
and bring peace to every home,
a calm, loving, happy, healthy family,
free from old wounds & disputes.🦚🪄


#TheRoshni #DiwaliVibes #HealingEnergy #FamilyHarmony #PositiveLight

2 months ago | [YT] | 52

The Roshni

जहाँ अंत अच्छा नहीं, वहाँ कहानी बाकी है।
संवेदनशीलता अक्सर एकांत और कला को आत्म-संरक्षण के साधन के रूप में चुनती है, और इस तरह यात्रा अनुमान से अधिक चुनौतीपूर्ण होना निश्चित है। फलस्वरूप, अपने जुनून में, असफलता में, जीत में, जिद में — अटूट विश्वास मिलेगा। एक दिन सब ठीक हो जाएगा, और यह कहानी ख़त्म हो जाएगी। सभी मुख्य किरदारों के नाम लिख दिए जाएंगे और पर्दा गिर जाएगा।बहरहाल, सवाल तो यही रहेगा — कि किसी और कहानी के किरदार में जब मासूमों को चीखना चाहिए था, तो उनकी ख़ामोशी किस किताब में लिखी जाएगी?इन यात्राओं के यात्री, जो खुद को कहीं छिपाकर रखते हैं, अन्य यात्रियों की तुलना में थोड़े अधिक संवेदनशील होते हैं।

अब यह स्पष्ट है कि जो खुद को समेट लेता है, वह कहीं भी... कहीं भी जा सकता है, क्योंकि दुनिया बहुत बड़ी है, और यह यात्रा मानवता की आख़िरी सांस तक अंतहीन है।इन कहानियों के अंत की चीख कहाँ दर्ज होगी? ऐसे अनुत्तरित प्रश्नों के साथ जीवित व्यक्ति लगभग कितनी बार मरेंगे? हमारी दुनिया की प्रकृति बहुत ही मायावी है, इसलिए चाहे किसी को सही उत्तर देना याद हो या न हो, इन प्रश्नों पर दोबारा विचार करना आवश्यक है।

हमारा विश्वास अक्सर सहिष्णुता से बढ़ता है।
तो अगर कोई अटूट विश्वास का दावा करता है, तो इसका मतलब है कि उसकी सहनशीलता भी अटूट होगी।
हालाँकि मेरी प्रवृत्ति कभी किसी को दोष देने की नहीं रही, लेकिन इस यात्रा में मैंने जो बेचैनी महसूस की है, वह मुझे यह सवाल करने के लिए प्रेरित करती है — कि मासूमों की ख़ामोशी को किस किताब में लिखा जाना चाहिए था?
इन कहानियों के अंत की चीख कहाँ दर्ज होगी?
इस आंतरिक उथल-पुथल की जिम्मेदारी कौन लेगा?
कब तक मुझे तमाम अनकही पीड़ाओं का बोझ ढोना पड़ेगा?

एक साधारण मन के लिए क्रूर होना कितना कठिन रहा होगा।
ऐसे अनुत्तरित प्रश्नों के साथ जीवित व्यक्ति लगभग कितनी बार मरेंगे?
सवाल हैं... सवाल तो रहेंगे ही...

इस विश्वास के साथ कि इन सवालों के जवाब थोड़ी देर से आएंगे, और फिर कोई बिखरा हुआ खुद को कहीं और समेट लेगा।
हालाँकि इसकी उम्मीद की जा सकती है, लेकिन इसकी निश्चित रूप से गारंटी नहीं दी जा सकती। अगर मैं ‘मेरा’ कहूँ तो सवाल अभी भी हैं,
लेकिन शिकायतें खत्म हो गई हैं और जवाब न मिलने की बेचैनी नदियों की तरह फैल गई है। अब अंत का इंतज़ार है, क्योंकि अंत में सब अच्छा होगा।
Between Strokes and Silence!🕊️🤍

