फरीदाबाद में आज से बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की सनातन एकता पदयात्रा प्रवेश कर रही है। यात्रा जिरखोद मंदिर से मांगर कट होते हुए गुरुग्राम रोड से फरीदाबाद आएगी, जिसके चलते पुलिस ने कई रास्ते बंद कर वैकल्पिक मार्ग सुझाए हैं। पाली चौक, बड़खल-पाली मार्ग और NIT दशहरा मैदान सहित कई स्थानों पर यात्रा का विश्राम और भोजन तय है। 9, 10 और 11 नवंबर को यात्रा बल्लभगढ़, सीकरी, पलवल और मितरोल होते हुए आगे बढ़ेगी। ट्रैफिक प्रभावित रहने पर पुलिस ने एडवाइजरी जारी कर हेल्पलाइन नंबर भी दिए हैं।
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#BageshwarDham #SanatanEktaPadyatra #FaridabadTraffic #GurugramRoad #TrafficAdvisory #HaryanaNews #FaridabadPolice #BreakingNews
रामायण के अनुसार, वनवास के दौरान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पंचवटी पहुंचे थे। वहां उनकी मुलाकात जटायु से हुई, जो एक वृद्ध पक्षी था।
श्रीराम ने जटायु से अत्यंत प्रेमपूर्वक मिलकर सभी को यह सिखाया कि रिश्तों में उम्र, रूप या स्थिति नहीं, बल्कि स्नेह और सम्मान होना चाहिए।
श्रीराम के आगमन से पंचवटी का वातावरण बदल गया — जहां पहले राक्षसों का आतंक था, अब वहां ऋषि-मुनि और पशु-पक्षी शांति और आनंद अनुभव करने लगे।
एक दिन लक्ष्मण ने श्रीराम से पूछा, “माया क्या है?” श्रीराम ने उत्तर दिया कि माया वहीं तक रहती है, जहां तक मन जाता है।
जब मन इच्छाओं में उलझा रहता है, तो व्यक्ति भ्रम में रहता है; लेकिन जब मन नियंत्रित होता है, तो ज्ञान और शांति प्राप्त होती है।
श्रीराम ने यह भी कहा कि परिवार में सुख-शांति बनाए रखने के लिए वैराग्य, ज्ञान और भक्ति की बातें करते रहना चाहिए।
पंचवटी में श्रीराम ने तीन प्रमुख कार्य किए — जटायु से मिलना, ऋषि-मुनियों और जीव-जंतुओं को आनंद देना, और अपने परिवार में बैठकर जीवन के गूढ़ विषयों पर चर्चा करना।
भगवान राम के 14 साल के वनवास मार्ग पर चल रही मोरारी बापू की ‘मानस रामयात्रा’ बुधवार को किष्किंधा पहुंची। यह देश की पहली ऐसी यात्रा है जो भारत गौरव स्पेशल ट्रेन से चित्रकूट से शुरू हुई है और राम वनगमन पथ के प्रमुख स्थलों से होते हुए रामेश्वरम तक जाएगी। वहां से यात्री विशेष विमान से श्रीलंका जाएंगे और फिर ‘पुष्पक विमान’ की तर्ज पर अयोध्या लौटेंगे।
इस यात्रा में बापू 9 स्थानों पर एक-एक दिन की रामकथा कर रहे हैं। बुधवार को पंपा सरोवर के पास कथा का पांचवां पड़ाव रहा, जहां भगवान राम, लक्ष्मण और हनुमान का मिलन हुआ था। यही वह स्थल है जहां राम-सुग्रीव की मित्रता हुई और बाली-सुग्रीव युद्ध का प्रसंग घटा था।
मोरारी बापू ने इस यात्रा को नाम दिया है — ‘मानस-रामयात्रा’, जिसमें श्रद्धालु सिर्फ कथा ही नहीं सुन रहे बल्कि रामायण से जुड़े स्थलों का साक्षात अनुभव भी ले रहे हैं। यात्रा में देश-विदेश के 411 श्रद्धालु शामिल हैं।
इस ट्रेन के हर कोच को रामायण के पात्रों और स्थलों के नाम दिए गए हैं — जैसे ऋष्यमूक पर्वत, वाल्मीकि आश्रम, अयोध्या, लंका आदि। कोच के बाहर रामकथा प्रसंगों के चित्र लगाए गए हैं, जिससे पूरी ट्रेन ‘राममय’ दिखाई देती है।
