The #Mahaparinirvan_Diwas 2025, which marks the 70th death anniversary of #Babasaheb Dr. B.R.Ambedkar, will be observed by the Dr. #Ambedkar Foundation (DAF) on behalf of the Union Ministry of #Social_Justice and Empowerment at Prerna Sthal, Parliament House Complex, on December 6, 2025. #BRSSM_SONBHADRA
पूर्व रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार को संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
मुख्य बिंदु
संघ लोक सेवा आयोग
संघ लोक सेवा आयोग’ (UPSC) एक संवैधानिक निकाय है। भारतीय संविधान के भाग XIV में अनुच्छेद 315 से अनुच्छेद 323 के तहत संघ लोक सेवा आयोग की संरचना, उसके सदस्यों की नियुक्ति और निष्कासन तथा संघ लोक सेवा आयोग की शक्तियों और कार्यों से संबंधित प्रावधान किये गए हैं।
सदस्यों की नियुक्ति: UPSC के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
कार्यालय: UPSC का कोई भी सदस्य छह साल की अवधि के लिये या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर रहेगा।
पुनर्नियुक्ति: कोई भी व्यक्ति जो एक बार लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में पद धारण कर चुका है अपने कार्यालय में पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।
त्यागपत्र: संघ लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य भारत के राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र देकर अपने पद से इस्तीफा दे सकता है।
सदस्यों का निष्कासन/निलंबन: संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को भारत के राष्ट्रपति के आदेश से ही उसके पद से हटाया जाएगा।
राष्ट्रपति अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को उसके कार्यालय पूर्ण होने से पूर्व भी निलंबित कर सकता है, जिसके संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का संदर्भ दिया गया है।
पदच्युत: UPSC के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को हटाया जा सकता है यदि वह:
दिवालिया घोषित किया गया है।
अपने कार्यकाल के दौरान कार्यालय के कर्तव्यों के बाहर किसी भी भुगतान वाले रोजगार में संलग्न होता है।
राष्ट्रपति की राय में मानसिक या शरीर की दुर्बलता के कारण पद पर बने रहने के लिये अयोग्य है।
सेवा की शर्तों को विनियमित करना: UPSC के मामले में भारत के राष्ट्रपति की शक्ति:
आयोग के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तें निर्धारित करता है।
आयोग के कर्मचारियों की संख्या और उनकी सेवा शर्तों के संबंध में प्रावधान करता है।
शक्तियों पर प्रतिबंध: UPSC के सदस्यों की सेवा शर्तों में नियुक्ति के बाद किसी भी प्रकार का संशोधन नहीं किया जाएगा।
कार्यों का विस्तार करने की शक्ति: किसी राज्य का विधानमंडल संघ लोक सेवा आयोग या SPSC द्वारा संघ या राज्य की सेवाओं के संबंध में और कानून अथवा किसी सार्वजनिक संस्था द्वारा गठित किसी भी स्थानीय प्राधिकरण या अन्य निकाय कॉर्पोरेट की सेवाओं के संबंध में अतिरिक्त कार्यों के अभ्यास के हेतु प्रावधान कर सकता है।
व्यय: आयोग के सदस्यों या कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और पेंशन सहित UPSC का खर्च भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से लिया जाता है।
रिपोर्ट प्रस्तुत करना: UPSC भारत के राष्ट्रपति को आयोग द्वारा किये गए कार्यों की एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
जिन मामलों में आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई हो उन मामलों के संदर्भ में राष्ट्रपति को ज्ञापन प्रस्तुत करना होता है।
अस्वीकृति के कारणों को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व संसद के प्रत्येक सदन (Parliament) के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।
किसी का पक्ष लेना और उसे ठीक से प्रस्तुत करना आम बोलचाल की भाषा में 'किसी की वकालत करना' कहलाता है. भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर एक जाने माने वकील भी थे. उन्होंने न केवल अपने मुवक्किलों के लिए वकालत की बल्कि समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के लोकतांत्रिक मूल्यों की भी वकालत की. इसलिए, उनकी गिनती आज भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वकीलों में होती है.
डॉ. आंबेडकर ने एक लक्ष्य को ध्यान में रखकर क़ानून की पढ़ाई की. उन्होंने जीवनभर उसी लक्ष्य के साथ काम किया.