2 months ago | [YT] | 59

The Roshni

I'm not shy.
I'm selective.
I don't fear speaking to people.
I simply lack the desire to communicate with most of them. ~Morgan Richard Olivier
सवाल मेरे हैं तो जवाब भी सबसे पहले मेरा होना चाहिए। मैं कौन हूँ? क्या मैं वही हूँ जो आज हूँ? या वो, जो चार साल पहले थी? जो सबके सामने हूँ, क्या वही मेरा असली रूप है, या फिर वो, जो बंद कमरे में, अकेले अपने आप से होती हूँ? ऐसे सवाल कभी खत्म नहीं होते। हर बार इनके जवाब बदलते रहते हैं। जैसे-जैसे जीवन की "कक्षा" बदलती है, वैसे-वैसे इन्हीं सवालों के जवाब भी बदल जाते हैं। स्कूल के दिनों में, जो सवाल एक कक्षा में मुश्किल लगते थे, वही अगली कक्षा में आसान लगने लगते थे। शायद जीवन के सवाल भी कुछ ऐसे ही होते हैं। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, पहले मुश्किल लगने वाले जवाब धीरे-धीरे सरल होते जाते हैं।

इसी सोच के आधार पर, अपने सवालों के जवाब खुद ढूँढना सबसे बेहतर लगता है। मैं वही हूँ, जिसने खुद को ‘मैं’ बनाने के लिए बहुत ईमानदारी से मेहनत की है। जो आज हूँ, उससे संतुष्ट हूँ, मजबूत हूँ। जो चार साल पहले थी, उसने बहुत कुछ सीखा था। जो सबके सामने हूँ, वो बहुत कुछ सिखा सकती है। और जो अकेले में हूँ, वो मेरी सबसे सच्ची और ईमानदार पहचान है। उसी ने मुझे आज इस मुकाम पर खड़ा किया है।

कई बार हम दूसरों को बदलने की कोशिश करते हैं, जबकि ज़रूरत होती है खुद पर काम करने की। इंसानों की प्रवृत्तियाँ समझना कठिन है, लेकिन प्रकृति की सादगी और स्थिरता को समझना कहीं आसान। जैसे, नदियों को साफ करने की ज़रूरत नहीं है…बस उन्हें गंदा करना बंद कर दीजिए, वे खुद-ब-खुद साफ हो जाएँगी। जंगल उगाने की ज़रूरत नहीं, बस पेड़ काटना बंद कर दीजिए, जंगल फिर से उग आएँगे। शांति स्थापित करने की कोशिश मत कीजिए, क्योंकि शांति लड़कर नहीं आती। आप सिर्फ अशांति फैलाना बंद कर दीजिए, शांति अपने आप आ जाएगी। व्यवस्था बनाने की ज़रूरत नहीं, आप स्वयं व्यवस्थित रहिए…व्यवस्था स्वतः बन जाएगी।

ठीक इसी तरह, जब हम खुद को समझने लगते हैं और अपने भीतर काम करना शुरू करते हैं, तो बाहरी दुनिया की बहुत-सी उलझनें खुद-ब-खुद सुलझने लगती हैं। धरती पर हर अव्यवस्था का इलाज संभव है, लेकिन जो लोग व्यवस्था सुधारने के नाम पर खुद अव्यवस्थित हो गए हैं, उनका कोई इलाज नहीं।(मैं बस अपनी बात कर रही)

और अंत में, ज़रूरी है कि हम तस्वीरों में खुलकर हँसें, और कभी-कभी सच्चे दिल से मुस्कुराएँ भी। क्योंकि एक उम्र के बाद जब दाँत टूट जाते हैं, तो 60,000 रुपये की बत्तीसियाँ लगवानी पड़ती हैं। शायद अब उससे भी महँगी हो गई हों—मुझे तो वर्तमान दर भी पता नहीं है।

🧘🏻‍♀️🤍

2 months ago | [YT] | 18

The Roshni

हाँ, ठीक है—मैं अपनी अना का मरीज़ हूँ।
आख़िर मेरे मिज़ाज़ में क्यों दख़ल दे कोई।
~ जौन एलिया