चित्रकूट से शुरुआत के बाद यात्रा अगस्त्यमुनि आश्रम, पंचवटी, शबरी आश्रम होते हुए अब किष्किंधा पहुंच चुकी है। आगे के तीन पड़ाव होंगे — रामेश्वरम, श्रीलंका और अयोध्या, जहां 4 नवंबर को यह ऐतिहासिक यात्रा संपन्न होगी।
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#MorariBapu#ManasRamYatra#RamVanGamanPath#RamayanaYatra#Kishkindha
🔹 गृहस्थ लोगों के लिए (सामान्य भक्तों हेतु) 👉 व्रत की तारीख — 1 नवंबर 2025 (शनिवार) क्योंकि एकादशी तिथि उस दिन सूर्योदय के बाद आरंभ हो जाती है और उदयातिथि की मान्यता के अनुसार व्रत उसी दिन रखा जाता है।
🔹 वैष्णव संप्रदाय या नियमपूर्वक व्रत करने वाले भक्तों के लिए 👉 व्रत की तारीख — 2 नवंबर 2025 (रविवार) क्योंकि वैष्णव परंपरा में हरि वासर समाप्त होने के बाद ही व्रत किया जाता है।
🕑 व्रत पारण (तोड़ने) का समय
2 नवंबर 2025 को दोपहर 01:11 PM से 03:23 PM तक (हरि वासर समाप्त होने के बाद पारण किया जाता है।)
⚠️ इस बार की विशेषता
इस बार पूरे दिन “चोर पंचक” रहेगा।
भद्रा काल भी रहेगा, इसलिए पूजा कार्य भद्रा समाप्ति के बाद करना शुभ माना गया है।
क्या भगवान आपसे खुश हैं? प्रेमानंद महाराज ने बताया पहचानने का सटीक तरीका
हर इंसान की यह चाह होती है कि भगवान उस पर प्रसन्न रहें, उसकी रक्षा करें और जीवन में सुख-शांति बनी रहे। लोग पूजा, दान, भक्ति और साधना जैसे कई उपाय करते हैं ताकि भगवान खुश रहें। लेकिन क्या इन बाहरी कर्मों से ही भगवान की कृपा मिलती है? इस सवाल का सुंदर उत्तर वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचन में दिया।
महाराज का कहना है कि भगवान की प्रसन्नता किसी पूजा या दान से नहीं, बल्कि अच्छे कर्म, सच्चे मन और भक्ति से मिलती है। उन्होंने कहा कि जब मन शांत हो, दूसरों के लिए दया का भाव जागे और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले, तो समझना चाहिए कि भगवान प्रसन्न हैं।
भगवान की प्रसन्नता के संकेत
मन में पवित्रता का अनुभव: जब हमारे विचार सकारात्मक होने लगें और दूसरों के लिए प्रेम और करुणा बढ़ने लगे, तो यह इस बात का संकेत है कि भगवान हमसे खुश हैं।
सत्संग और धार्मिक रुचि का बढ़ना: जब संतों की संगत अच्छी लगने लगे, धार्मिक बातें सुनने में आनंद आने लगे और मन बुरे कर्मों से खुद ही दूर भागने लगे — तो यह भगवान की कृपा का सबसे बड़ा संकेत है।
भलाई में आनंद मिलना: जब हमें किसी गरीब, असहाय या पशु-पक्षी की मदद करने में आत्मिक सुख मिले, तो समझिए भगवान हमारे भीतर ही निवास कर रहे हैं।
जब आपकी कुंडली में सूर्य सातवें भाव में होता है, तो इसका असर आपके रिश्तों, विवाह और साझेदारी पर सबसे अधिक दिखाई देता है। ज्योतिष शास्त्र में सातवां भाव वैवाहिक जीवन, सार्वजनिक संबंध और बिजनेस पार्टनरशिप का घर माना जाता है।
सूर्य यहां आकर आपके व्यक्तित्व में आत्मविश्वास, नेतृत्व और प्रभावशाली छवि लाता है। लेकिन अगर इसकी स्थिति कमजोर या अशुभ हो, तो यही आत्मविश्वास अहंकार और रिश्तों में टकराव का कारण बन सकता है।
इस स्थिति में व्यक्ति अक्सर अपने पार्टनर पर हावी होने की प्रवृत्ति रखता है, जिससे वैवाहिक या व्यावसायिक संबंधों में मतभेद पनप सकते हैं। वहीं, अगर सूर्य शुभ और मजबूत हो, तो व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान, स्थिर वैवाहिक जीवन और लाभकारी साझेदारी मिलती है।
