Beyond The Third Eye



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रतन टाटा: एक मूल्य आधारित नेता की विरासत: सिकेन शेखर बाजपेयी

भारत की औद्योगिक दुनिया में रतन टाटा का नाम न केवल उनके व्यवसायिक कौशल के लिए जाना जाता है, बल्कि उनके नैतिक मूल्यों और नेतृत्व शैली के लिए भी। रतन टाटा ने अपनी पूरी करियर में जिन सिद्धांतों का पालन किया, वे आज के प्रतिस्पर्धात्मक और कभी-कभी अनैतिक व्यवसायिक माहौल में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं।

नैतिकता और व्यवसाय का संगम

रतन टाटा ने हमेशा यह बताया कि व्यवसाय केवल लाभ कमाने का माध्यम नहीं है, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाने का एक जरिया भी है। उन्होंने टाटा समूह को एक ऐसा ब्रांड बनाया, जिसे विश्वसनीयता, गुणवत्ता और समाज के प्रति जिम्मेदारी के लिए जाना जाता है। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने न केवल आर्थिक विकास किया, बल्कि समाज के विभिन्न तबकों की भलाई के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

आज, जब हम देखते हैं कि कुछ व्यवसायी केवल लाभ के लिए नैतिक मूल्यों की अनदेखी कर रहे हैं, तब रतन टाटा की छवि और भी प्रासंगिक हो जाती है। वे उस समय को याद दिलाते हैं जब व्यवसायिक सफलता का मतलब केवल वित्तीय मुनाफा नहीं, बल्कि समाज की भलाई भी होती थी।

बदलते समय की चुनौतियाँ

समाज में ऐसे कई लोग हैं जो रतन टाटा को एक आदर्श नेता के रूप में याद कर रहे हैं, लेकिन उनकी वास्तविकता को समझने में विफल हैं। आज के कारोबारी जगत में कुछ लोग रतन टाटा की प्रतिष्ठा का उपयोग अपने लाभ के लिए कर रहे हैं, जबकि वे उन मूल्यों का पालन नहीं कर रहे जिनके लिए रतन टाटा को जाना जाता है।

उदाहरण के लिए, जब कुछ लोग कंपनियों के लिए अनैतिक तरीके अपनाते हैं, तो उन्हें यह याद रखना चाहिए कि रतन टाटा ने हमेशा पारदर्शिता, ईमानदारी और जिम्मेदारी को प्राथमिकता दी। यह महत्वपूर्ण है कि हम केवल रतन टाटा का नाम लें, बल्कि उनके सिद्धांतों को भी अपनाएं।

युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा

रतन टाटा की कहानी आज के युवा उद्यमियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। वे इस बात का उदाहरण पेश करते हैं कि कैसे एक सफल व्यवसायी बनते हुए भी नैतिकता को नहीं छोड़ना चाहिए। "आपकी पहचान आपके काम से नहीं, बल्कि आपके मूल्यों से होती है।" यह संदेश आज के युवा व्यवसायियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

रतन टाटा का जीवन और कार्य हमें यह सिखाता है कि व्यवसाय का मतलब केवल मुनाफा नहीं है, बल्कि समाज और उसके मूल्यों के प्रति जिम्मेदारी भी है। आज जब कुछ लोग अनैतिक तरीकों से लाभ कमाने की कोशिश कर रहे हैं, रतन टाटा की विरासत हमें याद दिलाती है कि असली सफलता वही है जो समाज की भलाई में योगदान दे। यदि हम रतन टाटा को याद करते हैं, तो हमें उनके मूल्यों को भी अपनाना होगा। तभी हम वास्तव में उन्हें सम्मान दे सकेंगे।

1 year ago | [YT] | 6

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अंजना ओम कश्यप का इंटरव्यू: पत्रकारिता का पतन या सिर्फ एक शो?

हाल ही में अंजना ओम कश्यप द्वारा किया गया इंटरव्यू न केवल एक साधारण बातचीत के रूप में सामने आया, बल्कि यह भारतीय पत्रकारिता के मानकों पर भी सवाल उठाने वाला बन गया है। यह इंटरव्यू शायद भारतीय टेलीविजन के इतिहास का सबसे वाहियात उदाहरण बनकर उभरा है, जहां पत्रकारिता की गरिमा को बुरी तरह चोट पहुंचाई गई है।

इस इंटरव्यू में मुख्यमंत्री मोहन यादव को एक ऐसे माहौल में रखा गया था, जो पूरी तरह से उनके आराम और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया था। सवालों की गुणवत्ता इतनी खराब थी कि ऐसा लगा कि बातचीत केवल रूटीन का हिस्सा है। न तो योजनाओं पर कोई गंभीर चर्चा हुई और न ही आम जनता के दर्द को समर्पित कोई स्थान मिला। यह स्थिति दर्शाती है कि पत्रकारिता अब कितनी सतही हो गई है, जहां मुद्दों की गहराई खो गई है।

