834 jun 24
*।। नागा साधु ।।*
नागा साधु का जीवन शिव योगी का जीवन होता है। योग की वह प्रणाली जो सामान्य योग से सर्वथा पृथक
होती है उसे शिव योग कहते हैं। ऋषभ देव, वामदेव, शिलाद, दधीचि आदि शिवयोगी की परम्परा में आते हैं। प्रकृति के साथ रहकर प्रकृति के सभी गुणों को सहजता के साथ सह लेने की क्षमता नागा साधुओं में होती है। वे अपनी योगाग्नि से शीतकाल में हिम शिखर पर रहते हैं और अपनी शांभवी शीतलता के बलपर ५० डिग्री सेल्सियस गर्मी में अग्नि भी तापते रहते हैं। ये अनेक सिद्धियों से युक्त योगी होते हैं
*इन नागाओं में काम भाव का अंश भस्म होकर बाहर उड़ जाता है।* इनमें सांसारिक लोगों की तरह सोचने की प्रवृत्ति भी समाप्त हो जाती है। ये किसी की प्रसन्नता के लिए प्रदर्शन करना नहीं जानते। इनके लिए शरीर एक जड़ तत्त्व होता है जिसके भीतर वे चेतन रूप में रहते हैं।
स्वयं के शरीर के किसी भाग को ये उतना ही महत्व देते हैं जितना वे अपने नखो और बालों को देते हैं। वे अपनी कुरूपता में अपनी शिव रूपता का दर्शन करते हैं। चिता भस्म, जटा जूट, रुद्राक्ष माला और अग्नि प्रज्वलित करने के उपकरण ही इनके लिए महत्त्व के होते हैं
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