उन्होंने वकालत का पेशा पेशेवर उत्कृष्टता या उन्नति के लिए नहीं बल्कि उस दौर में भारत के लगभग छह करोड़ अछूतों और दबे-कुचले दलितों को न्याय दिलाने के लिए चुना था.
14 अप्रैल की उनकी जन्मतिथि के मौके पर हम आपको बताते हैं कि वे वकील कैसे बने और उन्होंने अपने मुवक्किलों के लिए कौन से प्रमुख मामले में पैरवी की और उन मामलों का नतीजा क्या रहा. बाबा साहेब की शिक्षा
1913 में बाबा साहेब बॉम्बे के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय चले गए थे. इसके लिए उन्हें बड़ौदा के सयाजीराव गायकवाड़ महाराज ने आर्थिक मदद मिली थी यह आर्थिक मदद के बदले में उन्हें बड़ौदा के राजपरिवार के साथ एक अनुबंध करना पड़ा था कि अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें बड़ौदा सरकार के अधीन नौकरी करनी थी.
साल 1913 में वे अमेरिका पहुंचे. अमेरिका में उनका परिचय दुनिया भर के विभिन्न विचारकों और उनकी विचारधाराओं से हुआ. उससे उनके सामने जीवन का लक्ष्य स्पष्ट हो गया था. अमेरिका में पढ़ाई के दौरान कई जगहों पर इस बात का ज़िक्र मिलता है कि वे 18-18 घंटे तक पढ़ाई किया करते थे.
इस अवधि के दौरान उन्होंने अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, एथिक्स और मानवविज्ञान का अध्ययन किया. 1915 में 'भारत का प्राचीन व्यापार' विषय पर थीसिस प्रस्तुत करने के बाद उन्होंने एमए की डिग्री हासिल की. 1916 में उन्होंने 'भारत का राष्ट्रीय लाभांश' थीसिस प्रस्तुत की.
डॉ. आंबेडकर जितना पढ़ रहे थे, उतना ही उनके पढ़ने और जानने की भूख बढ़ रही थी. उन्होंने बड़ौदा के महाराज सायाजीराव गायकवाड़ से आगे की पढ़ाई करने की अनुमति मांगी. उन्हें वह अनुमति मिल भी गई.
इसके बाद वो अर्थशास्त्र और क़ानून की उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए लंदन पहुंचे. उन्होंने अर्थशास्त्र में शिक्षा के लिए लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनामिक्स में दाख़िला लिया, जबकि क़ानून की पढ़ाई के लिए ग्रेज़ इन में नामांकन लिया.
1917 में, बड़ौदा सरकार की छात्रवृत्ति समाप्त हो गई और अफ़सोस के साथ उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. इस बीच उनके परिवार को आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था. इस स्थिति को देखते हुए ही आंबेडकर ने भारत लौटने का फ़ैसला लिया था.
अनुबंध के मुताबिक उन्होंने बड़ौदा सरकार के लिए काम करना शुरू कर दिया. वहां उन्हें अन्य कर्मचारियों से अत्यधिक जातिगत भेदभाव सहना पड़ता था. यहां तक कि बड़ौदा में रहने के लिए जगह ढूंढने में भी उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. फिर उन्होंने बंबई वापस लौटने का फ़ैसला किया.
बड़ौदा सरकार के साथ काम करने के अपने अनुभव के बारे में आंबेडकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ''मेरे पिता ने मुझे पहले ही कह दिया था कि इस जगह काम मत करना. शायद उन्हें इस बात का अंदाज़ा था कि वहां मेरे साथ कैसा व्यवहार होगा.''
दलितों के उत्थान के लिए काम
वर्ष 1917 के अंत में आंबेडकर बंबई पहुंचे. वहां उन्होंने सिडेनहैम कॉलेज में प्रोफ़ेसर पद के लिए आवेदन किया. कहने की ज़रूरत नहीं है कि वे वहां जल्दी ही लोकप्रिय प्रोफ़ेसर हो गए. वे हमेशा बड़ी तैयारी के साथ पढ़ाने के लिए जाते थे. उनकी तैयारी ऐसी होती थी कक्षा से बाहर के छात्र भी उनके लेक्चर सुनने के लिए आते थे.
