These malicious people cling to egoism, power, arrogance, lust, and anger, and hate Me who dwells in their own bodies and those of others. (16.18)
यह श्लोक भगवद्गीता – अध्याय 16, श्लोक 18 का है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण असुरी प्रवृत्ति वाले लोगों के गुणों का वर्णन कर रहे हैं।
श्लोक अर्थ (सरल भाषा में):
“जो दुष्ट प्रवृत्ति वाले लोग अहंकार, शक्ति-प्रदर्शन, घमंड, वासना और क्रोध में फँसे रहते हैं— वे अपने तथा दूसरों के शरीर में विद्यमान मुझ परमात्मा से द्वेष करते हैं।”
गहरी व्याख्या:
अहंकार (ego) — व्यक्ति स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानता है और किसी उच्च शक्ति का अस्तित्व स्वीकार नहीं करता।
बल (power) — वह अपनी ताकत और स्थिति का दुरुपयोग करता है।
दर्प (arrogance) — दूसरों को तुच्छ समझना, स्वयं को बड़ा मानना।
काम (lust/desire) — अपनी इच्छाओं को ही जीवन का लक्ष्य बना लेना।
क्रोध (anger) — इच्छाएँ पूरी न होने पर हिंसक या विनाशकारी बन जाना।
इन स्वभावों के कारण ऐसा व्यक्ति अपने भीतर रहने वाले ईश्वर को भी नहीं पहचानता और दूसरों में बसे ईश्वर—अर्थात हर जीव के भीतर की दिव्यता—से भी द्वेष करता है।
यही कारण है कि ऐसे लोग आध्यात्मिक रूप से अंधकार में रहते हैं और शांति से दूर हो जाते हैं।
ʀɪsᴇ ᴡɪᴛʜ ᴘᴜʀᴘᴏsᴇ
अहङ्कारं बलं दर्प कामं क्रोधं च संश्रिताः । मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तो ऽभ्यप्तूयकाः ॥१६.१८ ।।
These malicious people cling to egoism, power, arrogance, lust, and anger, and hate Me who dwells in their own bodies and those of others. (16.18)
यह श्लोक भगवद्गीता – अध्याय 16, श्लोक 18 का है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण असुरी प्रवृत्ति वाले लोगों के गुणों का वर्णन कर रहे हैं।
श्लोक अर्थ (सरल भाषा में):
“जो दुष्ट प्रवृत्ति वाले लोग अहंकार, शक्ति-प्रदर्शन, घमंड, वासना और क्रोध में फँसे रहते हैं—
वे अपने तथा दूसरों के शरीर में विद्यमान मुझ परमात्मा से द्वेष करते हैं।”
गहरी व्याख्या:
अहंकार (ego) — व्यक्ति स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानता है और किसी उच्च शक्ति का अस्तित्व स्वीकार नहीं करता।
बल (power) — वह अपनी ताकत और स्थिति का दुरुपयोग करता है।
दर्प (arrogance) — दूसरों को तुच्छ समझना, स्वयं को बड़ा मानना।
काम (lust/desire) — अपनी इच्छाओं को ही जीवन का लक्ष्य बना लेना।
क्रोध (anger) — इच्छाएँ पूरी न होने पर हिंसक या विनाशकारी बन जाना।
इन स्वभावों के कारण ऐसा व्यक्ति
अपने भीतर रहने वाले ईश्वर को भी नहीं पहचानता
और
दूसरों में बसे ईश्वर—अर्थात हर जीव के भीतर की दिव्यता—से भी द्वेष करता है।
यही कारण है कि ऐसे लोग आध्यात्मिक रूप से अंधकार में रहते हैं और शांति से दूर हो जाते हैं।
1 month ago | [YT] | 1
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