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कियोमिजू-डेरा मंदिर क्योटो, जापान माउंट ओटोवा के आधे ऊपर, क्योटो की हिगाशियामा पर्वत श्रृंखला की चोटियों में से एक, कियोमिज़ु-डेरा मंदिर है, जो प्रकृति से भरपूर है. ओटोवा-सान कियोमिज़ु-डेरा मंदिर की स्थापना 778 में हुई थी. इसका इतिहास 1250 वर्ष से अधिक पुराना है. इसकी स्थापना के बाद से, अधिकांश इमारतें दस से अधिक बार आग से नष्ट हो चुकी हैं. मंदिर के वफादार लोगों की सहायता के लिए धन्यवाद, उनका बार-बार पुनर्निर्माण किया गया. वर्तमान इमारतों में से अधिकांश का पुनर्निर्माण 1633 में किया गया था.1944 में, कियोमिज़ु-डेरा मंदिर को प्राचीन क्योटो के ऐतिहासिक स्मारकों में से एक के रूप में यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक विरासत सूची में पंजीकृत किया गया था. इस मंदिर की सुंदरता देखने के लिए. वीडियो youtube : Buddha Paradise चैनल पर अंत तक जरूर देखें.
जपान में भगवान बुद्ध के स्तुपों की पालकियों का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.इस उत्सव को जापान में मिकोशी मातसुरी के नाम से जाना जाता हैं. मि + कोशी = भगवान बुद्ध + पालकी याने बुद्ध के प्रतीक स्तूप की पालकी.
यह उत्सव भी बिलकुल उसी समय में मनाया जाता है जब भारत में पालकियां निकलती हैं. नागानो शहर के इस उत्सव पर ब्लॉग आज रिलीज किया है. इस वीडियो को youtube: Buddha Paradise चैनल पर जरूर देखें. नीचे दिए लिंक के जरिए वीडियो अंत तक जरुर देखें और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर भी करें.
पिछले 4 महीनों से जापान में हु और जापान के ऐतिहासिक शहर क्योटो और नारा का 7 दिनों का दौरा हालही में किया. यहां के सुंदर और शांत बुद्ध मंदिरों को देखकर मन को शांति मिल गई . जल्द ही आप सभी के लिए जापान के अधभूत विडियो आयेंगे.... नमो बुद्धाय
हर किसी के प्रति आदरभाव रखना, हर किसी का सम्मान करना यह संस्कृती जापानी समाज में सबसे महत्वपूर्ण मूल्यों में से एक है. आखिर क्या कारण है की जापानी लोग एक दुसरे से प्रेमपूर्ण और शालीन आचरण करते है. उनके शिष्टाचार, परंपरा और संस्कृती में हमेशा नम्रता क्यों होती है?
जापान आज दुनिया में सार्वाधिक विकसित देशों में से एक है , इसके बावजूद जापानी लोगों ने अपने मौलिक शिष्टाचार को आज भी जीवित कैसे रखा है?
क्या जापानी लोग प्राचीन काल से ही ऐसे है या उनके इस व्यवहार पर किसी अन्य संस्कृति का प्रभाव है? जापानी लोग हमेशा से ऐसे नही थे इसी लिए जब हमने जापान के इतिहास में खोज की तो यह सत्य सामने आया की जापान पर भारत की बौद्ध संस्कृति का प्रभाव है.
संपूर्ण जानकारी के लिए वीडियो अंत तक Youtube: Buddha Paradise चैनल पर जरूर देखे.
https://youtu.be/BONsUul90jQ?si=YRis1... हाना मात्सुरी एक बौद्ध उत्सव है जो पूर्वी एशिया में और निश्चित रूप से जापान में भी मनाया जाता है. दरसल यह जापान में मनाया जानेवाला भगवान बुद्ध के जन्मदिन का परंपरागत उत्सव हैं. संपूर्ण ऐतिहासिक विश्लेषण के लिए उपर दिए लिंक के जरिए वीडियो को अंत तक जरूर देखे. - Buddha Paradise
झेनकोजी बुद्ध मंदिर जापान का प्राचीन और प्रसिद्ध महायान मंदिर हैं. झेनकोजी यह नाम दो शब्दों से बना है, झेन+कोजी. कोजी शब्द मूलतः जापनीज है और इसका अर्थ सुख, शांती और समृद्धी होता हैं. वैसे तो कई सारे लोग झेन को भी जापनीज मानते हैं लेकिन यह शब्द काफी लंबी यात्रा करके जापान पहुंचा है. संपूर्ण जानकारी के लिए इस वीडियो को आप उपर दिए लिंक के जरिए अंत तक जरूर देखें. अगर आपको यह वीडियो पसंद आए तो ज्यादा से ज्यादा लोगो तक जरूर शेयर करे.