1919 में उन्होंने अछूत समाज की मुश्किलों को साउथबरो कमीशन के सामने प्रस्तुत किया. इस मौके पर उनकी प्रतिभा की झलक सबको दिखी थी. 1920 में उन्होंने अछूतों की दुर्दशा को दुनिया के सामने लाने के उद्देश्य से 'मूकनायक' समाचार पत्र की शुरुआत की और आधिकारिक तौर पर एक तरह से अछूतों की वकालत शुरू की.
लेकिन चूंकि सिडेनहैम कॉलेज की नौकरी सरकारी थी, इसलिए उन पर कई तरह की पाबंदियां भी थीं. इसके चलते ही उन्होंने 1920 में प्रोफ़ेसर पद से त्यागपत्र दे दिया और सीधे दलित मुक्ति के संघर्ष में कूद पड़े.
इसी साल यानी 1920 में मानगांव में जाति बहिष्कृत वर्गों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था. इसमें हिंसा भड़क गई थी. छत्रपति शाहूजी महाराज ने कहा था कि बाबा साहेब शोषितों और वंचितों के नेता होंगे और यह बाद में सच साबित हुआ.
क़ानून की पढ़ाई के लिए जब दोबारा लंदन पहुंचे डॉ. आंबेडकर को अब तक यह एहसास हो गया था कि दलितों से जुड़े मुद्दे बेहद जटिल हैं, इसलिए उस पर काम करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर वकालत करनी होगी और विधायिका में भी उन मुद्दों को ठीक से उठाना होगा. यही सोच कर वे क़ानून की डिग्री हासिल करने दोबारा लंदन पहुंचे.
सितंबर, 1920 में लंदन पहुंचने से पहले ही वे भारत में दलित नेता के तौर पर पहचान बना चुके थे. यानी उन्हें अपनी चुनौती और भूमिका दोनों का एहसास था. इसलिए लंदन में रहने के दौरान उनका झुकाव कभी ड्रामा, ओपेरा, थिएटर जैसी चीज़ों के प्रति नहीं हुआ. वे अपना अधिकतम समय पुस्तकालय में बिताते थे.
क़िफायत से रहने के लिए लंदन में वे हमेशा पैदल चलते थे. खाने पर पैसे ख़र्च ना हों, ये सोच कर वे कई बार भूखे रह जाते थे. लेकिन पढ़ाई पर उनका पूरा ध्यान लगा रहता.
लंदन में बाबा साहेब आंबेडकर के रूममेट होते थे असनाडेकर. वे आंबेडकर से कहते, ''अरे आंबेडकर, रात बहुत हो गई है. कितनी देर तक पढ़ते रहोगे, कब तक जगे रहोगे? अब आराम करो. सो जाओ."
लेफ्टिनेंट धनंजय कीर की लिखी डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर की जीवनी में इसका ज़िक्र मिलता है. आंबडेकर अपने रूममेट को जवाब देते, ''अरे, मेरे पास खाने के लिए पैसे और सोने के लिए समय नहीं है. मुझे अपना कोर्स जल्द से जल्द पूरा करना है. कोई दूसरा रास्ता नहीं है.''
इससे यह पता चलता है कि डॉ. आंबेडकर अपने लक्ष्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध थे.
1922 में क़ानून के सभी पाठ्यक्रम पूरे करने के बाद, उन्हें ग्रेज़ इन में ही बार का सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया गया और आंबेडकर बैरिस्टर बन गये. यहां यह बताना आवश्यक है कि बाबा साहेब ने एक ही समय में दो पाठ्यक्रम पूरे किए थे.
ग्रेज़ इन में कानून की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) में उच्च अर्थशास्त्र की डिग्री भी हासिल की. 1923 में लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स ने उनकी थीसिस को मान्यता दी और उन्हें डॉक्टर ऑफ़ साइंस की उपाधि से सम्मानित किया. एक ही वर्ष में वे डॉक्टर और बैरिस्टर बन गए थे.
भारत में वकालत की शुरुआत
हमारे देश में ऐसे कितने वकील हैं जिनके वकील बनने की सालगिरह मनाई जाती है.