कलाकार अक्सर अजीब होते हैं, और यह कोई नई बात नहीं। लेकिन उनके अजीबपन का दायरा उतना ही नहीं होता जितना दिखता है या जितना समझ आता है। वे किसी और दुनिया के लिए लड़ रहे होते हैं, किसी और दुनिया की जीत के लिए, जबकि यह दुनिया उन्हें केवल भ्रम और संघर्ष दिखाती है। जो चीज़ हमें उनके संघर्ष में जीत के रूप में दिखाई देती है, वह असल में उनकी प्राथमिक जीत नहीं होती। वे उसी चीज़ के लिए कभी नहीं लड़े। जिस चीज़ के लिए उन्होंने संघर्ष किया, वह अब तक पूरी तरह हासिल नहीं हुई है और शायद कभी पूरी भी न हो।

फिर भी, इसी इंतज़ार और इसी अधूरेपन ने हमें कुछ अलग दे दिया। हमने अपनी दुनिया, अपनी जीत बना ली। और यह जीत, जिसे हासिल करने के लिए सारा फ़साद शुरू हुआ था, अब हमें उतनी ज़रूरी भी नहीं लगती।

डायरी के पन्नों पर कई कविताएँ अधूरी रह गईं, कई विचार अपने पूरे रूप में सामने नहीं आ पाए। फिर भी, यही अधूरापन ही हमें हमारी पहचान देता है, यही हमारी दुनिया को जीवंत बनाता है। और जो कोई कलाकार न माने, दुनियादारी के इन प्रपंचों को साफ़ शब्दों में कर दे इंकार, उसके पास क्या विकल्प बचता है...शिवाय ख़ुद से छल के?

ख़ैर, मैं कोई कलाकार नहीं हूँ। और यह झूठ… मेरे जीवन के जितने बसंत बीते, उन सभी वर्षों में, जितने दिन गुज़रे, शायद ही ऐसा कोई दिन रहा हो जब मैंने यह झूठ न कहा हो।

हाँ, तो ठीक है। दुनियादारी में बने रहने के लिए थोड़ा झूठ कहना कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन हर बार जब यह झूठ निकलता है, अंदर कहीं एक हिस्सा चुपचाप टूट जाता है। और मैं वही रहती हूँ! सच और झूठ के बीच, इस अधूरी दुनिया में 'अधूरी'। 🕊️

3 months ago | [YT] | 15

The Roshni

आपकी यह अच्छाई किस काम की है? और एक बार बुरा बनने में क्या हर्ज है? एक बार अपने अच्छे होने के नाम पर लोगों से बुरा बनकर भी देखिए शायद समझ आए। दोस्त, दोस्त होते हैं। परिचित, परिचित होते हैं। परिवार, परिवार होता है। रिश्ते, रिश्ते होते हैं। प्यार, प्यार होता है। और कुछ लोग, कुछ नहीं होते। सिर्फ कह देने मात्र से कोई अपना नहीं हो जाता। सबके हिस्से में कुछ प्यार और जिम्मेदारियां होती हैं उन्हें पूरा करना होता है। सबकी अलग-अलग, अर्थपूर्ण परिभाषाएँ होती हैं जिनका वक़्त-बेवक़्त निर्वहन करना होता है। जो लोग वास्तव में कुछ नहीं होते, उन्हें नाम मत दो।

ज़िंदगी यही है: सच्चाई के साथ जीने के लिए थोड़ी नर्माई और बहुत सारा खुरदुरापन दोनों चाहिए। कभी-कभी ग़म में जीना ढलान वाली सड़क जैसा हो जाता है आप बिना मेहनत के लुढ़कते जाते हैं और फ़र्क भी नहीं पड़ता। फिर अगर कहीं चढ़ाई आ जाए तो हालत धोबी के कुत्ते जैसी हो जाती है; न पीछे लौट पाते हैं, न आगे बढ़ पाते हैं। ऐसे समय पर दम तोड़ देना सबसे आसान, पर कभी भी उचित विकल्प नहीं होता।