नमस्कार... नमो बुद्धाय जापान के शिंतो धर्म ने भारत के बौद्ध धर्म को अपने धर्म में प्राचीन काल में ही स्थान दिया है. शाकुसोंजी पहाड़ पर मौजुद मंदिर का यह पहला ब्लॉग है. यह ब्लॉग ऐसे सीजन में बना है जब जापान में सकुरा ऋतु चल रहा है. नीचे दिए लिंक के जरिए आप इस विडियो को अंत तक जरूर देखे और ज्यादा से ज्यादा लोगो तक शेयर करे.
20 अगस्त, जेम्स प्रिंसेप की 224 वी जंयती हैं. उन्हे " फादर ऑफ इंडियन एपिग्राफी" कहा जाता हैं. आज जो बौद्धकालीन इतिहास दुनिया देख रही हैं उसका भारत में पुनरूत्थान इसी महापुरुषने सर्वप्रथम प्राचीन धम्मलिपी को पढकर किया है.
17 वी सदी तक भारत में बौद्ध कालीन इतिहास को भुला दिया था. प्राचीन बौद्ध गुफाओं को पांडव गुफा और अशोक स्तंभ को भीम की गधा नाम से अप प्रचार भारतीय पुरोहित करते थे. भारत की इस प्राचीन लिपि को पढ़ने का प्रयास मुगलों ने भी किया था, लेकिन यहा के पुरोहितों ने नकली गपोडपंती किताब लिखकर अनेक भ्रांतीया फैलाई थी. भारत में ऐसा कोई विद्वान नही था जो इस लिपि को सही पढ़ सके.
20 अगस्त 1799 में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान का जन्म ब्रिटेन में हुआ जिसने भारत का इतिहास और भूगोल ही बदल दिया. जेम्स प्रिंसेप परक मास्टर के काम हेतु भारत आए और उनकी विशेष रुचि प्राचीन सिक्को के प्रति थी. वह भारत में अनेक प्राचीन अभिलेख पत्थरों लिखे हुऐ देखते थे लेकिन उसे पढ़ानेवाला कोई भारत में नही था. उन्होने प्राचीन इंडो ग्रीक सिक्कों का बारीकी से अध्ययन किया और सर्वप्रथम दानं (𑀤𑀸𑀦𑀁) शब्द को पढ़ा और आगे चलकर देवनापीय ( 𑀤𑁂𑀯𑀦𑀸𑀧𑀺𑀬) शब्द भी पढ़ लिया.
जेम्स प्रिसेप ने 1838 में धम्मलीपी को इंडो ग्रीक सिक्कों के जरिए संपूर्णता पढ़ लिया और उसकी वर्णमाला भी बनाई. इन सिक्को पर रोमन और धम्मलीपी में प्राचीन ग्रीक बौद्ध राजाओं का वर्णन था, इसी तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर उन्होंने धम्मलीपी को डिकोड किया. उन्हे नही पता था की देवानापीय कौन है? उन्हे लगा की यह बुद्ध का ही नाम हो सकता है. उन्हे लिपि तो समझ आई लेकिन उसकी भाषा नही पता थी. इस पर उनकी सहायता श्रीलंका में मौजूद उनके मित्र पाली भाषा के विद्वान मिस्टर टर्नर ने की जो राजवंश ग्रंथ का अध्ययन कर रहे थे.
इस प्रकार जेम्स प्रिंसेप ने पूरी दुनिया के सामने प्राचीन बौद्घमय भारत का इतिहास रखा और भुलाए गए महान राजा सम्राट अशोक के इतिहास का उनारुत्थान किया. दुर्भाग्य से 1838 में एक बीमारी के कारण उनकी लंदन में मृत्यु हुई. लेकिन उन्होंने अब संशोधन करने के लिए एक नया लिपि का हथियार दिया था, जिसपर अलेक्जेंडर कनिंगम जैसे विद्वानों ने यह साबित कर दिया की भारत बुद्ध की भूमि है..... भारत के कण कण में बुद्ध की निशानियां मौजूद है....क्युकी बुद्ध सत्य हैं.