आपको यह जानकर अचरज हो सकता है कि बीते साल भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने डॉ. आंबेडकर के वकील बनने की सौवीं वर्षगांठ मनाई थी.
यह डॉ. आंबेडकर के काम के प्रति श्रद्धांजलि थी हालांकि सौ साल पहले इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्हें खासा संघर्ष करना पड़ा था.
मुंबई के बार काउंसिल की सदस्यता लेने के लिए आवेदन करने तक के पैसे उनके पास नहीं थे. ऐसे में उनके मित्र नवल भथेना ने उन्हें 500 रुपये दिए थे, तब उन्होंने बार काउंसिल की सदस्यता के लिए आवेदन किया था. चार जुलाई, 1923 को उन्हें सदस्यता मिली और पांच जुलाई से उन्होंने वकालत शुरू कर दी.
वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद ब्रिटिश सरकार ने डॉ. आंबेडकर को ढाई हज़ार रुपये महीने की पगार पर ज़िला न्यायाधीश की नौकरी का प्रस्ताव दिया था. जो बेहद आकर्षक था लेकिन उन्होंने वकालत का पेशा ही चुना.
इसके बारे में उन्होंने बहिष्कृत भारत के अपने लेख और अपने भाषणों में इसका ज़िक्र किया है. उनके मुताबिक वे दलितों के हितों के लिए काम करना चाहते थे. उन्होंने इस बारे में स्पष्टता से लिखा है, "मैंने ज़िला न्यायाधीश सहित कोई सरकारी नौकरी स्वीकार नहीं की, क्योंकि स्वतंत्र रूप से वकालत करने में आज़ादी हासिल थी."
यहां ये भी देखना होगा कि हैदराबाद के निज़ाम ने उन्हें राज्य के मुख्य न्यायाधीश के पद की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने उस प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया.
उस दौर में वकालत का पेशा मुख्य तौर पर ऊंची और वर्चस्व रखने वाले जातियों पर आधारित है, क्योंकि उनके मामले मुख्य तौर पर उन्हीं से आते हैं. उन्हें इस बात का अंदाज़ा था लेकिन फिर भी उन्होंने वकालत करने का जोख़िम उठाया.
15 मार्च 2025, बामसेफ के संस्थापक , बहुजन नायक, मान्यवर कांशीराम जी के 91 वें जन्म जयंती के अवसर पर आप सभी मूलनिवासी बहुजनों को हार्दिक बधाईयां. मान्यवर कांशीराम (15 मार्च 1934 – 9 अक्टूबर 2006) भारतीय राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। उन्होंने भारतीय वर्ण व्यवस्था में बहुजनों के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए कार्य किया। उन्होंने दलित शोषित संघर्ष समिति (DS-4), 1971 में अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदायों कर्मचारी महासंघ (बामसेफ) और 1984 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना की।
GENERAL STUDY NUMBER ONE
The #Mahaparinirvan_Diwas 2025, which marks the 70th death anniversary of #Babasaheb Dr. B.R.Ambedkar, will be observed by the Dr. #Ambedkar Foundation (DAF) on behalf of the Union Ministry of #Social_Justice and Empowerment at Prerna Sthal, Parliament House Complex, on December 6, 2025.
#BRSSM_SONBHADRA
#भारतीय_संविधान के शिल्पकार, महान #कानूनविद, महान #अर्थशास्त्री एवं महान #समाज_सुधारक, भारत रत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जी के महापरिनिर्वाण दिवस पर कोटि कोटि नमन🙏🙏🙏 !