☀️ सातवें भाव में सूर्य के सकारात्मक प्रभाव:
वैवाहिक सुख और तालमेल – मजबूत सूर्य रिश्तों में सामंजस्य और समझ बढ़ाता है।
सामाजिक प्रतिष्ठा – व्यक्ति समाज में मान-सम्मान और पहचान प्राप्त करता है।
नेतृत्व क्षमता – निर्णय लेने और रिश्तों को दिशा देने की योग्यता बढ़ती है।
साझेदारी में लाभ – बिजनेस या करियर संबंधी साझेदारी से फायदे की संभावना रहती है।
बुद्ध की सीख: “मन का भोजन विचार हैं” शांत वातावरण में गौतम बुद्ध का एक सत्संग चल रहा था। वहाँ उपस्थित लोगों के चेहरों पर जिज्ञासा झलक रही थी। तभी एक युवक आगे आया और बोला — “तथागत, जब मैं ध्यान करने बैठता हूं तो मन नहीं लगता है।” बुद्ध मुस्कुराए और बोले — “फिर से कहो।” युवक ने वही बात दोहराई — “जब मैं ध्यान करने बैठता हूं तो मन नहीं लगता।” बुद्ध ने फिर कहा — “एक बार और कहो।” युवक ने तीसरी बार भी दोहराया — “ध्यान करने बैठता हूं तो मन नहीं लगता है।”
अब बुद्ध बोले — “मन का भोजन विचार हैं। यदि तुम मन को उसका भोजन देना बंद कर दो, तो मन निष्क्रिय हो जाएगा और तभी सच्चा ध्यान घटेगा।” बुद्ध ने यह बात उस युवक से तीन बार कही। सत्संग में बैठे लोग सोचने लगे कि बुद्ध ने प्रश्न भी तीन बार क्यों सुना और उत्तर भी तीन बार क्यों दिया। यह बात एक व्यक्ति ने बुद्ध से पूछी।
बुद्ध ने शांत स्वर में कहा — “मेरा अनुभव है कि अधिकांश लोग प्रश्न केवल बोलने के लिए पूछते हैं, समझने के लिए नहीं। वे या तो अपनी बुद्धिमत्ता दिखाना चाहते हैं या सिर्फ जिज्ञासा शांत करना चाहते हैं। मैं प्रश्न तीन बार इसलिए सुनता हूं कि यह जान सकूं कि क्या व्यक्ति अपने प्रश्न को जी रहा है या केवल कह रहा है। और उत्तर तीन बार इसलिए देता हूं, ताकि मेरी बात उसके मन में गहराई तक उतर जाए। जब कोई बात बार-बार सुनाई देती है, तब वह मन में स्थायी रूप से बस जाती है।”
इसके बाद बुद्ध ने समझाया — “मन का भोजन विचार हैं। हम हर समय किसी न किसी विचार में उलझे रहते हैं — भविष्य की चिंता, अतीत की यादें, रिश्तों की बातें, सफलता-असफलता की सोच। ये विचार हमारे मन को कभी शांत नहीं होने देते। यदि हम हर दिन कुछ समय के लिए विचारों का प्रवाह रोक दें, तो मन स्वयं शांत हो जाएगा। और जब मन शांत होगा, तभी सच्चा ध्यान संभव होगा।”
बुद्ध की अंतिम सीख: “जो व्यक्ति अपने विचारों पर नियंत्रण पा लेता है, वही अपने जीवन की दिशा भी नियंत्रित कर सकता है। समस्या को समझना ही समाधान की पहली सीढ़ी है। जब युवक ने अपना प्रश्न तीन बार दोहराया, तब वह अपने प्रश्न को महसूस करने लगा — पहली बार कहा, दूसरी बार समझा, तीसरी बार उसने उसे भीतर उतारा।
गोपाष्टमी हिंदू धर्म का एक पावन पर्व है, जो कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार गायों को चराने का कार्य शुरू किया था, इसलिए इसे गोपाष्टमी कहा जाता है। यह पर्व गायों और गोपालक रूपी श्रीकृष्ण की आराधना का दिन माना जाता है।
🌿 गोपाष्टमी का धार्मिक महत्व:
इस दिन गायों और बछड़ों का विशेष पूजन किया जाता है। उन्हें स्नान कराकर फूल, हल्दी, चंदन और गुड़-दूध से पूजा जाता है।