दो मिनट ठहर कर सोचो हारने के लिए तो तुमने सफर ही शुरू किया था। ठीक है, ढलान पर लुढ़क गए और सुस्ताए भी, पर अब उठो। चार कदम चल कर देखो मुश्किल तो होगी, पर आसान काम किसे भाता है? ग़म में जीना आसान नहीं था, पर आदत बन गई। अब आदत बदल लो। दम तोड़ना नहीं, उठना यही ज़रूरी है।🕊️🤍

3 months ago (edited) | [YT] | 18

The Roshni

कला, कलाकार और कला-आधारित व्यवसाय

कला, कलाकार और कला-आधारित व्यवसाय ये तीनों नितांत अलग-अलग परिभाषाओं से संबंधित हैं।

कला को मैं पूरी तरह समझ सकूं या लिख सकूं, इतनी मेरी उम्र नहीं हुई है। इसे समझते-समझते जीवन बीत जाता है। जो लोग हर हाल में जिम्मेदारियाँ, दुनियादारियाँ छोड़कर कला को समझने में लग जाते हैं, वे भी शायद पूरी तरह नहीं समझ पाते। और मैंने तो दोनों ही पकड़ रखे हैं जिम्मेदारी भी और कला भी। इसीलिए शायद मैं उसे पूरी तरह नहीं समझ सकती।

यदि मैं अपनी सीमित समझ में कला को कम शब्दों में परिभाषित करने की कोशिश करूं, तो बस इतना कह सकती हूँ
कला वह होती है, जिसका कोई संदर्भ नहीं होता।

मातृत्व के नौ महीने, और किसी का बालपन पोसने की प्रक्रिया यह इतना नि:स्वार्थ, आनंददायक और पीड़ादायक होता है कि इसे धरती पर सबसे ऊँचा दर्जा मिला है। लेकिन जब बात कला को जन्म देने की आती है, तब इंसान पूरी तरह खाली हो जाता है उसमें न कोई स्वार्थ बचता है, न पीड़ा, न ही आनंद की अनुभूति।
वह केवल माध्यम बन जाता है।

शायद इस बात को समझने के लिए मेरी तमाम उम्र लग जाए या शायद बीती उम्रों से कुछ ज्ञान शेष हो।
कला की परिभाषा हर कोई अपनी-अपनी बना रहा है, क्योंकि जब कोई उसकी असल परिभाषा तक पहुँचता है, तब तक जीवन समाप्त हो चुका होता है।

जब मेरी इच्छा जगी, तो मैंने Van Gogh और राजा रवि वर्मा को पढ़ने की कोशिश की। और यह निश्चित है कि मैं अपने जीवन में कभी स्वयं को 'कला' नहीं कहूंगी।

क्योंकि इंसान जब 'कला' बन जाए, तो जीवन का अंत निश्चित है।
जब तक इंसान में कोई भी लालसा बची है, वह कला नहीं हो सकता।
कलाकार होने की कोई शर्तें नहीं होतीं।
मनुष्य इतना सक्षम नहीं कि वह किसी चीज़ को चुन सके।
क्योंकि अगर उसे यह समझ आ जाए कि वह चयन करने में स्वतंत्र है, तो वह हमेशा वही चुनेगा, जिससे उसे लाभ हो नुकसान कोई क्यों चाहेगा?

मैं आँकड़ों की बात नहीं करूंगी, लेकिन यदि आप वास्तविकता में कलाकारों से मिलें, तो आप देखेंगे कि अधिकांश लोग या तो बहुत कुछ खोकर कलाकार बने हैं, या लाभ की संभावना देखकर इस ओर आए हैं या किसी को देखकर प्रेरित हुए हैं।

मैं रेडियो के दौर की नहीं हूँ।
तब बातें अखबार और पत्रिकाओं तक सीमित रहती थीं।
अब तो स्मार्ट उपकरण और सोशल मीडिया है और कलाकार होने के लिए 'इनफ्लुएंस' होना इतना पीड़ादायक नहीं रहा, जितना पहले कभी कला को जन्म देना हुआ करता था।

कभी-कभी हम परिस्थितियों से बचने के लिए कला की आड़ लेते हैं, और कलाकार कहलाते हैं।
कभी समाज में एक 'बुद्धिजीवी' छवि बनाए रखने के लिए भी ऐसा करते हैं। कभी लाभ और प्रसिद्धि की संभावना देखकर भी।