#भीमराव_अंबेडकर #महापरिनिर्वाण #ambedkar #ambedkar #bhimraoambedkar
3 weeks ago | [YT] | 2
View 0 replies
GENERAL STUDY NUMBER ONE
#SC_ST_MINORITY_OBC वोटर का पहला घर बसपा ही है क्योंकि बसपा ने ही इस वोटर को उसकी ताकत का एहसास कराया और विधानसभा-लोकसभा भेजा।
"This position has been achieved after great sacrifices. "
#Babasaheb #Ambedkar #Kanshiram #Mayawati #BSP
#FUTURE_INCOMING_GENERATION #Explore #Shere #BSPMission2027
1 month ago | [YT] | 2
View 0 replies
GENERAL STUDY NUMBER ONE
6 months ago | [YT] | 1
View 0 replies
GENERAL STUDY NUMBER ONE
पूर्व रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार को संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
मुख्य बिंदु
संघ लोक सेवा आयोग
संघ लोक सेवा आयोग’ (UPSC) एक संवैधानिक निकाय है। भारतीय संविधान के भाग XIV में अनुच्छेद 315 से अनुच्छेद 323 के तहत संघ लोक सेवा आयोग की संरचना, उसके सदस्यों की नियुक्ति और निष्कासन तथा संघ लोक सेवा आयोग की शक्तियों और कार्यों से संबंधित प्रावधान किये गए हैं।
सदस्यों की नियुक्ति: UPSC के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
कार्यालय: UPSC का कोई भी सदस्य छह साल की अवधि के लिये या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर रहेगा।
पुनर्नियुक्ति: कोई भी व्यक्ति जो एक बार लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में पद धारण कर चुका है अपने कार्यालय में पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।
त्यागपत्र: संघ लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य भारत के राष्ट्रपति को लिखित त्यागपत्र देकर अपने पद से इस्तीफा दे सकता है।
सदस्यों का निष्कासन/निलंबन: संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को भारत के राष्ट्रपति के आदेश से ही उसके पद से हटाया जाएगा।
राष्ट्रपति अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को उसके कार्यालय पूर्ण होने से पूर्व भी निलंबित कर सकता है, जिसके संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का संदर्भ दिया गया है।
पदच्युत: UPSC के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को हटाया जा सकता है यदि वह:
दिवालिया घोषित किया गया है।
अपने कार्यकाल के दौरान कार्यालय के कर्तव्यों के बाहर किसी भी भुगतान वाले रोजगार में संलग्न होता है।
राष्ट्रपति की राय में मानसिक या शरीर की दुर्बलता के कारण पद पर बने रहने के लिये अयोग्य है।
सेवा की शर्तों को विनियमित करना: UPSC के मामले में भारत के राष्ट्रपति की शक्ति:
आयोग के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तें निर्धारित करता है।
आयोग के कर्मचारियों की संख्या और उनकी सेवा शर्तों के संबंध में प्रावधान करता है।
शक्तियों पर प्रतिबंध: UPSC के सदस्यों की सेवा शर्तों में नियुक्ति के बाद किसी भी प्रकार का संशोधन नहीं किया जाएगा।
कार्यों का विस्तार करने की शक्ति: किसी राज्य का विधानमंडल संघ लोक सेवा आयोग या SPSC द्वारा संघ या राज्य की सेवाओं के संबंध में और कानून अथवा किसी सार्वजनिक संस्था द्वारा गठित किसी भी स्थानीय प्राधिकरण या अन्य निकाय कॉर्पोरेट की सेवाओं के संबंध में अतिरिक्त कार्यों के अभ्यास के हेतु प्रावधान कर सकता है।
व्यय: आयोग के सदस्यों या कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और पेंशन सहित UPSC का खर्च भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से लिया जाता है।
रिपोर्ट प्रस्तुत करना: UPSC भारत के राष्ट्रपति को आयोग द्वारा किये गए कार्यों की एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
जिन मामलों में आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई हो उन मामलों के संदर्भ में राष्ट्रपति को ज्ञापन प्रस्तुत करना होता है।
अस्वीकृति के कारणों को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व संसद के प्रत्येक सदन (Parliament) के समक्ष प्रस्तुत करना होगा।
7 months ago | [YT] | 2
View 0 replies
GENERAL STUDY NUMBER ONE
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने पर जस्टिस श्री #भूषण_रामकृष्ण_गवई जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
7 months ago | [YT] | 2
View 0 replies
GENERAL STUDY NUMBER ONE
#बाबा_साहेब #डॉ. #आंबेडकर की #वकालत की दुनिया में कितनी धाक थी?
किसी का पक्ष लेना और उसे ठीक से प्रस्तुत करना आम बोलचाल की भाषा में 'किसी की वकालत करना' कहलाता है. भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर एक जाने माने वकील भी थे. उन्होंने न केवल अपने मुवक्किलों के लिए वकालत की बल्कि समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के लोकतांत्रिक मूल्यों की भी वकालत की. इसलिए, उनकी गिनती आज भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वकीलों में होती है.