माना जाता है कि गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए गाय की सेवा करने से सभी देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
इस दिन गोमाता की परिक्रमा करने, गौदान (गाय दान) या गायों को हरा चारा खिलाने का विशेष पुण्य माना गया है।
🌼 श्रीकृष्ण और गायों का संबंध:
श्रीकृष्ण का नाम ही “गोपाल” और “गोविंद” पड़ा — जिसका अर्थ है गायों की रक्षा करने वाला और उन्हें आनंद देने वाला।
उन्होंने गोकुल और वृंदावन में अपने बाल्यकाल का अधिकांश समय गायों के साथ बिताया।
श्रीकृष्ण ने सिखाया कि गाय केवल पशु नहीं, बल्कि मातृस्वरूपा है, जो समाज के पोषण और समृद्धि का प्रतीक है।
गोपाष्टमी के अवसर पर मंदिरों, गौशालाओं और घरों में ‘गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो’ के भजन गूंजते हैं, और वातावरण भक्ति और करुणा से भर जाता है।
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Dharm Karm
श्रीकृष्ण जन्मकथा से सीखें सफलता के मंत्र
योजना से मिलती है सफलता
भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के जन्म की पूरी योजना बारीकी से बनाई थी।
संदेश: बड़े लक्ष्य पाने के लिए दूरदृष्टि और योजना बनाकर कार्य करें।
सही व्यक्ति को सही काम सौंपना
योगमाया, वसुदेव और यशोदा को उनकी योग्यता के अनुसार जिम्मेदारी दी गई।
संदेश: हर व्यक्ति की क्षमता अनुसार जिम्मेदारी दें, सफलता निश्चित है।
संकट में धैर्य न छोड़ें
देवकी और वसुदेव ने कारागार में रहते हुए भी भगवान पर विश्वास बनाए रखा।
संदेश: कठिन समय में धैर्य और विश्वास जरूरी है।
सही तालमेल बनाए रखें
समय, स्थान, व्यक्ति और उद्देश्य सभी का सही तालमेल भगवान ने रखा।
संदेश: सफलता के लिए टीमवर्क और तालमेल जरूरी है।
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1 month ago | [YT] | 10
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Dharm Karm
फरीदाबाद में आज से बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की सनातन एकता पदयात्रा प्रवेश कर रही है। यात्रा जिरखोद मंदिर से मांगर कट होते हुए गुरुग्राम रोड से फरीदाबाद आएगी, जिसके चलते पुलिस ने कई रास्ते बंद कर वैकल्पिक मार्ग सुझाए हैं। पाली चौक, बड़खल-पाली मार्ग और NIT दशहरा मैदान सहित कई स्थानों पर यात्रा का विश्राम और भोजन तय है। 9, 10 और 11 नवंबर को यात्रा बल्लभगढ़, सीकरी, पलवल और मितरोल होते हुए आगे बढ़ेगी। ट्रैफिक प्रभावित रहने पर पुलिस ने एडवाइजरी जारी कर हेल्पलाइन नंबर भी दिए हैं।
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1 month ago | [YT] | 4
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Dharm Karm
रामायण के अनुसार, वनवास के दौरान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पंचवटी पहुंचे थे।
वहां उनकी मुलाकात जटायु से हुई, जो एक वृद्ध पक्षी था।
श्रीराम ने जटायु से अत्यंत प्रेमपूर्वक मिलकर सभी को यह सिखाया कि रिश्तों में उम्र, रूप या स्थिति नहीं, बल्कि स्नेह और सम्मान होना चाहिए।
श्रीराम के आगमन से पंचवटी का वातावरण बदल गया — जहां पहले राक्षसों का आतंक था, अब वहां ऋषि-मुनि और पशु-पक्षी शांति और आनंद अनुभव करने लगे।
एक दिन लक्ष्मण ने श्रीराम से पूछा, “माया क्या है?”