अगर जेम्स प्रिंसिप 10 साल भी जीवित होते तो भारत का इतिहास कुछ और होता. क्युकी उनके मृत्यु बाद भारत के जातिवादी इतिहासकारो ने इस लिपि को "ब्राह्मी" नाम दिया. सम्राट अशोक के अनेक अभिलेखों में इस लिपि का स्पष्ट उल्लेख "धम्मलीपी" लिखा हुआ हैं. अजीब बात तो यह है की, ब्राह्मी को हम इस लिपि में लिख ही नहीं सकते. अगर लिखने का प्रयास किया तो इसका उच्चारण "बुम्मी" ऐसा होता हैं.
मैं उम्मीद करता हु की बहुजन अपना इतिहास स्वयं जान ले, स्वयं पढ़े. इसी लिए मैने धम्मलीपी को अनेक बौद्घ गुफाओं में पढ़ाया हैं. आप भी बिल्कुल मुफ्त में घर बैठे आप सिख सकते है. धम्मलीपी तथा जेम्स प्रिंसेप पर मैने डॉक्यूमेंट्री बनाई है उसे आप जरूर देखे. इसकी लिंक मैने डिस्क्रिप्शन में दी हैं.
मैं अगले छह महीनों के लिए जापान जा रहा हुं. क्या Buddha Paradise टीम को जापान की बौद्ध संस्कृती और जापान के विभिन्न आधुनिक जगह को ब्लॉग के जरिए उजागर करना चाहिए या हमेशा की तरह डॉक्यूमेंट्री वीडियो जारी रखने चहिए? अपना सुझाव दे.
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My Journey to the heaven of eastern kyoto city of Japan. Watch the video till end
https://youtu.be/hvo5UoFTEcE?si=pA7xo...
5 months ago | [YT] | 83
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https://youtu.be/ADdbm-ZrYcg?si=edP3f...
कियोमिजू-डेरा मंदिर क्योटो, जापान
माउंट ओटोवा के आधे ऊपर, क्योटो की हिगाशियामा पर्वत श्रृंखला की चोटियों में से एक, कियोमिज़ु-डेरा मंदिर है, जो प्रकृति से भरपूर है. ओटोवा-सान कियोमिज़ु-डेरा मंदिर की स्थापना 778 में हुई थी. इसका इतिहास 1250 वर्ष से अधिक पुराना है.
इसकी स्थापना के बाद से, अधिकांश इमारतें दस से अधिक बार आग से नष्ट हो चुकी हैं. मंदिर के वफादार लोगों की सहायता के लिए धन्यवाद, उनका बार-बार पुनर्निर्माण किया गया. वर्तमान इमारतों में से अधिकांश का पुनर्निर्माण 1633 में किया गया था.1944 में, कियोमिज़ु-डेरा मंदिर को प्राचीन क्योटो के ऐतिहासिक स्मारकों में से एक के रूप में यूनेस्को की विश्व सांस्कृतिक विरासत सूची में पंजीकृत किया गया था.
इस मंदिर की सुंदरता देखने के लिए. वीडियो youtube : Buddha Paradise चैनल पर अंत तक जरूर देखें.
- उमाकांत माने
7 months ago | [YT] | 157
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जपान में भगवान बुद्ध के स्तुपों की पालकियों का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.इस उत्सव को जापान में मिकोशी मातसुरी के नाम से जाना जाता हैं. मि + कोशी = भगवान बुद्ध + पालकी याने बुद्ध के प्रतीक स्तूप की पालकी.
यह उत्सव भी बिलकुल उसी समय में मनाया जाता है जब भारत में पालकियां निकलती हैं. नागानो शहर के इस उत्सव पर ब्लॉग आज रिलीज किया है. इस वीडियो को youtube: Buddha Paradise चैनल पर जरूर देखें. नीचे दिए लिंक के जरिए वीडियो अंत तक जरुर देखें और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शेयर भी करें.
https://youtu.be/_xqsp_ROmaQ?si=2GK2h...
-उमाकांत माने
7 months ago | [YT] | 697
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पिछले 4 महीनों से जापान में हु और जापान के ऐतिहासिक शहर क्योटो और नारा का 7 दिनों का दौरा हालही में किया. यहां के सुंदर और शांत बुद्ध मंदिरों को देखकर मन को शांति मिल गई . जल्द ही आप सभी के लिए जापान के अधभूत विडियो आयेंगे.... नमो बुद्धाय
- उमाकांत माने
8 months ago | [YT] | 862
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हर किसी के प्रति आदरभाव रखना, हर किसी का सम्मान करना यह संस्कृती जापानी समाज में सबसे महत्वपूर्ण मूल्यों में से एक है. आखिर क्या कारण है की जापानी लोग एक दुसरे से प्रेमपूर्ण और शालीन आचरण करते है. उनके शिष्टाचार, परंपरा और संस्कृती में हमेशा नम्रता क्यों होती है?