डॉ. आंबेडकर ने एक लक्ष्य को ध्यान में रखकर क़ानून की पढ़ाई की. उन्होंने जीवनभर उसी लक्ष्य के साथ काम किया.
उन्होंने वकालत का पेशा पेशेवर उत्कृष्टता या उन्नति के लिए नहीं बल्कि उस दौर में भारत के लगभग छह करोड़ अछूतों और दबे-कुचले दलितों को न्याय दिलाने के लिए चुना था.
14 अप्रैल की उनकी जन्मतिथि के मौके पर हम आपको बताते हैं कि वे वकील कैसे बने और उन्होंने अपने मुवक्किलों के लिए कौन से प्रमुख मामले में पैरवी की और उन मामलों का नतीजा क्या रहा.
बाबा साहेब की शिक्षा
1913 में बाबा साहेब बॉम्बे के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय चले गए थे. इसके लिए उन्हें बड़ौदा के सयाजीराव गायकवाड़ महाराज ने आर्थिक मदद मिली थी
यह आर्थिक मदद के बदले में उन्हें बड़ौदा के राजपरिवार के साथ एक अनुबंध करना पड़ा था कि अमेरिका में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें बड़ौदा सरकार के अधीन नौकरी करनी थी.
साल 1913 में वे अमेरिका पहुंचे. अमेरिका में उनका परिचय दुनिया भर के विभिन्न विचारकों और उनकी विचारधाराओं से हुआ. उससे उनके सामने जीवन का लक्ष्य स्पष्ट हो गया था. अमेरिका में पढ़ाई के दौरान कई जगहों पर इस बात का ज़िक्र मिलता है कि वे 18-18 घंटे तक पढ़ाई किया करते थे.
इस अवधि के दौरान उन्होंने अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, एथिक्स और मानवविज्ञान का अध्ययन किया. 1915 में 'भारत का प्राचीन व्यापार' विषय पर थीसिस प्रस्तुत करने के बाद उन्होंने एमए की डिग्री हासिल की. 1916 में उन्होंने 'भारत का राष्ट्रीय लाभांश' थीसिस प्रस्तुत की.
डॉ. आंबेडकर जितना पढ़ रहे थे, उतना ही उनके पढ़ने और जानने की भूख बढ़ रही थी. उन्होंने बड़ौदा के महाराज सायाजीराव गायकवाड़ से आगे की पढ़ाई करने की अनुमति मांगी. उन्हें वह अनुमति मिल भी गई.
इसके बाद वो अर्थशास्त्र और क़ानून की उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए लंदन पहुंचे. उन्होंने अर्थशास्त्र में शिक्षा के लिए लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनामिक्स में दाख़िला लिया, जबकि क़ानून की पढ़ाई के लिए ग्रेज़ इन में नामांकन लिया.
1917 में, बड़ौदा सरकार की छात्रवृत्ति समाप्त हो गई और अफ़सोस के साथ उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. इस बीच उनके परिवार को आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था. इस स्थिति को देखते हुए ही आंबेडकर ने भारत लौटने का फ़ैसला लिया था.
अनुबंध के मुताबिक उन्होंने बड़ौदा सरकार के लिए काम करना शुरू कर दिया. वहां उन्हें अन्य कर्मचारियों से अत्यधिक जातिगत भेदभाव सहना पड़ता था. यहां तक कि बड़ौदा में रहने के लिए जगह ढूंढने में भी उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. फिर उन्होंने बंबई वापस लौटने का फ़ैसला किया.
बड़ौदा सरकार के साथ काम करने के अपने अनुभव के बारे में आंबेडकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ''मेरे पिता ने मुझे पहले ही कह दिया था कि इस जगह काम मत करना. शायद उन्हें इस बात का अंदाज़ा था कि वहां मेरे साथ कैसा व्यवहार होगा.''