श्रीराम ने उत्तर दिया कि माया वहीं तक रहती है, जहां तक मन जाता है।
जब मन इच्छाओं में उलझा रहता है, तो व्यक्ति भ्रम में रहता है;
लेकिन जब मन नियंत्रित होता है, तो ज्ञान और शांति प्राप्त होती है।
श्रीराम ने यह भी कहा कि परिवार में सुख-शांति बनाए रखने के लिए
वैराग्य, ज्ञान और भक्ति की बातें करते रहना चाहिए।
पंचवटी में श्रीराम ने तीन प्रमुख कार्य किए —
जटायु से मिलना, ऋषि-मुनियों और जीव-जंतुओं को आनंद देना,
और अपने परिवार में बैठकर जीवन के गूढ़ विषयों पर चर्चा करना।
श्रीराम की सीख यह है कि जीवन में प्रेम, ज्ञान, और सकारात्मकता बनाए रखना ही सच्चा धर्म है।
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#श्रीरामकीसीख
#रामायणप्रेरणा
#पंचवटी
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#रामलक्ष्मणसीता
2 months ago | [YT] | 0
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Dharm Karm
भगवान राम के 14 साल के वनवास मार्ग पर चल रही मोरारी बापू की ‘मानस रामयात्रा’ बुधवार को किष्किंधा पहुंची। यह देश की पहली ऐसी यात्रा है जो भारत गौरव स्पेशल ट्रेन से चित्रकूट से शुरू हुई है और राम वनगमन पथ के प्रमुख स्थलों से होते हुए रामेश्वरम तक जाएगी। वहां से यात्री विशेष विमान से श्रीलंका जाएंगे और फिर ‘पुष्पक विमान’ की तर्ज पर अयोध्या लौटेंगे।
इस यात्रा में बापू 9 स्थानों पर एक-एक दिन की रामकथा कर रहे हैं। बुधवार को पंपा सरोवर के पास कथा का पांचवां पड़ाव रहा, जहां भगवान राम, लक्ष्मण और हनुमान का मिलन हुआ था। यही वह स्थल है जहां राम-सुग्रीव की मित्रता हुई और बाली-सुग्रीव युद्ध का प्रसंग घटा था।
मोरारी बापू ने इस यात्रा को नाम दिया है — ‘मानस-रामयात्रा’, जिसमें श्रद्धालु सिर्फ कथा ही नहीं सुन रहे बल्कि रामायण से जुड़े स्थलों का साक्षात अनुभव भी ले रहे हैं। यात्रा में देश-विदेश के 411 श्रद्धालु शामिल हैं।
इस ट्रेन के हर कोच को रामायण के पात्रों और स्थलों के नाम दिए गए हैं — जैसे ऋष्यमूक पर्वत, वाल्मीकि आश्रम, अयोध्या, लंका आदि। कोच के बाहर रामकथा प्रसंगों के चित्र लगाए गए हैं, जिससे पूरी ट्रेन ‘राममय’ दिखाई देती है।
चित्रकूट से शुरुआत के बाद यात्रा अगस्त्यमुनि आश्रम, पंचवटी, शबरी आश्रम होते हुए अब किष्किंधा पहुंच चुकी है। आगे के तीन पड़ाव होंगे — रामेश्वरम, श्रीलंका और अयोध्या, जहां 4 नवंबर को यह ऐतिहासिक यात्रा संपन्न होगी।
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#MorariBapu #ManasRamYatra #RamVanGamanPath #RamayanaYatra #Kishkindha
2 months ago | [YT] | 1
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Dharm Karm
🕉️ देव उठनी एकादशी 2025 दो दिन पड़ रही है — आप किस दिन व्रत रखेंगे ?