कला, यदि आसान शब्दों में कहूं,
तो हर किसी को कई प्रकार की आत्महत्याओं से बचाती है।
और आज के समय में सबसे बड़ा दबाव है “दिखने” का।
अब अगर कलाकार होने की बात करें
तो मैं कुछ ऐसे लोगों को जानती हूँ, जो खुद को कलाकार कहते हैं, और अपने काम में बहुत अच्छे भी हैं।
लेकिन फिर बात वहीं आ जाती है कि कलाकार बनना किसी का निजी चुनाव नहीं होता।

प्रकृति से बड़ा न कोई कला है, न कलाकार न किसी किताब में, न धरती पर, न जीवित, न मृत।
कला एक अथाह सागर है
वह अपना माध्यम स्वयं चुनती है।
वह तय करती है कि किसके माध्यम से, कितनी, कहाँ और किस रूप में अभिव्यक्त होना है।
मनुष्य 'कलाकार' ज़रूर कहलाता है,
लेकिन वास्तव में कला तय करती है कि किसे 'कलाकार' कहलवाया जाएगा।
मनुष्य अपने ही अस्तित्व से परेशान है
क्योंकि उसे दंभ की आदत है।
वह यह भूल जाता है कि कलाकार होना उसका चुनाव नहीं, बल्कि कला का आशीर्वाद है।
और इस आशीर्वाद के लिए कृतज्ञ होना चाहिए।

अब बात आती है कला-आधारित व्यवसाय की।
यह वह क्षेत्र है जिसे मैं न केवल समझती हूँ, बल्कि अनुभव कर रही हूँ।
और फिर भी, कितना कुछ जानना अभी बाकी है।

मुझे लगता है कि मनुष्य का जन्म, उसका कर्म और माध्यम कुछ तो निश्चित होते हैं। परंतु जीवन कैसा हो, इसके कुछ चुनाव हम स्वयं करते हैं। हम अपनी सहूलियत के अनुसार कुछ अच्छी-बुरी चीजों को अपनाते हैं, और कुछ को छोड़ते हैं
स्वार्थ के साथ।
दुनिया ऐसी ही चलती आई है, और शायद चलती रहेगी।
मैं जीवन की बहुत-सी बातें भूल जाती हूँ।
क्यों, इसका विश्लेषण मैं नहीं करती! और न ही चिंता।
लेकिन कुछ पुराने दृश्य, कुछ फ्लैशबैक अब भी साफ़ हैं।
इसका अर्थ है कि कहानी का आरंभ जिस किरदार से हुआ था
अब वह वैसा नहीं रहा।

मैंने कभी कला को विषय के रूप में नहीं पढ़ा
कारण चाहे जो भी रहे हों।
पर इस बात का एक हल्का-सा अफ़सोस अब भी रह गया है
कि मुझे यह कहना पड़ता है कि मुझे कला की शून्य जानकारी है।
कला एक अथाह सागर है।
यह मनुष्य को कितनी ही प्रकार की आत्महत्याओं से बचाता है।
कला में बहुत करुणा है और उसने मुझ पर दया की है।

कला ने मुझे अपनाया।
मुझे प्रेम दिया
वह पहला प्रेम, जो मुझे कभी मिला नहीं… लेकिन अंततः मेरा सबसे स्थायी प्रेम बन गया।
कला ने मुझे मेरे अकेलेपन के दुःख से बाहर निकाला,
और एकांत की शक्ति का बोध कराया।
प्रेम पाने के लिए कौन नहीं हाथ-पाँव मारता?