दलितों के उत्थान के लिए काम
वर्ष 1917 के अंत में आंबेडकर बंबई पहुंचे. वहां उन्होंने सिडेनहैम कॉलेज में प्रोफ़ेसर पद के लिए आवेदन किया. कहने की ज़रूरत नहीं है कि वे वहां जल्दी ही लोकप्रिय प्रोफ़ेसर हो गए. वे हमेशा बड़ी तैयारी के साथ पढ़ाने के लिए जाते थे. उनकी तैयारी ऐसी होती थी कक्षा से बाहर के छात्र भी उनके लेक्चर सुनने के लिए आते थे.
1919 में उन्होंने अछूत समाज की मुश्किलों को साउथबरो कमीशन के सामने प्रस्तुत किया. इस मौके पर उनकी प्रतिभा की झलक सबको दिखी थी. 1920 में उन्होंने अछूतों की दुर्दशा को दुनिया के सामने लाने के उद्देश्य से 'मूकनायक' समाचार पत्र की शुरुआत की और आधिकारिक तौर पर एक तरह से अछूतों की वकालत शुरू की.
लेकिन चूंकि सिडेनहैम कॉलेज की नौकरी सरकारी थी, इसलिए उन पर कई तरह की पाबंदियां भी थीं. इसके चलते ही उन्होंने 1920 में प्रोफ़ेसर पद से त्यागपत्र दे दिया और सीधे दलित मुक्ति के संघर्ष में कूद पड़े.
इसी साल यानी 1920 में मानगांव में जाति बहिष्कृत वर्गों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था. इसमें हिंसा भड़क गई थी. छत्रपति शाहूजी महाराज ने कहा था कि बाबा साहेब शोषितों और वंचितों के नेता होंगे और यह बाद में सच साबित हुआ.
क़ानून की पढ़ाई के लिए जब दोबारा लंदन पहुंचे
डॉ. आंबेडकर को अब तक यह एहसास हो गया था कि दलितों से जुड़े मुद्दे बेहद जटिल हैं, इसलिए उस पर काम करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर वकालत करनी होगी और विधायिका में भी उन मुद्दों को ठीक से उठाना होगा. यही सोच कर वे क़ानून की डिग्री हासिल करने दोबारा लंदन पहुंचे.
सितंबर, 1920 में लंदन पहुंचने से पहले ही वे भारत में दलित नेता के तौर पर पहचान बना चुके थे. यानी उन्हें अपनी चुनौती और भूमिका दोनों का एहसास था. इसलिए लंदन में रहने के दौरान उनका झुकाव कभी ड्रामा, ओपेरा, थिएटर जैसी चीज़ों के प्रति नहीं हुआ. वे अपना अधिकतम समय पुस्तकालय में बिताते थे.
क़िफायत से रहने के लिए लंदन में वे हमेशा पैदल चलते थे. खाने पर पैसे ख़र्च ना हों, ये सोच कर वे कई बार भूखे रह जाते थे. लेकिन पढ़ाई पर उनका पूरा ध्यान लगा रहता.
लंदन में बाबा साहेब आंबेडकर के रूममेट होते थे असनाडेकर. वे आंबेडकर से कहते, ''अरे आंबेडकर, रात बहुत हो गई है. कितनी देर तक पढ़ते रहोगे, कब तक जगे रहोगे? अब आराम करो. सो जाओ."
लेफ्टिनेंट धनंजय कीर की लिखी डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर की जीवनी में इसका ज़िक्र मिलता है. आंबडेकर अपने रूममेट को जवाब देते, ''अरे, मेरे पास खाने के लिए पैसे और सोने के लिए समय नहीं है. मुझे अपना कोर्स जल्द से जल्द पूरा करना है. कोई दूसरा रास्ता नहीं है.''
इससे यह पता चलता है कि डॉ. आंबेडकर अपने लक्ष्य के प्रति कितने प्रतिबद्ध थे.
1922 में क़ानून के सभी पाठ्यक्रम पूरे करने के बाद, उन्हें ग्रेज़ इन में ही बार का सदस्य बनने के लिए आमंत्रित किया गया और आंबेडकर बैरिस्टर बन गये. यहां यह बताना आवश्यक है कि बाबा साहेब ने एक ही समय में दो पाठ्यक्रम पूरे किए थे.
ग्रेज़ इन में कानून की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) में उच्च अर्थशास्त्र की डिग्री भी हासिल की. 1923 में लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स ने उनकी थीसिस को मान्यता दी और उन्हें डॉक्टर ऑफ़ साइंस की उपाधि से सम्मानित किया. एक ही वर्ष में वे डॉक्टर और बैरिस्टर बन गए थे.