2 months ago | [YT] | 1
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Dharm Karm
“देव उठनी एकादशी 2025 कब है? 1 या 2 नवंबर — कौन-सा दिन रखें व्रत?”
का स्पष्ट और ज्योतिषीय रूप से सही जवाब 👇
🌺 देव उठनी एकादशी 2025 — तारीख और तिथि
एकादशी तिथि प्रारंभ: 1 नवंबर 2025, शनिवार — सुबह 09:11 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 2 नवंबर 2025, रविवार — सुबह 07:31 बजे
हरि वासर समाप्ति: 2 नवंबर 2025 — दोपहर 12:55 बजे
🕉️ कौन-सा दिन रखें व्रत?
🔹 गृहस्थ लोगों के लिए (सामान्य भक्तों हेतु)
👉 व्रत की तारीख — 1 नवंबर 2025 (शनिवार)
क्योंकि एकादशी तिथि उस दिन सूर्योदय के बाद आरंभ हो जाती है और उदयातिथि की मान्यता के अनुसार व्रत उसी दिन रखा जाता है।
🔹 वैष्णव संप्रदाय या नियमपूर्वक व्रत करने वाले भक्तों के लिए
👉 व्रत की तारीख — 2 नवंबर 2025 (रविवार)
क्योंकि वैष्णव परंपरा में हरि वासर समाप्त होने के बाद ही व्रत किया जाता है।
🕑 व्रत पारण (तोड़ने) का समय
2 नवंबर 2025 को दोपहर 01:11 PM से 03:23 PM तक
(हरि वासर समाप्त होने के बाद पारण किया जाता है।)
⚠️ इस बार की विशेषता
इस बार पूरे दिन “चोर पंचक” रहेगा।
भद्रा काल भी रहेगा, इसलिए पूजा कार्य भद्रा समाप्ति के बाद करना शुभ माना गया है।
यही वह दिन है जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और चातुर्मास समाप्त होता है — यानी सभी शुभ कार्यों की शुरुआत (विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन आदि) इसी दिन से होती है।
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#DevUthaniEkadashi2025
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2 months ago | [YT] | 0
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Dharm Karm
क्या भगवान आपसे खुश हैं? प्रेमानंद महाराज ने बताया पहचानने का सटीक तरीका
हर इंसान की यह चाह होती है कि भगवान उस पर प्रसन्न रहें, उसकी रक्षा करें और जीवन में सुख-शांति बनी रहे। लोग पूजा, दान, भक्ति और साधना जैसे कई उपाय करते हैं ताकि भगवान खुश रहें। लेकिन क्या इन बाहरी कर्मों से ही भगवान की कृपा मिलती है? इस सवाल का सुंदर उत्तर वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचन में दिया।
महाराज का कहना है कि भगवान की प्रसन्नता किसी पूजा या दान से नहीं, बल्कि अच्छे कर्म, सच्चे मन और भक्ति से मिलती है। उन्होंने कहा कि जब मन शांत हो, दूसरों के लिए दया का भाव जागे और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले, तो समझना चाहिए कि भगवान प्रसन्न हैं।
भगवान की प्रसन्नता के संकेत
मन में पवित्रता का अनुभव:
जब हमारे विचार सकारात्मक होने लगें और दूसरों के लिए प्रेम और करुणा बढ़ने लगे, तो यह इस बात का संकेत है कि भगवान हमसे खुश हैं।
सत्संग और धार्मिक रुचि का बढ़ना:
जब संतों की संगत अच्छी लगने लगे, धार्मिक बातें सुनने में आनंद आने लगे और मन बुरे कर्मों से खुद ही दूर भागने लगे — तो यह भगवान की कृपा का सबसे बड़ा संकेत है।
भलाई में आनंद मिलना:
जब हमें किसी गरीब, असहाय या पशु-पक्षी की मदद करने में आत्मिक सुख मिले, तो समझिए भगवान हमारे भीतर ही निवास कर रहे हैं।
प्रेमानंद महाराज कहते हैं — “भगवान को खुश करने के लिए दिखावे की जरूरत नहीं, बल्कि सच्चे मन, सही आचरण और प्रेम से जुड़ना जरूरी है।”
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#PremanandMaharaj #Bhakti #GodIsHappyOrAngry #SpiritualWisdom #SanatanDharma #Motivation #Vrindavan
2 months ago | [YT] | 0
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Dharm Karm
जब आपकी कुंडली में सूर्य सातवें भाव में होता है, तो इसका असर आपके रिश्तों, विवाह और साझेदारी पर सबसे अधिक दिखाई देता है।
ज्योतिष शास्त्र में सातवां भाव वैवाहिक जीवन, सार्वजनिक संबंध और बिजनेस पार्टनरशिप का घर माना जाता है।
सूर्य यहां आकर आपके व्यक्तित्व में आत्मविश्वास, नेतृत्व और प्रभावशाली छवि लाता है। लेकिन अगर इसकी स्थिति कमजोर या अशुभ हो, तो यही आत्मविश्वास अहंकार और रिश्तों में टकराव का कारण बन सकता है।
इस स्थिति में व्यक्ति अक्सर अपने पार्टनर पर हावी होने की प्रवृत्ति रखता है, जिससे वैवाहिक या व्यावसायिक संबंधों में मतभेद पनप सकते हैं। वहीं, अगर सूर्य शुभ और मजबूत हो, तो व्यक्ति को समाज में मान-सम्मान, स्थिर वैवाहिक जीवन और लाभकारी साझेदारी मिलती है।
☀️ सातवें भाव में सूर्य के सकारात्मक प्रभाव:
वैवाहिक सुख और तालमेल – मजबूत सूर्य रिश्तों में सामंजस्य और समझ बढ़ाता है।
सामाजिक प्रतिष्ठा – व्यक्ति समाज में मान-सम्मान और पहचान प्राप्त करता है।
नेतृत्व क्षमता – निर्णय लेने और रिश्तों को दिशा देने की योग्यता बढ़ती है।
साझेदारी में लाभ – बिजनेस या करियर संबंधी साझेदारी से फायदे की संभावना रहती है।
आत्मविश्वास और आकर्षण – व्यक्तित्व में प्रभाव और आत्मबल झलकता है।
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2 months ago | [YT] | 0
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Dharm Karm
बुद्ध की सीख: “मन का भोजन विचार हैं”
शांत वातावरण में गौतम बुद्ध का एक सत्संग चल रहा था। वहाँ उपस्थित लोगों के चेहरों पर जिज्ञासा झलक रही थी। तभी एक युवक आगे आया और बोला —
“तथागत, जब मैं ध्यान करने बैठता हूं तो मन नहीं लगता है।”
बुद्ध मुस्कुराए और बोले — “फिर से कहो।”
युवक ने वही बात दोहराई — “जब मैं ध्यान करने बैठता हूं तो मन नहीं लगता।”
बुद्ध ने फिर कहा — “एक बार और कहो।”
युवक ने तीसरी बार भी दोहराया — “ध्यान करने बैठता हूं तो मन नहीं लगता है।”
अब बुद्ध बोले —
“मन का भोजन विचार हैं। यदि तुम मन को उसका भोजन देना बंद कर दो, तो मन निष्क्रिय हो जाएगा और तभी सच्चा ध्यान घटेगा।”
बुद्ध ने यह बात उस युवक से तीन बार कही।
सत्संग में बैठे लोग सोचने लगे कि बुद्ध ने प्रश्न भी तीन बार क्यों सुना और उत्तर भी तीन बार क्यों दिया।
यह बात एक व्यक्ति ने बुद्ध से पूछी।
बुद्ध ने शांत स्वर में कहा —