आधुनिक पत्रकारिता का उद्देश्य केवल सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि जनता के मुद्दों को सही ढंग से उठाना और समाधान की दिशा में काम करना है। लेकिन इस इंटरव्यू में ऐसा कुछ नहीं था। पत्रकार के द्वारा पूछे गए प्रश्न इतने सरल और गैर-गंभीर थे कि उन्होंने पूरी बातचीत को हास्यास्पद बना दिया। इस तरह की लापरवाही निश्चित रूप से दर्शकों को भटका सकती है और मीडिया की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकती है।

इंटरव्यू में मोहन यादव की हैसियत का सहारा लेकर आरएसएस के उद्देश्यों की चर्चा की गई, जिसमें "भारत माता की जय" कहने पर जोर दिया गया। यह स्पष्ट है कि पत्रकारिता का यह तरीका न केवल पक्षपाती है, बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों का भी उल्लंघन करता है। जब पत्रकारिता का ऐसा स्वरूप हो, तो यह केवल एक नाटक बनकर रह जाती है, जो देश और संघ के लिए भले ही पसंद आए, लेकिन आम जनता के लिए एक विडंबना है।

यदि पत्रकारिता को अपनी पहचान और विश्वसनीयता बनाए रखनी है, तो उसे न केवल घटनाओं का संकलन करना होगा, बल्कि जनता की आवाज़ों को भी सही तरीके से उठाना होगा। पत्रकारों को चाहिए कि वे अपनी भूमिका को गंभीरता से समझें और वास्तविकता को प्रस्तुत करने का प्रयास करें। केवल मेकअप और दिखावे पर ध्यान देने के बजाय, पत्रकारों को गंभीर संवाद और मुद्दों की तह तक जाने का प्रयास करना चाहिए।

इस इंटरव्यू ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या हम सच में एक स्वस्थ और गंभीर पत्रकारिता का अनुभव कर रहे हैं, या यह केवल एक मनोरंजन का साधन बनकर रह गया है। यदि यह स्थिति नहीं बदली, तो हमें यह मान लेना होगा कि पत्रकारिता का यह बड़ा ब्रांड अपनी पहचान और विश्वसनीयता खो देगा।

- सिकेन शेखर बाजपेयी

1 year ago | [YT] | 4

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Big announcement! I’m thrilled to introduce my new talk show, "Spotlight"! Join me as we dive into compelling stories, insightful interviews, and the issues shaping our world. Stay tuned for thought-provoking conversations and exclusive content. Let’s shine a light on what matters! #SpotlightWithSiken

1 year ago | [YT] | 2

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मैं इस बात को सोचकर हैरान हूँ कि बिहार के लोगों को रैली, रैला में ले जाकर भीड़ जुटाने की कोशिश क्यों होती है? क्या जिन लोगों को रैली का हिस्सा बनाया जाता है उनके हालात और स्थिति के बारे में ईमानदारी से बातें होती है? आज जन विश्वास महारैली में मैंने देखा विपक्ष के दो चार पार्टी प्रमुख और कुछ वरिष्ठ नेता भाषण का प्रसाद बाँट रहे थे। भाषण के दौरान एक एक - दो दो संदेश बोलते हुए नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी पर हमला बोला जा रहा था। जनता की स्थिति को आज के समय काल से जोड़कर किसी भी तरह की बातें नहीं की जा रही है। यह दुखद है। बिहार में सामान्य जनता के द्वारा लगभग दो दिन के संघर्ष के बाद उन्हें पार्टी का पूरी सब्जी ही हाथ लगने की संभावना है। बिहार में पूर्व में आयोजित हुई रैली इतनी सामान्य कभी नहीं थी। बिहार के आंदोलन को भी सामान्य कभी नहीं देखा गया। राहुल वरिष्ठ नेता हैं। उन्होंने कहा, मैं ज्यादा कुछ नहीं बोलूंगा, लालू जी बोलने वाले हैं। जब लालू जी बोल रहे थे तो पीछे मुड़कर अपने साथी नेता से पूछे और क्या बोले? यह मजाक बिहार के जनता के साथ बहुत दुखद है। नेता लोग जनता के लिए वर्कआउट कम पार्टी के लिए वर्कआउट ज्यादा कर रहे हैं। आज तेजस्वी का सिना मोदी जी के तरह 56 का हो गया होगा मगर तेजस्वी जरा आज रात में अपने शब्दों को ध्यान से देखें कि वह क्या नया संदेश आज के रैली में दिए हैं? अगर संदेश इतना महत्वपूर्ण नहीं रहा तो राजनीति के इस रुख को क्या समझा जाये? विचार जरूरी है? अगर राजनीति में लड़ाई और डर और फिर सब के सामने नेस्तनाबूद करने की पहल आज का प्रारूप बन गया है तो फिर क्यों मोदी - राहुल और अन्य नेताओं के लिए अखाड़ा नहीं बनाया जाता? - सिकेन शेखर बाजपेयी

1 year ago | [YT] | 6

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Emmanuel Macron wins presidential election and vows to unite France

3 years ago | [YT] | 0

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जल्द आ रहा हूँ.....
#WomenBeyondThought

3 years ago | [YT] | 2

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Coming soon#WomenBeyondThought ....

3 years ago (edited) | [YT] | 2

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Are You Happy with Modi Government?

4 years ago | [YT] | 4