भारत में वकालत की शुरुआत
हमारे देश में ऐसे कितने वकील हैं जिनके वकील बनने की सालगिरह मनाई जाती है.
आपको यह जानकर अचरज हो सकता है कि बीते साल भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने डॉ. आंबेडकर के वकील बनने की सौवीं वर्षगांठ मनाई थी.
यह डॉ. आंबेडकर के काम के प्रति श्रद्धांजलि थी हालांकि सौ साल पहले इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्हें खासा संघर्ष करना पड़ा था.
मुंबई के बार काउंसिल की सदस्यता लेने के लिए आवेदन करने तक के पैसे उनके पास नहीं थे. ऐसे में उनके मित्र नवल भथेना ने उन्हें 500 रुपये दिए थे, तब उन्होंने बार काउंसिल की सदस्यता के लिए आवेदन किया था. चार जुलाई, 1923 को उन्हें सदस्यता मिली और पांच जुलाई से उन्होंने वकालत शुरू कर दी.
वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद ब्रिटिश सरकार ने डॉ. आंबेडकर को ढाई हज़ार रुपये महीने की पगार पर ज़िला न्यायाधीश की नौकरी का प्रस्ताव दिया था. जो बेहद आकर्षक था लेकिन उन्होंने वकालत का पेशा ही चुना.
इसके बारे में उन्होंने बहिष्कृत भारत के अपने लेख और अपने भाषणों में इसका ज़िक्र किया है. उनके मुताबिक वे दलितों के हितों के लिए काम करना चाहते थे. उन्होंने इस बारे में स्पष्टता से लिखा है, "मैंने ज़िला न्यायाधीश सहित कोई सरकारी नौकरी स्वीकार नहीं की, क्योंकि स्वतंत्र रूप से वकालत करने में आज़ादी हासिल थी."
यहां ये भी देखना होगा कि हैदराबाद के निज़ाम ने उन्हें राज्य के मुख्य न्यायाधीश के पद की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने उस प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया.
उस दौर में वकालत का पेशा मुख्य तौर पर ऊंची और वर्चस्व रखने वाले जातियों पर आधारित है, क्योंकि उनके मामले मुख्य तौर पर उन्हीं से आते हैं. उन्हें इस बात का अंदाज़ा था लेकिन फिर भी उन्होंने वकालत करने का जोख़िम उठाया.
स्रोत - BBC News Room
8 months ago | [YT] | 1
View 0 replies
GENERAL STUDY NUMBER ONE
15 मार्च 2025, बामसेफ के संस्थापक , बहुजन नायक, मान्यवर कांशीराम जी के 91 वें जन्म जयंती के अवसर पर आप सभी मूलनिवासी बहुजनों को हार्दिक बधाईयां.
मान्यवर कांशीराम (15 मार्च 1934 – 9 अक्टूबर 2006) भारतीय राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। उन्होंने भारतीय वर्ण व्यवस्था में बहुजनों के राजनीतिक एकीकरण तथा उत्थान के लिए कार्य किया। उन्होंने दलित शोषित संघर्ष समिति (DS-4), 1971 में अखिल भारतीय पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदायों कर्मचारी महासंघ (बामसेफ) और 1984 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना की।
9 months ago | [YT] | 2
View 0 replies
GENERAL STUDY NUMBER ONE
मन चंगा तो कठौती में गंगा।
जन्म जात मत पूछिए, का जात और पात। #रैदास पूत सम प्रभु के कोई नहिं जात-कुजात।।
ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न। छोट बड़ो सब सम बसे, #रविदास रहे प्रसन्न।।
10 months ago | [YT] | 2
View 0 replies
GENERAL STUDY NUMBER ONE
#INDIA #CELEBRATE 76th #REPUBLIC_DAY 26 JANUARY 2025 # BRSM #SONBHADRA.
11 months ago | [YT] | 4
View 1 reply
GENERAL STUDY NUMBER ONE
स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, पाठशाला ही इंसानों का सच्चा गहना है #Savitribaiphule
#Happy_teacher_Day
11 months ago | [YT] | 3
View 1 reply
Load more