“मेरा अनुभव है कि अधिकांश लोग प्रश्न केवल बोलने के लिए पूछते हैं, समझने के लिए नहीं। वे या तो अपनी बुद्धिमत्ता दिखाना चाहते हैं या सिर्फ जिज्ञासा शांत करना चाहते हैं।
मैं प्रश्न तीन बार इसलिए सुनता हूं कि यह जान सकूं कि क्या व्यक्ति अपने प्रश्न को जी रहा है या केवल कह रहा है।
और उत्तर तीन बार इसलिए देता हूं, ताकि मेरी बात उसके मन में गहराई तक उतर जाए। जब कोई बात बार-बार सुनाई देती है, तब वह मन में स्थायी रूप से बस जाती है।”
इसके बाद बुद्ध ने समझाया —
“मन का भोजन विचार हैं। हम हर समय किसी न किसी विचार में उलझे रहते हैं — भविष्य की चिंता, अतीत की यादें, रिश्तों की बातें, सफलता-असफलता की सोच।
ये विचार हमारे मन को कभी शांत नहीं होने देते।
यदि हम हर दिन कुछ समय के लिए विचारों का प्रवाह रोक दें, तो मन स्वयं शांत हो जाएगा।
और जब मन शांत होगा, तभी सच्चा ध्यान संभव होगा।”
बुद्ध की अंतिम सीख:
“जो व्यक्ति अपने विचारों पर नियंत्रण पा लेता है, वही अपने जीवन की दिशा भी नियंत्रित कर सकता है।
समस्या को समझना ही समाधान की पहली सीढ़ी है।
जब युवक ने अपना प्रश्न तीन बार दोहराया, तब वह अपने प्रश्न को महसूस करने लगा — पहली बार कहा, दूसरी बार समझा, तीसरी बार उसने उसे भीतर उतारा।
फिर जब बुद्ध ने तीन बार उत्तर दिया, तो समाधान भी उसके मन में गहराई तक उतर गया।
यही ध्यान की सच्ची शुरुआत थी — मन को विचारों से मुक्त करने की प्रक्रिया।”
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2 months ago | [YT] | 1
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Dharm Karm
गोपाष्टमी हिंदू धर्म का एक पावन पर्व है, जो कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार गायों को चराने का कार्य शुरू किया था, इसलिए इसे गोपाष्टमी कहा जाता है। यह पर्व गायों और गोपालक रूपी श्रीकृष्ण की आराधना का दिन माना जाता है।
🌿 गोपाष्टमी का धार्मिक महत्व:
इस दिन गायों और बछड़ों का विशेष पूजन किया जाता है। उन्हें स्नान कराकर फूल, हल्दी, चंदन और गुड़-दूध से पूजा जाता है।
माना जाता है कि गाय में सभी देवी-देवताओं का वास होता है, इसलिए गाय की सेवा करने से सभी देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।
इस दिन गोमाता की परिक्रमा करने, गौदान (गाय दान) या गायों को हरा चारा खिलाने का विशेष पुण्य माना गया है।
🌼 श्रीकृष्ण और गायों का संबंध:
श्रीकृष्ण का नाम ही “गोपाल” और “गोविंद” पड़ा — जिसका अर्थ है गायों की रक्षा करने वाला और उन्हें आनंद देने वाला।
उन्होंने गोकुल और वृंदावन में अपने बाल्यकाल का अधिकांश समय गायों के साथ बिताया।
श्रीकृष्ण ने सिखाया कि गाय केवल पशु नहीं, बल्कि मातृस्वरूपा है, जो समाज के पोषण और समृद्धि का प्रतीक है।
गोपाष्टमी के अवसर पर मंदिरों, गौशालाओं और घरों में ‘गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो’ के भजन गूंजते हैं, और वातावरण भक्ति और करुणा से भर जाता है।
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2 months ago | [YT] | 0
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