जापान आज दुनिया में सार्वाधिक विकसित देशों में से एक है , इसके बावजूद जापानी लोगों ने अपने मौलिक शिष्टाचार को आज भी जीवित कैसे रखा है?
क्या जापानी लोग प्राचीन काल से ही ऐसे है या उनके इस व्यवहार पर किसी अन्य संस्कृति का प्रभाव है? जापानी लोग हमेशा से ऐसे नही थे इसी लिए जब हमने जापान के इतिहास में खोज की तो यह सत्य सामने आया की जापान पर भारत की बौद्ध संस्कृति का प्रभाव है.
संपूर्ण जानकारी के लिए वीडियो अंत तक Youtube: Buddha Paradise चैनल पर जरूर देखे.
https://youtu.be/oRXI2J82FAI?si=k30X6...
- Umakant Mane
9 months ago | [YT] | 607
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https://youtu.be/BONsUul90jQ?si=YRis1...
हाना मात्सुरी एक बौद्ध उत्सव है जो पूर्वी एशिया में और निश्चित रूप से जापान में भी मनाया जाता है. दरसल यह जापान में मनाया जानेवाला भगवान बुद्ध के जन्मदिन का परंपरागत उत्सव हैं. संपूर्ण ऐतिहासिक विश्लेषण के लिए उपर दिए लिंक के जरिए वीडियो को अंत तक जरूर देखे.
- Buddha Paradise
10 months ago | [YT] | 236
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https://youtu.be/tM0gSWTVIpM?si=dbrg8...
झेनकोजी बुद्ध मंदिर जापान का प्राचीन और प्रसिद्ध महायान मंदिर हैं. झेनकोजी यह नाम दो शब्दों से बना है, झेन+कोजी. कोजी शब्द मूलतः जापनीज है और इसका अर्थ सुख, शांती और समृद्धी होता हैं. वैसे तो कई सारे लोग झेन को भी जापनीज मानते हैं लेकिन यह शब्द काफी लंबी यात्रा करके जापान पहुंचा है. संपूर्ण जानकारी के लिए इस वीडियो को आप उपर दिए लिंक के जरिए अंत तक जरूर देखें. अगर आपको यह वीडियो पसंद आए तो ज्यादा से ज्यादा लोगो तक जरूर शेयर करे.
- Umakant Mane, Japan
11 months ago | [YT] | 183
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नमस्कार... नमो बुद्धाय
जापान के शिंतो धर्म ने भारत के बौद्ध धर्म को अपने धर्म में प्राचीन काल में ही स्थान दिया है. शाकुसोंजी पहाड़ पर मौजुद मंदिर का यह पहला ब्लॉग है. यह ब्लॉग ऐसे सीजन में बना है जब जापान में सकुरा ऋतु चल रहा है. नीचे दिए लिंक के जरिए आप इस विडियो को अंत तक जरूर देखे और ज्यादा से ज्यादा लोगो तक शेयर करे.
https://youtu.be/nCUm9u07sx4?si=1VF8X...
1 year ago | [YT] | 123
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जेम्स प्रिंसेप जयंती की शुभ कामनाएं......
20 अगस्त, जेम्स प्रिंसेप की 224 वी जंयती हैं. उन्हे " फादर ऑफ इंडियन एपिग्राफी" कहा जाता हैं. आज जो बौद्धकालीन इतिहास दुनिया देख रही हैं उसका भारत में पुनरूत्थान इसी महापुरुषने सर्वप्रथम प्राचीन धम्मलिपी को पढकर किया है.
17 वी सदी तक भारत में बौद्ध कालीन इतिहास को भुला दिया था. प्राचीन बौद्ध गुफाओं को पांडव गुफा और अशोक स्तंभ को भीम की गधा नाम से अप प्रचार भारतीय पुरोहित करते थे. भारत की इस प्राचीन लिपि को पढ़ने का प्रयास मुगलों ने भी किया था, लेकिन यहा के पुरोहितों ने नकली गपोडपंती किताब लिखकर अनेक भ्रांतीया फैलाई थी. भारत में ऐसा कोई विद्वान नही था जो इस लिपि को सही पढ़ सके.