मैं भी स्कूल के अंतिम दिनों से पहले प्रेम की विछोह की पीड़ा में उसे खोजने लगी।
तन-मन की कितनी ही चोटें खाईं,
लेकिन वह प्रेम नहीं मिला।

फिर स्कूल ख़त्म हुआ, तो दोस्ती, दुनियादारी, परिवार सब पीछे छूट गया। फिर से प्रेम को पकड़ने की ज़िद ने मुझे पागलपन की ओर ढकेला। पीड़ा बढ़ी, प्रेम गहराया, ज़िद बढ़ी और उम्र भी।
जब उम्र बढ़ने का एहसास होता है, तो ज़िद धीरे-धीरे छूटने लगती है,
जिम्मेदारियाँ बढ़ जाती हैं,
और हम यह स्वीकार करना शुरू कर देते हैं
कि शायद कुछ चीजें हमारे लिए नहीं बनीं।
प्रेम का असर किसी को हवा जैसा लगे,
लेकिन उसका प्रभाव सुनामी जितना गहरा होता है।

मुझे मेरा पहला प्रेम कला में मिला।
वह दयावान थी। उसने मौन का अर्थ, प्रेम की परिभाषा, और एकांत का सौंदर्य मुझे सिखाया। वह मेरे लिए 'न होकर भी' बहुत कुछ कर गई।

हम चाहते हैं कि प्रेम वैसा हो जैसा हमने चाहा है पर यह भी तो एक प्रकार का दबाव है।
प्रेम न मिलने पर दो ही रास्ते होते हैं:

1. या तो हम बदला लेने की राह पर चल पड़ते हैं
जो कि मेरा स्वभाव नहीं है।
2. या फिर उस पहले प्रेम की आदतों और स्मृतियों को अपने जीवन का हिस्सा बना लेते हैं जीवन के अंतिम क्षण तक।

मैंने दूसरा रास्ता चुना।

लेकिन पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियाँ भी थीं
इसलिए एक नई दिशा बनी कला-आधारित व्यवसाय की।
ताकि मैं अपने प्रेम के आसपास रह सकूं जब तक जीवन है और इस बगिया में ढेरों फूल खिलें, जिसे सींचने के कुछ सफल प्रयास और प्रयोग मेरे भी हों।
जब दिन कटता न हो, तो जिम्मेदारियाँ बढ़ा लेनी चाहिए
फिर जगी आँखों से रातें भी कट जाती हैं। अब हमारे संस्थान का उद्देश्य यही है कला जैसी हर अनुभूति को कहीं न कहीं पहुँचाना, उसका माध्यम बनना।

यदि मैं कलाकार बन जाती, तो शायद यह सब नहीं होता
शायद थोड़ा दंभ होता, एक श्रेणी होती।

लेकिन मैं तो प्रेमी थी
कला के प्रेम में डूबी हुई।
प्रेमी पागल होता है
पागल क्रांतिकारी।
और क्रांतिकारी का अर्थ होता है
चाहे जैसे भी, बदलाव लाना।
आर-पार का पता नहीं, लेकिन प्रेम ने व्यवसाय की नींव रख दी है।
अब कला पास महसूस होती है।कलाकार मेरे आसपास रहते हैं।

कुछ वर्ष पहले मेरी एक प्रोफेसर ने मुझे उपभोक्ता व्यवहार पढ़ाया था
कंज़्यूमर बिहेवियर।
उनका योगदान मैं कभी नहीं भूलूंगी
प्रेम को ज़िंदा रखने की इस तरकीब को समझाने के लिए।

विषय को समझाने के लिए उदाहरण दिए जाते हैं
पर वे उदाहरण हम तय करते हैं
कि उन्हें कहाँ और कैसे रखना है।🧘🏻‍♀️

~ The Roshni 🕊️

4 months ago | [YT] | 17

The Roshni

Every man wishes he had a good woman, but what many don't realize is that good women with good hearts come with real emotions. They feel deeply. They love hard. They are incredibly affectionate and passionate, pouring their whole soul into the people they care about. Good women are fiercely loyal, but their soft hearts mean they can also be easily frustrated, upset, or emotional when things feel off. It's not a weakness—it's because they care so much. Yes, they might have their moody moments, but one thing is certain: when a good woman loves you, she'll give you a kind of love that's rare and precious. It's the kind of love you won't find anywhere else. Treasure it.🤍🕊️

#artist

8 months ago | [YT] | 22