20 अगस्त 1799 में जेम्स प्रिंसेप नामक विद्वान का जन्म ब्रिटेन में हुआ जिसने भारत का इतिहास और भूगोल ही बदल दिया. जेम्स प्रिंसेप परक मास्टर के काम हेतु भारत आए और उनकी विशेष रुचि प्राचीन सिक्को के प्रति थी. वह भारत में अनेक प्राचीन अभिलेख पत्थरों लिखे हुऐ देखते थे लेकिन उसे पढ़ानेवाला कोई भारत में नही था. उन्होने प्राचीन इंडो ग्रीक सिक्कों का बारीकी से अध्ययन किया और सर्वप्रथम दानं (𑀤𑀸𑀦𑀁) शब्द को पढ़ा और आगे चलकर देवनापीय ( 𑀤𑁂𑀯𑀦𑀸𑀧𑀺𑀬) शब्द भी पढ़ लिया.
जेम्स प्रिसेप ने 1838 में धम्मलीपी को इंडो ग्रीक सिक्कों के जरिए संपूर्णता पढ़ लिया और उसकी वर्णमाला भी बनाई. इन सिक्को पर रोमन और धम्मलीपी में प्राचीन ग्रीक बौद्ध राजाओं का वर्णन था, इसी तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर उन्होंने धम्मलीपी को डिकोड किया. उन्हे नही पता था की देवानापीय कौन है? उन्हे लगा की यह बुद्ध का ही नाम हो सकता है. उन्हे लिपि तो समझ आई लेकिन उसकी भाषा नही पता थी. इस पर उनकी सहायता श्रीलंका में मौजूद उनके मित्र पाली भाषा के विद्वान मिस्टर टर्नर ने की जो राजवंश ग्रंथ का अध्ययन कर रहे थे.
इस प्रकार जेम्स प्रिंसेप ने पूरी दुनिया के सामने प्राचीन बौद्घमय भारत का इतिहास रखा और भुलाए गए महान राजा सम्राट अशोक के इतिहास का उनारुत्थान किया. दुर्भाग्य से 1838 में एक बीमारी के कारण उनकी लंदन में मृत्यु हुई. लेकिन उन्होंने अब संशोधन करने के लिए एक नया लिपि का हथियार दिया था, जिसपर अलेक्जेंडर कनिंगम जैसे विद्वानों ने यह साबित कर दिया की भारत बुद्ध की भूमि है..... भारत के कण कण में बुद्ध की निशानियां मौजूद है....क्युकी बुद्ध सत्य हैं.
अगर जेम्स प्रिंसिप 10 साल भी जीवित होते तो भारत का इतिहास कुछ और होता. क्युकी उनके मृत्यु बाद भारत के जातिवादी इतिहासकारो ने इस लिपि को "ब्राह्मी" नाम दिया. सम्राट अशोक के अनेक अभिलेखों में इस लिपि का स्पष्ट उल्लेख "धम्मलीपी" लिखा हुआ हैं.
अजीब बात तो यह है की, ब्राह्मी को हम इस लिपि में लिख ही नहीं सकते. अगर लिखने का प्रयास किया तो इसका उच्चारण "बुम्मी" ऐसा होता हैं.
मैं उम्मीद करता हु की बहुजन अपना इतिहास स्वयं जान ले, स्वयं पढ़े. इसी लिए मैने धम्मलीपी को अनेक बौद्घ गुफाओं में पढ़ाया हैं. आप भी बिल्कुल मुफ्त में घर बैठे आप सिख सकते है. धम्मलीपी तथा जेम्स प्रिंसेप पर मैने डॉक्यूमेंट्री बनाई है उसे आप जरूर देखे. इसकी लिंक मैने डिस्क्रिप्शन में दी हैं.
https://youtu.be/WuWYxZb5kFU?si=K0r-W...
- Umakant Mane
1 year ago (edited) | [YT] | 136
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मैं अगले छह महीनों के लिए जापान जा रहा हुं. क्या Buddha Paradise टीम को जापान की बौद्ध संस्कृती और जापान के विभिन्न आधुनिक जगह को ब्लॉग के जरिए उजागर करना चाहिए या हमेशा की तरह डॉक्यूमेंट्री वीडियो जारी रखने चहिए? अपना सुझाव दे.
1 year ago | [YT] | 87
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